पाँच पाण्डव तथा सौ कौरवों के नाम Names of five Pandavas and hundred Kauravas


पाँच पाण्डव तथा सौ कौरवों के नाम ये थे :–

पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं -


1. युधिष्ठिर

2. भीम

3. अर्जुन

4. नकुल

5. सहदेव

( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण

भी कुंती के ही पुत्र थे , परन्तु

उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है )

यहाँ ध्यान रखें कि… पाण्डु के उपरोक्त

पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन

की माता कुन्ती थीं ……तथा , नकुल और सहदेव

की माता माद्री थी ।

वहीँ …. धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र…..

कौरव कहलाए जिनके नाम हैं -

1. दुर्योधन

2. दुःशासन

3. दुःसह

4. दुःशल

5. जलसंघ

6. सम

7. सह

8. विंद

9. अनुविंद

10. दुर्धर्ष

11. सुबाहु

12. दुषप्रधर्षण

13. दुर्मर्षण

14. दुर्मुख

15. दुष्कर्ण

16. विकर्ण

17. शल

18. सत्वान

19. सुलोचन

20. चित्र

21. उपचित्र

22. चित्राक्ष

23. चारुचित्र

24. शरासन

25. दुर्मद

26. दुर्विगाह

27. विवित्सु

28. विकटानन्द

29. ऊर्णनाभ

30. सुनाभ

31. नन्द

32. उपनन्द

33. चित्रबाण

34. चित्रवर्मा

35. सुवर्मा

36. दुर्विमोचन

37. अयोबाहु

38. महाबाहु

39. चित्रांग

40. चित्रकुण्डल

41. भीमवेग

42. भीमबल

43. बालाकि

44. बलवर्धन

45. उग्रायुध

46. सुषेण

47. कुण्डधर

48. महोदर

49. चित्रायुध

50. निषंगी

51. पाशी

52. वृन्दारक

53. दृढ़वर्मा

54. दृढ़क्षत्र

55. सोमकीर्ति

56. अनूदर

57. दढ़संघ

58. जरासंघ

59. सत्यसंघ

60. सद्सुवाक

61. उग्रश्रवा

62. उग्रसेन

63. सेनानी

64. दुष्पराजय

65. अपराजित

66. कुण्डशायी

67. विशालाक्ष

68. दुराधर

69. दृढ़हस्त

70. सुहस्त

71. वातवेग

72. सुवर्च

73. आदित्यकेतु

74. बह्वाशी

75. नागदत्त

76. उग्रशायी

77. कवचि

78. क्रथन

79. कुण्डी

80. भीमविक्र

81. धनुर्धर

82. वीरबाहु

83. अलोलुप

84. अभय

85. दृढ़कर्मा

86. दृढ़रथाश्रय

87. अनाधृष्य

88. कुण्डभेदी

89. विरवि

90. चित्रकुण्डल

91. प्रधम

92. अमाप्रमाथि

93. दीर्घरोमा

94. सुवीर्यवान

95. दीर्घबाहु

96. सुजात

97. कनकध्वज

98. कुण्डाशी

99. विरज

100. युयुत्सु

( इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहन

भी थी… जिसका नाम""दुशाला""था,

जिसका विवाह"जयद्रथ"सेहुआ था )
"श्री मद्-भगवत गीता"
के बारे में-

किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई। 

कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।

भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।

कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी 

कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।

कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में

क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।

कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय

कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक

गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है। 

गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने

अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को

गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में

गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।

गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद

गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना

गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण ने- 574
अर्जुन ने- 85 
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.
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नाभि का खिसकना navel prolapse

- योग में नाड़ियों की संख्या बहत्तर हजार से ज्यादा बताई गई है और इसका मूल उदगम स्त्रोत नाभिस्थान है।

- आधुनिक जीवन-शैली इस प्रकार की है कि भाग-दौड़ के साथ तनाव-दबाव भरे प्रतिस्पर्धापूर्ण वातावरण में काम करते रहने से व्यक्ति का नाभि चक्र निरंतर क्षुब्ध बना रहता है। इससे नाभि अव्यवस्थित हो जाती है। इसके अलावा खेलने के दौरान उछलने-कूदने, असावधानी से दाएँ-बाएँ झुकने, दोनों हाथों से या एक हाथ से अचानक भारी बोझ उठाने, तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने, सड़क पर चलते हुए गड्ढे, में अचानक पैर चले जाने या अन्य कारणों से किसी एक पैर पर भार पड़ने या झटका लगने से नाभि इधर-उधर हो जाती है। कुछ लोगों की नाभि अनेक कारणों से बचपन में ही विकारग्रस्त हो जाती है।

- प्रातः खाली पेट ज़मीन पर शवासन में लेतें . फिर अंगूठे के पोर से नाभि में स्पंदन को महसूस करे . अगर यह नाभि में ही है तो सही है . कई बार यह स्पंदन नाभि से थोड़ा हट कर महसूस होता है ; जिसे नाभि टलना या खिसकना कहते है .यह अनुभव है कि आमतौर पर पुरुषों की नाभि बाईं ओर तथा स्त्रियों की नाभि दाईं ओर टला करती है।

- नाभि में लंबे समय तक अव्यवस्था चलती रहती है तो उदर विकार के अलावा व्यक्ति के दाँतों, नेत्रों व बालों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। दाँतों की स्वाभाविक चमक कम होने लगती है। यदाकदा दाँतों में पीड़ा होने लगती है। नेत्रों की सुंदरता व ज्योति क्षीण होने लगती है। बाल असमय सफेद होने लगते हैं।आलस्य, थकान, चिड़चिड़ाहट, काम में मन न लगना, दुश्चिंता, निराशा, अकारण भय जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों की उपस्थिति नाभि चक्र की अव्यवस्था की उपज होती है।

- नाभि स्पंदन से रोग की पहचान का उल्लेख हमें हमारे आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्धतियों में मिल जाता है। परंतु इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि हम हमारी अमूल्य धरोहर को न संभाल सके। यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चल रहा है याने छाती की तरफ तो अग्न्याष्य खराब होने लगता है। इससे फेफड़ों पर गलत प्रभाव होता है। मधुमेह, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं।

- यदि यह स्पंदन नीचे की तरफ चली जाए तो पतले दस्त होने लगते हैं।

- बाईं ओर खिसकने से शीतलता की कमी होने लगती है, सर्दी-जुकाम, खाँसी, कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होते हैं।

