विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
दोस्तो कुछ हो या न हो लेकिन एक सवाल हर किसी के मन में होता ही है की आखिर मोटिवेशनल स्टोरीज़ पड़ने का या सुनने का क्या फायदा ? लेकिन इसका सीधा सीधा जवाब है की अगर आप मोटिवेशनल स्टोरी पड़ते हैं या सुनते हैं तो आपको कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है और आपको दूसरों की कहानियों से ये जान पाते है कि ऐसी कौन सी गलतियां है जो और लोगो ने की हैं और आपको वो गलतियां नही करनी हैं। इसलिए आज हम आपको कुछ ऐसी ही कहानियां बताएंगे जिनमे आपको कुछ न कुछ नया सीखने को मिलेगा।
दुनियां सिर्फ तमाशा देखना पसंद करती हैं।
एक बार की बात है एक घर में आग लग गई। घर में से सभी लोगो को निकाला गया मौहल्ले के कुछ लोग आग बुझाने में लग गए तो कुछ लोग सिर्फ देख रहे थे। उसी घर में एक चिड़िया का घोंसला भी था I
चिड़िया अपनी चोंच में थोड़ा पानी लाती और आग के ऊपर डाल देती लेकिन आग बुझ ही नही रही थी लेकिन चिड़िया भी रुक नही रही थी वो बस अपनी चोंच में पानी भर कर लाती और आग में डाल देती चिड़िया को बार बार मेहनत करते देख कौवा उसको देख कर हंसने लगा और बोला चिड़िया तू पागल है क्या ?
तुझे क्या लगता है ये घर देख इतना बड़ा है और तेरी चोंच इतनी छोटी है तुझे क्या लगता है तेरे बुझाने से ये आग बुझ जायेगी चिड़िया ने कहा हां मैं जानती हूं कि मेरे बुझाने से ये आग नही बुझेगी लेकिन जब भी इस आग के बारे में बात होगी तब मेरा नाम आग बुझाने वालों में होगा और तेरा नाम तमाशा देखने वालो में होगा।
सीख:
हमारी ज़िंदगी में भी ऐसे बहुत सारे लोग होते है जिनको हमारी Success बुरी लगती हैं वो हमेशा हमारे अंदर कोई न कोई कमी निकालते हैं और अगर हमसे कोई छोटी सी भी गलती हो जाए तो उसका तमाशा बना देते हैं इसलिए हमेशा ऐसे लोगो से दूर रहना ही बेहतर होता है।
Janmashtami ki Hardik Shubhkamnaye: जन्माष्टमी के दिन भक्तजन पूरे दिन व्रत रखते हैं और रात को श्री कृष्ण के जन्म के बाद फलाहार करते हैं। ऐसे में इस खास मौके पर आप अपनों को खास शायरी संदेश भेजकर भगवान कृष्ण के जन्मदिन की शुभकामनाएं दे सकते हैं।
आज पूरे देश में श्री कृष्ण जन्मोत्सव की धूम है। जन्माष्टमी की आधी रात को भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था, जिसका उत्सव आज भी आधी रात को बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन हर कोई रात-भर जगकर उनके जन्म का उत्सव मनाता है। कृष्ण मंदिरों में कान्हा भक्तों की भीड़ उमड़ती है और पंडाल सजाए जाते हैं।
मंदिरों और घरों में भक्त उनके जन्म से पहले ही भजन-कीर्तन करना शुरू कर देते हैं। इस दिन हर घर और मंदिर में लोग भगवान कृष्ण की मूर्ति को झूले में बिठाते हैं और उनका नए वस्त्र, आभूषण और फूलों से श्रृंगार करते हैं। इस खास मौके पर अगर आप अपने मित्रों, रिश्तेदारों को खास संदेश भेजना चाहते हैं या स्टेटस पर दो लाइन कोट्स के साथ फोटो लगाना चाहते हैं, तो यह आर्टिकल आपके काम आएगा। आप अपनों को व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर भी मैसेज में ये विशेष भेज सकते हैं।
1- गोद में यशोदा के, खेलें बाल गोपाल,
प्यारे मुख पर बसी है, सारी दुनिया की लालीमाल
गोपियों की मटकी फोड़ें, सबको खूब सताएं,
नटखट कन्हैया की मस्ती, सबके दिल में समाएं।
2- गोकुल का वो बालक चंचल,जिससे दुनिया हारी,
राधा संग रास रचाए, वो कृष्ण मुरारी,
जैसे नंद के घर में आए खुशियां।
