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प्रभु की प्राप्ति प्रभु की ही कृपा से ही संभव है क्योंकि वह साधनसाध्य नहीं हैं, वे तो केवल और केवल कृपासाध्य हैं परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि जब वह कृपासाध्य ही हैं तो हम साधन ही क्यॊं करें । जब उन्हें कृपा करनी होगी तब अपने आप कर ही देंगे, हम व्यर्थ में ही अपना बहूमूल्य समय क्यों नष्ट करें ।
साधन बहुत आवश्यक है क्योंकि इससे पात्रता की संभावनायें जागती हैं । किसान खेत में बीज बोता है, सींचता है, खरपतवार की भी सफ़ाई करता रहता है, इसी आशा के साथ कि फ़सल अच्छी होगी पर यह जरूरी तो नहीं कि ऐसा ही हो, हो सकता है कि प्राकृतिक आपदा के कारण, गाँव की व्यक्तिगत वैमनस्यता के कारण उसे हानि हो जाये पर क्या किसान दोबारा अगली फ़सल के लिये और अधिक परिश्रम नहीं करता । प्रभु की कृपा अनरत बरस रही है पर हम अपनी पात्रतानुसार ही उसका लाभ ले पाते हैं जैसे जब बारिश हो रही हो तो खुले आँगन में अगर गिलास रखा हो तो गिलास भरेगा, घड़ा हो तो घड़ा भर जायेगा, अन्य कोई बड़ा पात्र हो तो वह भी भर जायेगा लेकिन अगर कोई गिलास से भी छोटा पात्र हो और उल्टा रखा हो तो भरपूर बारिश के बाद भी वह रीता ही रह जायेगा, अब इसमें दॊष किसका है ? क्या प्रभु पक्षपाती है ? नहीं, ऐसा नहीं है, इस बात का विश्वास रखिये ।
एक संत थे जिनके पास बहुत से विधार्थी अध्ययन करते थे , कालांतर में शिक्षा पूरी होने पर उन्होंने अपने एक शिष्य को रामकथा के प्रचार-प्रसार की आज्ञा दी और उनका वह शिष्य स्थान-स्थान पर प्रभु की मनोहर रामकथा का गान करने लगा । एक बार वह एक स्थान पर कथा कर रहा था जहाँ के गृहस्वामी के पास एक अदभुत बोलने वाला तोता था। ब्रह्मचारी ने रामकथा का माहात्म बताते हुए इसे भवतारिणी एवं समस्त बंधनों से मुक्त करने वाला बताया तभी तोता बोल उठा कि "नहीं, यह सत्य नहीं है ! मैं कितने वर्षों से "राम-राम" कहता रहता हूँ और आज तक इस पिंजड़े से ही मुक्त नहीं हो पाया तब मैं कैसे मानूँ कि तुम सत्य कहते हो ।"
इस तर्क के उत्तर के लिये ब्रह्मचारी ने गुरू की शरण ली और इस संशय के समाधान को जानने की प्रार्थना की ।
गुरूदेव ने कहा कि तोते से कहो कि वह एक दिन न कुछ खाये न पिये और निश्चेष्ट होकर पिंजरे में पड़ा रहे और मन ही मन राम-राम रट्ता रहे । ब्रह्मचारी के कहे अनुसार तोते ने ऐसा ही किय़ा और यह देखकर गृह्स्वामी ने पिंजरे का द्वार खोल दिया । द्वार खुलते ही तोता उड़ गया और उड़ते-उड़ते बोला कि-" यह सत्य है कि राम नाम बंधनों को काटने वाला है पर इसकी कुंजी गुरू के पास है ।"
प्रभु की कृपा के आसरे रहिये, सही समय पर निश्चित ही वह उचित माध्यम द्वारा हमें अपनी शरण लेंगे ।
"जानत सोई जाहि देहु जनाई । जानत तुम्हीं तुम्ही होइ जाई॥ राजी तेरी रजा में....।"
जय जय श्री राधे !