- दाहिनी तरफ हटने पर लीवर खराब होकर मंदाग्नि हो सकती है। पित्ताधिक्य, एसिड, जलन आदि की शिकायतें होने लगती हैं। इससे सूर्य चक्र निष्प्रभावी हो जाता है। गर्मी-सर्दी का संतुलन शरीर में बिगड़ जाता है। मंदाग्नि, अपच, अफरा जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं।

- यदि नाभि पेट के ऊपर की तरफ आ जाए यानी रीढ़ के विपरीत, तो मोटापा हो जाता है। वायु विकार हो जाता है। यदि नाभि नीचे की ओर (रीढ़ की हड्डी की तरफ) चली जाए तो व्यक्ति कुछ भी खाए, वह दुबला होता चला जाएगा। नाभि के खिसकने से मानसिक एवंआध्यात्मिक क्षमताएँ कम हो जाती हैं।

- नाभि को पाताल लोक भी कहा गया है। कहते हैं मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में छः मिनट तक रहते है।

- यदि नाभि ठीक मध्यमा स्तर के बीच में चलती है तब स्त्रियाँ गर्भधारण योग्य होती हैं। यदि यही मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे रीढ़ की तरफ चली जाए तो ऐसी स्त्रियाँ गर्भ धारण नहीं कर सकतीं।

- अकसर यदि नाभि बिलकुल नीचे रीढ़ की तरफ चली जाती है तो फैलोपियन ट्यूब नहीं खुलती और इस कारण स्त्रियाँ गर्भधारण नहीं कर सकतीं। कई वंध्या स्त्रियों पर प्रयोग कर नाभि को मध्यमा स्तर पर लाया गया। इससे वंध्या स्त्रियाँ भी गर्भधारण योग्य हो गईं। कुछ मामलों में उपचार वर्षों से चल रहा था एवं चिकित्सकों ने यह कह दिया था कि यह गर्भधारण नहीं कर सकती किन्तु नाभि-चिकित्सा के जानकारों ने इलाज किया।

- दोनों हथेलियों को आपस में मिलाएं। हथेली के बीच की रेखा मिलने के बाद जो उंगली छोटी हो यानी कि बाएं हाथ की उंगली छोटी है तो बायीं हाथ को कोहनी से ऊपर दाएं हाथ से पकड़ लें। इसके बाद बाएं हाथ की मुट्ठि को कसकर बंद कर हाथ को झटके से कंधे की ओर लाएं। ऐसा ८-१० बार करें। इससे नाभि सेट हो जाएगी।

- पादांगुष्ठनासास्पर्शासन उत्तानपादासन , नौकासन , कन्धरासन , चक्रासन , धनुरासन आदि योगासनों से नाभि सही जगह आ सकती है .

- 15 से 25 मि .वायु मुद्रा करने से भी लाभ होता है .

- दो चम्मच पिसी सौंफ, ग़ुड में मिलाकर एक सप्ताह तक रोज खाने से नाभि का अपनी जगह से खिसकना रुक जाता है।
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समलैंगिकता homosexuality

समलैंगिकता 

किशोरावस्था में आप अक्सर उस व्यक्ति की कल्पना करने लगते हैं जिन्हें आप पसंद करते हैं। यह कोई भी हो सकते हैं,एक लड़का या लड़की, एक मित्र, कोई जिन्हें आप जानते हों, या यहाँ तक की आपके स्कूल के शिक्षक या कोई फिल्म अभिनेता या कोई पॉपस्टार। और आप स्वयं को किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में कल्पना करते हुए भी पा सकते हैं जो आपके ही लिंग के हों।
यदि आप अपने आप को किसी ऐसे व्यक्ति के प्यार में पाते हैं जो आपके ही लिंग के हैं और आपको लगता है की आप उनके साथ सेक्स करना चाहते हैं तो सम्भवतः आप समलैंगिक पुरुष या महिला या द्वीलैंगिक हैं।
यदि आप समलैंगिक हैं तो आप अपने ही लिंग के व्यक्ति की आकर्षित ओर होते हैं। समलैंगिक पुरुष अक्सर गे कहलाते हैं और समलैंगिक महिलाएं लेस्बियन। यदि आप पुरुष एवं महिलाओं दोनों की ओर आकर्षित होते हैं तो आप द्वीलैंगिक हैं। और यदि आप विपरीत लिंग वाले लोगों की ओर आकर्षित होते हैं तो आप विषमलैंगिक हैं।
कुछ लोगों के लिए - विशेषकर लड़कियों के लिए - यौनिकता इन सभी पहचानों में से कोई एक या दूसरी नहीं होती है बल्कि वह एक किस्म के पैमाने (स्केल) पर सरकती रहती है। आप अपने आप को समलैंगिक पुरुष या समलैंगिक महिला नहीं मानते हैं फिर भी आप अपने लिंग के व्यक्ति के प्रति आकर्षित हो सकते हैं।
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रिश्तों में समस्याए-problems in relationships