वैसे ही आपके घर में भी गूंजे किलकारी,
Happy #Janmashtami
3- मोर मुकुट सिर पर, बंसी होठों पर सजाए,
अपनी मुरली की धुन से, सबको नचाए।
मां यशोदा की लाडले, सबकी आंखों का तारे,
शरारतों में सबसे आगे, वो है कान्हा प्यारे।
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
#krishna janmashtami #wishes #quotes
4- आ गए हैं नन्हे बाल गोपाल प्यारे,
माखन के वो चोर न्यारे,
गोपियों के दिल को जीतेगें।
सबके प्रिय, सबके दुलारे,
Happy Janmashtami
जन्माष्टमी विशेज इन हिंदी (Janmashtami Wishes in Hindi)
5- आज है कर्म का पाठ पढ़ाने वाले का जन्मोत्सव,
आज है गीता के ज्ञान को बांटने वाले का जन्मोत्सव।
आज है धर्म की राह दिखाने वाले का जन्मोत्सव,
इसलिए हम दिल से भेज रहे हैं बाल गोपाल के जन्मदिन का पैगाम।
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
6-छोटी-छोटी बातों में, बड़े-बड़े खेल दिखाएं,
बाल गोपाल की शरारतें, सबको खूब भाएं।
गोकुल के गलियों में, बाल गोपाल की धूम।
जन्माष्टमी पर नटखट नंदलाला की सबके दिलों पर धूम,
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
#krishna #janmashtami #wishes #quotes #message
7- मेरे नंदलाला की लीला अद्भुत,
हर किसी को भाती है,
उनकी मुरली की धुन सुनकर।
सबका मन खुशियों से भर जाएं,
Happy Janmashtami
8- माखन की मटकी पर नजरें उनकी जाएं,
मां यशोदा से छिपकर, सारे माखन को चुराएं।
काश इस जन्माष्टमी हर घर में पधारें नटखट मुरारी,
बस यही दुआ है इस जन्माष्टमी,
हर घर में हो जाए खुशियों की भरमार।
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
जन्माष्टमी मैसेज इन हिंदी (Krishna Janmashtami Message in Hindi)
9-कृष्णा का जन्म, एक महोत्सव महान
जिसने दिया हमें, धर्म का सच्चा ज्ञान।
आओ मिलकर मनाएं, ये पावन पर्व खास,
जय श्री कृष्णा की गूंज उठे, हर घर में आवाज़।
#krishna images
10- श्री कृष्ण की मुरली की धुन,
हर दिल को भा जाए,
राधा के संग प्रेम का।
संदेश वो सीखा जाए,
नहीं होगा जिंदगी में कोई गम जब जन्माष्टमी में कृष्ण पधारें।
आपका घर भी भर जाए खुशियों से बस यही शुभकामनाएं हैं हमारी,
Happy Janmashtami
11- मोर मुकुट, पीतांबर धारी,
मुरलीधर की लीला प्यारी।
नटखट कान्हा बालक बने,
सबके दिलों के राजकुमार बने।
नहीं होगा कोई भी अधूरा,
जब इस जन्माष्टमी हर घर पधारेंगे कन्हैया प्यारे
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं (Janmashtami ki Hardik Shubhkamnaye)
रात में पत्नी से लिपटकर सोना, रात भर उसे अपने आलिंगन में समेटे रखना और सुबह उसकी मुस्कान देखकर उठना, क्या कहने! पत्नी खुश, तो मैं खुश, और मैं खुश तो पूरा परिवार खुश।
जब शादी की उम्र हो रही थी, मेरे लिए लड़कियाँ देखी जा रही थीं। मन ही मन मैं भी खुश था कि चलो कोई तो ऐसा होगा जिसे मैं अपना हमसफर कह सकूँगा, जिसके साथ जब मन करे, प्यार कर सकूँगा। मेरी अच्छी-खासी नौकरी थी, घर में बूढ़ी माँ और पापा थे। इतनी कमाई भी हो जाती थी कि अपनी पत्नी का खर्च उठा सकूँ। इन सारी बातों को सोच-सोचकर मैं खुश हो जाता था।
माँ की उम्र भी हो गई थी, तो यह भी सोचता कि उनकी इच्छा पूरी करने के लिए शादी कर लूँ। लोग भी मेरी बात मानते, लेकिन मन ही मन मैं भी चाहता था कि मेरी शादी हो जाए।
