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रामनाथ कर्मकांडी ब्राह्मण था। पूजा-पाठ और भक्ति में उसका पूर्ण विश्वास था। लेकिन वह बहुत ही गरीब था। जहां वह रहता था वह ब्राह्मणों का ही गांव था। लेकिन वे सभी ढोंग और पाखंड में विश्वास रखते थे। उनका उद्देश्य केवल पैसा कमाना था।
कई बार उन ढोंगी ब्राह्मणों ने रामनाथ को भी सलाह दी थी कि वह भी लोगों को बेवकूफ बनाकर खूब पैसा कमाए, लेकिन इस काम के लिए उसका मन नहीं मानता था। एक बार रामनाथ की पत्नी ने उससे कहा, ‘आप दरबार में जाकर राजा से मदद मांगें।’
पत्नी की सलाह पर रामनाथ अगले दिन प्रातः राजा से मिलने महल की ओर चल दिया। वहां तक पहुंचने में एक दिन का समय लगता था। वह चलता रहा, चलते-चलते जब थक गया तो कुछ देर आराम करने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसे भूख भी लग रही थी। उसने रोटी की पोटली खोली तो उसमें पूजा का सामान भी था। उसे याद आया कि उसने तो आज पूजा ही नहीं की। वह पूजा करने लगा। उसके बाद उसने रोटी की पोटली खोली और जिस पेड़ के नीचे बैठा था, एक रोटी उसकी जड़ में रख कर बोला, ‘हे वृक्ष ! कृपया मेरी तरफ से यह रोटी स्वीकार करें।’
तभी वहां आवाज गूंजी, ‘हे ब्राह्मण आपने यहां पधारकर हमारा उद्धार कर दिया। हम तो वर्षों से आपकी है प्रतीक्षा कर रहे थे।’
रामनाथ हैरान रह गया। उसने देखा कि वृक्ष पर दो मैना बैठी थीं।’
मैना बोलीं, ‘जिस वृक्ष के नीचे आप बैठे हैं वह ऋषि तुंगभद्र हैं और हम दोनों स्वर्ग की अप्सराएं। कृपा करके आपके पास जो जल है, उसकी कुछ बूंदें इस वृक्ष और हम दोनों पर छिड़क दें तो हम सब अपने वास्तविक रूप में आ जाएंगे।
रामनाथ ने तुरंत उस वृक्ष पर और दोनों मैनाओं पर जल छिड़क दिया। वे सब अपने वास्तविक रूप में आ गए। ऋषि तुंगभद्र ने रामनाथ को धन्यवाद दिया और उसे दो थैली स्वर्ण-मुद्राएं दीं। इसके बाद वे तीनों वहां से अदृश्य हो गए। उनके जाते ही वहां एक सुंदर-सा मकान बन गया और फिर से एक आवाज गूंजी, ‘रामनाथ ! यह मकान तुम्हारा है।’
रामनाथ अपने गांव लौट आया। वहां उसने देखा कि गांव के सभी मकान टूटे पड़े हैं। वह अपने घर की तरफ दौड़ा। लेकिन उसका मकान सही-सलामत था। उसने अपनी पत्नी को सारी बात बताई। उसकी पत्नी बोली, ‘लगता है गांव के सभी ढोंगी पंडितों को भगवान ने श्राप दे दिया है।’
इसके बाद रामनाथ अपनी पत्नी के साथ नए मकान में आकर सुख से रहने लगा।
सच्ची श्रद्धा व भक्ति का फल एक-न-एक दिन अवश्य ही मिलता है। रामनाथ छल-कपट से धन कमाने को ठीक नहीं मानता था, उसकी ईमानदारी में शक्ति थी। इसी शक्ति ने ऋषि व अप्सराओं को मुक्ति दी और रामनाथ को भी वैभव मिल गया।
कई बार उन ढोंगी ब्राह्मणों ने रामनाथ को भी सलाह दी थी कि वह भी लोगों को बेवकूफ बनाकर खूब पैसा कमाए, लेकिन इस काम के लिए उसका मन नहीं मानता था। एक बार रामनाथ की पत्नी ने उससे कहा, ‘आप दरबार में जाकर राजा से मदद मांगें।’
पत्नी की सलाह पर रामनाथ अगले दिन प्रातः राजा से मिलने महल की ओर चल दिया। वहां तक पहुंचने में एक दिन का समय लगता था। वह चलता रहा, चलते-चलते जब थक गया तो कुछ देर आराम करने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसे भूख भी लग रही थी। उसने रोटी की पोटली खोली तो उसमें पूजा का सामान भी था। उसे याद आया कि उसने तो आज पूजा ही नहीं की। वह पूजा करने लगा। उसके बाद उसने रोटी की पोटली खोली और जिस पेड़ के नीचे बैठा था, एक रोटी उसकी जड़ में रख कर बोला, ‘हे वृक्ष ! कृपया मेरी तरफ से यह रोटी स्वीकार करें।’
तभी वहां आवाज गूंजी, ‘हे ब्राह्मण आपने यहां पधारकर हमारा उद्धार कर दिया। हम तो वर्षों से आपकी है प्रतीक्षा कर रहे थे।’
रामनाथ हैरान रह गया। उसने देखा कि वृक्ष पर दो मैना बैठी थीं।’
मैना बोलीं, ‘जिस वृक्ष के नीचे आप बैठे हैं वह ऋषि तुंगभद्र हैं और हम दोनों स्वर्ग की अप्सराएं। कृपा करके आपके पास जो जल है, उसकी कुछ बूंदें इस वृक्ष और हम दोनों पर छिड़क दें तो हम सब अपने वास्तविक रूप में आ जाएंगे।
रामनाथ ने तुरंत उस वृक्ष पर और दोनों मैनाओं पर जल छिड़क दिया। वे सब अपने वास्तविक रूप में आ गए। ऋषि तुंगभद्र ने रामनाथ को धन्यवाद दिया और उसे दो थैली स्वर्ण-मुद्राएं दीं। इसके बाद वे तीनों वहां से अदृश्य हो गए। उनके जाते ही वहां एक सुंदर-सा मकान बन गया और फिर से एक आवाज गूंजी, ‘रामनाथ ! यह मकान तुम्हारा है।’
रामनाथ अपने गांव लौट आया। वहां उसने देखा कि गांव के सभी मकान टूटे पड़े हैं। वह अपने घर की तरफ दौड़ा। लेकिन उसका मकान सही-सलामत था। उसने अपनी पत्नी को सारी बात बताई। उसकी पत्नी बोली, ‘लगता है गांव के सभी ढोंगी पंडितों को भगवान ने श्राप दे दिया है।’
इसके बाद रामनाथ अपनी पत्नी के साथ नए मकान में आकर सुख से रहने लगा।
सच्ची श्रद्धा व भक्ति का फल एक-न-एक दिन अवश्य ही मिलता है। रामनाथ छल-कपट से धन कमाने को ठीक नहीं मानता था, उसकी ईमानदारी में शक्ति थी। इसी शक्ति ने ऋषि व अप्सराओं को मुक्ति दी और रामनाथ को भी वैभव मिल गया।
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