यदि आपके बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेन्ड आपके प्रति ईमानदार नहीं हैं तो यह बात आपको सदमा पहुँचाने वाली हो सकती है। यदि एक साथी को यह पता चल जाता है की दूसरे साथी उनके प्रति ईमानदार नहीं हैं तो आमतौर पर यह एक बहुत ही तीव्र, भावनात्मक एवं गुस्से भरे विवाद की ओर अग्रसर होने लगता है।
आप इस रिश्ते का अन्त करने का निश्चय कर सकते हैं। पर आप इस बात पर भी सहमत हो सकते हैं की हालांकि, एक व्यक्ति ने गलती की है पर आप अपने रिश्ते को इतनी एहमियत देते हैं की आप इस रिश्ते में फिर भी रह सकते हैं। ऐसी स्थिति में यह उम्मीद न करें की चीज़ें तुरन्त पहले की तरह सामान्य हो जाएगीं। पुनः विश्वास हासिल करने में थोड़ा समय लगता है।
ईर्ष्या की भावना
हर किसी को कभी न कभी ईर्ष्या की भावना होती है, विशेषकर तब जब आप किसी के प्यार में हैं। ईर्ष्या का मुख्य कारण असुरक्षा की भावना है। आप स्वयं के लिए एवं अपने रिश्ते के लिए असुरक्षित महसूस करते हैं। और ईर्ष्या से बर्ताव करते हुए आप दूसरे व्यक्ति को दिखाना चाहते हैं की आप अन्य किसी भी व्यक्ति से ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं।
दूसरे व्यक्ति पर हक जताना या पज़ेसिव होना
कभी कभी ईर्ष्या बहुत गम्भीर रुप ले लेती है। एक साथी इतनी ईर्ष्या करने लगते हैं की दूसरे साथी को लगता है की वे अब कुछ और कर ही नहीं सकते। केवल एक नज़र या एक शब्द या अन्य किसी व्यक्ति के लिए थोड़ा सा भी ध्यान, ईर्ष्या की चिंगारी को बढ़ा सकता है।
यदि आपको लगता है की आप ऐसा महसूस कर रहे हैं तो अपने साथी से इस बारे में बात करने की कोशिश करें और उन्हें समझाएं की आप ऐसा क्यों महसूस करते हैं। और यदि आपके साथी ईर्ष्या करते हैं तो याद रखें की यह सामान्यतः असुरक्षा की भावना के कारण होता है। पता लगाने की कोशिश करें की किस वज़ह से वे असुरक्षित महसूस करते हैं और उनके मानसिक तनाव को कम करने की कोशिश करें। इस समस्या का एक ही समाधान है, आपस में बात करना।
रिश्ते का अन्त करना
कुछ लोग किसी एक व्यक्ति से रिश्ता बनाते हैं, उनसे शादी करते हैं और सारा जीवन साथ रहते हैं। पर वास्तव में यह एक अप्राकृतिक मानव व्यवहार है। ज़्यादातर रिश्ते एक समय पर आकर खत्म हो जाते हैं।
  • क्या आप रिश्ते का अन्त करना चाहते हैं ?
अपने साथी को बताने का समय चुनें। उन पर चिल्लाएं नहीं या उनका अपमान न करें। कोशिश करें की आप सारा दोष अपने साथी को न दें - आम तौर पर कहानी के दो पहलू होते हैं, यदि किसी रिश्ते में कोई समस्या होती है, तो और इसमें दोनों साथियों का योगदान होता है। सिर्फ अपने साथी पर उंगली उठाने की बजाय, यह समझाने की कोशिश करें की आपको इस रिश्ते में क्या समस्या है।
  • क्या किसी और ने आपसे रिश्ता खत्म किया है ?
यदि आप किसी से प्यार करते हैं और वे आपसे रिश्ता खत्म कर लेते हैं तो बहुत बुरा लगता है। आप यह स्वीकार नहीं करना चाहते हैं की सब खत्म हो गया है। आप को दुख लग सकता है या गुस्सा आ सकता है। अस्वीकृत किया जाना दुख देता है। पर यदि आपका रिश्ता खत्म हो जाता है तो इसका मतलब यह नहीं है की आप एक व्यक्ति के रुप में असफल हो गए हैं। यह विश्वास करना कठिन लग सकता है पर समय के साथ आप फिर से बेहतर महसूस करने लगेंगें।
प्यार से जुड़ी चिंताएँ
यदि आप अपने रिश्ते को लेकर चिंतित हैं तो इसे अपने तक न रखें। इसके बारे में बात करें, प्राथमिक रुप से अपने साथी से। यदि आप परेशानियों को दिल में बंद कर के रखेंगें, तो आम तौर पर ये और तकलीफ़ दे सकतीं हैं। यदि आपको अपने साथी से बात करने की हिम्मत नहीं पड़ रही है तो किसी ऐसे व्यक्ति को तलाषें जो आपके नज़दीकी हों और आप उन पर विश्वास करते हों - जैसे आपके कोई अच्छे दोस्त, आपके बहन या भाई, माता या पिता।
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रिश्तों के लिए सुझाव-tips for relationships


एक दूसरे के प्रति उदार रहें
  • एक दूसरे से बात करें

  • एक साथ कुछ अच्छा करने की सोचें और मज़े करें।
  • सब कुछ साथ-साथ ही ना करें। अपने खुद के लिए भी थोड़ा समय रखें - और अपने अन्य दोस्तों को भूला न दें।
  • एक दूसरे को विस्मित करें। कोई रोमांचक संदेश भेजें या कोई छोटा सा अप्रत्याशित तोहफ़ा दें।
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विषमलैंगिक, समलैंगिक, द्विलैंगिक- straight, gay, bisexual


यदि आप दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं, तो संभवतः आप एक रिश्ते की शुरुआत कर सकते हैं।
निसंदेह, यह इस बात पर निर्भर करता है की आप कहाँ रहते हैं। पश्चिमी देशों में यह एक आम बात है की लोग अपनी किशोरावस्था में एवं वयस्क होने पर कई बॉयफ्रेंड एवं गर्लफ्रेन्ड से मिलते हैं जब तक उन्हें ऐसे साथी नहीं मिल जाते जिनके साथ वे रहने का निश्चय कर सकें या शादी कर सकें। दूसरी ओर, दक्षिणी एसिया में, लोगों के बॉयफ्रेंड एवं गर्लफ्रेन्ड होना सामान्य बात नहीं है। यहाँ आप सिर्फ अपने पति या पत्नी के साथ ही रिश्ता रख सकते हैं, आम तौर पर शादी के बाद जो अन्य लोगों द्वारा तय कराई जाती है।
यदि आपके कोई बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेन्ड हैं तो आप शायद ज़्यादा समय एक दूसरे के साथ बातें करते हुए, एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए, एक दूसरे को आलिंगन करते हुए, साथ लेटे हुए, एक दूसरे कोचूमते हुए या शायद सेक्स करते हुए बिताना चाहेंगें।
जब आप प्यार में होते हैं, तब आप अनिश्चय एवं असुरक्षा की भावना महसूस कर सकते हैं। आपके साथी क्या चाहते हैं ? क्या आप डेट कर रहे हैं या आपका रिश्ता स्थिर है या है ही नहीं ? सेक्स के बारे में आप क्या सोचते हैं ? आप कितना आगे तक जाना चाहते हैं और आप यह बात कैसे स्पष्ट रुप से बता पाएंगें ? एक नए रिश्ते में आप दोनों को एक दूसरे को जानना होता है और अपने तरीके से महसूस करना होता है। आप अपना समय लें। यदि अब भी आप इन बातों को लेकर अनिश्चित हैं तो प्रसन्नचित होकर इस बारे में बात करने की कोशिश करें। अक्सर आप पाते हैं की दूसरे व्यक्ति भी वैसे ही सोच रहे होते हैं।
और फिर आता है सेक्स
आप एक रिश्ते में हैं - डेट कर रहे हैं, आपका रिश्ता स्थिर है - पर क्या आप सेक्स भी करते हैं ? ज़रुरी तो नहीं है। सेक्स करना तभी शुरु करें जब आप इसके लिए तैयार हों। एक दूसरे को जानें, और पता करें की आपके साथी इस बारे में क्या सोचते हैं। यदि आप सेक्स करना चाहते हैं, तो क्या एक जैसे कारणों के लिए करना चाहते हैं ? कुछ लोग सिर्फ सेक्स का आनन्द प्राप्त करने के लिए सेक्स करते हैं। दुसरे लोग एक प्यार भरे रिश्ते की शुरुआत के लिए सेक्स करते हैं। और कुछ लोग शादी से पहले सेक्स करने में विश्वास ही नहीं रखते हैं। ज़्यादा जानकारी के लिए मेकिंग लव भाग देखें।
विषमलैंगिक, समलैंगिक, द्विलैंगिक
लड़के एवं लड़कियों के बीच रिश्ते होना बहुत ही आम बात है। पर लड़कों का लड़कों के साथ एवं लड़कियों का लड़कियों के साथ भी रिश्ता हो सकता है। और कुछ लोग दोनों लड़कों एवं लड़कियों की तरफ़ आकर्षित होते हैं।
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प्यार और सेक्स love and sex