मेरी शादी दिव्या से फिक्स हुई। मैंने दिव्या से कहा, "हम आगे जाकर बहुत अच्छी जिंदगी जीने वाले हैं, क्योंकि मेरे घर में कोई नहीं है, बस तुम्हें मेरे माँ-बाप का ध्यान रखना होगा।" दिव्या ने तुरंत कहा, "आपके माँ-बाप भी मेरे माँ-बाप हो जाएंगे शादी के बाद।"
दिव्या की बातों ने मुझे और ज्यादा प्रेम में डाल दिया। कभी परिवार संभालने की बातें, कभी शरारत भरी रोमांटिक बातें सुनकर मैं बहुत खुश था। मानो एक परफेक्ट जिंदगी मिल गई हो। शादी के बाद हम दोनों घूमने गए। सब कुछ बहुत अच्छा था। हम दोनों को ऐसा लगता था कि बस एक-दूसरे से लिपटे रहें। जिनकी शादी हुई है, वे समझ सकते हैं कि मैं क्या कहना चाहता हूँ।
घूमने के बाद जब घर आए, तो ज्यादातर समय ऑफिस के काम में गुजरता था। छुट्टी के दिन जब मम्मी-पापा बाहर जाते थे, तो दिव्या मैडम मूड में रहती थीं। कब, क्या, कैसे हो जाता था, पता नहीं चलता था।
मुझे लगने लगा कि एक ऐसी पत्नी मिली है, जो घर की जरूरतों को समझती है, साथ ही मेरी शारीरिक जरूरतों का भी ख्याल रखती है। संबंध बनाने के लिए खुद ही पहल करती है, और यदि मैं पहल कर दूं, तो मना नहीं करती बल्कि पूरा साथ देती है।
शादी के दो महीने बाद, दिव्या ने कहा, "अजी, मुझे साड़ी में दिक्कत होती है, क्या मैं घर पर सूट पहन सकती हूँ?" मैंने तुरंत कहा, "हां, क्यों नहीं पहन सकती हो, चलो अभी दिलाता हूँ।" हम दोनों बाजार से घर लौटे। मम्मी ने उसके हाथ में सूट देखा, पर कुछ नहीं बोलीं।
अगली सुबह जब दिव्या सूट पहनकर नहाकर निकली, तो मम्मी ने कहा, "तुमने सूट क्यों पहन लिया? हमारे यहां शादी के छह महीने तक नई बहू को सिर्फ साड़ी पहननी होती है। रोज कोई न कोई मिलने आता है, सबके सामने सूट पहनकर जाओगी तो अच्छा नहीं लगेगा।"
दिव्या ने मम्मी को सॉरी बोला और कहा, "मैंने तो इनसे पूछकर लिया था।" मम्मी तुरंत बोलीं, "ये कौन होते हैं यह सब डिसाइड करने वाले? अभी मैं हूं, तो मैं करूंगी। जब मैं मर जाऊं, तो जैसे मन वैसे रहना।"
यह सुनकर मुझे पहली बार अपनी औकात का पता चला। दिव्या मासूमियत से मेरी तरफ देख रही थी, शायद यह जताना चाहती थी कि उसकी वजह से उसे डांट पड़ गई। पत्नी प्रेम में मैंने मम्मी से कह दिया, "अरे मम्मी, उसकी गलती नहीं है, मुझसे पूछी थी वो।" मम्मी तुरंत बोलीं, "दो महीने हुए नहीं और आगए पत्नी का पक्ष लेने। इस घर में मालिक मैं हूँ या तुम हो?"
अब मेरे पास कोई जवाब नहीं था। हम दोनों एक-दूसरे को देखे और अंदर चले गए।
इस बात से दिव्या डर गई थी और अब वह हर काम मम्मी से पूछकर करने लगी। लेकिन मम्मी के लिए यह भी एक आफत थी। अब उनका कहना था कि तुम 28 साल की हो, तुम्हें खुद बुद्धि होनी चाहिए कि क्या करना है और क्या नहीं। हर चीज के लिए मेरे पास मत आया करो।
अब दिव्या भी चिढ़ गई, लेकिन मम्मी ने कुछ नहीं कहा। जब मैं ऑफिस से आया, तो मम्मी ने कहा, "तुम्हारी पत्नी को बुद्धि नाम की चीज नहीं है।" मैंने मम्मी को समझाया, "जाने दो, सीख जाएगी, थोड़ा समय दो।" इस पर मम्मी ने मुझसे मुंह फूला लिया और उदास रोते हुए कहा, "तुम बदल गए हो।" और पीछे से मेरे पिताजी देखते हुए हंस रहे थे, मानो ऐसा जता रहे हों कि उन्होंने पहले ही भविष्य देख लिया था।
कमरे में गया, तो वहां दिव्या का मुंह खुला हुआ था। कमरे में घुसते ही उसने मुझसे कहा, "मैं कितनी भी कोशिश कर लूं, मम्मी कभी खुश नहीं होती। हर चीज की एक सीमा होती है और यह सारी बातें सीमा से भी ऊपर हैं।" मैंने उसे पकड़ा और कहा, "घबराओ मत, थोड़ा समय लगेगा मम्मी को संभालने में। क्योंकि तुम्हारे अलावा उनका कोई और नहीं है। वह तुम्हें अपना मानती हैं इसलिए तुमसे ऐसी बातें करती हैं। चलो, चल के नीचे खाना खाते हैं, बहुत तेज भूख लगी है।"
