महान संत कैसे बने

एक बार किसी ने हरि बाबा से पूछा कि: ‘‘बाबा ! आप ऐसे महान संत कैसे बने ?’’ हरि बाबा ने कहा: ‘‘बचपन में जब हम खेल खेलते थे तो एक साधु भिक्षा लेकर आते और हमारे साथ खेल खेलते। एक दिन साधु भिक्षा लाये और उनके पीछे वह कुत्ता लग गया, जिसे वह रोज टुकड़ा देते थे। पर उस दिन टुकड़ा दिया नहीं और झोले को एक ओर टांगकर हमारे साथ खेलने लगे किंतु कुत्ता झोले की ओर देखकर पूँछ हिलाये जा रहा था। तब बाबा ने कुत्ते से कहा: ‘चला जा, आज मुझे कम भिक्षा मिली है। तू अपनी भिक्षा माँग ले।’ फिर भी कुत्ता खड़ा रहा। तब पुनः बाबा ने कहा: ‘जा, यहां क्यों खड़ा है? क्यों पूँछ हिला रहा है?’ तीन-चार बार बाबा ने कुत्ते से कहा, किंतु कुत्ता गया नहीं। तब बाबा आ गये अपने बाबापने में और बोले: ‘जा, उलटे पैर लौट जा।’ तब वह कुत्ता उलटे पैर लौटने लगा। यह देखकर हम लोग दंग रह गये। हमने खेल बंद कर दिया और बाबा के पैर छुए। बाबा से पूछा: ‘बाबा! यह क्या, कुत्ता उलटे पैर जा रहा है! आपके पास ऐसा कौन-सा मंत्र है कि वह ऐसे चल रहा है?’ बोले: ‘बेटा! वह बड़ा सरल मंत्र है- सब में एक , एक में सब। तू उसमें टिक जा बस!’ तब से हम साधु बन गये।’’ मैं कहता हूं तुम्हारे आत्मदेव में इतनी शक्ति है, तुम्हारे चित्त में चैतन्य प्रभु का ऐसा सामर्थ्य है कि तुम चाहो तो भगवान को साकार रूप में प्रकट कर सकते हो, तुम चाहो तो भगवान को सखा बना सकते हो, तुम चाहो तो दुष्ट-से-दुष्ट व्यक्ति को सज्जन बना सकते हो, तुम चाहो तो देवताओं को प्रकट कर सकते हो। देवता अपने लोक में हों चाहे नहीं हों, तुम मनचाहा देवता पैदा कर सकते हो और मनचाहे देवता से मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकते हो, ऐसी आपकी चेतना में ताकत है। तो ‘सब में एक- एक में सब’ इसमें जो संत टिके होते हैं, वे तो ऐसी हस्ती होते हैं कि जहाँ आस्तिक भी झुक जाता है, नास्तिक भी झुक जाता है, कुत्ता तो क्या देवता भी जिनकी बात मानते हैं, दैत्य भी मानते हैं और देवताओं के देव भगवान भी जिनकी बात रखते हैं। सब-के-सब लोग ऐसे ब्रह्मनिष्ठ सत्पुरुष को चाहते हैं एवं उनकी बात मानते हैं।
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2 comments:

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