विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
बहुत पुरानी बात है। बंगाल के एक छोटे से स्टेशन पर एक रेलगाड़ी आकर रुकी। गाड़ी में से एक आधुनिक नौजवान लड़का उतरा। लड़के के पास एक छोटा सा संदूक था। स्टेशन पर उतरते ही लड़के ने कुली को आवाज लगानी शुरू कर दी। वह एक छोटा स्टेशन था, जहाँ पर ज्यादा लोग नहीं उतरते थे, इसलिए वहाँ उस स्टेशन पर कुली नहीं थे। स्टेशन पर कुली न देख कर लड़का परेशान हो गया। इतने में एक अधेड़ उम्र का आदमी धोती-कुर्ता पहने हुए लड़के के पास से गुजरा। लड़के ने उसे ही कुली समझा और उसे सामान उठाने के लिए कहा। धोती-कुर्ता पहने हुए आदमी ने भी चुपचाप सन्दूक उठाया और आधुनिक नौजवान के पीछे चल पड़ा।
घर पहुँचकर नौजवान ने कुली को पैसे देने चाहे। पर कुली ने पैसे लेने से साफ इनकार कर दिया और नौजवान से कहा—‘‘धन्यवाद ! पैसों की मुझे जरूरत नहीं है, फिर भी अगर तुम देना चाहते हो, तो एक वचन दो कि आगे से तुम अपना सारा काम अपने हाथों ही करोगे। अपना काम अपने आप करने पर ही हम स्वावलम्बी बनेंगे और जिस देश का नौजवान स्वावलम्बी नहीं हो, वह देश कभी सुखी और समृद्धिशाली नहीं हो सकता।’’ धोती-कुर्ता पहने यह व्यक्ति स्वयं उस समय के महान समाज सेवक और प्रसिद्ध विद्वान ईश्वरचन्द्र विद्यासागर थे।
कहानी हमें यह शिक्षा देती है कि हमें कभी अपना काम दूसरों से नहीं कराना चाहिए।
एक जंगल में पक्षियों का एक बड़ा सा दल रहता था। रोज सुबह सभी पक्षी भोजन की तलाश में निकलते थे। पक्षियों के राजा ने अपने पक्षियों को कह रखा था कि जिसे भी भोजन दिखाई देगा वह आकर अपने बाकी साथियों को आकर बता देगा और फिर सभी पक्षी एक साथ मिलकर दाना खाएंगे। इस तरह उस दल के सभी पक्षियों को भरपूर खाना मिल जाता था।
एक दिन भोजन की तालश में एक चिड़िया उड़ते-उड़ते काफी दूर निकल गयी। जंगल के बाहर रास्ते तक आ गई। इस रास्ते से गाड़ियों में अनाज के बोरे मण्डी जाया करते थे। रास्ते में काफी सारा अनाज गाड़ियों से नीचे गिरकर सड़क पर बिखर जाता था। चिड़िया गाड़ियों में अनाज के भरे बोरे देखकर बहुत खुश हुई, क्योंकि अब उसे और कोई जगह तलाश करने की जरूरत ही नहीं थी। अनाज से भरी गाड़ियाँ वहां से रोज गुजरती थीं और अनाज के दाने सड़क पर बिखरते भी रोज थे। चिड़िया के मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि उस जगह के बारे में वह किसी को नहीं बतायेगी और रोज इसी जगह आकर पेट भर खाना खाया करेगी।
उस शाम को जब चिड़िया अपने दल में वापस पहुँची, तब उसके बाकी साथियों ने देरी से आने का कारण पूछा।
चिड़िया ने भी एक अनूठी झूठी कहानी सुना दी कि वह किसी तरह जान बचाकर आयी है। उस रास्ते से तो इतनी गाड़ियाँ गुजरती हैं रास्ता पार करना मुश्किल है। दल की बाकी चिड़िया यह सुनकर डर गयीं और सभी ने निश्चय कर लिया कि वह रास्ते के पास नहीं जाएंगी।
इस तरह वह चिड़िया रोज उसी रास्ते पर जाकर पेट भर दाना खाती रही। एक दिन चिड़िया रोज की तरह रास्ते पर बैठकर खाना खा रही थी। खाना खाने में वह इतनी मग्न थी कि उसे उसकी तरफ आती हुई गाड़ी की आहट सुनाई ही नहीं दी। गाड़ी भी तेजी से आगे बढ़ रही थी। चिड़िया दाना चुगने में मग्न थी, गाड़ी पास आ गयी और गाड़ी का पहिया चिड़िया को कुचलता हुआ आगे निकल गया।
इस तरह लालची चिड़िया अपने ही जाल में फँस गयी।
ऊंटों का काफिला कहीं जा रहा था, राह में रात हो गई,ऊंटों को जब बांधा