ऐसा बोलकर हम नीचे आए। मैं मन ही मन सोचता रहा, "दिव्या को तो मैं धीरे से किसी भी तरह से मना लूंगा, एक रात की बात है, एक बार लिपट के सोया सब कुछ सुबह ठीक हो जाएगा। मम्मी के लिए कुछ सोचना पड़ेगा।"
नीचे खाना खाने के बाद हम अपने कमरे में गए। दिव्या अभी भी थोड़ी नाराज लग रही थी। मैंने उसे पूछा, "क्यों मन की बात का इतना बुरा मानती हो?" उसने तुरंत कहा, "मेरी कोई गलती भी नहीं होती और हर चीज के लिए मुझे दोषी ठहरा दिया जाता है। मैं कुछ अच्छा भी करने जाती हूं, तो उसमें भी मेरी बुराई निकल जाती है।"
मैंने उसे ज़ोर से गले लगाया और कहा, "ऐसा कुछ नहीं है, समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।" लेकिन उसने मुझे अपने से दूर कर दिया और कहा, "मेरा मन नहीं है।"
अब जो मुझे लगता था कि एक रात लिपट के सोने से अगली सुबह सब कुछ ठीक हो जाएगा, वह बातें झूठी लगने लगीं। धीरे-धीरे हर छोटी-छोटी चीज पर घर में लड़ाई-झगड़ा होने लगे। मम्मी को दिव्या की कुछ चीजें पसंद नहीं आती थीं और दिव्या को मम्मी की बहुत सारी चीजें।
दिव्या का कहना था कि घर उसका भी है और हर छोटी चीज के लिए परमिशन लेना उसे ठीक नहीं लगता। उधर मम्मी का कहना था कि इस गृहस्थी को मैंने बसाया है और तुम्हें हैंडओवर किया है, इसलिए अभी भी इसकी मालकिन मैं ही हूं। तुम्हें जो भी करना है, मुझसे पूछकर करो।
दोनों अपनी जगह सही थीं। एक तरफ दिव्या थी, जिसके साथ मुझे पूरी जिंदगी बितानी थी, और दूसरी तरफ मेरी मम्मी थीं, जिन्होंने इस गृहस्थी को संभाला था, मुझे पाल-पोसकर बड़ा किया था।
लेकिन इन दोनों की लड़ाई का असर सीधा-सीधा मुझ पर पड़ रहा था और मैं पिसता जा रहा था। धीरे-धीरे बातें बहुत बढ़ने लगीं और घर में रोज लड़ाई-झगड़े की नौबत आ गई। अब मुझे भी लगने लगा था कि जो मेरे दोस्त कहते थे कि शादी करने से खुशी नहीं मिलती, बल्कि लाइफ में टेंशन आती है, वह सही थे।
इसी तरह एक दिन अत्यधिक बात बढ़ने पर, मैंने रात को दोनों के कमरे में जाकर कहा, "देखो, आप दोनों के झगड़े की वजह से मेरा करियर खराब हो रहा है और मैं ठीक से रह नहीं पा रहा हूं। मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकता और ना ही दिव्या को। इसलिए थोड़ा नरम हो जाओ, जो चीज जैसे चल रही है, चलने दो।" इस बार मैं थोड़ा कठोर था।
फिर मैंने दिव्या से भी यही बात कही, "मां की उम्र हो चुकी है, यदि तुम यह सोच रही हो कि मां अपने आप को बदल सकती हैं, तो यह मुमकिन नहीं है। बदलना तुम्हें ही होगा, जिसमें मैं तुम्हारा पूरा साथ दूंगा। मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता क्योंकि तुम मेरा भविष्य हो, और ना ही अपनी मां को छोड़ सकता हूं क्योंकि उन्होंने मुझे पाल-पोसकर इस लायक बनाया है। तो कोई बीच का रास्ता निकालो और घर में शांति से रहो।"
यह बात होने के कुछ दिन बाद तक चीजें ठीक थीं, लेकिन धीरे-धीरे फिर से झगड़ा शुरू हो गया। अब जब भी मैं ऑफिस से घर आता, तो घर में घुसते ही मम्मी दिव्या की बुराई करतीं और अपने कमरे में जाते ही दिव्या मम्मी की बुराई करती। मुझे समझ में नहीं आता था कि मैं किस जंजाल में फंस गया हूं।
