विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
देवताओं और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने अपने कण्ठ में धारण किया था। विष के प्रभाव से उनका कण्ठ नीला पड़ गया और वे नीलकण्ठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
विद्वानों का मत है कि समुद्र मंथन एक प्रतीकात्मक घटना है। समुद्र मंथन का अर्थ है अपने मन को मथना, विचारों का मंथन करना। मन में असंख्य विचार और भावनाएं होती हैं उन्हें मथकर निकालना और अच्छे विचारों को अपनाना। हम जब अपने मन से विचारों को निकालेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार निकलेंगे।
यही विष हैं, विष बुराइयों का प्रतीक है। शिव ने उसे अपने कण्ठ में धारण किया। उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। शिव का विष पान हमें यह संदेश देता है कि हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। हमें बुराइयों का हर कदम पर सामना करना चाहिए।
शिव द्वारा विष पान हमें यह सीख भी देता है कि यदि कोइ बुराई पैदा हो रही हो तो उसे दूसरों तक नहीं पहुंचने देना चाहिए।
महर्षि गालव महामुनि विश्वामित्र के प्रिय शिष्य थे। जब वे सभी विद्याओं में पारंगत हो गए तब गुरु की आज्ञा से अपने पिता के दर्शन हेतु अपने घर को चले। जब वे अपने घर पहुंचे तो उनकी माता ने उन्हें उनके पिता की मृत्यु की सूचना दी। वे अत्यन्त दुखी हुए और गुरु का ध्यान कर पिता के दर्शन का उपाय ढूढ़ऩे लगे।
अचानक उन्हें शिव का ध्यान आया। वे अपनी माता की अनुमति लेकर योगसाधना द्वारा शिवजी की स्तुति करने लगे।उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उनसे वर मांगने को कहा। उन्होंने अपने पिता के दर्शनों का वर मांगा। शिवजी ने उन्हें वर दिया और आज्ञा दी कि वे तुरन्त घर वापस जाएं और अपने पिता के दर्शन करें।
शिवजी ने उनकी पृतभक्ति देखकर उन्हें व उनके माता-पिता को अमरता का वरदान दिया।जब गालव मुनि घर पहुंचे तो उन्हें उनके पिता यज्ञशाला के द्वार से आते दिखे। उन्हें देखकर गालव मुनि बहुत खुश हुए और पिता के चरणों में गिर पड़े।
इस प्रकार गालव मुनि ने शिवजी की भक्ति से अपने पिता के फिर दर्शन किए।
श्रावण मास के आगमन के साथ ही मन में धर्म व अध्यात्म का प्रकाश फैल जाता है। श्रावण मास में सत्संग सुनने का विशेष लाभ मिलता है। यह मास शिव की आराधना के लिए अति उत्तम माना गया है। पुराणों में वर्णित है कि इस मास में सच्चे मन से शिव की आराधना से शिव प्रसन्न होते हैं। इस मास की हर तिथि का भी अपना विशेष महत्व है। विशेष तिथि को शिव का विशेष पूजन- अर्चन करने से सभी सुखों का लाभ मिलता है।
श्रावण कृष्ण दशमी तिथि मां गायत्री को समर्पित है। इस दिन शिव का गायत्री मंत्र द्वारा पूजन करने से अकाल मृत्यु का भय सदैव के लिए समाप्त हो जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन सफेद वस्त्र दान करने से शिव व गायत्री प्रसन्न होते हैं।
ब्रह्मा का पांचवा सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। तभी वहां ब्रह्महत्या उत्पन्न हुई और भैरव को त्रास देने लगी। तब भगवान ने ब्रह्महत्या से मुक्ति के लिए भैरव को व्रत करने का आदेश दिया व कहा- जब तक यह कन्या(ब्रह्महत्या) वाराणसी पहुंचे, तब भयंकर रूप धारण करके तुम इसके आगे ही आगे चले जाना। वाराणसी में ही तुम्हें ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी। सर्वत्र विचरण करते हुए जब भगवान भैरव ने विमुक्त नगरी वाराणासी पुरी में प्रवेश किया, उसी समय ब्रह्महत्या पाताल में चली गई और भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिल गई।
शिव के साथ करें भैरव की भक्ति
भैरव ने ब्रह्मा का पांचवा सिर काटा था। जहां वह सिर गिरा वह स्थान काशी में कपाल मोचन तीर्थ के नाम से विख्यात है। जो प्राणी इस तीर्थ का स्मरण करता है, उसके इस जन्म एवं पर जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। यहां आकर सविधि स्नानपूर्वक पितरों एवं देवताओं का तर्पण करके मानव ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। कपाल मोचन तीर्थ के समीप ही भक्तों के सुखदायक भगवान भैरव स्थित हैं। सज्जनों के प्रिय भैरव का प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष की कृष्णाष्टमी को हुआ था। उसी दिन को उपवासपूर्वक जो प्राणी कालभैरव के समीप जागरण करता है, वह संपूर्ण महापापों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। यदि कोई व्यक्ति भगवान शंकर का भक्त होते हुए भी कालभैरव का भक्त नहीं है, तो उसे बड़े-बड़े दु:ख भोगने पड़ते हैं। यह बात काशी में विशेष रूप से चरितार्थ होती है। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है।
