कंजूसी और बचत को आप किस तरह देखते हैं

 चाची बहुत समझदार महिला थी। पूरे घर का संचालन चाची ही करती थी। घर खर्च का पूरा हिसाब चाची ही रखती थी।

लेकिन चाची को सब कंजूस चाची कहा करते। पैसे खर्च करने में बहुत कंजूसाई करती। चप्पल टूट गई तो कील ठोक कर चलाती रहती। घर खर्च में भी हमेशा ख्याल रखती कि पैसे कहाँ और कैसे बचें।

एकदिन भतीजे अनुज ने पूछ ही लिया-" चाची! सब आपको कंजूस कहते हैं आपको बुरा नहीं लगता?"

चाची बोली-" नहीं बुरा क्यों लगेगा? मैं हूँ ही कंजूस। लेकिन क्यों हूँ यह कभी समय आया तो मालूम होगा।"

एकदिन सास की तबीयत अचानक बिगड़ गई। उन्हें अस्पताल ले गए। डाक्टर ने कहा-" हृदय रोग है। ओपरेशन करना होगा। हम टेस्ट और ओपरेशन की तैयारी करते हैं, आपलोग काउंटर पर पैसे जमा करवा दीजिए।"

सब आपस में चर्चा करने लगे की पैसे की व्यवस्था कैसे होगी? कहां से होगी? कौन करेगा ?

काउंटर से बार बार आवाज लगाई जा रही थी जल्दी पैसे जमा कराए ताकि ऑपरेशन जल्दी शुरू किया जा सके।

सब घबराए हुए थे किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। बात हो ही रही थी कि चाची का फोन अनुज के पास आया और चाची ने पूछा-" डाक्टर ने क्या कहा?"

अनुज ने कहा-" ओपरेशन करना होगा। अभी तत्काल पैसे जमा करवाने होंगे। पापा पैसों के इन्तजाम के लिए निकल रहे हैं।"

चाची ने कहा-" उन्हें वहीं रोको, मैं आ रही हूँ।"

कुछ ही देर में चाची वहाँ अस्पताल पहुँच गई और अपने पर्स से नोटों का बँडल निकालकर पूछा-" बतलाओ कितने पैसे भरने हैं?" इतने पैसे देखकर सब आश्चर्यचकित हो गए।

चाची ने अनुज को बुलाकर कहा-" बेटा! इन्हीं दिनों के लिए मैं कंजूसाई करती थी। जीवन है, न जाने कब जरुरत पड़ जाए। तुम जिसे कंजूसाई कहते हो मैं उसे बचत कहती हूँ।"

चाची ने पुनः कहा-" बेटा! जिसने बचत करना सीख लिया उसे मुसीबत में हाथ नहीं फैलाने पड़ते।"

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