दिव्या का पक्ष लेता तो मम्मी नाराज हो जातीं, और मम्मी का पक्ष लेता तो दिव्या बुरा मान जाती। यह दोनों वही औरतें थीं जिनसे इस दुनिया में मैं सबसे ज्यादा प्रेम करता था। एक समय ऐसा आया कि मुझे घर पर आने का मन नहीं करता था। काम हो गया, तो मुझे लगता था कि जितना ज्यादा समय घर से बाहर रहूं, उतना अच्छा है। क्योंकि दो बार समझाने के बाद भी मेरी मम्मी और मेरी पत्नी के बीच विवाद नहीं सुलझ रहा था।
इसी दौरान मैं अपने पापा के साथ उनके पेंशन के काम के लिए ऑफिस गया। पापा मुझसे पूछते हैं कि इतना परेशान क्यों रहते हो? मैंने उन्हें सारी बात बताई। पापा ने कहा, "यह तो दुनिया की रीति है। हर मर्द को इससे गुजरना पड़ता है। जब मेरी शादी हुई थी, तो मैंने भी यह सब झेला है। तुम्हारे पिताजी ने भी झेला है और तुम्हारे नाना ने भी। अब तुम्हारी बारी है। लेकिन मैं तुम्हें एक तरीका बताता हूं, जिससे चीजें काफी हद तक सुधर सकती हैं।"
पापा ने मुझे एक तरीका बताया। मैं घर आया, चीजें ठीक चलती रहीं, लेकिन कुछ समय बाद फिर झगड़ा होना शुरू हो गया। इस बार मैंने दोनों को आमने-सामने बैठाकर कहा, "लास्ट समय मैंने आप लोगों से बात की थी, पर उसका कोई मतलब नहीं निकला। यदि आज के बाद फिर कभी घर में झगड़ा हुआ, तो मैं यह घर छोड़कर चला जाऊंगा। मैं कहीं बाहर रहूंगा और हर महीने की सैलरी आधी मम्मी को और आधी दिव्या को दे दिया करूंगा।"
इस बात का दोनों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। हफ्ता बीत गया और घर में फिर झगड़ा हुआ। इस बार एक्शन लेने का समय था। मैंने झगड़ा होते हुए देखा, पर कुछ नहीं कहा। ऑफिस गया और देर रात तक वहीं रुका रहा। जब दिव्या ने फोन किया, तो मैंने कहा, "मुझे नहीं पता मैं कहां हूं।" कुछ देर बाद मम्मी का फोन आया, उन्होंने भी यही पूछा कि इतनी देर क्यों हो रही है। मैंने मम्मी से भी वही कहा, "मुझे नहीं पता मैं कहां हूं।"
इस दौरान मैं अपने एक अविवाहित दोस्त के घर पर रुका हुआ था, जिसके बारे में घर में किसी को नहीं पता था। सिर्फ पापा को पता था। जब दिव्या या मम्मी का फोन आता, तो मैं उनसे नॉर्मल बात करता और कहता, "कई बार समझाया है कि घर में लड़ाई-झगड़ा मत करो, इससे घर की शांति भंग होती है। इस वजह से अब मैं घर छोड़कर बाहर आ गया हूं और हमेशा के लिए बाहर हूं।"
यह सुनकर मम्मी और दिव्या दोनों घबरा गईं। दोनों फोन करके बार-बार कहतीं कि दोबारा उनसे यह गलती कभी नहीं होगी, जल्दी से घर आ जाओ। मम्मी ने तो यह तक कह दिया कि, "तू क्या चाहता है, मैं बिना पोते का मुंह देखे मर जाऊं।" और दिव्या कहतीं, "आपकी मम्मी आपके लिए बहुत परेशान हैं। मेरे लिए नहीं, तो कम से कम उनके लिए वापस आ जाइए।"
मुझे यह देखकर खुशी हो रही थी कि दोनों मेरे चक्कर में एक-दूसरे के बारे में सोच रही थीं। फर्क सिर्फ इतना था कि दिव्या खुलकर कह रही थी, पर मम्मी इशारों में।
एक हफ्ते बाद मैं घर लौटा और सबसे पहले पापा से मिला। पापा ने बताया कि एक हफ्ते से घर में काफी शांति है और उम्मीद है आगे भी ऐसा झगड़ा नहीं होगा। यकीन मानिए, उस दिन के बाद से ऐसा झगड़ा दोबारा कभी नहीं हुआ। मम्मी और दिव्या अब अच्छे से रहती हैं।
आज दिव्या और मुझे शादी को पांच साल हो चुके हैं और हमारा एक बेटा भी है। लेकिन आज हमारे घर में गृहकलह नाम की चीज नहीं है और इसका पूरा श्रेय मैं अपने पापा को देना चाहता हूं। क्योंकि उस दिन जब हम पेंशन का काम करने कचहरी गए थे, तो उन्होंने ही मुझे यह आईडिया दिया था कि एक हफ्ते के लिए घर से बाहर भाग जाओ और कह दो कि अब तुम दोबारा लौटकर कभी नहीं आओगे।