गया तो एक रस्सी कम निकली. आशंका थी कि ऊंट को बांधा नहीं गया तो रात कहीं चला न जाये हर उपाय किये पर बात न बनी तब दूर साधू कि कुटिया दिखी,काफिले का मालिक साधू के पास गया और समस्या बताई,साधू ने कहा रस्सी तो मेरे पास भी नहीं है पर उपाय बताता हूँ जैसे सारे ऊटों को बांधा है, वैसे ही आखरी ऊंट को बांध दो बिना रस्सी के, काफिले का मालिक ने वैसे ही किया, हाथ में रस्सी न थी पर गले में हाथ घुमा के गांठ बांध दी फिर खूंटे में रस्सी बंधने का नाटक किया. ऊंट बैठ गया..! सुबह काफिले को रवाना होना था, सारे ऊंट तैय्यार हो गये पर ये ऊंट बैठा रहा. हर यत्न किए..काफिले का मालिक साधू के पास पहुंचा और समस्या बताई..साधू ने पूछा तुमने ऊंट को खोला..काफिले वाला बोला मैंने उसे बाँधा ही कहाँ है..साधू ने कहा रात जैसे बांधा था वैसे ही खोल दो,काफिले वाले ने ऊंट को खोलने का नाटक किया.. ऊंट उठ के खड़ा हो गया.. क्या हम मोह की ऐसी ही डोर से नहीं बंधे हैं...?
समस्त जीवधारियो में मनुष्य को सर्वश्रेस्ट माना गया है! अथर्ववेद में कहा गया है कि हे पुरुष, यह जीवन उन्नति करने के लिए है, अवनति करने के लिए नहीं है! परमेश्वर ने मनुष्य को दक्षता या कार्यकुशलता से परिपूर्ण किया है! ईश्वर यहाँ हमें पुरुष शब्द से संबोधित कर रहे है जिसका अर्थ है जो कार्य पूर्ण करके रहे वही पुरुष कहलाता है! इस परके मनुष्य का जीवन अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने की क्षमता रखने वाला है और उसके जीवन में सफलता उद्देश्यों की पूर्ति पर निर्भर करती है! मानव जीवन का उद्देश्य धर्मपूर्वक कर्म करते हुए अर्थ या धन- संपत्ति कमाना और धर्मपूर्वक कामनाये रखते हुए उनकी पूर्ति करना है! साथ ही धर्मपूर्वक जीवन व्यतीत करते हुए आत्मिक उन्नति कर मोक्ष्य को प्राप्त करना है! इसके लिए प्रभु ने मनुष्य को बुद्धि, विवेक और दक्षता प्रदान करते हुए विशेष शारीरिक रूप प्रदान किया है! मनुष्य के शरीर में आठ चक्र और नव द्वारो की स्थिति सबसे ऊपर मस्तिस्क रूपी राजा का नियंत्रण होने से वह समस्त कार्यो को तरीके से संचालित करता है और मनुष्य मन के तल पर जीता है लेकिन पशुओ आदि अन्य प्राणियों में मस्तिस्क व् चक्रों की स्थिति प्रथ्वी के समान्तर होने से उनकी अधोगति रहती है! मनुष्य इसके विपरीत अधर्वगामी होता है! इससे विचारो की परिपक्वता और ज्ञान की उत्क्रस्टता आसानी से प्राप्त कर प्रगति की और बढ़ता है! मनुष्य योनि कर्म के साथ- साथ योग योनि भी है, जबकि अन्य जीवो की केवल भोग योनि है! अन्य जीवो में मस्तिस्क में कोई दक्षता न होने के कारण उन्नति की कोई गुंजाईश नहीं रहती! परमेश्वर ने मनुष्य को केवल उन्नति करने के लिए बनाया है लेकिन यदि वह इस अवसर का लाभ न उठाकर फिर से अधोगति प्राप्त कर अन्य योनियो में जन्म लेता है तो इसके लिए तुम स्वयं ही दोषी हो! मनुष्य बुद्धि, विवेक, दक्षता और भक्ति से न केवल भौतिक उन्नति कर सकता है अपितु आध्यात्मिक रूप से भी उन्नति कर मोक्ष्य को प्राप्त कर सकता है! जन्म के समय मनुष्य के अन्दर अनेक शक्तिया निहित रहती है, किन्तु अपरिपक्व अविकसित होती है! उस समय मनुष्य का जैसे समाज में गठन किया जायेगा वैसे ही परिवेश के अनुसार मनुष्य का विकास होगा! शिक्षा के अभाव में मनुष्य केवल प्राणी होता है , इन्सान नहीं! मनुष्य समाज में रहकर ही अपने आंतरिक गुणों को प्रकाश में लाता है ! शिक्षा एक प्रक्रिया है! यह जन्म से प्रारंभ होकर मृत्यु तक चलती है, क्योकि मनुष्य जीवन भर कुछ न कुछ सीखता ही रहता