किसी की भी सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं यदि उसके बाल सुंदर हो। लड़कियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं उनके लंबे, काले और घने बाल। अच्छे नयन-नक्ष वाली लड़की के बाल भी सुंदर हो तो फिर सोने पे सुहागा ही है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति के बालों से भी आप उसके स्वभाव का पता लगा सकते हैं।
- यदि किसी व्यक्ति के बाल मुलायम, काले घने, रेशम के जैसे हो तो वह व्यक्ति दिलदार होता है। वह जीवन को पूरी मस्ती के साथ जीता है। ऐसे लोगों को धन की कमी नहीं होती। ऐसे लोग बहुत अच्छे प्रेमी होते हैं।
- पतले बाल वाला व्यक्ति साफ मन का और भावुक होता है।
- रूखे और सख्त बाल वाला व्यक्ति बहादुर होता है परंतु वह तंगदिल और अति कामुक भी होता है।
- जिस व्यक्ति के बाल सुर्ख रंग के होंगे उसके साथ हमेशा धन की समस्या रहती है और वह परेशान रहता है।
- सुनहरे बाल वाले व्यक्ति मध्यम स्तर के होते हैं। वे सामान्य व्यतीत करते हैं।
युवाओं के लिए धार्मिक ग्रंथ यानी वेद, पुराण, उपनिषद आदि एक अबूझ पहेली जैसे हैं। ये ग्रंथ क्यों हैं और किस लिए बनाए गए हैं, यह अधिकतर युवाओं की समझ से बाहर है। इन ग्रंथों की पारंपरिक शैली और कठिन भाषा के कारण इन्हें समझना और ज्यादा मुश्किल हो गया है। पुराणों में अधिकांश कहानियां प्रतीकात्मक हैं। अभी तक कई लोगों को यह भी पता नहीं है कि इन किताबों में है क्या? वेद, पुराण और उपनिषदों में आखिर ऐसा क्या है जो पढ़ने लायक है और इन किताबों को पढ़कर क्या सीखा, समझा जा सकता है? इनमें पढ़ने लायक क्या है?
आइए हम आपको इन ग्रंथों से परिचित कराते हैं:-
वेद - वेद चार हैं, ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। इन्हें दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तकें माना गया है। नासा ने भी इसकी प्रामाणिकता स्वीकार की है। ये चारों वेद एक ही वेद के चार भाग हैं, जिन्हें वेद व्यास ने संपादित किया है। ऋग्वेद में सृष्टि की परिस्थितियों, देवताओं आदि की स्थितियों के बारे में विवरण है। सामवेद ऋग्वेद का ही गेय रूप है, इसके सारे श्लोक गेय यानी संगीतमय या गीतमय हैं। यजुर्वेद - यजुर्वेद में यज्ञ संबंधी श्लोक हैं, यज्ञों की विधियां और उससे देवताओं को प्रसन्न करने संबंधी विधियां हैं। अथर्ववेद - इस वेद में परा शक्तियों यानी पारलौकिक शक्तियों के श्लोक हैं।
उपनिषद - उपनिषद को यह नाम इसलिए मिला है क्योंकि ये वेदों के ही हिस्से हैं। वेदों से ही प्रेरित इन उपनिषदों की रचना वेदव्यास के ही चार शिष्यों ने की है। मूलत: ़108 उपनिषद माने जाते हैं। उपनिषद का अंग्रेजी में अर्थ है कॉलोनी। जैसे शहर के ही किसी एक हिस्से को कॉलोनी कहते हैं, वैसे ही उपनिषदों को भी वेदों का ही हिस्सा माना जाता है। वेदों के ही श्लोकों को कथानक के रूप में उपनिषदों में लिया जाता है।
पुराण - पुराण पिछले युगों सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की कथाओं का विवरण हैं। इनकी भी रचना वेद व्यास और उनके समकालीन ऋषियों द्वारा की गई है। ये मूलत: पौराणिक पात्रों की कथाओं के ग्रंथ हैं। पुराणों की संख्या 18 मानी गई है। कालांतर में कई ग्रंथ बढ़ गए हैं।
कर ऐसी इनायत गोविन्द तेरा शुक्र मनाना आ जाये, हम इन्सां हैं हमें इन्सानों की तरह प्यार निभाना आ जाये। तेरे कदम हमारी चौखट हैं, हम गिरते रहे तेरे कदमों में, पर ऐसी शक्ति दे हमें गिरतों को उठाना आ जाये। मुझे ये न मिला मुझे वो न मिला ये दिल ऐसे ही रोता है, तेरा प्यार ही मेरी दौलत हो ये दिल को समझाना आ जाये। ये तन मन धन तेरा मुझे फिर क्या चिंता, हम तेरे आशिक हैं प्यारे हमें प्यार निभाना आ जाये। वो मस्त तुझी में रहते हैं जो तेरे आशिक होते हैं, हम तेरे आशिक बन जायें और सर को झुकाना आ जाये। बोलो के सुन्दर नक्शे पर हम रंग प्यार का भर पायें, तेरी हम पर कृपा हो हमें फूल चढाना आ जाये।