मुझे पता है, मेरा यह कदम कुछ लोगों को हास्यास्पद और बेकार लग सकता है, पर यकीन मानिए, इस चीज ने मेरी जिंदगी बदल दी। अगर मैं आज यह कदम नहीं उठाता, तो शायद हर घर की तरह मेरे घर में भी रोज लड़ाई-झगड़ा हो रहा होता।
भारत में शादी सिर्फ लड़के और लड़की की नहीं होती, बल्कि उनके परिवारों की भी होती है। शादी के बाद सिर्फ पत्नी के साथ जी भर के प्यार करने से खुशी नहीं मिलती। असली खुशी तब मिलती है जब आपका पूरा परिवार खुश हो। परिवार को खुश रखने की जिम्मेदारी सिर्फ लड़की की नहीं होती, बल्कि पूरे परिवार की होती है। इसमें आप, मैं, आपके मम्मी-पापा और पत्नी सभी शामिल होते हैं।
मेरी यह कहानी आप लोगों को कैसी लगी, मुझे कमेंट करके जरूर बताइएगा।
एक को औरत को अपने मर्द से भरपूर सम्भोग चाहिए होता है और पति भी उसके शरीर का दीवाना होता है , पूरा संसार इसी तरह चल रहा है लेकिन पहले ये सब काम मर्यादा में रहकर किये जाते थे लेकिन अब मर्यादा की सीमा खत्म हो चुकी है।
मैं बक्सर, बिहार का रहने वाला। काम के सिलसिले में पहले दिल्ली और अब बैंगलोर में हूँ। बचपन से सुनते आए हैं कि लड़के लड़कियों के पीछे भागते हैं, लेकिन अब समय बदल गया है। अब लड़कियां भी पागल हुई हैं। मैं अपनी सच्ची कहानी साझा करना चाहता हूँ।
32 साल की उम्र में मैंने मैट्रिमोनियल साइट्स पर अपनी प्रोफाइल बनाई, क्योंकि जब शादी की उम्र थी, तब जिम्मेदारियों तले दब गए थे। पैसा कमाना और बहन की शादी करना प्राथमिकता थी। मैंने करीब 70 लड़कियों को रिक्वेस्ट भेजा, जिसमें से कुछ ने ही स्वीकार किया।
एक दिन रिया नाम की लड़की का रिक्वेस्ट आया। वह बिहार की थी, सुंदर थी, और हमारी बातचीत आगे बढ़ी। हमने नंबर शेयर किए और मिलने का निर्णय लिया। 32 साल की उम्र में पहली बार किसी लड़की से मिलने गया। रिया गुलाबी कुर्ती में बेहद सुंदर लग रही थी। हम मिले, बातें कीं, और धीरे-धीरे मुझे उससे प्यार हो गया।
रिया ने कहा कि वह शादी मुझसे ही करेगी, लेकिन अभी समय चाहिए। मैंने सोचा, ठीक है। फिर उसने कहा कि हमारे बीच शारीरिक संबंध नहीं हैं, लेकिन जल्द ही होंगे। एक दिन उसने खुद के पैसे से होटल बुक किया और मुझसे कहा कि शादी के बाद जो होता है, वह हम अभी कर सकते हैं। मैंने उसकी बात मान ली और हमने संबंध बनाए।
हमारे बीच झगड़े भी होने लगे। हर बार उसे मनाने की कीमत चुकानी पड़ती। पिज्जा, आइसक्रीम, महंगे गिफ्ट्स और बहुत कुछ। वह कहती कि हम पति-पत्नी की तरह हैं, तो मेरे लिए इतना तो कर ही सकते हैं। मैं अपनी भावनाओं में बहकर उसके लिए सब कुछ करता रहा।
एक दिन ऑफिस में एक नया लड़का मिला, जो पटना का था। वह अपनी गर्लफ्रेंड की तारीफ करने लगा। मैंने उसकी गर्लफ्रेंड की फोटो देखी और मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। वह रिया ही थी। मैंने उसे सच बताया और सबूत दिखाए। उसने भी सच्चाई जानने के बाद रिया को छोड़ दिया।
इस घटना के बाद हमें एहसास हुआ कि मैट्रिमोनियल साइट्स पर भरोसा करना मुश्किल है। हमने अपने दोस्तों से यह बात साझा की और पाया कि कई लोग इसी तरह धोखा खा चुके हैं। लड़कियां अपने फायदे के लिए शॉर्ट टर्म रिलेशनशिप बनाती हैं।
सभी लड़कियां ऐसी नहीं होतीं, लेकिन कुछ का मकसद केवल पैसे और शारीरिक जरूरतें पूरी करना होता है। मेरी यह कहानी साझा करने का मकसद है कि लोग सतर्क रहें और इन साइट्स पर आंख बंद करके भरोसा ना करें।
आपकी प्रतिक्रिया हमें कमेंट्स में बताएं। क्या आपके या किसी जानने वाले के साथ ऐसा हुआ है ?