है! पहले तो मनुष्य का जीवन ही दुर्लभ है, फिर उसे अपने जीवन के लक्ष्य को पहचान पाना और भी कठिन है, क्योकि इस मोह रूपी संसार में आकर उसी में गोते लगाता रहता है! तब शिक्षा और गुरु के माध्यम से ही अपने आन्तरिक गुणों को प्रकाश में लाता है! यदि धर्म के मार्ग पर चलकर मानव विज्ञ बनता है तो वह अपने जीवन के मार्ग के विकास के लिए अनवरत लगकर जीवन को सफल बनाता है और सम्यक ज्ञान, गुण धर्म के अपने जीवन को ब्रह्म से जोड़कर करोडो जन्मो के कर्मो से मुक्ति प्राप्त करता है, किन्तु यह शिक्षा के द्वारा ही संभव है! शिक्षा दो माध्यमो से संभव है! एक जीविकोपार्जन का माध्यम बनता है तथा दूसरी से जीवन साधन ! दोनों में परिपूर्णता गुरु के माध्यम से ही प्राप्त होती है! जीविकोपार्जन की शिक्षा पाकर यह संसार बड़ा सुखमय प्रतीत होता है तथा जलते हुए दीपक के प्रकाश जैसा वह बाहरी जीवन में प्रकाश पाता है! दूसरी शिक्षा पाने के लिए सद्गुरु की तलाश होती है! वह सद्गुरु कही भी और कोई भी हो सकता है!ब्रह्म ज्ञान और आत्मनिरूपण के सच्ची शिक्षा के बिना सार्थक जीवन नहीं मिलता!
एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी क्षण आ पहुँचा। आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों और चेलों को पास बुलाया। जब सब उनके पास आ गए, तब उन्होंने अपना पोपला मुँह पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले-'देखो, मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए हैं?' शिष्यों ने उनके मुँह की ओर देखा। कुछ टटोलते हुए वे लगभग एक स्वर में बोल उठे-'महाराज आपका तो एक भीदाँत शेष नहीं बचा। शायद कई वर्षों से आपका एक भी दाँत नहीं है।' साधु बोले-'देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।' सबने उत्तर दिया-'हाँ, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।' इस पर सबने कहा-'पर यह हुआ कैसे?' मेरे जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह चोला छोड़ रहा हूँ तो भी यह जीभ बची हुईहै। ये दाँत पीछे पैदा हुए, ये जीभसे पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण है, कभी सोचा?' शिष्यों ने उत्तर दिया-'हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।' उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- 'यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है परंतु.......मेरे दाँतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए, अपनी कठोरता के कारण ही ये दीर्घजीवी नहीं हो सके। दीर्घजीवी होना चाहते हो तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'
बूढ़ी काकी ने कहा,‘हम कई बार बिना सोचे-समझे बहुत कुछ कह जाते हैं। हमें अहसास नहीं हो पाता कि क्या कह दिया। लेकिन कुछ समय बाद मालूम पड़ता है कि शायद जो नहीं कहना चाहिए था वह कह दिया। जो नहीं करना चाहिए था वह कर दिया। इंसानों के साथ अक्सर ऐसा होता है।’
‘मैंने कई बार जाने-अनजाने बोल दिया। उस समय शायद मुझे नाप-तोल का वक्त न मिला हो, लेकिन शाम को सोते समय मुझे ख्याल आया कि आज कुछ गलत हो गया। मैंने किसी के हृदय को ठेस पहुंचा दी। जब हमें दर्द होता है, तब पता चलता है। दूसरों को दुख देना आसान है। मैं रात भर करवट बदलती रही। सोचती रही कि चंदा जो मेरी सखा थी, उसको कैसा महसूस हो रहा होगा।’
काकी को बीच में रोक कर मैंने कहा,‘शायद बहुत बुरा लगा होगा उसे। ऐसे मौकों पर भला अच्छा कैसे लग सकता है?’
