'क्रोध को जीतो।'

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उन दिनों पांडव, द्रोणाचार्य से शिक्षा ले रहे थे। एक दिन उनका पाठ था, 'क्रोध को जीतो।' पाठ पढ़ाने के बाद द्रोणाचार्य ने अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव और युधिष्ठिर, सभी से पूछा, 'पाठ याद हो गया?' युधिष्ठिर को छोड़ सभी ने उत्तर दिया, 'याद हो गया।' लेकिन युधिष्ठिर ने कहा, 'याद नहीं हुआ।' द्रोणाचार्य ने विस्मय के साथ पूछा, 'क्या बात है, इतना सीधा-सादा पाठ तुम्हें याद नहीं हुआ? युधिष्ठिर का उत्तर था, 'नहीं हुआ।'

द्रोण ने कहा, 'ठीक है कल याद करके आना।' अगले दिन द्रोण ने पूछा, 'याद हो गया?' युधिष्ठिर का उत्तर था, 'नहीं हुआ।' द्रोण क्रोधित होकर बोले, 'तुम्हारे दिमाग में बुद्धि है या भूसा भरा है?' युधिष्ठिर ने बिना हिचकिचाहट के कहा, 'नहीं, मुझे पाठ याद नहीं हुआ।' द्रोण ने गरजते हुए कहा, 'तुमने दो दिन बर्बाद कर दिए। यदि तुम कल पाठ याद कर के नहीं आए तो तुम्हें दंडित होना पड़ेगा।'

तीसरे दिन भी युधिष्ठिर ने 'नहीं' उत्तर दिया। तब द्रोण ने युधिष्ठिर के गाल पर एक चांटा मारा। युधिष्ठिर कुछ देर चुपचाप खड़े रहे, फिर बोले, 'पाठ याद हो गया।' द्रोण बोले, 'मुझे पता नहीं था कि चांटा खाकर तुम्हें पाठ याद होगा अन्यथा पहले ही दिन तुम्हें चांटा खिला देता।' विनम्र स्वर में युधिष्ठिर ने कहा, 'गुरुदेव, ऐसी बात नहीं थी, मुझे अपने पर भरोसा नहीं था। आपने बड़े प्रेम से पाठ पढ़ाया तो मेरे मन ने कहा कोई प्यार से बात करे तो क्रोध का सवाल ही नहीं उठता। हो सकता है, तीखी भाषा में बोले तो क्रोध आ जाए।



अगले दिन जब आपने कहा कि मेरे दिमाग में बुद्धि है या भूसा, तब भी मुझे क्रोध नहीं आया। लेकिन मेरे मन ने कहा अभी एक और परीक्षा बाकी है, कोई बल प्रयोग करे तो क्रोध आ जाए। आज आपने जब चांटा मारा फिर भी मुझे क्रोध नहीं आया। तब मैं समझा कि मुझे पाठ याद हो गया।' द्रोण ने युधिष्ठिर को गले लगा लिया।
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