देवस्थानों के अंदर सभी श्रद्धालु जूते-चप्पल बाहर उतारकर ही प्रवेश करते हैं।

भगवान या परमात्मा एक ऐसी शक्ति हैं जिनके लिए किसी भी समस्या या इच्छा पूर्ति असंभव नहीं है। देवी-देवताओं के दर्शन मात्र से ही हमारे पापों का नाश हो जाता है और पुण्यों में बढ़ोतरी होती है। इस प्रकार पुण्य लाभ प्राप्त करने के लिए हम मंदिर या देव स्थान जाते हैं। मंदिर या देवी-देवताओं के स्थानों पर जाने के लिए कई प्रकार के नियम बनाए गए हैं। इन्हीं नियमों में से एक है कि मंदिर में नंगे पैर जाना चाहिए। मंदिर में नंगे पैर जाना चाहिए यह एक अनिवार्य परंपरा है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा जैनालयों आदि देवस्थानों के अंदर सभी श्रद्धालु जूते-चप्पल बाहर उतारकर ही प्रवेश करते हैं। मंदिरों में नंगे पैर प्रवेश करने के पीछे कई कारण हैं। जैसे- देवस्थानों का निर्माण कुछ इस प्रकार से किया जाता है कि उस स्थान पर काफी सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित होती रहती है। नंगे पैर जाने से वह ऊर्जा पैरों के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर जाती है। जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक रहती है। नंगे पैर चलना एक्यूप्रेशर थैरेपी ही है और एक्यूप्रेशर के फायदे सभी जानते हैं। हम देवस्थानों में जाने से पूर्व कुछ देर ही सही पर जूते-चप्पल रूपी भौतिक सुविधा का त्याग करते हैं। इस त्याग को तपस्या के रूप में भी देखा जाता है। जूते-चप्पल में लगी गंदगी से मंदिर की पवित्रता भंग ना हो, इस वजह से हम उन्हें बाहर ही उतारकर देवस्थानों में नंगे पैर जाते हैं।
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भक्ति प्रेम, समर्पण और त्याग का ही रूप है

भक्ति प्रेम, समर्पण और त्याग का ही रूप है। धार्मिक आस्था है कि जब ऐसी भक्ति से ईश्वर को याद किया जाता है, तो ईश्वर भी उस प्रेम के वशीभूत हो दृश्य या अदृश्य रूप से भक्त पर कृपा करते हैं। भक्ति से कामनापूर्ति की बात हो तो भगवान शिव की भक्ति सबसे आसान और जल्द मुरादें पूरी करने वाली मानी जाती है। इसलिए भगवान शिव को भक्त आशुतोष, ओढरदानी या भोलेनाथ भी पुकारते हैं। पौराणिक प्रसंग बताते हैं कि शिव भक्ति से दानव, मानव ही नहीं बल्कि देवताओं ने भी अपने मनोरथ पूरे किए। इसी कड़ी में महाभारत के मुताबिक भगवान शिव ने स्वयं कहा है - श्री कृष्ण मेरी भक्ति करते हैं, इसलिए मुझे श्रीकृष्ण सबसे प्रिय है। भगवान श्रीकृष्ण ने शिव की उपासना शिव के हजार नामों के उच्चारण और बिल्वपत्रों को अर्पित कर सात माह तक कठोर तप के साथ की। महाभारत के अनुशासन पर्व में बताया गया है कि श्रीकृष्ण ने शिव की भक्ति से 16 कामनाओं को पूरा किया। जानिए श्री कृष्ण की ही ये 16 मुरादें और इंसानी जीवन के नजरिए से इन इन इच्छाओं के मायने। जिनको हर इंसान शिव भक्ति द्वारा पूरा करने का प्रयास करें - - धर्म में मेरी दृढ़ता रहे यानी सत्य, प्रेम परोपकार जैसा धर्म पालन। - युद्ध में शत्रुघात यानी विरोधियों और जीवन के संघर्ष में विपरीत हालात पर काबू पा लेना। - जगत में उत्तम यश यानी प्रसिद्धि, सम्मान, - परम बल यानी हर तरह से शक्ति संपन्न - योग बल यानी संयम और संतोष - सर्व प्रियता यानी सबसे मधुर संबंध और व्यवहार - शिव का सानिध्य यानी भगवान, धर्म और कर्म से जुड़े रहना। - दस हजार पुत्र यानी संतान और कुटुंब सुख - ब्राह्मणों में कोपाभाव यानी पवित्रता और शुचिता प्राप्त हो। - पिता की प्रसन्नता यानी पिता का प्रेम और आशीर्वाद - सैकड़ों पुत्र यानी दाम्पत्य सुख - उत्कृष्ट वैभव योग यानी सुख-समृद्धि - कुल में प्रीति यानी परिवार और संबंधियों में मेलजोल - माता का प्रसाद या अनुग्रह यानी माता से प्रेम और आशीर्वाद - शम प्राप्ति यानी हर तरह से शांति मिलना - दक्षता यानी कार्य कुशलता या हुनरमंद होना।
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तांत्रिक क्रियाओं में एक ऐसे पत्थर का उपयोग किया जाता