मेरी बात को ध्यान से सुन काकी बोली,‘दिल तोड़ने आसन हैं, जोड़ने मुश्किल।’
मैंने काकी को कालेज में मेरे साथ पढ़ने वाले राम और अंजलि का किस्सा बताया। इसपर काकी तपाक से बोली,‘राम के साथ अंजलि......कुछ अजीब नहीं लगता। ऐसा हो सकता था जैसे राम-श्याम, सीता-गीता, और राम....... बगैरह-बगैरह। आगे कहो।’
मैंने बताना शुरु किया,‘न वे दोस्त थे, न दुश्मन, लेकिन राम को लगता था कि किस्मत ने उन्हें बस यूं ही मिला दिया। शायद इसलिए कि पिछले जन्म की कुछ बातें अधूरी रह गयी हों। खैर, राम कई बार जल्दबाजी में अंजलि को कुछ-न-कुछ अजीब बोल जाता। इसका असर अंजलि के चेहरे पर साफ झलकता। फिर काकी, बिल्कुल आपकी तरह वह रात को सोते समय दिन भर की बातों को याद करता, विचार करता। फिर अंजलि को याद करता कि ऐसा उसने क्यों किया कि किसी को बुरा लग गया हो। वैसे शब्दों की चोट हृदय पर काफी प्रभाव करती है। लेकिन राम अगले दिन या कुछ समय बाद अंजलि से बात कर स्थिति को फिर सामान्य बनाने की कोशिश में लग जाता।’
काकी ने अपनी झुर्रिदार, कमजोर गर्दन को घुमाया। वह बोली,‘लोग ऐसा कर तो जाते हैं, पर बाद में उन्हें एहसास भी होता है। मुझे लगता है इंसान ऐसा ही करते हैं। कुदरत ने उन्हें ऐसी बुद्धि दी है, या समझ से परे है सब कुछ। वैसे, सोच समझकर बहुत कुछ आसान किया जा सकता है। चिंतन सबसे महत्वपूर्ण है। किसी के हृदय को ठेस क्यों पहुंचायी जाये? तुमने राम-अंजलि की बात बताई। उससे राम के व्यवहार के विषय में साफ मालूम लग जाता है। फिर अंजलि की भावुकता का भी पता लगता है क्यों तुमने कहा कि उसका चेहरा बदल जाता है। आगे तुम कहते हो कि राम ठेस पहुंचाकर मामला सुलझा लेता है। यह राम का व्यवहार अजीब नहीं लगता।’
मैंने कहा,‘शायद यह भगवान की मर्जी है कि उन दोनों में विवाद नहीं हुआ। राम को भरोसा होगा कि भगवान सब संभाल लेगा। वैसे हमें आजतक वह ही तो संभालता आया है।’
इसपर काकी ने कहा,‘इंसानों के विचार अगर ठीक तरह से चल रहे हैं तो कुछ नहीं बिगड़ने वाला। मुझे नहीं लगता कि हम कभी विचारों की लड़ाई से पार सकेंगे। हां, उन्हें एक व्यवस्था जरुर उपलब्ध करा सकते हैं। हमें सीखना होगा ताकि किसी को यह न लगे कि हम बुरे हैं। हमें सीखना होगा कि किसी का हृदय कभी न टूटे, कभी न दुखे क्योंकि इससे व्यक्ति भी बिखर जाता है। हमें नहीं कहना होगा वह शब्द जो वाण की तरह धंस जाए।’
‘शायद बहुत सी चीजें कही अच्छे ढंग से जाती हैं, लेकिन उन्हें उस तरह करना मुश्किल होता है।’
इतना कहकर काकी ने विराम लिया। मैं उसकी आंखों को देखता रहा, कितनी शांत थीं।
अंजलि की बातों में उस दिन मैं खो गया था। वैसे ऐसा लगभग रोज होता है। कभी-कभी मुझे लगता है कि शायद वह परेशान है। कभी लगता है कि वह कुछ कहना चाहती है, लेकिन उसकी हालत मेरी तरह है क्योंकि में उससे हजारों बातें कहना चाहता हूं, पर उसके सामने जाकर सकपका जाता हूं। ऐस उन लोगों के साथ अधिक होता है जिनकी जन्मतिथि के हिसाब से कन्या राशि हो। राशियों का मेल मजेदार होता है और लोगों का भी।