"पति को संभोग सुख दो, तो वह तुम्हें दुनिया के सारे सुख देगा।" यह बात मैंने हमेशा अपनी सहेलियों, मां, और चाची से सुनी थी। लेकिन असल में कमी कुछ और थी।
35 साल की उम्र में मेरा विवाह हुआ, जो कि काफी देर से हुआ था। जिस व्यक्ति से मेरी शादी हुई, उनकी उम्र 37 साल थी। पहले लोग जल्दी शादी करने पर जोर देते थे, लेकिन आजकल लोग पहले करियर बनाने के पीछे भागते हैं। कम उम्र में हुई शादी में आप अपने पार्टनर और परिवार से घुल-मिल जाते हैं, लेकिन देर से हुई शादी में लोग इतने जटिल हो जाते हैं कि वे नए माहौल में ढल नहीं पाते।
जब मेरी शादी हुई, तो मुझे पता था कि जिस व्यक्ति से मेरी शादी हो रही है, वह कम कमाता है। पर 35 साल की उम्र होने के कारण मेरी मां को भी चिंता होने लगी थी। मेरे पापा का निधन पहले ही हो चुका था। परिवार के दबाव में मैंने शादी कर ली। सहेलियों ने भी कहा, "रात को बिस्तर पर पति को खुश रखो, वह खुद मेहनत कर के ज्यादा पैसे कमाएगा।"
शादी के बाद मुझे समझ आया कि पति के साथ-साथ एक पुरुष की जिंदगी में एक और चीज आती है जिसे जिम्मेदारी कहते हैं। मेरे पति जानते थे कि मैं उनकी कम आय से खुश नहीं हूं। उन्होंने शादी की पहली रात मुझसे कहा, "देखो, मेरी आय कम है और उम्र ज्यादा, इसका मतलब यह नहीं कि हम दोनों साथ में खुश नहीं रह सकते। मैं तुम्हें सभी संसाधन तो नहीं दे सकता, लेकिन इतना जरूर दे सकता हूं कि हमारी जिंदगी अच्छे से चले।"
हमारे बीच पति-पत्नी वाला रिश्ता नहीं बन पाया। मैंने अपनी सहेलियों से फिर बात की, और उन्होंने फिर वही बात कही, "उन्हें रात में खुश करो और वह तुम्हारी जरूरतें पूरी करेंगे।"
महीने के अंत में उन्हें वेतन मिला 25000 रुपए, जिसमें से 5000 रुपए भविष्य के लिए रख कर उन्होंने 20000 मुझे दिए और बोले, "मेरी जरूरतें काफी सीमित हैं, ये पैसे तुम रखो। अगर मुझे जरूरत हुई तो तुमसे ले लूंगा। तुम अपने हिसाब से घर देख लो।"
फिर भी पैसे कम पड़े। मैंने उनसे इस बारे में बात की, तो उन्होंने कहा, "थोड़ी दिक्कत हो सकती है, लेकिन मैं दूसरी नौकरी के लिए ट्राय कर रहा हूं।"
शादी के 6 महीने बाद हमारा झगड़ा हुआ। मैं चाहती थी कि वह और पैसे कमाएं, लेकिन वह कहते थे, "जो हैं उसमें एडजस्ट करने की कोशिश करो।" मैं अपने मायके आ गई और मन बना लिया कि अब वापस नहीं जाऊंगी।
उन्होंने मुझे कई बार बुलाया, लेकिन मैंने नहीं सुना। आखिरकार, उन्होंने मुझे अलग होने का प्रस्ताव दिया और कहा, "अगर तुम मुझसे अलग होना चाहती हो तो हो सकती हो।" मेरा गुस्सा और भड़क गया।
तलाक के बाद मैंने नौकरी की। अब मेरी उम्र 37 साल हो गई थी और मुझे समझ में आया कि नौकरी करना कितना कठिन है। मेरी तनख्वाह 15000 रुपए थी।
अब मुझे एहसास हुआ कि पहले 20000 रुपए घर बैठे मिलते थे, और अब 15000 के लिए दिनभर की मेहनत करनी पड़ती है। एक पुरुष अपने परिवार की कमी को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करता है, लेकिन हम औरतें सिर्फ यह सोचती हैं कि कैसे हमारा काम पूरा हो।
आज उसी शख्स की नौकरी में तनख्वाह 86000 रुपए है। मैंने यह गलती की कि रिश्ते को पैसे के पैरामीटर पर तोलने लगी।
आजकल की लड़कियां शादी करने से पहले यह जानना चाहती हैं कि लड़का कितना कमा रहा है। लेकिन असल में किसी से शादी करने से पहले यह जानना जरूरी है कि उसका चरित्र कैसा है।
शादी जैसे बंधन को चलाने के लिए जरूरी है आपसी सहमति, समझ और विश्वास। लेकिन आज मेरी तरह सभी लड़कियां अपनी शादी में सबसे पहले यह देखती हैं कि लड़का कितना कमा रहा है।
एक अच्छा रिश्ता पैसे की दम पर नहीं चलता है। मुझे यह बात तब समझ आई जब मैंने अपना रिश्ता खो दिया। किसी अमीर से 4 बात सुनने से बेहतर है कि किसी कम आय वाले के साथ शादी करके साथ खुश रहने में आनंद है।
यह एक सत्य घटना है। आप बताइए, आपके हिसाब से रिश्ते चलाने के लिए पैसे कितने जरूरी हैं?
