विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
Aj ka Sandesh Eshwer ka noor her jaga her insan main majud hai, to ager hum ek baat apny ander main jaan len k Malik sab k ander hai, to bhala hum kesy kisi ko dukh de sakty hyn ya kisi ka bura kar sakty hyn is liye Tujh main hari hy, mujh main hari samaya hai. sub ko samj de bhagwan hare krishna
श्रीहरि कहते हैं कार्य के परिणाम के लिये जिम्मेदार सभी हैं लेकिन सतर्कता बरती जाय तो शर्मसार होने से बचा जा सकता है"........ मस्त आशु.... ♥♥
मोक्ष क्या है ...? क्या जीते जी भी कभी किसी कोमोक्ष प्राप्त हुआ है ...?? साधारण शब्दोंमें अगर मोक्षकीव्याख्याकी जाये तो, मोहके क्षयको मोक्ष कहते है ! जीव अपने जीवनमें जीते जी भीमोक्ष प्राप्त कर सकता है, इसका एक उदाहरण श्रीजनकजी महाराज है .... मस्त आशु.... ♥♥
parmatma prem swaroop, shukh swaroop, shanti swaroop, prakhash swaroop, pavitr swaroop hai parmatma ka jo bhi roop hame aakarsit kare hamari vrutti ke anusar hume parmatma ka swaroop achha lage usika vichar karenge ki me prem swaroop Aatma parmatmaki santan hu ki me shukh swaroop Aatma parmatmaki santan hu ki me shanti swaroop Aatma parmatmaki santan hu ki me prakash swaroop Aatma parmatmaki santan hu bas yahi vichar hame parmatma se 1 pal bhi alag nahi hone dega jese ye vichar dradh hoga hum Aatma parmatma ke swaroop bante jayenge......Asuu
our sabse mahatv purn hai jab vichar dradh hote hote Aatma prem swaroop shukh swaroop shanti swaroop prakash swaroop ko prapt karta hei tab prmatma ke sabse mahatv purn swaroop pavitr swaroop ko bhi prapt kar leta hai ohho ab me aatma na koi kamna na koi ichha na koi vichar sirf ab me pavitr swaroop aatma hu ab me sariri hote huve meri aatma parmatma ki masti me mast hai bas sayad yahi samadhi ki avstha he yahi prapti he kyu ki me parmatma balak unke pancho swaroop rupi varsa prapt kar atyant mast avstha me sadaiv rehta hu..
उन दिनों पांडव, द्रोणाचार्य से शिक्षा ले रहे थे। एक दिन उनका पाठ था, 'क्रोध को जीतो।' पाठ पढ़ाने के बाद द्रोणाचार्य ने अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव और युधिष्ठिर, सभी से पूछा, 'पाठ याद हो गया?' युधिष्ठिर को छोड़ सभी ने उत्तर दिया, 'याद हो गया।' लेकिन युधिष्ठिर ने कहा, 'याद नहीं हुआ।' द्रोणाचार्य ने विस्मय के साथ पूछा, 'क्या बात है, इतना सीधा-सादा पाठ तुम्हें याद नहीं हुआ? युधिष्ठिर का उत्तर था, 'नहीं हुआ।'
द्रोण ने कहा, 'ठीक है कल याद करके आना।' अगले दिन द्रोण ने पूछा, 'याद हो गया?' युधिष्ठिर का उत्तर था, 'नहीं हुआ।' द्रोण क्रोधित होकर बोले, 'तुम्हारे दिमाग में बुद्धि है या भूसा भरा है?' युधिष्ठिर ने बिना हिचकिचाहट के कहा, 'नहीं, मुझे पाठ याद नहीं हुआ।' द्रोण ने गरजते हुए कहा, 'तुमने दो दिन बर्बाद कर दिए। यदि तुम कल पाठ याद कर के नहीं आए तो तुम्हें दंडित होना पड़ेगा।'
तीसरे दिन भी युधिष्ठिर ने 'नहीं' उत्तर दिया। तब द्रोण ने युधिष्ठिर के गाल पर एक चांटा मारा। युधिष्ठिर कुछ देर चुपचाप खड़े रहे, फिर बोले, 'पाठ याद हो गया।' द्रोण बोले, 'मुझे पता नहीं था कि चांटा खाकर तुम्हें पाठ याद होगा अन्यथा पहले ही दिन तुम्हें चांटा खिला देता।' विनम्र स्वर में युधिष्ठिर ने कहा, 'गुरुदेव, ऐसी बात नहीं थी, मुझे अपने पर भरोसा नहीं था। आपने बड़े प्रेम से पाठ पढ़ाया तो मेरे मन ने कहा कोई प्यार से बात करे तो क्रोध का सवाल ही नहीं उठता। हो सकता है, तीखी भाषा में बोले तो क्रोध आ जाए।