तंत्र शास्त्र के अंतर्गत तांत्रिक क्रियाओं में एक ऐसे पत्थर का उपयोग किया जाता है जो दिखने में बहुत ही साधारण होता है लेकिन इसका प्रभाव असाधारण होता है। इस पत्थर को गोमती चक्र कहते हैं। गोमती चक्र कम कीमत वाला एक ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी में मिलता है। गोमती चक्र के साधारण तंत्र उपयोग इस प्रकार हैं- - पेट संबंधी रोग होने पर 10 गोमती चक्र लेकर रात को पानी में डाल दें तथा सुबह उस पानी को पी लें। इससे पेट संबंध के विभिन्न रोग दूर हो जाते हैं। - धन लाभ के लिए 11 गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें। उनके सामने श्री नम: का जप करें। इससे आप जो भी कार्य या व्यवसाय करते हैं उसमें बरकत होगी और आमदनी बढऩे लगेगी। - गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी में सिंदूर तथा चावल डालकर रखें तो ये शीघ्र शुभ फल देते हैं। - होली, दीवाली तथा नवरात्र आदि प्रमुख त्योहारों पर गोमती चक्र की विशेष पूजा की जाती है। अन्य विभिन्न मुहूर्तों के अवसर पर भी इनकी पूजा लाभदायक मानी जाती है। सर्वसिद्धि योग तथा रविपुष्य योग पर इनकी पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
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अलग-अलग रूपों में शिव या अन्य देवताओं के मंत्र

शास्त्रों में अलग-अलग रूपों में शिव या अन्य देवताओं के मंत्र जप हर कामनापूर्ति, गंभीर रोग, पीड़ा और दु:ख से छुटकारे के लिए शुभ व असरदार माने गए हैं। किंतु अक्सर यह भी देखा जाता है कि परेशानियों से निजात पाने की व्यग्रता में कोई व्यक्ति मंत्र जप करता है तो अनजाने में गलत स्थान चुनने से मंत्र जप की मर्यादा भंग होती है। जबकि शास्त्रों में मंत्र जप प्रभावी बनाने व शुभ फल पाने के लिए स्थान की पवित्रता का महत्व बताया गया है। जानिए शिव या किसी भी देव मंत्रों के जप के लिए शास्त्रों के मुताबिक कौन-सी जगह श्रेष्ठ होती है, जहा मंत्र कामनासिद्धि और असरदार होते हैं - - शिव मंत्र जप ऐसे जगह पर करें जहां ध्यान भंग न हो और मन शांत भी रहे। - शिव या अन्य देव मंत्र जप समुद्र तट, नदी का किनारा, तीर्थस्थल श्रेष्ठ होता है। - शिव, विष्णु या देवी के मंदिर में भी मंत्र जप शुभ फल देते हैं। - गौशाला, बरगद के पेड़, आंवले के पेड़, तुलसी के पौधों के बीच या किसी भी पवित्र स्थान पर जप करना भी प्रभावी माना जाता है। - बिल्वपत्र, वटवृक्ष या आम के पेड़ के नीचे मंत्र जप सिद्धि देने वाला होता है। - सुनसान या भय पैदा करने वाले स्थानों, सिनेमाघर, बाजार के समीप या जहां ध्वनि यंत्रों का शोर होता हो, वह पर मंत्र जप न करें। - यह संभव न हो तो घर के खाली कमरे या कोने में चन्दन अगरबत्ती, गुलाब के फूल से वातावरण सुगंधित और स्वच्छ बनाकर मंत्र जप कर सकते हैं। - शास्त्रों के मुताबिक सूर्य, अग्रि, गुुरु, चन्द्रमा, दीपक, जल, ब्राह्मण और गायों के सामने जप करना श्रेष्ठ है। - गौशाला में जप करने से घर में किए जप से दस गुना फल प्राप्त होता है। ध्यान रहे ऐसी गौशाला में बैल न हो। - जंगल में जप करना, घर में किए जप की तुलना में सौ गुना फलदायी होता है। इसी तरह तालाब के किनारे हजार गुना और समुद्र, नदी किनारे, पहाड़ या शिव मंदिर में जप लाख गुना फल देता है। - वहीं गुरु के चरणों मे जप अनन्त गुना फल देता है।
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पैसा कमाने के लिए to earn money