मैं कहा रहा था कि अंजलि काफी गुस्से में है, मुझे कभी-कभी लगता है। वह चुप है क्योंकि वह बहुत सोचती है। वह शांत है क्योंकि वह संतुष्ट है। वह हर चीज को बारीकी से परखती है, बिल्कुल मेरी तरह। भीड़ में रहने के बावजूद वह उसमें खोना नहीं चाहती। उसकी ख्वाहिश भीड़ से अलग दिखने की है।
हम विचारों को महत्व इसलिए देते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि उनसे हम सीख सकते हैं। हम दोनों एक-दूसरे के विचारों की कद्र करते हैं। शायद यह हमें अच्छा लगता है। हमें घंटों बैठकर बातें करने में कोई बुराई नहीं, जबकि आजतक ऐसा हुआ नहीं। पन्द्रह-बीस मिनट तक हम काफी विचार कर चुके हैं। समय की पाबंदी के कारण कई बातें अधूरी रह गयीं। उनकी भरपाई के लिए अगला दिन था, पर ऐसा हुआ नहीं।
अंजलि के कारण मुझे एक नया दोस्त मिल गया। हालांकि मैंने उसे कभी देखा नहीं, न ही मैं उसे जानता। लेकिन हमारी दोस्ती लंबी चलने वाली है। मैं यह जानता हूं कि वह काफी भला है। उसकी हंसी को करीब से देखने की तमन्ना है। जब वह मुस्कराता होगा तो कैसा लगता होगा, बगैरह, बगैरह। मेरे मन में कल्पनाओं का पूरा ढेर इकट~ठा है। हम सोचते बहुत हैं। सोच कभी थमती नहीं।
मैं खुद को अकेला मानता हूं। मुझे बरसों से एक अच्छे दोस्त की तलाश थी। कई लोग जिन्हें मैं हद से अधिक लगाव करता था, उन्होंने मुझे छोड़ दिया। मैं सूनसान इलाके का वासी हो गया। बताने को कुछ खास नहीं। सच कहूं तो वह दौर खराब था।
जिंदगी की पटरी पर मैं दौड़ रहा हूं। मैं कितनी दूर और जाउंगा, नहीं जानता। सफर को छोटा करना मेरे बस में नहीं। पागलों की तरह दहाड़े मार नहीं सकता। चुपचाप चलना बेहतर है। मुझे उसका साथ मिला है, तो कुछ आस बंधी है। एक गीत मुझे याद आता है-
‘‘यूं ही कट जायेगा सफर साथ चलने से, मंजिल आयेगी नजर साथ चलने से।’’
जिस व्यक्ति को मैं झलक भर देख नहीं सका, उसपर इतना विश्वास। शायद हद से ज्यादा विश्वास कितना ठीक है, यह मैं जानने की कोशिश कर रहा हूं। मेरी दुनिया बदल रही है। नजरिया पहले सा नहीं रहा। झिलमिलाते सितारे आसमान को अनगिनत मुस्कराहटों से भर रहे हैं। मानो हर कोई खिला हो, पत्ते खुश हों और फूल महक रहे हों। सुनहरापन हो, जैसे जीवन जगमगा रहा हो। कहने को पता नहीं क्या-क्या बदल रहा है, मैं भी।
उसे मैंने बताने की सोची कि वह मेरे जीवन के कोरे कागज पर पल भर में हजारों चित्र उकेर गया। वाकई जीवन रंगों से भर गया। बिना एक मुलाकात के इतना सब मैं कह गया। जब वह पढ़ेगा तो उसे कैसा लगेगा।
मैं इतना जानता हूं कि उसकी प्रतिक्रिया जो भी रहे, पर सच को वह झुठला नहीं सकता क्योंकि मैंने सच को उकेरा है। शब्द स्पष्ट हैं, उन्हें मोड़ने की कोशिश मैंने नहीं की। शब्द सीधे हैं, उन्हें बिगाड़ने की कोशिश मैंने नहीं की।
हृदय की आवाज शायद वह सुन सकता है, साफ-साफ और स्पष्ट। जबसे उसने अंजलि से कहा है कि वह मेरा मित्र बनने को तैयार है, तबसे मैं काफी खुश हूं। इतना कि बयान करना मुश्किल सा मालूम पड़ता है।
