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कुंभ, अर्धकुंभ और महाकुंभ आते ही लाखों की संख्या में आपको नागा बाबा डुबकी लगाते हुए दिखाई दे जाएंगे। लेकिन, कभी किसी ने सोचा है कि नागा बाबा कहां से आते हैं और कहां चले जाते हैं?
17 श्रृंगार की हुई संयम से बंधी निर्वस्त्र साधुओं की फौज को देखना अद्भुत है। यह नजारा आपको कुंभ के अलावा और कहां नजर आएगा? इन साधुओं को वनवासी संन्यासी कहा जाता है। दरअसल यह कुंभ के अलावा कभी भी सार्वजनिक जीव में दिखाई नहीं देते क्योंकि ये या तो अपने अखाड़े (आश्रम) के भीतर ही रहते हैं या हिमालय की गुफा में या फिर अकेले ही देशभर में पैदल ही घुमते रहते हैं।
जो चले जाते हैं हिमालय : कुंभ के समाप्त होने के बाद अधिकतर साधु अपने शरीर पर भभूत लपेट कर हिमालय की चोटियों के बीच चले जाते हैं। वहां यह अपने गुरु स्थान पर अगले कुंभ तक कठोर तप करते हैं। इस तप के दौरान ये फल-फूल खाकर ही जीवित रहते हैं।
12 साल तक कठोर तप करते वक्त उनके बाल कई मीटर लंबे हो जाते हैं। और ये तप तभी संपन्न होता है, जब ये कुंभ मेले के दौरान गंगा में डुबकी लगाते हैं। जी हां कहा जाता है कि गंगा स्नान के बाद ही एक नागा साधु का तप खत्म होता है।
त्रिशूल, शंख, तलवार और चिलम धारण किए ये नागा साधु धूनी रमाते हैं। यह शैवपंथ के कट्टर अनुयायी और अपने नियम के पक्के होते हैं। इनमें से कई सिद्ध होते हैं तो कई औघड़।
कुंभ, अर्धकुंभ और महाकुंभ आते ही लाखों की संख्या में आपको नागा बाबा डुबकी लगाते हुए दिखाई दे जाएंगे। लेकिन, कभी किसी ने सोचा है कि नागा बाबा कहां से आते हैं और कहां चले जाते हैं?
17 श्रृंगार की हुई संयम से बंधी निर्वस्त्र साधुओं की फौज को देखना अद्भुत है। यह नजारा आपको कुंभ के अलावा और कहां नजर आएगा? इन साधुओं को वनवासी संन्यासी कहा जाता है। दरअसल यह कुंभ के अलावा कभी भी सार्वजनिक जीव में दिखाई नहीं देते क्योंकि ये या तो अपने अखाड़े (आश्रम) के भीतर ही रहते हैं या हिमालय की गुफा में या फिर अकेले ही देशभर में पैदल ही घुमते रहते हैं।
जो चले जाते हैं हिमालय : कुंभ के समाप्त होने के बाद अधिकतर साधु अपने शरीर पर भभूत लपेट कर हिमालय की चोटियों के बीच चले जाते हैं। वहां यह अपने गुरु स्थान पर अगले कुंभ तक कठोर तप करते हैं। इस तप के दौरान ये फल-फूल खाकर ही जीवित रहते हैं।
12 साल तक कठोर तप करते वक्त उनके बाल कई मीटर लंबे हो जाते हैं। और ये तप तभी संपन्न होता है, जब ये कुंभ मेले के दौरान गंगा में डुबकी लगाते हैं। जी हां कहा जाता है कि गंगा स्नान के बाद ही एक नागा साधु का तप खत्म होता है।
त्रिशूल, शंख, तलवार और चिलम धारण किए ये नागा साधु धूनी रमाते हैं। यह शैवपंथ के कट्टर अनुयायी और अपने नियम के पक्के होते हैं। इनमें से कई सिद्ध होते हैं तो कई औघड़।
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