ये संसार हुआ है, बिल्कुल पागलखाना

 ये संसार हुआ है,

बिल्कुल पागलखाना।

दुनिया विकास के नाम पर,

विनाश की ओर दौड़ रही है।


झूठ का मेला फैला है,

सच का क़त्ल चला है।

पेड़ कटे, शहर बना,

धुआं निकला, साँस घुटा।


नेता भाषण में राजा,

नीति में सबसे सस्ता।

नदी को नाली कर डाला,

धरती को कंक्रीट से ढाँका।


अंधभक्तों का शोर बढ़ा,

सोचने वाला अब ग़द्दार।

प्रकृति की चीख दबा दी,

डेस्क पर दुनिया सजा दी।


नारी रोए, न्याय माँगे,

सिस्टम सोए, जुर्म बढ़े।

मॉल खुले, जंगल कटे,

पंछी रोए, पंख जले।


भूख से बच्चा मर जाए,

नेता रथ पे घूमे जाए।

ओज़ोन रोती चुपचाप,

गर्मी बरसे बिना जवाब।


धर्म बना है धंधा आज,

इंसानियत हुई निराश।

जात-पात की दीवारें ऊँची,

दिलों की ज़मीन हुई सूनी।


जो बोले वो देशद्रोही,

चुप रहो तो कहलाओ मोही।

सवाल करोगे तो मारा,

"विकास" ने सब कुछ हारा।



पागलखाना बना विकास,

सच पूछो तो है विनाश।

मिट्टी रोए, नदियाँ सूखी,

फिर भी कहते – "देश तरक़्क़ी"।


विकास के नाम पर खेला गया,

धरती माँ का सीना छेदा गया।

अब भी चुप है जो इंसान,

समझ लो वो भी पागलखाना का मेहमान।


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