मनुस्मृति में लिखा है

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भिक्षाम सत्कृत्य योदघा द्विष्णुरुपाया भिक्षपे ।
कृत्स्ना वा पृथ्वी दघत्स्या तुल्यं न तत्फ लम ।।
अर्थात जो आदरपूर्वक गोरकधारी (विष्णुरूप) सन्यासी को भिक्षा मात्र दान दे तो उसको संपूर्ण पृथ्वी दान से भी बड़कर पुण्य प्राप्त होता है

गोरकधारी को प्रणाम करने के विषय में कहा गया है ।
ये नमन्ति यति इराद दृष्ट्वा काषाय वाससाम ।
राजसूय फ ला वप्तिस्तेषा भवति पुत्रका: ||
अर्थात जो गैरिक वस्त्रधारी यति (गोस्वामी) को देखकर दूर से ही प्रणाम करता है उसको राजपूत करने का फल प्राप्त होता है ।

"स्कन्द पुराण" मे लिखा है -
गृहे यस्य समायाति महाभागवातो यति: |
वतय: पुज्यमानस्तु सर्वे देवा: सुपूजिता: ||
अर्थात जिसका बड़ा भाग्य होता है उसके घर पर गैरिक वस्त्रधारी यति पहुचते है क्योंकि यति के पूजा करने से ही सब देवता का पूजा हो जाती है ।


गैरिक वस्त्र के धार्मिक महत्व को जान सन 1907 मे समाजवादियो का एक अधिवेशन सम्पन्न हुआ था । उस सभा मे विश्व के समाजवादियो में हिन्दू महासभा में वेदकाल से पूजित गेरुआ झंडा फहराया । उपस्थित सभी राष्ट्रों ने इसका अभिवादन कर इस झड़ने को अन्तराष्ट्रीय सम्मान दिया था । लोकवेद तथा शास्त्र से लब्ध प्रतिष्ठित गैरिक वस्त्र सन्यासी की पहचान है ।
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