www.goswamirishta.com पागलखाने में एक बड़ा अजीब पागल भर्ती किया गया। जहां दूसरे पागल रोते-चिल्लाते और बक-बक किया करते थे, वहां वह बड़े जोर से हंसा करता था। एक दिन डॉक्टर ने पागल से पूछा - तुम क्या बता सकते हो, तुम हमेशा क्यों हंसा करते हो? पागल ने जवाब दिया - मुझमें यह सब जुड़वां भाई के कारण है। डॉक्टर ने उत्सुकता से पूछा - क्या मतलब? जरा साफ-साफ बताओ। पागल - हम दोनों भाइयों की शक्ल एक जैसी थी। कोई भी ठीक से पहचान नहीं सकता था। कक्षा में शरारतें वह करता था, पर पीठ-पूजा मेरी होती थी। दंगा-फसाद वह करता था, पर जेल की हवा मुझे खानी पड़ती थी। प्रेमिका मेरी थी, पर शादी उसकी हो गई। हमदर्दी जताते हुए डॉक्टर ने कहा - तब तो सचमुच तुम्हारे साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है। पागल - हां डॉक्टर साहब, ऐसी ही बात है। पर अंत में मैंने भी उससे खूब कस कर बदला लिया, दरअसल मर तो मैं गया, पर दफना दिया गया वह। पागल जोर से हंसता हुआ दूसरे रूम में चला गया।
Everything in life and to early-early, everything is increasingly wish to find, and we find that it takes less than twenty-four hours of the day, the perception that these narrative, "and two cup of tea glass barni" we miss.
A Professor of philosophy in the classroom and he told the students that they are going to be taken an important text of life. ...
He brought along a glass at the table of badia barni (jar) and table tennis balls are far too many and then put the remaining space of a single ball in Chino ... He asked the students-barni full? हाँ ... Voice. ... Then fill in the little Professor Sir kankar's h start gradually to all it really quite barni kankar moved where there was a vacancy, he asked Professor again end, Sir, what is full, students now barni once then Yes ... Professor Sir, now called sand from the sand that haule haule-barni, he started to put sand in the jar as possible on his sat, now student nadani laughed. ... Then he asked Professor Sir, why now, barni full? हाँ .. Now there is full.. All-in-one voice said ... Sir, two cups of tea from under the table by removing it risked the tea jar, tea also soak in a sand stone located between place. ... Professor Sir started to explain in a serious voice – the people you consider your life glass barni. ... Table tennis balls are the most important part that is God, family, children, friends, health and hobbies, mean your job, car, large small kankar houses etc, and small sand means more useless things, pique, jhagdea.. Now if you sand off the glass would have been the first barni table tennis balls and no place for kankaron remain, or not given over kankar, balls, sand around may of course. ... Well the same thing applies to life ... If you live in the valleys and small things would delete it your energy back so you have more time for the main things will not ... What is important for the pleasure of mind that you have to decide. Play with your kids, pour water in the garden, get out, walk home with his wife the morning of check-out the fenko, medical stuff up karvao ... Table tennis balls is the same important first, fikra..... First decide that what is essential ... Everything else is the sand ... Students were carefully listening to large Suddenly a asked, Sir but you don't tell "two cups of tea"? Professor muskuraye, said ... I was thinking that it's not a question, ...
The answer is that, how perfect and happy life to us, but we have the ultimate father divine to be always the time I Simran
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है ।
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ... प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया – इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो .... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं , छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है .. अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ... ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ..... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है .. छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन हमारे पास उस परम पिता परमात्मा को सिमरन करने के लिए हमेशा समय होना चाहिए I