अगले दिन जब आपने कहा कि मेरे दिमाग में बुद्धि है या भूसा, तब भी मुझे क्रोध नहीं आया। लेकिन मेरे मन ने कहा अभी एक और परीक्षा बाकी है, कोई बल प्रयोग करे तो क्रोध आ जाए। आज आपने जब चांटा मारा फिर भी मुझे क्रोध नहीं आया। तब मैं समझा कि मुझे पाठ याद हो गया।' द्रोण ने युधिष्ठिर को गले लगा लिया।
www.goswamirishta.com कई लोग जीवनभर खूब मेहनत करते हैं, फिर जब मन भारी होता है वे तीर्थों, पहाड़ों या हील स्टेशनों का रास्ता पकड़ते हैं। शांति की तलाश में दुनिया घूम लेते हैं लेकिन एक जगह जाना भूल जाते हैं। खुद के भीतर। जिस शांति की तलाश में दुनिया भटक रही है, वह हमारे अपने भीतर ही है। बस जरूरत है उसे पहचानने की, उसकी ओर आगे बढऩे की, खुद के भीतर झांकने की। हम अपनी सारी ऊर्जा खत्म कर देते हैं, शांति की खोज में, जबकि शांति का सबसे सीधा और आसान तरीका है भीतर की ऊर्जा का रूप बदलना। जिन्हें शान्ति की खोज करना है उन्हें अपने भीतर की ऊर्जा को जानना होगा।
हम ज्यादातर अपनी जीवन ऊर्जा का उपयोग कर ही नहीं पाते हैं। इसका सबसे अच्छा उपयोग है इसका रूपान्तरण करना। यह ऊर्जा अधिकांशत: मूलाधार चक्र पर पड़ी रहती है। इसे कल्पना के साथ सांस का प्रयोग करते हुए नीचे से ऊपर के चक्रों पर लाकर सहस्त्रार चक्र पर छोडऩा है। बिना किसी तनाव के इसको अपनी दिनचर्या में जोड़ लें और धैर्य के साथ करें। ऊर्जा जितने ऊपर के चक्रों पर है हम उतने ही पवित्र रहेंगे और हम जितने पवित्र हैं उतने ही शान्त होंगे।
इसीलिए शान्ति की खोज बाहर न करके भीतर ही की जाए।पहले तो ऊर्जा को ऊपर उठाइए तथा दूसरा इसके अपव्यय को रोकें। ऊर्जा को बेकार के खर्च होने से रोकने के लिए अच्छा तरीका है मंत्रजप करें। व्यर्थ होती ऊर्जा सार्थक हो जाएगी। जब आप ऊर्जा के रूपान्तरण में लगेंगे तो पहली बाधा बाहर से नहीं भीतर से ही आएगी और यह कार्य करेगा हमारा मन। इसलिए अपने मन पर हमेशा संदेह रखें। हम एक भूल और कर जाते हैं इस मन को हम अपना समझ लेते हैं, जबकि इसका निर्माण हमारे लिए दूसरों ने किया है। माता-पिता, मित्र, रिश्तेदार, शिक्षक आदि ने।
जो हमारा बीता समय है, उसने हमारे मन को बनाया है। ये अतीत की स्मृतियां हमारे वर्तमान को आहत करती हैं, इसी कारण हमारा मन या तो अतीत से बंधा है या भविष्य से जुड़ा रहेगा। मन वर्तमान से सम्बन्ध बनाने में परहेज रखता है। मन जितना वर्तमान से जुड़ेगा, उतने ही हम शान्त रहेंगे। इसी को जागरण कहा गया है। तो जाग्रत रहें और ऊर्जा को ऊपर उठाएं, फिर संसार की कोई परिस्थिति आपको अशान्त नहीं कर सकती। इन दोनों काम में जिससे आपको मदद मिल सकती है।
मेरे कान्हा अगर तुम न हो, न जादू,न खुशी ,न ख्वाब,न ज़िन्दगी, न मोहब्बत,न कोई नज़्म....... बस मैं हूँ और मेरे सवाल कि – जब कुछ नहीं तो मेरा होना भी कोई भरम तो नहीं.........मस्त आशु
मेरे कान्हा तुम से शुरू और तुम पे ही आकर रुकी है मेरी हर नज़्म...... तुमसे जुदा कोई बात नज़्म सी लगती नहीं , क्या करूँ !!........मस्त आशु
मेरे कान्हा मैं नही कहती हु मोहन के तुम जरूर आना पर इतना ध्यान रखना के हम तेरे दरस प्यासे कबसे कर रहे तेरा इंतज़ार हैं जन्मो जन्मो से लगी हैं मोहन तेरे दरस की आस".