पैसा कमाने के लिए इंसान क्या नहीं करता लेकिन फिर भी वह उस मुकाम को हासिल नहीं कर पाता जहां वो पहुंचना चाहता है। जबकि छोटे-छोटे घरेलू उपायों द्वारा ही धन की देवी को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। यहां हम आपको बता रहे हैं धन प्राप्ति के आसान व सरल उपाय, जिनसे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं- 1- प्रतिदिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर एक लोटा जल पीपल पर चढ़ाएं। 2- घर की प्रधान महिला सुबह उठकर एक लोटा शुद्ध जल से भरकर पूरे घर में छींटे मारे और शेष जल प्रवेश द्वार पर डाल दे। 3- चावलों को लाल रोली में रंगने के बाद प्रत्येक शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को माता लक्ष्मी का स्मरण करते हुए जल में बहा दें। 4- बुधवार के दिन यदि कोई किन्नर नजर आ जाए तो उसके बिना मांगे ही उसे कुछ पैसे दान कर दें। 5- प्रत्येक शुक्रवार को श्रीसूक्त अथवा लक्ष्मीसूक्त का पाठ करें। 6- माता लक्ष्मी को लाल रंग अति प्रिय है अत: घर में दीपक लगाते समय रुई के स्थान पर मौली की बाती बनाएं।
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शुभ कार्य को प्रारंभ करने से पहले

किसी भी शुभ कार्य को प्रारंभ करने से पहले शुभ मुहूर्त या विशेष ग्रह स्थिति देखी जाती हैं। शास्त्रों और ज्योतिष के अनुसार कुछ ऐसी तिथियां बताई गई हैं जो कुछ विशेष परिस्थितियों में अशुभ फल देती हैं। अत: इन तिथियों पर कोई भी नए कार्य का प्रारंभ नहीं करना चाहिए। यदि आप किसी शुभ का शुभारंभ करने जा रहे हैं तो ध्यान रखें कि उस दिन यह तिथि और वार न हो। शास्त्रों के अनुसार किसी भी माह की द्वादशी, एकादशी, दशमी, तृतीया, षष्ठी, द्वितीया और सप्तमी यदि क्रमश: रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार को आ रही हो तो उसी शुभ कार्य प्रारंभ न करें। इन वारों पर यह तिथियों अशुभ फल देने वाली बताई गई हैं। इन दिनों में कार्य प्रारंभ करने पर वह कार्य बिगडऩे की संभावनाएं रहती हैं और इन योगों को कुयोग समझा जाता है। अत: इन तिथियों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यदि इन योगों में कोई कार्य प्रारंभ करना अतिआवश्यक हो तो भगवान से प्रार्थना कर ही प्रारंभ करें। इस हेतु विधि विधान से संबंधित पूजा कराई जाना चाहिए। इन तिथियों के स्वामी देवताओं का पूजन करके ही कार्य शुरू करें।
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सुख के साथ दु:ख भी जीवन का हिस्सा है