जब आपको प्यार हो जाता है तो आप दिनभर उन्हीं के बारे में सोचते रहते हैं जिनसे आप प्यार करते हैं। आपको लगता है की जो भी वे करते हैं वह अनोखा है। प्यार में होना आपको सातवें आसमान पर होने जैसा एहसास दे सकता है, पर यह आपको धैर्यहीन या अशांत भी बना सकता है।
उस व्यक्ति को मिलकर आपको एक अनजाना अशांत एहसास होता है। आपको पेट में दर्द भी हो सकता है। आप हमेशा मुस्कराते रहते हैं। उन्हें देखकर आप निःशब्द हो जाते हैं या फिर - आप उन्हें प्रभावित करने की कोशिश में बहुत ज़्यादा बोलने लगते हैं। यदि आपको यह सब जाना पहचाना लग रहा है तो सम्भवतः आपको प्यार हो गया है!

यदि आप यह जानना चाहते हैं की दूसरे व्यक्ति आपके बारे में क्या सोचते हैं तो आपको अपनी भावनाओं पर भरोसा करना होगा। अक्सर आप यह महसूस कर लेते हैं की दूसरे व्यक्ति आपमें रुचि रखते हैं या नहीं। यदि आप इस बारे में निश्चित नहीं हैं तो थोड़ी हिम्मत दिखाएं! ऐसे मौकों की तलाश करें जहाँ आपको उनसे बात करने का अवसर मिल सके। आप उन्हें फोन पर संदेश भेज सकते हैं या एम एस एन जैसी किसी इंटरनेट साइट पर उनसे संपर्क कर सकते हैं। यदि आपको लगता है की वे आपके संदेश का जवाब नहीं देना चाह रहे हैं या आपको टालना या आपसे बचना चाह रहें हैं तो इसकी बहुत संभावना है की वे आपकी भावनाओं का प्रत्युत्तर नहीं देगें।
संदेश को पहचानें
हालांकि, प्यार के खेल में यह एक अत्यधिक पेचीदा पहेली होती है, यह ध्यान में रखें की कुछ लोग आपसे आकर्षित होने के बाद भी आपसे दूर रहते हैं क्योंकि उन्हें अपनी ही भावनाओं को संभालने का तरीका नहीं पता होता है! या उन्हें यह भी लग सकता है की आपके प्रयास अच्छे लगने पर भी उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। अतः यदि कोई लड़का या लड़की आपके संदेश का तुरन्त जवाब नहीं देते हैं तो तुरन्त ही यह न सोच लें की वे आपमें रुचि नहीं रखते हैं।
दूसरी ओर, यदि आपके दो चार बार संपर्क करने की कोशिश का कोई जवाब न मिले तो आपको संदेश समझ लेना चाहिए। या फिर, उन्हें थोड़ा समय दें। किसी पर दबाव डालने से या उन्हें परेशान करने से वे आपमें ज़्यादा रुचि नहीं दिखाएंगें। हो सकता है इससे कुछ हाथ न लगे, पर धैर्य बनाए रखें, आपके लिए उनकी भावनाओं में बदलाव भी आ सकता है। यदि आपको साफ़ ’ना’ का संदेश मिल जाता है तो अपने जीवन में आगे बढ़ें और उस व्यक्ति को अकेला छोड़ दें।
प्यार दुख देता है
कभी कभी प्यार की कहानियों का अंत सुखद होता है पर हमेशा नहीं। हो सकता है आप किसी से प्यार करने लगें पर उनकी भावनाएं आपके लिए वैसी ही न हों। या आपके गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड आपसे संबंध खत्म कर लें। या आप प्यार में तो हैं, पर कुछ परिस्थियों - जैसे पारिवारिक दबाव, जिम्मेदारियों का एहसास, धार्मिक मान्यता, दूसरों द्वारा करवाई गई शादी - के कारण उस रिश्ते को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। या आप प्यार तो करते हैं पर कुछ कारणों की वजह से आपको एक दूसरे से काफी समय दूर रहना पड़ रहा है। प्यार सच में बहुत दुख दे सकता है।
यह एक जानी मानी कहावत समझ लीजिए, परन्तु सत्य है। जब दिल टूटता है तो यह विश्वास कर पाना मुश्किल लगता है की आप फिर से पहले जैसा महसूस कर पाएंगें। पर आप ऐसा कर सकेंगें। इसमें थोड़ा समय लगता है। अपना मन कहीं और लगाने की कोशिश करें - कोई खेल खेलें या संगीत सुनें। इसके बारे में अपने किसी अच्छे मित्र से बात करें, अपनी भावनाओं को कविता या गीत के रुप में लिखें। और याद रखें की हर किसी को कभी न कभी प्यार में दर्द मिलता है। यहाँ तक की कक्षा के सबसे लोकप्रिय लड़के एवं लड़कियों को भी।
प्यार और सेक्स
बहुत सारे लोग केवल उन्हीं लोगों के साथ सेक्स करते हैं जिनसे उन्हें प्यार होता है या जिन्हें वे प्यार करते हैं। पर प्यार सेक्स के समान नहीं होता और सेक्स प्यार का प्रतिरुप नहीं होता है। आप सेक्स काम प्रवृति के कारण भी कर सकते है, केवल सेक्स का आनन्द लेने के लिए। पर ज़्यादातर लोगों के लिए, उन्हें उन लोगों के साथ सेक्स करने में ज़्यादा गहरा आनन्द मिलता है जिनसे वे प्यार करते हैं।
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गेहूँ औषधीय गुणों से भी भरपूर Wheat is also full of medicinal properties


सामान्यतः लोग गेहूँ को सिर्फ शक्तिदायक खाद्य पदार्थ समझते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि गेहूँ औषधीय गुणों से भी भरपूर है।

