www.goswamirishta.com
बचपन में हम अच्छी-बुरी संगत का मतलब भले ही न समझें, पर किसी न किसी का साथ जरूर चाहिए होता है। बचपन मे विवेक कम या नहीं के बराबर रहता है, अत: अच्छा-बुरा जो मिले, मन वह स्वीकार करने लगता है।
इस समय ग्रहणशीलता चरम पर होती है, क्योंकि नए के लिए पर्याप्त स्थान और आग्रह उपलब्ध है। हर बच्चे में उसका नैसर्गिक और मौलिक गुण जन्म से ही होता है। माता-पिता उसके लालन-पालन में कमल के पत्ते और जलकण जैसा व्यवहार रखें तो भविष्य में बच्चे की योग्यता निखरकर आएगी। दूसरे पेड़ों के पत्तों पर पानी की बूंद उन पर गिरे तो वे उसे सोख लेते हैं, लेकिन कमल का पत्ता बूंद को बूंद ही रहने देता है।
जलकण की अपनी हस्ती मिटती नहीं। कमल का पत्ता न बूंद को सोखता है और न ही स्वयं भीगता है। इसलिए बालपन की बूंदों को सही संगत दी जाए। गर्म लोहे पर पानी की बूंद गिरेगी तो सूख जाएगी। यदि यही जलकण समुद्र में किसी सीप में गिर जाए तो विशेष नक्षत्र में मोती बन जाएगी। फिर जिस व्यक्तित्व में मोती होने की तैयारी होगी, उसे भविष्य में हीरा बनने से कोई नहीं रोक सकेगा।
इसलिए यह ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि बचपन को कौन-सी संगत दी जाए। संसार में मेल-जोल का नियंत्रण तो हम संभाल लेते हैं। बच्चों को आरंभ से परमात्मा की संगत दी जाए। बच्चे में दूसरे के प्रवेश पर खलबली मचती ही है। कभी वह भयभीत होगा तो कभी प्रसन्न होगा। ईश्वर का सान्निध्य उसे आत्मविश्वास देगा। आगे आने वाले जीवन में फिर वह बालपन किसी के भी प्रवेश के प्रति संयमित, सुरक्षित और अनुभवी रहेगा।
बचपन में हम अच्छी-बुरी संगत का मतलब भले ही न समझें, पर किसी न किसी का साथ जरूर चाहिए होता है। बचपन मे विवेक कम या नहीं के बराबर रहता है, अत: अच्छा-बुरा जो मिले, मन वह स्वीकार करने लगता है।
इस समय ग्रहणशीलता चरम पर होती है, क्योंकि नए के लिए पर्याप्त स्थान और आग्रह उपलब्ध है। हर बच्चे में उसका नैसर्गिक और मौलिक गुण जन्म से ही होता है। माता-पिता उसके लालन-पालन में कमल के पत्ते और जलकण जैसा व्यवहार रखें तो भविष्य में बच्चे की योग्यता निखरकर आएगी। दूसरे पेड़ों के पत्तों पर पानी की बूंद उन पर गिरे तो वे उसे सोख लेते हैं, लेकिन कमल का पत्ता बूंद को बूंद ही रहने देता है।
जलकण की अपनी हस्ती मिटती नहीं। कमल का पत्ता न बूंद को सोखता है और न ही स्वयं भीगता है। इसलिए बालपन की बूंदों को सही संगत दी जाए। गर्म लोहे पर पानी की बूंद गिरेगी तो सूख जाएगी। यदि यही जलकण समुद्र में किसी सीप में गिर जाए तो विशेष नक्षत्र में मोती बन जाएगी। फिर जिस व्यक्तित्व में मोती होने की तैयारी होगी, उसे भविष्य में हीरा बनने से कोई नहीं रोक सकेगा।
इसलिए यह ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि बचपन को कौन-सी संगत दी जाए। संसार में मेल-जोल का नियंत्रण तो हम संभाल लेते हैं। बच्चों को आरंभ से परमात्मा की संगत दी जाए। बच्चे में दूसरे के प्रवेश पर खलबली मचती ही है। कभी वह भयभीत होगा तो कभी प्रसन्न होगा। ईश्वर का सान्निध्य उसे आत्मविश्वास देगा। आगे आने वाले जीवन में फिर वह बालपन किसी के भी प्रवेश के प्रति संयमित, सुरक्षित और अनुभवी रहेगा।
No comments:
Post a Comment
Thanks to visit this blog, if you like than join us to get in touch continue. Thank You