वर्ग विभाजन

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सतयुग के अंतिम चरण में सृष्टि में वर्ग विभाजन का कार्य हुआ विराट पुरूष के मुख से ब्राह्मण, बाहु से क्षत्रिय, नाभि से वैश्य तथा पैर से शूद्र की उत्पत्ति मानी गई मुखमण्डल की भाॅति सर्वोच्चभाग ब्राह्मण में दो भेद हुआ एक मुखरन्ध्र। जिन्हें मुखज ब्राह्मण कहा- जिनका कार्य षटकर्म करना था। दूसरा वर्ग शिरोरन्ध्रा कहलाया जिसे शिरज कहा गया। जिनका उपनाम दीक्षा सन्यासी पडा। दीक्षा सन्यासी योगाश्रम एवं मठ में रहकर शिष्यों को यम, नियम, आसान, प्राणायम, प्रत्याहार, ध्यान व समाधि नामक अष्टांग योग की शिक्षा देते थे।
युग के भेद से उक्त दीक्षा सन्यासियों के आचार्यों का विभाजन हुआ-
1. सतयुग में इन दीक्षा सन्यासियों के आचार्य थे- ब्रह्मा, विष्णु, महेश
2. त्रेतायुग में इनके आचार्य थे- वशिष्ट, शक्ति, पाराशर।
3. द्वापर युग में इनके आचार्य थे- व्यास, शुकदेव।
4. कलयुग के आचार्य है-गौड, गोविन्द, शंड्ढराचार्य।

शंकराचार्य के चार शिष्य हुए :-

स्वरूपाचार्य, पùचार्य, त्रोटकाचार्य, पृथ्वीधराचार्य।
1. स्वरूपाचार्य, पùचार्य, त्रोटकाचार्य, पृथ्वीधराचार्य।
2. पùचार्य के शिष्य- वन, अरण्य कहलाए।
3. त्रोटकाचार्य के शिष्य- गिरि, पर्वत, सागर कहलाए।
4. पृथ्वीधराचार्य के शिष्य- सरस्वती, भारती और पुरी कहलाए।
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