सुख के साथ दु:ख भी जीवन का हिस्सा है। यही कारण है सफलता को कायम रखना भी कठिन होता है। इसलिए ऊंचाई पर बने रहने के लिए जरूरी है योग्यता, हौंसला और इच्छा शक्ति। फिर भी किसी न किसी रूप में जीवन की गति में रुकावट आए तो हर इंसान ऐसे उपाय और तरीके अपनाना चाहता है, जो सरल होने के साथ सफलता में कारगर भी हो। शास्त्रों में जीवन में आने वाली अनचाही परेशानियों, कष्ट, बाधाओं और संकट को दूर करने के लिए ऐसे देवताओं की उपासना के धार्मिक उपाय बताए हैं, जो न केवल मुश्किल हालात में भरपूर मानसिक शक्ति और शांति देते है, बल्कि उनका अचूक प्रभाव हर भय चिंता से मुक्त कर सफलताओं की बुलंदियों तक ले जाता है। यहां कुछ ऐसे देवताओं के मंत्र बताए जा रहें हैं। जिनको घर, कार्यालय, सफर में मन ही मन बोलना भी संकटमोचक माना गया है। इन मंत्रों को बोलने के अलावा यथासंभव समय निकालकर साथ ही बताई जा रही पूजा सामग्री संबंधित देवता को जरूर चढ़ाएं - शिव : मंत्र - नम: शिवाय, षडाक्षरी मंत्र - ऊँ नम: शिवाय महामृंत्युजय मंत्र - पूजा सामग्री - दूध मिला जल, धतूरा, बिल्वपत्र। श्री गणेश : मंत्र - ऊँ गं गणपतये नम: पूजा सामग्री - दूर्वा, सिंदूर श्री विष्णु : ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय पूजा सामग्री - पीले फूल या वस्त्र श्री हनुमान : ऊँ हं हनुमते नम: पूजा सामग्री - सिंदूर, गुड़-चना देवी : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। सामग्री - लाल चुनरी व चना-हलवा
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देवी-देवताओं का क्रोध झेलना पड़ता है

शास्त्रों में कई ऐसे कार्य बताए गए हैं जिन्हें करने पर देवी-देवताओं का क्रोध झेलना पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति से भगवान क्रोधित हो जाते हैं तो उसे कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। देवी-देवताओं में धन की देवी महालक्ष्मी का महत्वपूर्ण स्थान है। इनकी कृपा के बिना कोई भी व्यक्ति जीवन में सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता है। महालक्ष्मी के रुठ जाने पर व्यक्ति को पैसों की तंगी झेलना पड़ती है। ऐसे में लाख मेहनत करने के बाद भी उचित धन प्राप्त नहीं हो पाता है। यदि व्यक्ति पहले से ही धनी हो और उससे लक्ष्मीजी रुठ जाए तो उसका समस्त धन भी नष्ट हो सकता है। अत: शास्त्रों द्वारा वर्जित कार्य हमें नहीं करना चाहिए। महालक्ष्मी को क्रोधित करने वाले कार्यों में प्रमुख है झूठे हाथों से देवी-देवताओं की प्रतिमा या चित्रों को छूना। यदि कोई व्यक्ति कुछ खाने के बाद झूठे हाथों से ही भगवान को स्पर्श करता है तो उसे देवी-देवताओं का कोप सहना पड़ता है। घर की बरकत चली जाती है। कड़ी मेहनत के बाद भी व्यक्ति के पास पैसा नहीं आता। इसके अलावा पर्स में रखा पैसा भी अनावश्यक कार्यों में तुरंत ही खर्च होने लगता। अत: इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में झूठे हाथों से भगवान को स्पर्श न करें। भगवान के सामने जाने से पहले पूरी तरह पवित्र होकर ही जाना चाहिए। प्रसाद ग्रहण करने के बाद तुरंत हाथ धो लेना चाहिए।
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वास्तु के अनुसार सबसे अधिक जरूरी

