नग्न साधू

मित्रों कृपया इस लेख को साझा करें और नग्न रहकर साधना करने वाले साधू समाज के प्रति फैली गलतधारणा को दूर कर धर्म के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करें !
कुछ व्यक्ति ने महाकुंभ में विचरते नग्न साधू पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूछा है कि जहां माँ बहनें आती हैं वहाँ साधुओं का नग्न होकर घूमना कहाँ तक उचित है क्या यह भारतीय संस्कृति है ?
उत्तर : पाश्चात्य देशों में कई बार कुछ जन अपने विषय की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए नग्न होकर प्रदर्शन करते हैं !! वहाँ नग्न होकर प्रदर्शन करने का उद्देश्य होता कि सभी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना ! महाकुम्भ्में योगी और महात्मा नग्न होकर विचरते हैं वहाँ वे यह सब किसी का ध्यान आकृष्ट करने के लिए नहीं करते अपितु यह उनकी साधना का भाग होता है |
ध्यान रहे हम सब की उत्पत्ति ईश्वर से हुई परंतु हमें वह बोध अखंड नहीं होता क्योंकि हमारे अंदर देह बुद्धि होती है अर्थात मैं ब्रह्म हूँ के स्थान पर मैं देह हूँ और मैं फलां फलां हूँ यह विचार अधिक प्रबल होता है | जब तक मैं देह हूँ यह विचार प्रबल रहता है ईश्वर की प्रचीति नहीं हो सकती !
नग्न दो प्रकार के योगी रहते हैं – एक जो परमहंस के स्तरके संत होते हैं, उनसे स्वतः ही वस्त्र का त्याग हो जाता है क्योंकि उनकी देह बुद्धि समाप्त हो जाती हैं | ऐसे उच्च कोटी के योगी इस संसार में विरले ही हैं | दूसरे प्रकार के नग्न योगी हठयोगी होते है वे अंबर को अपना वस्त्र मानते हैं और वे अपने मन के विरुद्ध जाकर सर्व वस्त्र एवं सर्व बंधन त्याग कर साधनारत होते हैं | उनमें से कुछ शैव उपासक होते हैं तो कुछ अन्य पंथ अनुसार दिगंबर साधू होते हैं ! जो शैव साधू होते हैं वे शिव से एकरूप होने हेतु जो शिव को प्रिय है वे उनका उपयोग करते हैं|
इस कड़ाके की सर्द में एक दिवस नहीं अपितु दो या ढाई महीने नग्न रहना खिलवाड़ नहीं, अपितु उनकी साधना का परिचय देती हैं !
देह बुद्धि रहते हुए वस्त्रका त्याग, लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने हेतु नहीं अपितु साधना हेतु करने वाले के प्रति, हीन भावना नहीं आदर की भावना होनी चाहिए | कुम्भ में नग्न साधुओं की विशाल सेना इस बात का द्योतक है कि आज जब कलियुग अपने चरम पर है तब भी ये हठयोगी अपनी संस्कृति, साधू परंपरा और और अपने योगमार्ग को बनाए रखें हेतु प्रयत्नशील हैं | ऐसे श्रेष्ठ परंपरा का पोषण करने वाली इस दैवी, सनातन, वैदिक परंपरा के प्रति हमें गर्व होना चाहिए न की लज्जा ! और इन हठयोगी नग्न साधू परंपरा ने समय-समय पर सनातन संस्कृति का शस्त्र और शास्त्र दोनों के माध्यम से रक्षण किए हैं अतः इन धर्मरक्षक सात्त्विक सैनिकों के प्रति प्रत्येक हिन्दू को गर्व होना चाहिये !
मित्रों कृपया इस लेख को साझा करें और नग्न रहकर साधना करने वाले साधू समाज के प्रति फैली गलतधारणा को दूर कर धर्म के प्रति अपने कर्तव्य का  निर्वाह करें  ! 
कुछ व्यक्ति ने महाकुंभ में विचरते नग्न साधू पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूछा है कि जहां माँ बहनें आती हैं वहाँ साधुओं का नग्न होकर घूमना कहाँ तक उचित है क्या यह भारतीय संस्कृति है ? 
 उत्तर : पाश्चात्य देशों में कई बार कुछ जन अपने विषय की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए नग्न होकर प्रदर्शन करते हैं !! वहाँ नग्न होकर प्रदर्शन करने का उद्देश्य होता कि सभी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना ! महाकुम्भ्में योगी और महात्मा नग्न होकर विचरते हैं वहाँ वे यह सब किसी का ध्यान आकृष्ट करने के लिए नहीं करते अपितु यह उनकी साधना का भाग होता है | 
  ध्यान रहे हम सब की उत्पत्ति ईश्वर से  हुई परंतु हमें वह बोध अखंड नहीं होता क्योंकि हमारे अंदर देह बुद्धि होती है अर्थात मैं ब्रह्म हूँ के स्थान पर मैं देह हूँ और मैं फलां फलां हूँ यह विचार अधिक प्रबल होता है  | जब तक मैं देह हूँ  यह विचार प्रबल रहता है ईश्वर की प्रचीति नहीं हो सकती !
    नग्न दो प्रकार के योगी रहते हैं – एक जो परमहंस के स्तरके संत होते  हैं, उनसे स्वतः ही वस्त्र का त्याग हो जाता है क्योंकि उनकी देह बुद्धि समाप्त हो जाती हैं | ऐसे उच्च कोटी के योगी इस संसार में विरले ही हैं |  दूसरे प्रकार के नग्न योगी हठयोगी होते है वे अंबर को अपना वस्त्र मानते हैं और वे अपने मन के विरुद्ध जाकर   सर्व वस्त्र एवं सर्व बंधन त्याग कर साधनारत होते हैं | उनमें से कुछ शैव उपासक  होते हैं तो कुछ अन्य  पंथ अनुसार दिगंबर साधू होते हैं ! जो शैव साधू होते हैं वे शिव से एकरूप होने हेतु जो  शिव को प्रिय है वे उनका उपयोग करते हैं|    
    इस कड़ाके की सर्द में एक दिवस नहीं अपितु दो या ढाई महीने नग्न रहना खिलवाड़ नहीं, अपितु  उनकी साधना का परिचय देती हैं !  
   देह बुद्धि रहते हुए वस्त्रका त्याग, लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने हेतु नहीं अपितु साधना हेतु  करने वाले के प्रति, हीन भावना नहीं आदर की भावना होनी चाहिए | कुम्भ में नग्न साधुओं की विशाल सेना इस बात का द्योतक है कि आज जब कलियुग अपने चरम पर है तब भी ये हठयोगी अपनी संस्कृति, साधू परंपरा और और अपने योगमार्ग को बनाए रखें हेतु प्रयत्नशील हैं | ऐसे श्रेष्ठ परंपरा का पोषण करने वाली इस दैवी, सनातन, वैदिक परंपरा के प्रति हमें गर्व होना चाहिए न की लज्जा ! और इन हठयोगी नग्न साधू परंपरा ने समय-समय पर सनातन संस्कृति का शस्त्र और शास्त्र दोनों के माध्यम से रक्षण किए हैं अतः इन धर्मरक्षक सात्त्विक सैनिकों के प्रति प्रत्येक हिन्दू को गर्व होना चाहिये  !

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