खाँसी - 20 ग्राम गेहूँ के दानों में नमक मिलाकर 250 ग्राम पानी में उबाल लें। जब तक की पानी की मात्रा एक तिहाई न रह जाए। इसे गरम-गरम पी लें। लगातार एक हफ्ते तक यह प्रयोग दोहराने से खाँसी जल्दी चली जाती है।

दाहकता - 80 ग्राम गेहूँ को रात में पानी में भिगो दें। सुबह उन्हें अच्छी तरह पीसकर छान लें। यदि चाहें तो स्वाद के लिए उसमें थोड़ी सी मिश्री मिला लें। गेहूँ के इस रस को पीने से शरीर में उत्पन्न दाहकता (गर्मी) शांत होती है। इससे मूत्र संबंधी रोगों में भी फायदा मिलता है।

अस्थि भंग - एक मुठ्ठी गेहूँ को तवे पर भूनकर पीस लें। इस चूर्ण को शहद के साथ चाटने से अस्थि भंग रोग दूर होता है।
स्मरण शक्ति- गेहूँ से बने हरीरा में शक्कर और बादाम मिलाकर पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
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शीत ऋतु में उपयोगी पाक useful food in winter season


शीतकाल में पाक का सेवन अत्यंत लाभदायक होता है। पाक के सेवन से रोगों को दूर करने में एवं शरीर में शक्ति लाने में मदद मिलती है। स्वादिष्ट एवं मधुर होने के कारण रोगी को भी पाक का सेवन करने में उबान नहीं आती।
पाक बनाने की सर्वसामान्य विधिः पाक में डाली जाने वाली काष्ठ-औषधियों एवं सुगंधित औषधियों का चूर्ण अलग-अलग करके उन्हें कपड़छान कर लेना चाहिए। किशमिश, बादाम, चारोली, खसखस, पिस्ता, अखरोट, नारियल जैसी वस्तुओं के चूर्ण को कपड़छन करने की जरूरत नहीं है। उन्हें तो थोड़ा-थोड़ा कूटकर ही पाक में मिला सकते हैं।
पाक में सर्वप्रथम काष्ठ औषधियाँ डालें, फिर सुगंधित पदार्थ डालें। अंत में केसर को घी में पीसकर डालें।
पाक तैयार होने पर उसे घी लगायी हुई थाली में फैलाकर बर्फी की तरह छोटे या बड़े टुकड़ों में काट दें। ठंडा होने पर स्वच्छ बर्तन या काँच की बरनी में भरकर रख लें।
पाक खाने के पश्चात दूध अवश्य पियें। इस दौरान मधुर रसवाला भोजन करें। पाक एक दिन में ज्यादा से ज्यादा 40 ग्राम जितनी मात्रा तक खाया जा सकता है।

अदरक पाकः-

अदरक के बारीक-बारीक टुकड़े, गाय का घी एवं गुड़ – इन तीनों को समान मात्रा में लेकर लोहे की कड़ाही में अथवा मिट्टी के बर्तन में धीमी आँच पर पकायें। पाक जब इतना गाढ़ा हो जाय कि चिपकने लगे तब आँच पर से उतारकर उसमें सोंठ, जीरा, काली मिर्च, नागकेसर, जायफल, इलायची, दालचीनी, तेजपत्र, लेंडीपीपर, धनिया, स्याहजीरा, पीपरामूल एवं वायविंडम का चूर्ण ऊपर की औषधियाँ (अदरक आदि) से चौथाई भाग में डालें। इस पाक को घी लगे हुए बर्तन में भरकर रख लें।
शीतकाल में प्रतिदिन 20 ग्राम की मात्रा में इस पाक को खाने से दमा, खाँसी, भ्रम, स्वरभंग, अरुचि, कर्णरोग, नासिकारोग, मुखरोग, क्षय, उरःक्षतरोग, हृदय रोग, संग्रहणी, शूल, गुल्म एवं तृषारोग में लाभ होता है।

खजूर पाकः-

खारिक (खजूर) 480 ग्राम, गोंद 320 ग्राम, मिश्री 380 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, लेंडीपीपर 20 ग्राम, काली मिर्च 30 ग्राम तथा दालचीनी, तेजपत्र, चित्रक एवं इलायची 10 -10 ग्राम डाल लें। फिर उपर्युक्त विधि के अनुसार इन सब औषधियों से पाक तैयार करें।
यह पाक बल की वृद्धि करता है, बालकों को पुष्ट बनाता है तथा इसके सेवन से शरीर की कांति सुंदर होकर, धातु की वृद्धि होती है। साथ ही क्षय, खाँसी, कंपवात, हिचकी, दमे का नाश होता है।

बादाम पाकः-

बादाम 320 ग्राम, मावा 160 ग्राम, बेदाना 45 ग्राम, घी 160 ग्राम, मिश्री 1600 ग्राम तथा लौंग, जायफल, वंशलोचन एवं कमलगट्टा 5-5 ग्राम और एल्चा (बड़ी इलायची) एवं दालचीनी 10-10 ग्राम लें। इसके बाद उपरोक्त विधि के अनुसार पाक तैयार करें।
नोटः बड़ी इलायची के गुणधर्म वही हैं जो छोटी इलायची के होते हैं ऐसा द्रव्य-गुण के विद्वानों का मानना है। अतः बड़ी इलायची भी छोटी के बराबर ही फायदा करेगी। बड़ी इलायची छोटी इलायची से बहुत कम दामों में मिलती है।
इस पाक के सेवन से वीर्यवृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है, वातरोग में लाभ होता है।

मेथी पाकः-

मेथी एवं सोंठ 320-320 ग्राम की मात्रा में लेकर दोनों का चूर्ण कपड़छन कर लें। 5 लीटर 120 मि.ली. दूध में 320 ग्राम घी डालकर उसमें ये चूर्ण मिला दें। यह सब एकरस होकर गाढ़ा हो जाय, तक उसे पकायें। उसके पश्चात उसमें 2 किलो 560 ग्राम शक्कर डालकर फिर से धीमी आँच पर पकायें। अच्छी तरह पाक तैयार हो जाने पर नीचे उतार लें। फिर उसमें लेंडीपीपर, सोंठ, पीपरामूल, चित्रक, अजवाइन, जीरा, धनिया, कलौंजी, सौंफ, जायफल, दालचीनी, तेजपत्र एवं नागरमोथ, ये सभी 40-40 ग्राम एवं काली मिर्च का 60 ग्राम चूर्ण डालकर हिलाकर ऱख लें।
यह पाक 40 ग्राम की मात्रा में अथवा पाचनशक्ति अनुसार सुबह खायें। इसके ऊपर दूध न पियें।
यह पाक आमवात, अन्य वातरोग, विषमज्वर, पांडुरोग, पीलिया, उन्माद, अपस्मार, प्रमेह, वातरक्त, अम्लपित्त, शिरोरोग, नासिकारोग, नेत्ररोग, सूतिकारोग आदि सभी में लाभदायक है। यह पाक शरीर के लिए पुष्टिकारक, बलकारक एवं वीर्य वर्धक है।