सत्तर साल की आयु के एक वृद्ध को पत्नि मर जाने के बाद जब दुनिया नीरस और बेगानी दिखाई देने लगी तो उसने अपनी आयु से आधी आयु की एक विधवा महिला से शादी रचा ली। इस शादी को अब आठ साल हो गये। उसके लिए अब यह शादी एक अभिशाप बनकर रह गयी। गजरौला थाना क्षेत्र के गांव महमूदपुर सल्तानठेर का यह बूढ़ा जहां सौतेले बेटों की मार खा रहा है, वहीं कौड़ी-कौड़ी का मोहताज हो गया है। हालांकि जब उसने दूसरी शादी की थी तो उस समय वह पचास लाख रुपयों से अधिक की संपत्ति का स्वामी था। दूसरी शादी से जहां वह संपत्ति गंवा बैठा वहीं अब सौतेले बेटों से उसे बराबर जान का खतरा बना हुआ है। दूसरी बहू (43 वर्ष) उसके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट की तैयारी में है। अपने जीवन की सुरक्षा की गुहार को वृद्ध ने दिसंबर में थाने में तहरीर भी दी थी लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई बल्कि महिला और उसके दो बेटों ने वृद्ध पर और भी अत्याचार करने शुरु कर दिये।
थाने में अपनी फरियाद लेकर आये 78 वर्षीय वृद्ध मुंशी पुत्र रामचंदर ने बताया,‘दस वर्ष पूर्व पत्नि की मौत हो गयी थी। मेरे कोई पुत्र नहीं था। केवल चार लड़कियां थीं जिनकी शादी हो चुकी। सभी अपने घर हैं।’
पत्नि की मौत के एक साल बाद वृद्ध ने दूसरी शादी करने का पक्का इरादा किया। वृद्ध के अनुसार उसे किसी के माध्यम से किसी अन्य गांव की 35 वर्षीय एक विधवा महिला मिली। वह एक शर्त पर तैयार हो गयी। उसकी शर्त थी कि वृद्ध उसके नाम दस बीघा जमीन कराये। वृद्ध महिला के लिए बेचैन था। उसने भूमि लिखाकर महिला से पुनर्विवाह रचा लिया।
वृद्ध का कहना है कि तीन साल उनके बीच बहुत मधुर प्रेम रहा। जिसके बाद उसने बताया कि उसके पहले पति से दो बेटे हैं। वह उन्हें यहां लाना चाहती है। वृद्ध के अनुसार उसने दोनों लड़के प्रेमदेव और भगवानदास जो छह वर्ष पूर्व क्रमश: 14 और 11 वर्ष के थे (आज 20 और 17 वर्ष के हैं) अपने पास बुला लिए।
वृद्ध का कहना है कि शादी के समय महिला ने उसे लड़कों के बारे में कुछ नहीं बताया था।
गांव के लोग कहते हैं कि लड़कों के आने पर वृद्ध की बेटियों और दामादों ने समझा कि वृद्ध की कृषि भूमि (कुल 60 बीघा) कहीं दोनों लड़के न हथिया लें अत: उन्होंने वृद्ध से सारी भूमि बराबर-बराबर अपने नाम करा ली। वृद्ध का यह निर्णय उसके गले का फंदा बन गया।
वृद्ध के पास ट्रैक्टर, टिलर, हैरो आदि कृषि यंत्र थे जिन्हें उसके पीछे आये बेटों प्रेमदेव और भगवानदास ने जबरन बेच दिया। वृद्ध मुंशी का कहना है कि उसे गत वर्ष से दोनों सौतेले बेटे इस लिए यातनायें दे रहे हैं कि उसने अपनी जमीन उनके बजाय अपनी बेटियों के नाम क्यों की।
मुंशी (78) का कहना है कि उसका जीवन नारकीय बन गया है। वह पेट भर खाने के लिए भी अपनी बेटियों पर आश्रित है। कई बार प्रेमदेव और भगवानदास उसपर कातिलाना हमला कर चुके। उसका जीवन तार-तार हो चुका। वह उस दिन को कोस रहा है जिस दिन उसने राजवती से शादी रचाई थी।
वृद्ध ने दुखी होकर गत वर्ष 18 दिसंबर को सौतेले बेटों और पत्नि के अत्याचारों से तंग आकर थाने में न्याय के लिए तहरीर दी थी। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। वृद्ध अपने एक दामाद को साथ लिए लोगों से अपने दर्द की दवा ढूंढ रहा है। और आठ वर्ष पूर्व किये अपने पुनविर्वाह की गलती का खामियाजा भी भुगत रहा है। जिस महिला को अपनी हमराह बनाकर खुशी-खुशी घर लाया था वही आज उसके लिए खतरा बन गयी है।