प्रभु की प्राप्ति प्रभु की ही कृपा से ही संभव है क्योंकि वह साधनसाध्य नहीं हैं, वे तो केवल और केवल कृपासाध्य हैं परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि जब वह कृपासाध्य ही हैं तो हम साधन ही क्यॊं करें । जब उन्हें कृपा करनी होगी तब अपने आप कर ही देंगे, हम व्यर्थ में ही अपना बहूमूल्य समय क्यों नष्ट करें ।
साधन बहुत आवश्यक है क्योंकि इससे पात्रता की संभावनायें जागती हैं । किसान खेत में बीज बोता है, सींचता है, खरपतवार की भी सफ़ाई करता रहता है, इसी आशा के साथ कि फ़सल अच्छी होगी पर यह जरूरी तो नहीं कि ऐसा ही हो, हो सकता है कि प्राकृतिक आपदा के कारण, गाँव की व्यक्तिगत वैमनस्यता के कारण उसे हानि हो जाये पर क्या किसान दोबारा अगली फ़सल के लिये और अधिक परिश्रम नहीं करता । प्रभु की कृपा अनरत बरस रही है पर हम अपनी पात्रतानुसार ही उसका लाभ ले पाते हैं जैसे जब बारिश हो रही हो तो खुले आँगन में अगर गिलास रखा हो तो गिलास भरेगा, घड़ा हो तो घड़ा भर जायेगा, अन्य कोई बड़ा पात्र हो तो वह भी भर जायेगा लेकिन अगर कोई गिलास से भी छोटा पात्र हो और उल्टा रखा हो तो भरपूर बारिश के बाद भी वह रीता ही रह जायेगा, अब इसमें दॊष किसका है ? क्या प्रभु पक्षपाती है ? नहीं, ऐसा नहीं है, इस बात का विश्वास रखिये ।
एक संत थे जिनके पास बहुत से विधार्थी अध्ययन करते थे , कालांतर में शिक्षा पूरी होने पर उन्होंने अपने एक शिष्य को रामकथा के प्रचार-प्रसार की आज्ञा दी और उनका वह शिष्य स्थान-स्थान पर प्रभु की मनोहर रामकथा का गान करने लगा । एक बार वह एक स्थान पर कथा कर रहा था जहाँ के गृहस्वामी के पास एक अदभुत बोलने वाला तोता था। ब्रह्मचारी ने रामकथा का माहात्म बताते हुए इसे भवतारिणी एवं समस्त बंधनों से मुक्त करने वाला बताया तभी तोता बोल उठा कि "नहीं, यह सत्य नहीं है ! मैं कितने वर्षों से "राम-राम" कहता रहता हूँ और आज तक इस पिंजड़े से ही मुक्त नहीं हो पाया तब मैं कैसे मानूँ कि तुम सत्य कहते हो ।"
इस तर्क के उत्तर के लिये ब्रह्मचारी ने गुरू की शरण ली और इस संशय के समाधान को जानने की प्रार्थना की ।
गुरूदेव ने कहा कि तोते से कहो कि वह एक दिन न कुछ खाये न पिये और निश्चेष्ट होकर पिंजरे में पड़ा रहे और मन ही मन राम-राम रट्ता रहे । ब्रह्मचारी के कहे अनुसार तोते ने ऐसा ही किय़ा और यह देखकर गृह्स्वामी ने पिंजरे का द्वार खोल दिया । द्वार खुलते ही तोता उड़ गया और उड़ते-उड़ते बोला कि-" यह सत्य है कि राम नाम बंधनों को काटने वाला है पर इसकी कुंजी गुरू के पास है ।"
प्रभु की कृपा के आसरे रहिये, सही समय पर निश्चित ही वह उचित माध्यम द्वारा हमें अपनी शरण लेंगे ।
"जानत सोई जाहि देहु जनाई । जानत तुम्हीं तुम्ही होइ जाई॥ राजी तेरी रजा में....।"
जय जय श्री राधे !