सूंठी पाकः-

320 ग्राम सोंठ और 1 किलो 280 ग्राम मिश्री या चीनी को 320 ग्राम घी एवं इससे चार गुने दूध में धीमी आँच पर पकाकर पाक तैयार करें।
इस पाक के सेवन से मस्तकशूल, वातरोग, सूतिकारोग एवं कफरोगों में लाभ होता है। प्रसूति के बाद इसका सेवन लाभदायी है।

अंजीर पाकः-

500 ग्राम सूखे अंजीर लेकर उसके 6-8 छोटे-छोटे टुकड़े कर लें। 500 ग्राम देशी घी गर्म करके उसमें अंजीर के वे टुकड़े डालकर 200 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिला दें। इसके पश्चात उसमें बड़ी इलायची 5 ग्राम, चारोली, बलदाणा एवं पिस्ता 10-10 ग्राम तथा 20 ग्राम बादाम के छोटे-छोटे टुकड़ों को ठीक ढंग से मिश्रित कर काँच की बर्नी में भर लें। अंजीर के टुकड़े घी में डुबे रहने चाहिए। घी कम लगे तो उसमें और ज्यादा घी डाल सकते हैं।
यह मिश्रण 8 दिन तक बर्नी में पड़े रहने से अंजीरपाक तैयार हो जाता है। इस अंजीरपाक को प्रतिदिन सुबह 10 से 20 ग्राम की मात्रा में खाली पेट खायें। शीत ऋतु में शक्ति संचय के लिय यह अत्यंत पौष्टिक पाक है। यह अशक्त एवं कमजोर व्यक्ति का रक्त बढ़ाकर धातु को पुष्ट करता है।

अश्वगंधा पाकः-

अश्वगंधा एक बलवर्धक व पुष्टिदायक श्रेष्ठ रसायन है। यह मधुर व स्निग्ध होने के कारण वात का शमन एवं रक्तादि सप्त धातुओं का पोषण करने वाला है। सर्दियों में जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। तब अश्वगंधा से बने हुए पाक का सेवन करने से पूरे वर्ष शरीर में शक्ति, स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है।

विधिः-
480 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को 6 लीटर गाय के दूध में, दूध गाढ़ा होने तक पकायें। दालचीनी (तज), तेजपत्ता, नागकेशर और इलायची का चूर्ण प्रत्येक 15-15 ग्राम मात्रा में लें। जायफल, केशर, वंशलोचन, मोचरस, जटामासी, चंदन, खैरसार (कत्था), जावित्री (जावंत्री), पीपरामूल, लौंग, कंकोल, भिलावा की मींगी, अखरोट की गिरी, सिंघाड़ा, गोखरू का महीन चूर्ण प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। रस सिंदूर, अभ्रकभस्म, नागभस्म, बंगभस्म, लौहभस्म प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। उपर्युक्त सभी चूर्ण व भस्म मिलाकर अश्वगंधा से सिद्ध किये दूध में मिला दें। 3 किलो मिश्री अथवा चीनी की चाशनी बना लें। जब चाशनी बनकर तैयार हो जाय तब उसमें से 1-2 बूँद निकालकर उँगली से देखें, लच्छेदार तार छूटने लगें तब इस चाशनी में उपर्युक्त मिश्रण मिला दें। कलछी से खूब घोंटे, जिससे सब अच्छी तरह से मिल जाय। इस समय पाक के नीचे तेज अग्नि न हो। सब औषधियाँ अच्छी तरह से मिल जाने के बाद पाक को अग्नि से उतार दें।

परीक्षणः-
पूर्वोक्त प्रकार से औषधियाँ डालकर जब पाक तैयार हो जाता है, तब वह कलछी से उठाने पर तार सा बँधकर उठता है। थोड़ा ठंडा करके 1-2 बूँद पानी में डालने से उसमें डूबकर एक जगह बैठ जाता है, फलता नहीं। ठंडा होने पर उँगली से दबाने पर उसमें उँगलियों की रेखाओं के निशान बन जाते हैं।

पाक को थाली में रखकर ठंडा करें। ठंडा होने पर चीनी मिट्टी या काँच के बर्तन में भरकर रखें। 10 से 15 ग्राम पाक सुबह शहद अथवा गाय के दूध के साथ लें।
यह पाक शक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक, स्नायु व मांसपेशियों को ताकत देने वाला एवं कद बढ़ाने वाला एक पौष्टिक रसायन है। यह धातु की कमजोरी, शारीरिक-मानसिक कमजोरी आदि के लिए उत्तम औषधि है। इसमें कैल्शियम, लौह तथा जीवनसत्व (विटामिन्स) भी प्रचुर मात्रा में होते हैं।
अश्वगंधा अत्यंत वाजीकर अर्थात् शुक्रधातु की त्वरित वृद्धि करने वाला रसायन है। इसके सेवन से शुक्राणुओं की वृद्धि होती है एवं वीर्यदोष दूर होते हैं। धातु की कमजोरी, स्वप्नदोष, पेशाब के साथ धातु जाना आदि विकारों में इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायी है।
यह पाक अपने मधुर व स्निग्ध गुणों से रस-रक्तादि सप्तधातुओं की वृद्धि करता है। अतः मांसपेशियों की कमजोरी, रोगों के बाद आने वाला दौर्बल्य तथा कुपोषण के कारण आनेवाली कृशता आदि में विशेष उपयुक्त है। इससे विशेषतः मांस व शुक्रधातु की वृद्धि होती है। अतः यह राजयक्षमा (क्षयरोग) में भी लाभदायी है। क्षयरोग में अश्वगंधा पाक के साथ सुवर्ण मालती गोली का प्रयोग करें। किफायती दामों में शुद्ध सुवर्ण मालती व अश्वगंधा चूर्ण आश्रम के सभी उपचार केन्द्रों व स्टालों पर उपलब्ध है।
जब धातुओं का क्षय होने से वात का प्रकोप होकर शरीर में दर्द होता है, तब यह दवा बहुत लाभ करती है। इसका असर वातवाहिनी नाड़ी पर विशेष होता है। अगर वायु की विशेष तकलीफ है तो इसके साथ 'महायोगराज गुगल' गोली का प्रयोग करें।