आज सुबह से सादाब का चेहरा रुखा नहीं लग रहा। उसने मुझे बताया कि उसकी अम्मी ने उसे हौंसला रखने को कहा है। वह उसे अच्छी तरह याद रहता है, लेकिन वक्त उसका हौंसला तोड़ता है। वक्त से लड़ने की ताकत किसी में नहीं। सादाब ने कई जबाव मुस्कराहट के साथ दिये।
ऐसा क्यों होता है कि किसी की मुस्कान आपके चेहरे की खोई रौनक लौटा देती है। हमें एहसास करा देती है कि हम अभी भी खिल सकते हैं। उन लोगों के साथ मित्रता किसी के जीवन को बदल सकती है जो सुख-दुख में एक समान रहते हैं। वे हर छोटी उपलब्धि का जश्न मनाने से नहीं चूकते। उन्हें लगता है कि हंसी-खुशी जीवन को बेहतर बना सकती है। ऐसा ही होता है जब हम उन लोगों से मुखातिब होते हैं जो हमें मुस्कराहट का मतलब बताते हैं।
मैं खुद को देखता हूं तो पाता हूं कि क्या मैं जीना भूल गया? क्योंकि मैं हंसना भी भूल गया।
जीवन तो जीवन है। यह आया है जाने के लिए। एक हवा का झोंका आया और हम वहां नहीं थे। पता नहीं क्यों नीरसता पीछा नहीं छोड़ती?
मन को उग्र और शांत करने के तरीके हमारे पास मौजूद हैं। हम उनका कितना उपयोग कर पाते हैं, यह हम स्वयं नहीं जानते। यह लिखते हुए सहज लगता है कि मन बैरागी हो गया। यह कहते हुए सहज लगता है कि हम कुंठा से पार पा सकते हैं। मेरा विचार है कि खुद की ऊर्जा को अच्छी तरह पहचाना जाए ताकि हर परेशानी का हल निकल सके। लेकिन मैं ऐसा करने में असमर्थ हूं। यह उतना आसान भी तो नहीं। अक्सर कुछ चीजें देखने में अच्छी लगती हैं, कहने में भी, लेकिन जब करने की बारी आती है तो उनसे पीछा छुड़ाने का मन करता है।
मन ये कहता है, मन वह कहता है। मन का काम ही कहना है। उसकी मान मानकर इंसान क्या से क्या हो जाता है। मेरी सोच यह कहती है मन के आगे हम बेबस हैं। यह बिल्कुल गलत नहीं है। मन की गलतियां इंसान को भुगतनी पड़ती हैं। आखिर हम इतने बेबस क्यों बनाए गए हैं? हमारे भीतर का इंसान कभी कमजोर है, तो कभी ताकतवर बन जाता है। यह अजीब ही तो है।
बाहर का प्रभाव हमें अंदर तक प्रभावित करता है। वह वक्त किसी भी तरह से उतना बेहतर नहीं कहा जा सकता।
‘‘मुझे आज तक समझ नहीं आया कि हम प्यार क्यों करते हैं? इतना जरुर जानते हैं कि कोई रिश्ता ऐसा है जो हमें दिख नहीं पाता और हम प्यार करते हैं।
कई लोग ऐसे होते हैं जिनके साथ हम अलग-अलग तरह से प्रेम करते हैं। माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त, आदि प्यार के बंधन में जकड़े हैं और हम उनके। यह प्यार ही तो है जो हमें अपनों से जोड़े रहता है।
प्यार एक अनजाना, न दिखने वाला एहसास है जो हमें बांधे रखता है।’’ इतना कहकर बूढ़ी काकी चुप हो गयी।
मैंने कहा,‘वाकई यह अजीब होता है, कि हम प्यार करते हैं और फिर उसका एहसास करते हैं। खुशी मिलती है आंतरिक तौर से। कई बार दर्द का भी एहसास होता है। खुशी और गम दोनों से ही प्रेम आगे बढ़ता है.’
