भगवान

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प्राचीनकाल की बात है...पृथ्वी पर भयंकर बीमारियों, भूकम्प, आंधी-तूफान तथा खूंखार जानवरों का आतंक था। 
परेशान लोगों ने ईश्वर की आराधना की। उन्होंने भगवान से दिव्य पुरुष की मांग की, जो उन्हें इन सब प्रकोपों से मुक्ति दिला सके। अन्ततः भगवान को उन पर तरस आ गया और उन्होंने एक दिव्य-पुरुष पृथ्वी पर भेज दिया।
लोगों ने उस दिव्य-पुरुष को सिर-आँखों पर बैठा लिया। सभी उस पर बड़ी-बड़ी फूलों की माला चढ़ाने लगे। वह दिव्य-पुरुष लोगों की इस हरकत से बहुत परेशान हो रहा था। वह बार-बार लोगों से कहता भी, ‘रहने दो, इन सबकी क्या जरूरत है।’ किंतु लोग नहीं माने अंततः वह दिव्य पुरुष उन फूल मालाओं के बोझ तले दबकर मर गया।
लोग फिर भगवान से प्रार्थना करने लगे। इस बार भी भगवान ने एक और दिव्य-पुरुष पृथ्वी पर भेज दिया। उसका भी यही हश्र हुआ।

इस तरह लोग बार-बार प्रार्थना करते और भगवान हर बार एक दिव्य-पुरुष भेज देते।
इस बार जब लोग भगवान से दिव्य पुरुष की मांग कर रहे थे तो भगवान ने उनके पास एक पत्थर की मूर्ति भेज दी। लोगों ने उसका भी भरपूर स्वागत किया। उस पर भी खूब फूल-मालाएं चढ़ाईं। लेकिन उसे कुछ न हुआ...वह जस-का-तस रहा।
तब भगवान ने मन-ही-मन कहा, ‘इसबार तुम लोग जितनी मर्जी फूल-मालाएं चढ़ा लो यह दिव्य-पुरुष नहीं मरेगा।’
बार-बार एक ही घटना की पुनरावृत्ति होने पर यह सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है...क्या कारण है इसके पीछे। लोग ईश्वर के भेजे दिव्य-पुरुष को फूलों के बोझ तले दम तोड़ने को विवश कर देते थे, जबकि अपनी ओर से वे उसका सत्कार कर रहे थे। कुछ करने से पहले भला-बुरा सोच लेना चाहिए।
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