इसके सेवन से नींद भी अच्छी आती है। यह वातशामक तथा रसायन होने के कारण विस्मृति, यादशक्ति की कमी, उन्माद, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) आदि मनोविकारों में भी लाभदायी है। दूध के साथ सेवन करने से शरीर में लाल रक्तकणों की वृद्धि होती है, जठराग्नि प्रदीप्त होती है, शरीर की कांति बढ़ती है और शरीर में शक्ति आती है। सर्दियों में इसका लाभ अवश्य उठायें।
Photo: शीत ऋतु में उपयोगी पाक -------
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शीतकाल में पाक का सेवन अत्यंत लाभदायक होता है। पाक के सेवन से रोगों को दूर करने में एवं शरीर में शक्ति लाने में मदद मिलती है। स्वादिष्ट एवं मधुर होने के कारण रोगी को भी पाक का सेवन करने में उबान नहीं आती।
पाक बनाने की सर्वसामान्य विधिः पाक में डाली जाने वाली काष्ठ-औषधियों एवं सुगंधित औषधियों का चूर्ण अलग-अलग करके उन्हें कपड़छान कर लेना चाहिए। किशमिश, बादाम, चारोली, खसखस, पिस्ता, अखरोट, नारियल जैसी वस्तुओं के चूर्ण को कपड़छन करने की जरूरत नहीं है। उन्हें तो थोड़ा-थोड़ा कूटकर ही पाक में मिला सकते हैं।
पाक में सर्वप्रथम काष्ठ औषधियाँ डालें, फिर सुगंधित पदार्थ डालें। अंत में केसर को घी में पीसकर डालें।
पाक तैयार होने पर उसे घी लगायी हुई थाली में फैलाकर बर्फी की तरह छोटे या बड़े टुकड़ों में काट दें। ठंडा होने पर स्वच्छ बर्तन या काँच की बरनी में भरकर रख लें।
पाक खाने के पश्चात दूध अवश्य पियें। इस दौरान मधुर रसवाला भोजन करें। पाक एक दिन में ज्यादा से ज्यादा 40 ग्राम जितनी मात्रा तक खाया जा सकता है।

अदरक पाकः-

अदरक के बारीक-बारीक टुकड़े, गाय का घी एवं गुड़ – इन तीनों को समान मात्रा में लेकर लोहे की कड़ाही में अथवा मिट्टी के बर्तन में धीमी आँच पर पकायें। पाक जब इतना गाढ़ा हो जाय कि चिपकने लगे तब आँच पर से उतारकर उसमें सोंठ, जीरा, काली मिर्च, नागकेसर, जायफल, इलायची, दालचीनी, तेजपत्र, लेंडीपीपर, धनिया, स्याहजीरा, पीपरामूल एवं वायविंडम का चूर्ण ऊपर की औषधियाँ (अदरक आदि) से चौथाई भाग में डालें। इस पाक को घी लगे हुए बर्तन में भरकर रख लें।
शीतकाल में प्रतिदिन 20 ग्राम की मात्रा में इस पाक को खाने से दमा, खाँसी, भ्रम, स्वरभंग, अरुचि, कर्णरोग, नासिकारोग, मुखरोग, क्षय, उरःक्षतरोग, हृदय रोग, संग्रहणी, शूल, गुल्म एवं तृषारोग में लाभ होता है।

खजूर पाकः-

खारिक (खजूर) 480 ग्राम, गोंद 320 ग्राम, मिश्री 380 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, लेंडीपीपर 20 ग्राम, काली मिर्च 30 ग्राम तथा दालचीनी, तेजपत्र, चित्रक एवं इलायची 10 -10 ग्राम डाल लें। फिर उपर्युक्त विधि के अनुसार इन सब औषधियों से पाक तैयार करें।
यह पाक बल की वृद्धि करता है, बालकों को पुष्ट बनाता है तथा इसके सेवन से शरीर की कांति सुंदर होकर, धातु की वृद्धि होती है। साथ ही क्षय, खाँसी, कंपवात, हिचकी, दमे का नाश होता है।

बादाम पाकः-

बादाम 320 ग्राम, मावा 160 ग्राम, बेदाना 45 ग्राम, घी 160 ग्राम, मिश्री 1600 ग्राम तथा लौंग, जायफल, वंशलोचन एवं कमलगट्टा 5-5 ग्राम और एल्चा (बड़ी इलायची) एवं दालचीनी 10-10 ग्राम लें। इसके बाद उपरोक्त विधि के अनुसार पाक तैयार करें।
नोटः बड़ी इलायची के गुणधर्म वही हैं जो छोटी इलायची के होते हैं ऐसा द्रव्य-गुण के विद्वानों का मानना है। अतः बड़ी इलायची भी छोटी के बराबर ही फायदा करेगी। बड़ी इलायची छोटी इलायची से बहुत कम दामों में मिलती है।
इस पाक के सेवन से वीर्यवृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है, वातरोग में लाभ होता है।

मेथी पाकः-

मेथी एवं सोंठ 320-320 ग्राम की मात्रा में लेकर दोनों का चूर्ण कपड़छन कर लें। 5 लीटर 120 मि.ली. दूध में 320 ग्राम घी डालकर उसमें ये चूर्ण मिला दें। यह सब एकरस होकर गाढ़ा हो जाय, तक उसे पकायें। उसके पश्चात उसमें 2 किलो 560 ग्राम शक्कर डालकर फिर से धीमी आँच पर पकायें। अच्छी तरह पाक तैयार हो जाने पर नीचे उतार लें। फिर उसमें लेंडीपीपर, सोंठ, पीपरामूल, चित्रक, अजवाइन, जीरा, धनिया, कलौंजी, सौंफ, जायफल, दालचीनी, तेजपत्र एवं नागरमोथ, ये सभी 40-40 ग्राम एवं काली मिर्च का 60 ग्राम चूर्ण डालकर हिलाकर ऱख लें।
यह पाक 40 ग्राम की मात्रा में अथवा पाचनशक्ति अनुसार सुबह खायें। इसके ऊपर दूध न पियें।
यह पाक आमवात, अन्य वातरोग, विषमज्वर, पांडुरोग, पीलिया, उन्माद, अपस्मार, प्रमेह, वातरक्त, अम्लपित्त, शिरोरोग, नासिकारोग, नेत्ररोग, सूतिकारोग आदि सभी में लाभदायक है। यह पाक शरीर के लिए पुष्टिकारक, बलकारक एवं वीर्य वर्धक है।

