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महर्षि गालव महामुनि विश्वामित्र के प्रिय शिष्य थे। जब वे सभी विद्याओं में पारंगत हो गए तब गुरु की आज्ञा से अपने पिता के दर्शन हेतु अपने घर को चले। जब वे अपने घर पहुंचे तो उनकी माता ने उन्हें उनके पिता की मृत्यु की सूचना दी। वे अत्यन्त दुखी हुए और गुरु का ध्यान कर पिता के दर्शन का उपाय ढूढ़ऩे लगे।
अचानक उन्हें शिव का ध्यान आया। वे अपनी माता की अनुमति लेकर योगसाधना द्वारा शिवजी की स्तुति करने लगे।उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उनसे वर मांगने को कहा। उन्होंने अपने पिता के दर्शनों का वर मांगा। शिवजी ने उन्हें वर दिया और आज्ञा दी कि वे तुरन्त घर वापस जाएं और अपने पिता के दर्शन करें।
शिवजी ने उनकी पृतभक्ति देखकर उन्हें व उनके माता-पिता को अमरता का वरदान दिया।जब गालव मुनि घर पहुंचे तो उन्हें उनके पिता यज्ञशाला के द्वार से आते दिखे। उन्हें देखकर गालव मुनि बहुत खुश हुए और पिता के चरणों में गिर पड़े।
इस प्रकार गालव मुनि ने शिवजी की भक्ति से अपने पिता के फिर दर्शन किए।
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