’मैंने किसी से प्यार नहीं किया। मगर मुझे ऐसा कई बार लगा कि मैं प्यार करने लगा हूं। जब सब बिखर गया, तब मुझे एहसास हुआ कि अरे! वह तो प्रेम था। मैं फिर क्यों अनजान रहा? मुझे नहीं पता, लेकिन मैं इतना जानता हूं कि एहसास बहुत अच्छा था। एक अजीब तरह का एहसास। मुझे इसका अध्ययन करने का समय ही नहीं मिला काकी। मैं अपने कामों में ही उलझा रहा। मैं प्यार करना चाहता था, मगर कर न सका। जब सोची तब तक बहुत देर हो चुकी थी। लेकिन मैंने खुद को समझा लिया और मना भी लिया कि प्यार उन से किया जा सकता है जो हमेशा आपके पास रहें। मेरा परिवार है, कुछ स्पेशल लोग हैं जिन्हें मैं चाहता हूं। पर काकी मुझे नहीं लगता कि हमें कहीं दूसरी जगह प्यार तलाशने की आवश्यकता है क्योंकि इतना कुछ तो हमारे पास है।’
इसपर काकी बोली,‘तुम ठीक कहते हो। मगर बेटा प्यार का रहस्य बड़ा ही गहरा है। इसे शायद भगवान भी समझकर और समझने की कोशिश करे। यह तो कहीं भी, किसी को भी, किसे से भी हो सकता है। हां, हमारा परिवार हमें चाहता है, हम उन्हें और कुछ अहम लोग भी हमें चाहते हैं। इस तरह हम एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। भाव बहते रहते हैं, हम प्यार करते रहते हैं।’
‘तुम्हें पता है हम प्यार जाने-अनजाने में भी कर लेते हैं। वह प्यार कई बार इतना गहरा हो जाता है कि हम समझ नहीं पाते कि अब क्या करें? पशोपेश आड़े आता है और इंसान को बिखरने पर मजबूर भी कर देता है। तब अपने ही होते हैं हमें संभालने के लिए। यह विषय इतना व्यापक है कि मैं खुद उलझन में हूं कि कहां से शुरु करुं। खैर, तुमने कभी किसी अनजाने से प्यार किया हो तो इसका मतलब शायद समझ जाओ।’
मैंने कहा,‘मुझे नहीं लगता कि मैं कभी प्रेम-पाश में पड़ा हूं, मगर ऐसा कई बार लगता भी है। अधिकतर बार हम प्रेम में तब पड़ जाते हैं जैसा मैंने सुना है, जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो हमें दूसरों से अलग लगता है। मुझे ऐसे कई लोग मिले। मुझे नहीं लगता कि मैंने उनसे प्रेम किया, पर हां, इतना जरुर हुआ कि मैं उनसे हद से अधिक लगाव कर बैठा था। आजतक उनसे दूरी का दर्द मुझे सालता है। इसे प्रेम कहा जाये या कुछ ओर, मैं नहीं जानता।’
‘आकर्षण हुआ जरुर था, लेकिन वह अधिक समय तक नहीं रहा। बाद में शायद मैं उतना घुलमिल नहीं सका, या मैं घबरा गया।’
काकी ने मुझे गौर से देखा, फिर बोली,‘ओह! तो तुमने भी प्यार किया है। शायद वह प्यार की तरह था या उसे तुम सच में प्रेम कह सकते हो। आकर्षण हुआ और तुमने उसे सबकुछ मान लिया। ऐसा होता है, क्योंकि शुरुआत अक्सर ऐसे ही होती है। हृदय में उथलपुथल होती है और इंसान में कशमकश। कई बार एक झलक में बहुत कुछ हो जाता है, कई बार वर्षों लग जाते हैं। वैसे प्रेम का भाव काफी मजबूत होता है, यदि उसे ढंग से निभाया जाये।’
’मैं खुद से जूझ रही हूं लेकिन खुद से प्रेम भी कर रही हूं। जीवन से भी तो हम प्रेम कर सकते हैं। बुढ़ापे से भी प्रेम किया जा सकता है। बात सिर्फ नजरिये की है। कोई किसी से भी प्यार कर सकता है। प्यार का मतलब भाव से है, जब भाव से भाव का मिलन होता है तो एक और भाव उत्पन्न होता है। वह है प्यार का भाव जिसका अदृश्य होना उसकी खासियत है। वैसे भाव दिखते ही नहीं, महसूस किये जाते हैं।’