भर्तृहरि bhartrihari


इस विश्व में स्वर्ण, गाय और पृथ्वी का दान देनेवाले सुलभ है लेकिन प्राणियों को अभयदान देनेवाले इन्सान दुर्लभ हैं। - भर्तृहरि
जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है, न ज्ञान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है; वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं)। - भर्तृहरि
जिनके हाथ ही पात्र हैं, भिक्षाटन से प्राप्त अन्न का निस्वादी भोजन करते हैं, विस्तीर्ण चारों दिशाएं ही जिनके वस्त्र हैं, पृथ्वी पर जो शयन करते हैं, अन्तकरण की शुद्धता से जो संतुष्ट हुआ करते हैं और देने भावों को त्याग कर जन्मजात कर्मों को नष्ट करते हैं, ऐसे ही मनुष्य धन्य है। - भर्तृहरि
को लाभो गुणिसंगमः (लाभ क्या है? गुणियों का साथ) — भर्तृहरि
दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। — भर्तृहरि
जब तक शरीर स्‍वस्‍थ है, इन्द्रियों की शक्ति क्षीण नहीं हुई तथा बुढ़ापा नहीं आया है, तब तक समझदार को अपने हित साध लेने चाहिए। - भर्तृहरि


आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता। - भर्तृहरि
धैर्यवान मनुष्य आत्मविश्वास की नौका पर सवार होकर आपत्ति की नदियों को सफलतापूर्वक पार कर जाते हैं। - भर्तृहरि
सच्चे वीर को युद्ध में मृत्यु से जितना कष्ट नहीं होता उससे कहीं अधिक कष्ट कायर को युद्ध के भय से होता है। - भतृहरि

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