www.goswamirishta.com ईश्वर तो अपने अन्दर भी है और बाहर भी सर्वव्यापक है । अरे ढ़ूढ़ा तो उसे जाता है जो खो गया हो लेकिन भगवाग कोई खोया तो है नहीँ इस भगवान को बजाय खोजने के उसका अनुभव करने का प्रयत्न करना काफी उचित है ।और ये सही भी है ।
आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्यात हुए।
इतनी सदियां गुजरने के बाद आज भी यदि चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत और नीतियां प्रासंगिक हैं, तो मात्र इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्देश्य से अभिव्यक्त किया।
* ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वैश्यों का बल उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि वे सैनिकों द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है कि वे व्यापार द्वारा धन बढ़ाएं, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ लोगों की सेवा करना है।
www.goswamirishta.com वैष्णव संतों के मूलत: तीन अखाड़े है- श्री दिगम्बर आनी अखाड़ा, श्री निर्वाणी आनी अखाड़ा और श्री निर्मोही आनी अखाड़ा। यहां प्रस्तुत है निर्मोही आनी अखाड़े का संक्षिप्त परिचय। निर्मोही अखाड़े ( nirmohi akhara) की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। यह अखाड़ा भगवान राम के प्रति समर्पित है। इसीलिए अयोध्या आंदोलन से इस अखाड़े का नाम जुड़ा रहता है। कुम्भ मेले में इसकी भागीदारी बढ़-चढ़कर कर रहती है।
इस अखाड़े ने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मस्जिद के नजदीक मंदिर बनाने का प्रयास किया, लेकिन अदालत ने उसे रोक दिया था। हिंदुओं की तरफ से रामलला ट्रस्ट और निर्मोही अखाड़ा ही कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं।
निर्मोही अखाड़ा, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त 13 अखाड़ों में से एक है। इसका संबंध वैष्णव संप्रदाय से है और महंत भास्कर दास इसके अध्यक्ष हैं। इस अखाड़े से लगभग 12,000 साधु-संत जुड़े हुए हैं।
मूलत: कुम्भ या अर्धकुम्भ में साधु-संतों के कुल तेरह अखाड़ों द्वारा भाग लिया जाता है। इन अखाड़ों की प्राचीन काल से ही स्नान पर्व की परंपरा चली आ रही है। इन अखाड़ों के नाम है : -
शिव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े : 1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश)। 2. श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। 3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी- दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)। 4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती- त्रम्केश्वर, नासिक (महाराष्ट्र) 5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। 6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा- दशस्मेव घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। 7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात) बैरागी वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़े : 8. श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात)। 9. श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)। 10. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)। उदासीन संप्रदाय के तीन अखाड़े : 11. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)। 12. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)। 13. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)।
www.goswamirishta.com कुम्भ मेले में शैवपंथी नागा साधुओं को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है। नागा साधुओं की रहस्यमय जीवन शैली और दर्शन को जानने के लिए विदेशी श्रद्धालु ज्यादा उत्सुक रहते हैं। कुम्भ के सबसे पवित्र शाही स्नान में सबसे पहले स्नान का अधिकार इन्हें ही मिलता है।
नागा साधुओं का रूप : नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत मले, निर्वस्त्र रहते हैं। उनकी बड़ी-बड़ी जटाएं भी आकर्षण का केंद्र रहती है। हाथों में चिलम लिए और चरस का कश लगते हुए इन साधुओं को देखना अजीब लगता है।
मस्तक पर आड़ा भभूत लगा तीनधारी तिलक लगा कर धूनी रमा कर, नग्न रह कर और गुफाओं में तप करने वाले नागा साधुओं का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है। यह साधु उग्र स्वभाव के होते हैं।
कैसे बनता है व्यक्ति नागा साधु : नागा जीवन की विलक्षण परंपरा में दीक्षित होने के लिए वैराग्य भाव का होना जरूरी है। संसार की मोह-माया से मुक्त कठोर दिल वाला व्यक्ति ही नागा साधु बन सकता है।
साधु बनने से पूर्व ही ऐसे व्यक्ति को अपने हाथों से ही अपना ही श्राद्ध और पिंड दान करना होता है। अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप में स्वीकार नहीं करते। बाकायदा इसकी कठोर परीक्षा ली जाती है जिसमें तप, ब्रह्मचर्य, वैराग्य, ध्यान, संन्यास और धर्म का अनुशासन तथा निष्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं।
कठोर परीक्षा से गुजरने के बाद ही व्यक्ति संन्यासी जीवन की उच्चतम तथा अत्यंत विकट परंपरा में शामिल होकर गौरव प्राप्त करता है। इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों, संत परंपराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है।
क्यों शस्त्र धारण किया : शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए संन्यासी संघों का गठन किया था। बाहरी आक्रमण से बचने के लिए कालांतर में संन्यासियों के सबसे बड़े संघ जूना आखाड़े में संन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र-अस्त्र में पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया।
नागा इतिहास : वनवासी समाज के लोग अपनी रक्षा करने में समर्थ थे, और शस्त्र प्रवीण भी। इन्हीं शस्त्रधारी वनवासियों की जमात नागा साधुओं के रूप में सामने आई। ये नागा जैन और बौद्ध धर्म भी सनातन हिन्दू परम्परा से ही निकले थे। वन, अरण्य, नामधारी संन्यासी उड़ीसा के जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धन पीठ से संयुक्त हुए।
आज संतों के तेरह-चौदह अखाड़ों में सात संन्यासी अखाड़े (शैव) अपने-अपने नागा साधु बनाते हैं :- ये हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।