शिव क्यों खाते हैं भांग-धतूरा

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भगवान शिव के बारे में एक बात प्रसिद्ध है कि वे भांग और धतूरे जैसी नशीली चीजों का सेवन करते हैं। शराब को छोड़कर उन्हें शेष सारी ऐसी वस्तुएं प्रिय हैं। क्या वाकई शिव हमेशा भांग या अन्य किसी नशे में रहते हैं? क्यों उन्हें इस तरह की वस्तुएं प्रिय हैं? क्यों सन्यासियों में गांजा-चिलम आदि का इतना प्रचलन है?

दरअसल भगवान शिव सन्यासी हैं और उनकी जीवन शैली बहुत अलग है। वे पहाड़ों पर रह कर समाधि लगाते हैं और वहीं पर ही निवास करते हैं। जैसे अभी भी कई सन्यासी पहाड़ों पर ही रहते हैं। पहाड़ों में होने वाली बर्फबारी से वहां का वातावरण अधिकांश समय बहुत ठंडा होता है। गांजा, धतूरा, भांग जैसी चीजें नशे के साथ ही शरीर को गरमी भी प्रदान करती हैं। जो वहां सन्यासियों को जीवन गुजारने में मददगार होती है। अगर थोड़ी मात्रा में ली जाए तो यह औषधि का काम भी करती है, इससे अनिद्रा, भूख आदि कम लगना जैसी समस्याएं भी मिटाई जा सकती हैं लेकिन अधिक मात्रा में लेने या नियमित सेवन करने पर यह शरीर को, खासतौर पर आंतों को काफी प्रभावित करती हैं।

इसकी गर्म तासीर और औषधिय गुणों के कारण ही इसे शिव से जोड़ा गया है। भांग-धतूरे और गांजा जैसी चीजों को शिव से जोडऩे का एक और दार्शनिक कारण भी है। ये चीजें त्याज्य श्रेणी में आती हैं, शिव का यह संदेश है कि मैं उनके साथ भी हूं जो सभ्य समाजों द्वारा त्याग दिए जाते हैं। जो मुझे समर्पित हो जाता है, मैं उसका हो जाता हूं।
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