हमारी पुरानी पीढ़ी द्वारा साग-सब्जियों का भंडारण ! Storage of greens and vegetables by our old generation
हमारे पुरखे बड़े कमाल के अर्थशास्त्री थे। हमारे घर की गृहणियां तो क्या ही कहने? उनकी रसोई घर और भंडार घर की व्यवस्था बेहद तगड़ी होती थी।
आजी बताती हैं कि रसोई घर के क्या हालात हैं इसका अंदाज़ा भोजन बनाने वाली महिला के अलावा घर की अन्य महिलाएं तक नहीं जान पाती थीं और पुरुषों की तो आप बात ही छोड़ दीजिए।
आजी बताती हैं कि अय्या (दादी सास) जब रसोई संभालती थी तब भोजन बनाने के लिए आटा, चावल, दाल भंडार घर से जो प्रतिदिन निकालती थी उनमें से एक एक मुट्ठी अन्न एक अलग गगरी में डाल दिया करती थी।
इस प्रकार से उनके पास कुछ दिनों में एक अच्छी राशि के रूप में राशन इकठ्ठा हो जाता था जो प्रतिदिन के बनने वाले भोजन से बचाया जाता था और फिर भी बनने वाला भोजन घर के सभी सदस्यों के लिए पर्याप्त होता था।
जब किसी की मृत्यु या कोई कार्यक्रम अचानक आ जाता था और सबको लगता था कि राशन की व्यवस्था इतनी जल्दी कैसे होगी? तब अय्या अपने गुप्त राशन का पर्दाफाश करती थी और उनका बचाया ये गुप्त राशन काम आता था। गृहणी यूं ही लक्ष्मी, अन्नपूर्णा थोड़ी न कहलाती है!
आजी बताती हैं कि यदि कोई अचानक से आ गया रसोई में तब तक भोजन बन चुका है लेकिन घर के पुरुष तो बिन सोचे समझे अपने साथ उसे भी भोजन के लिए बैठा लेते थे। ऐसे में भोजन बनाने वाली की सूझ बूझ ही काम आती थी और फिर वो बड़ी चतुराई से इस स्थिति का सामना करती थी। सभी को भरपेट भोजन भी करवा देती थी और किसी को किसी प्रकार की भनक भी नहीं लगने देती थी। इस आपातकाल की स्थिति से सामना करने के लिए तब गृहिणियां सत्तू, चिवड़ा इत्यादि का हमेशा विकल्प रखती थीं।
पहले के समय में दाल, मसाले, सब्जी सब कुछ अपने खेत में पैदा हुआ ही वर्ष भर खाया जाता था। बाजार से खरीदकर कोई सामान नहीं आता था और न ही ये अच्छा माना जाता था। अगर नमक के अलावा कोई सामान रसोई घर के लिए खरीद कर आता था तो ये माना जाता था कि ये गृहणी लक्ष्मी रूपा नहीं है और घर में संपन्नता बरकत नहीं हो सकती है।
यूं तो वर्ष भर सारे अन्न, दाल, तेल चल जाते थे परंतु सब्जियां बारिश के सीजन में धोखा दे जाती थीं इसलिए हमारी गृहणियों ने उनका तोड़ निकाला और उन्हें सूखा कर, बड़ियों के रूप में भंडारण करके रखने लगी।
अब जब बारिश आती थी तब आजी के भंडार घर से अदौरी, कोहड़ौरी, गोभौरी, मैथौरी, सूखी गोभी, उबालकर सुखाए आलू, बेसन मसाले लपेट कर सुखाए गए तमाम प्रकार के साग निकलते थे और फिर हरी सब्जियां खाकर ऊबे इस जिभ्या को बारिश भर नए प्रकार की अलग अलग सब्जियां खाने को मिलती थी।
तस्वीर में खटिया पर पेहटुल (काचरी) सुखाई जाती जा रही जो वर्ष भर सब्जियों को चटपटा बनाने के काम आएंगी।
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