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एक साथ दो शिवलिंग का प्राकृतिक स्वरूप
एक जलाधारी में दो शिवलिंग
जबलपुर के रेवा के तट पर लम्हेरी ग्राम पंचायत में आने वाले एक ऐसे शिव मंदिर 'कुंभेश्वरनाथ' के रहस्य से आपको परिचित करा रहे है, जो समूचे विश्व में एकमात्र है।
ऐसा शास्त्रों और पुराणों का भी मत है। एक जिलहरी में दो शिवलिंग होना अपने आप में बहुत अनोखा है। कुंभेश्वरनाथ में राम, लक्ष्मण से पहले हनुमान ने भगवान शिव की आराधना कर यहां पर प्रकृति का संवर्धन व संरक्षण किया था।
नर्मदा-पुराण व शिव-पुराण के मतानुसार यह शिवलिंग स्वयं नर्मदा के अंदर से प्रकट हुआ था।
नर्मदा पुराण के अनुसार कुंभेश्वरनाथ में पहले हनुमान ने तप किया था। मार्कन्डेय ऋषि ने पांडवों को कुंभेश्वरनाथ की कथा सुनाई थी। उन्होंने युधिष्ठिर को बताया था कि सीता माता के धरती में समा जाने के बाद राम अयोध्या में राज कर रहे थे। तब हनुमान को शिव दर्शन की लालसा जागृत हुई तो वे श्रीराम से कहकर कैलाश की ओर चल दिए।
कैलाश पहुंचने पर नंदीश्वर ने हनुमान को शिव दर्शन से रोक दिया, तब हनुमान ने पूछा कि - मेरा पाप क्या है, जो मैं शिव के दर्शन नहीं कर सकता। तब नंदीश्वर ने कहा कि तुमने रावण कुल का संहार किया है और रावण की अशोक वाटिका को भी उजाड़ा था। इससे तुम्हें प्रकृति को नष्ट करने का पाप लगा है।
रावण कुल ऋषि पुलत्स्य का कुल है और अत: तुम्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा है। अत: नर्मदा के कुंभेश्वर तीर्थ पर जाकर तप एवं प्रकृति का संवर्धन और संरक्षण कर अपने आपको पाप मुक्त करना होगा। तब हनुमान ने कुंभेश्वर तीर्थ में तप किया।
जब ये सारी घटना उन्होंने प्रभु श्रीराम को बताई, तब उन्होंने कहा कि हम भी पाप के भागी है। अब हम भी कुंभेश्वर तीर्थ पर तप करेंगे।
पूरे विश्व में एकमात्र शिवलिंग : वैसे तो सारे संसार में अनगिनत प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शिवलिंग स्थापित हैं, लेकिन कुंभेश्वरनाथ लम्हेटी तट रेवा खंड का एक ऐसा स्थान है, जो विश्व में एकमात्र है। ऐसा शास्त्रों का मत है। एक जिलहरी यानी जलाधारी में शिवलिंग का होना अपने आपमें अनोखा है। ये शिवलिंग रामेश्वरम्- लक्ष्मणेश्वरम् के नाम से जाना जाता है।
एक साथ दो शिवलिंग का प्राकृतिक स्वरूप
एक जलाधारी में दो शिवलिंग
जबलपुर के रेवा के तट पर लम्हेरी ग्राम पंचायत में आने वाले एक ऐसे शिव मंदिर 'कुंभेश्वरनाथ' के रहस्य से आपको परिचित करा रहे है, जो समूचे विश्व में एकमात्र है।
ऐसा शास्त्रों और पुराणों का भी मत है। एक जिलहरी में दो शिवलिंग होना अपने आप में बहुत अनोखा है। कुंभेश्वरनाथ में राम, लक्ष्मण से पहले हनुमान ने भगवान शिव की आराधना कर यहां पर प्रकृति का संवर्धन व संरक्षण किया था।
नर्मदा-पुराण व शिव-पुराण के मतानुसार यह शिवलिंग स्वयं नर्मदा के अंदर से प्रकट हुआ था।
नर्मदा पुराण के अनुसार कुंभेश्वरनाथ में पहले हनुमान ने तप किया था। मार्कन्डेय ऋषि ने पांडवों को कुंभेश्वरनाथ की कथा सुनाई थी। उन्होंने युधिष्ठिर को बताया था कि सीता माता के धरती में समा जाने के बाद राम अयोध्या में राज कर रहे थे। तब हनुमान को शिव दर्शन की लालसा जागृत हुई तो वे श्रीराम से कहकर कैलाश की ओर चल दिए।
कैलाश पहुंचने पर नंदीश्वर ने हनुमान को शिव दर्शन से रोक दिया, तब हनुमान ने पूछा कि - मेरा पाप क्या है, जो मैं शिव के दर्शन नहीं कर सकता। तब नंदीश्वर ने कहा कि तुमने रावण कुल का संहार किया है और रावण की अशोक वाटिका को भी उजाड़ा था। इससे तुम्हें प्रकृति को नष्ट करने का पाप लगा है।
रावण कुल ऋषि पुलत्स्य का कुल है और अत: तुम्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा है। अत: नर्मदा के कुंभेश्वर तीर्थ पर जाकर तप एवं प्रकृति का संवर्धन और संरक्षण कर अपने आपको पाप मुक्त करना होगा। तब हनुमान ने कुंभेश्वर तीर्थ में तप किया।
जब ये सारी घटना उन्होंने प्रभु श्रीराम को बताई, तब उन्होंने कहा कि हम भी पाप के भागी है। अब हम भी कुंभेश्वर तीर्थ पर तप करेंगे।
पूरे विश्व में एकमात्र शिवलिंग : वैसे तो सारे संसार में अनगिनत प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शिवलिंग स्थापित हैं, लेकिन कुंभेश्वरनाथ लम्हेटी तट रेवा खंड का एक ऐसा स्थान है, जो विश्व में एकमात्र है। ऐसा शास्त्रों का मत है। एक जिलहरी यानी जलाधारी में शिवलिंग का होना अपने आपमें अनोखा है। ये शिवलिंग रामेश्वरम्- लक्ष्मणेश्वरम् के नाम से जाना जाता है।
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