जी हां आपको यकीन नहीं होगा कि इतना बड़ा राज आपके ही घर में छुुपा हो सकता है, लेकिन ये सच है। अगर आप गोर करें तो आपको पता चल जाएगा कि कैसे आसानी से पैसा और किस्मत डबल कर सकते हैं। पैसा, धन, रुपए की जरूरत आज सभी को है, इसे हासिल करने के लिए कई प्रकार के जतन किए जाते हैं। कई लोगों की किस्मत में थोड़ी मेहनत के बाद ही काफी धन प्राप्त हो जाता है लेकिन कुछ लोग कड़ी मेहनत करते हैं फिर भी उन्हें पर्याप्त पैसा नहीं मिल पाता है। ऐसे में वास्तु के अनुसार कुछ ऐसी टिप्स बताई गई हैं जिससे आपके परिवार की ओर महालक्ष्मी की कृपा बढ़ेगी, फिर मिलेगा धन ही धन। वास्तु के अनुसार सबसे अधिक जरूरी है कि घर सभी चीजे सही जगह पर रखी रहें अन्यथा गरीबी का निवास बहुत जल्दी हो जाता है। इसलिए इन बातों को अपनाएं... कौन सी वस्तु कहां रखें - सोते समय सिर दक्षिण में पैर उत्तर दिशा में रखें। या सिर पश्चिम में पैर पूर्व दिशा में रखना चाहिए। - अलमारी या तिजोरी को कभी भी दक्षिणमुखी नहीं रखें। - पूजा घर ईशान कोण में रखें। - रसोई घर मेन स्वीच, इलेक्ट्रीक बोर्ड, टीवी इन सब को आग्नेय कोण में रखें। - रसोई के स्टेंड का पत्थर काला नहीं रखें। - दक्षिणमुखी होकर रसोई नहीं पकाए। - शौचालय सदा नैर्ऋत्य कोण में रखने का प्रयास करें। - फर्श या दिवारों का रंग पूर्ण सफेद नहीं रखें। - फर्श काला नहीं रखें। - मुख्य द्वार की दाएं ओर शाम को रोजाना एक दीपक लगाएं। इन बातों को अपनाने निश्चित की धन संबंधी कई परेशानियां दूर होंगी।
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स्त्रियों के लक्षण

सनातन धर्म में स्त्री को शक्ति और लक्ष्मी स्वरूपा माना गया है। यही कारण है कि गृहस्थ जीवन की खुशहाली और बदहाली पुरूष ही नहीं स्त्री के श्रेष्ठ आचरण, व्यवहार और चरित्र पर भी निर्भर है। स्त्री परिवार की जिम्मेदारियों की बागडोर संभाल अपने तन के साथ मन और धन के संतुलन व प्रबंधन से शक्ति बन परिवार में खुशियां बनाए रखती है। इसी तरह हिन्दू धर्म में भी देवी लक्ष्मी ऐश्वर्य, धन और सुख-समृद्धि देने वाली मानी जाती है और यह भी मान्यता है कि वह दरिद्रता पसंद नहीं करती। इसलिए शास्त्रों में भी सांसारिक नजरिए से विवाहित या अविवाहित लक्ष्मी स्वरूपा स्त्री के लिए स्वयं के साथ घर-परिवार को भी बदहाली से बचाने के लिए बोल, व्यवहार से जुड़ी कुछ बुरी बातों से दूर रहने की सीख दी गई है। जिसके लिए दरिद्र बनाने वाली ऐसी स्त्रियों के लक्षण भी उजागर किए गए हैं - - जो स्त्री हमेशा पति के खिलाफ़ काम करे। - पति को कटु बोल बोलती है। - पति को तरह-तरह से दु:ख देती है। - लज्जाहीन स्त्री, झकडालू, गुस्सैल - चिढ़चिढ़ी और निर्मम - पति का घर छोड़कर दूसरे के घर में रहना पसंद करे। - बड़ों का अपमान करने वाली - परपुरूष को पसंद करे। - आलसी और अस्वच्छ रहने वाली - वाचाल यानी ज्यादा बोलने वाली - घर का सामान इधर-उधर फेंकने वाली - अधिक सोने वाली - घर को अस्त-व्यस्त रखने वाली - अनजान लोगों से अनावश्यक बात करने वाली
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नारी शक्ति की सुरक्षा के लिये

 1. एक नारी को तब क्या करना चाहिये जब वह देर रात में किसी उँची इमारत की लिफ़्ट में किसी अजनबी के साथ स्वयं को अकेला पाये ?  जब आप लिफ़्ट में...