जगत में सबसे सुंदर अपना आत्मस्वरूप

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व्यक्ति थोड़ा सा रूप क्या पा लेता है, आकाश में उड़ने लगता है । रूप के घमंड में इतराकर बातें करना शुरू कर देता है । उसके पैर धरती पर नहीं पड़ते हैं । मेरे जैसा रूप तो किसी का ही नहीं । मैं कितना सुंदर हूँ, जब में सड़क पर चलता हूँ तो हर व्यक्ति की दृष्टि मेरी तरफ आ जाती है । लोग इधर उधर न देख कर सब मेरी और देखने लगते है । तुमने देखा नहीं जब में सजधज कर भगवान के दर्शन हेतू मंदिरजी में जाता हूँ या जाती हूँ तो एक बार लोगों का ध्यान पूजा से हटकर मेरी तरफ आकर्षित हो जाता है ।
किस रूप पर अभिमान कर रहे हो मेरे भाई ? तनिक विचार करो, अपने जिस रूप पर आज इतना इतरा रहे हो, पच्चीस साल आगे के रूप को देखोगे तो तुम्हारे चेहरे पर दुनियाँ भर की झुरियाँ दिखाई देने लगेगी । और थोड़ा आगे जाकर के अपनी नजर को दौड़ाओगे तो यह सुंदर सलोना रूप चिता पर सुलगता हुआ दिखाई देगा । तो मेरे भाई ये है तुम्हारी दशा किस रूप पर तुम इतराते हो ? जिस जिस ने भी अपने स्वरूप को भूलकर रूप पर अभिमान किया है, उसकी अन्तिम परिणति यही रही है । पर क्या बताऊँ बंधुओं, आज तो भगवान के दर्शन करने के लिए, जहाँ लोग स्वरूप बोघ के दर्शन के लिए जाते हैं वहाँ भी हमारा ध्यान रूप पर ही टिका रहता है । हर आदमी और औरतें मंदिरजी में दर्शन हेतू तो दस मिनट के लिए आते हैं और मंदिरजी की तैयारी में ड्रेसिंग टेबल पर आधा घण्टा, बीस मिनट लगा देते हैं । आखिर ऐसा क्यों ? में तो समझता हूँ कि आज मंदिरों और धार्मिक कार्यक्रमों में जो लोग इतना सजधज कर के आते हैं, वे एक समस्या कि पूर्ति करते हैं । ग्रंथो यह बताया गया है कि इस काल में स्वर्ग से देव नहीं आते, में समझता हूँ इसी समस्या कि पूर्ति के कारण लोग स्वयं अपने आपको देवी देवता बनाकर भगवान के समक्ष प्रस्तुत करते हैं । पर बंधुओं थोड़ा सोचो -
होड देवों से लगाई, मनुज बनना न सीखा ।
विश्व को वामन पगों से मापने कि कामना है ॥
संत कहते हैं कि रूप का नहीं स्वरूप का सत्कार करो । किस रूप पर इतने मुग्ध होते हो ? मक्खी के पंख से भी पतली शरीर कि एक परत को उतारते ही सुंदर सलौना दिखाई पड़ने वाला यह शरीर घृणा कि चीज बन जाएगा । अत शरीर के रूप कि नहीं स्वरूप कि चिंता करो । आचार्य कुन्द कुन्द कहते हैं "जगत में सबसे सुंदर अपना आत्मस्वरूप है । उसका ही सत्कार करो । कवि ने ठीक ही कहा है-
मत रूप निहारो दर्पण में, दर्पण गंदला हो जाएगा ।
निजरूप निहारो अन्तर में, अन्तर उजाला हो जाएग
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