सूंठी पाकः-

320 ग्राम सोंठ और 1 किलो 280 ग्राम मिश्री या चीनी को 320 ग्राम घी एवं इससे चार गुने दूध में धीमी आँच पर पकाकर पाक तैयार करें।
इस पाक के सेवन से मस्तकशूल, वातरोग, सूतिकारोग एवं कफरोगों में लाभ होता है। प्रसूति के बाद इसका सेवन लाभदायी है।

अंजीर पाकः-

500 ग्राम सूखे अंजीर लेकर उसके 6-8 छोटे-छोटे टुकड़े कर लें। 500 ग्राम देशी घी गर्म करके उसमें अंजीर के वे टुकड़े डालकर 200 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिला दें। इसके पश्चात उसमें बड़ी इलायची 5 ग्राम, चारोली, बलदाणा एवं पिस्ता 10-10 ग्राम तथा 20 ग्राम बादाम के छोटे-छोटे टुकड़ों को ठीक ढंग से मिश्रित कर काँच की बर्नी में भर लें। अंजीर के टुकड़े घी में डुबे रहने चाहिए। घी कम लगे तो उसमें और ज्यादा घी डाल सकते हैं।
यह मिश्रण 8 दिन तक बर्नी में पड़े रहने से अंजीरपाक तैयार हो जाता है। इस अंजीरपाक को प्रतिदिन सुबह 10 से 20 ग्राम की मात्रा में खाली पेट खायें। शीत ऋतु में शक्ति संचय के लिय यह अत्यंत पौष्टिक पाक है। यह अशक्त एवं कमजोर व्यक्ति का रक्त बढ़ाकर धातु को पुष्ट करता है।

अश्वगंधा पाकः-

अश्वगंधा एक बलवर्धक व पुष्टिदायक श्रेष्ठ रसायन है। यह मधुर व स्निग्ध होने के कारण वात का शमन एवं रक्तादि सप्त धातुओं का पोषण करने वाला है। सर्दियों में जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। तब अश्वगंधा से बने हुए पाक का सेवन करने से पूरे वर्ष शरीर में शक्ति, स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है।

विधिः-
480 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को 6 लीटर गाय के दूध में, दूध गाढ़ा होने तक पकायें। दालचीनी (तज), तेजपत्ता, नागकेशर और इलायची का चूर्ण प्रत्येक 15-15 ग्राम मात्रा में लें। जायफल, केशर, वंशलोचन, मोचरस, जटामासी, चंदन, खैरसार (कत्था), जावित्री (जावंत्री), पीपरामूल, लौंग, कंकोल, भिलावा की मींगी, अखरोट की गिरी, सिंघाड़ा, गोखरू का महीन चूर्ण प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। रस सिंदूर, अभ्रकभस्म, नागभस्म, बंगभस्म, लौहभस्म प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। उपर्युक्त सभी चूर्ण व भस्म मिलाकर अश्वगंधा से सिद्ध किये दूध में मिला दें। 3 किलो मिश्री अथवा चीनी की चाशनी बना लें। जब चाशनी बनकर तैयार हो जाय तब उसमें से 1-2 बूँद निकालकर उँगली से देखें, लच्छेदार तार छूटने लगें तब इस चाशनी में उपर्युक्त मिश्रण मिला दें। कलछी से खूब घोंटे, जिससे सब अच्छी तरह से मिल जाय। इस समय पाक के नीचे तेज अग्नि न हो। सब औषधियाँ अच्छी तरह से मिल जाने के बाद पाक को अग्नि से उतार दें।

परीक्षणः-
पूर्वोक्त प्रकार से औषधियाँ डालकर जब पाक तैयार हो जाता है, तब वह कलछी से उठाने पर तार सा बँधकर उठता है। थोड़ा ठंडा करके 1-2 बूँद पानी में डालने से उसमें डूबकर एक जगह बैठ जाता है, फलता नहीं। ठंडा होने पर उँगली से दबाने पर उसमें उँगलियों की रेखाओं के निशान बन जाते हैं।

पाक को थाली में रखकर ठंडा करें। ठंडा होने पर चीनी मिट्टी या काँच के बर्तन में भरकर रखें। 10 से 15 ग्राम पाक सुबह शहद अथवा गाय के दूध के साथ लें।
यह पाक शक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक, स्नायु व मांसपेशियों को ताकत देने वाला एवं कद बढ़ाने वाला एक पौष्टिक रसायन है। यह धातु की कमजोरी, शारीरिक-मानसिक कमजोरी आदि के लिए उत्तम औषधि है। इसमें कैल्शियम, लौह तथा जीवनसत्व (विटामिन्स) भी प्रचुर मात्रा में होते हैं।
अश्वगंधा अत्यंत वाजीकर अर्थात् शुक्रधातु की त्वरित वृद्धि करने वाला रसायन है। इसके सेवन से शुक्राणुओं की वृद्धि होती है एवं वीर्यदोष दूर होते हैं। धातु की कमजोरी, स्वप्नदोष, पेशाब के साथ धातु जाना आदि विकारों में इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायी है।
यह पाक अपने मधुर व स्निग्ध गुणों से रस-रक्तादि सप्तधातुओं की वृद्धि करता है। अतः मांसपेशियों की कमजोरी, रोगों के बाद आने वाला दौर्बल्य तथा कुपोषण के कारण आनेवाली कृशता आदि में विशेष उपयुक्त है। इससे विशेषतः मांस व शुक्रधातु की वृद्धि होती है। अतः यह राजयक्षमा (क्षयरोग) में भी लाभदायी है। क्षयरोग में अश्वगंधा पाक के साथ सुवर्ण मालती गोली का प्रयोग करें। किफायती दामों में शुद्ध सुवर्ण मालती व अश्वगंधा चूर्ण आश्रम के सभी उपचार केन्द्रों व स्टालों पर उपलब्ध है।
जब धातुओं का क्षय होने से वात का प्रकोप होकर शरीर में दर्द होता है, तब यह दवा बहुत लाभ करती है। इसका असर वातवाहिनी नाड़ी पर विशेष होता है। अगर वायु की विशेष तकलीफ है तो इसके साथ 'महायोगराज गुगल' गोली का प्रयोग करें।

इसके सेवन से नींद भी अच्छी आती है। यह वातशामक तथा रसायन होने के कारण विस्मृति, यादशक्ति की कमी, उन्माद, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) आदि मनोविकारों में भी लाभदायी है। दूध के साथ सेवन करने से शरीर में लाल रक्तकणों की वृद्धि होती है, जठराग्नि प्रदीप्त होती है, शरीर की कांति बढ़ती है और शरीर में शक्ति आती है। सर्दियों में इसका लाभ अवश्य उठायें।
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