नीतू की नींद खुली तो उसने देखा कि उसकी माँ रोटियाँ बना रही थी, और उसके पिता चाय के साथ रोटी खा रहे थे। नीतू को जागता देख माँ ने उसके लिए भी चाय गरम कर गिलास में डाल दी। नीतू ने मुंह-हाथ धोकर चाय पीने के लिए गिलास उठाया।
"पढ़ाई में कोई परेशानी तो नहीं हो रही है, बेटा?" पिता ने चाय का घूंट लेते हुए पूछा।
"नहीं पापा, मैडम अच्छे से समझा देती हैं।" नीतू ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।
चाय खत्म कर पिता सोने चले गए। माँ की रोटियाँ भी बन चुकी थीं, और वह काम पर जाने के लिए तैयार होने लगीं।
"रवि अभी तक उठा नहीं है, जब उठे तो उसे चाय दे देना, मैं काम पर निकल रही हूँ। खाना भी बन गया है, बस चौका साफ कर देना," माँ ने जाते-जाते कहा।
"ठीक है, माँ, आप आराम से जाइए, मैं सब कर दूंगी।" नीतू ने कहा। वह उठकर चौका साफ करने लगी, फिर पीने के लिए पानी भरकर लाई और नहा-धोकर खाना खाकर स्कूल के लिए तैयार होने लगी।
घड़ी में 10:00 बज चुके थे। माँ खन्ना साहब के यहाँ रोटियाँ बनाने चली गई थी, वहीं से नीतू को भी स्कूल जाना था। नीतू के पिता नाइट शिफ्ट में चौकीदारी का काम करते थे, इसलिए वे इस समय सोने चले जाते थे। माँ चार-पाँच घरों में खाना बनाने का काम करती थी, जिससे घर का खर्च जैसे-तैसे चल रहा था।
नीतू का बड़ा भाई रवि, पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगाता था। दो बार फेल हो चुका था, और माता-पिता की सारी समझाइशें उसके कानों पर नहीं पड़ती थीं। दिन-ब-दिन उसकी आदतें बिगड़ती जा रही थीं। स्कूल के नाम पर वह दिन भर आवारा दोस्तों के साथ घूमता, घर आकर माँ से पैसे की मांग करता, और रोज कोई न कोई बहाना बनाकर उनसे झगड़ता।
नीतू तेज-तेज साइकिल के पेडल मारने लगी, और मन में विचार घुमड़ने लगे। उसकी दसवीं बोर्ड की परीक्षा करीब थी, और उसे पढ़ाई पर अधिक ध्यान देना था, ताकि अच्छे अंक हासिल कर सके और अच्छे विषय चुन सके। सोचते-सोचते वह खन्ना आंटी के घर पहुंच गई।
रात को करीब 8:00 बजे माँ काम से वापस आईं और बता रही थीं कि चार दिन बाद खन्ना आंटी के घर पर शादी की सालगिरह की बड़ी पार्टी है। बहुत सारे मेहमान आने वाले हैं, इसलिए नीतू को भी सुबह और रात में माँ के साथ काम में मदद करनी होगी।
पार्टी की तैयारियों में माँ और नीतू दोनों ही व्यस्त हो गए थे, जिससे नीतू की पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पा रही थी। जब वह पढ़ने बैठी, तो उसकी चिंता और बढ़ गई। उसका भाई, रवि, घर से गायब था और उसके आवारा दोस्त भी कहीं नजर नहीं आ रहे थे।
तभी माँ घबराई हुई घर में आईं और बताने लगीं कि खन्ना आंटी की पोती रिया गायब हो गई है। घर में पुलिस आ गई है, और सभी से पूछताछ हो रही है। यह सुनकर नीतू का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था। उसने सोचा, रिया जैसी मासूम बच्ची कहीं पैसों के लिए तो नहीं अगवा कर ली गई?
रात को पिता काम पर चले गए और माँ और नीतू सोने की तैयारी कर रही थीं। तभी दरवाजे पर जोर की दस्तक हुई। माँ ने दरवाजा खोला तो बाहर पुलिस खड़ी थी, जो रवि के बारे में पूछताछ कर रही थी। माँ घबराकर रोने लगीं।
नीतू ने डरते-डरते पूछा, "क्या हुआ, साहब?"
पुलिसवाला गंभीर स्वर में बोला, "तुम्हारा भाई कहाँ है, उसे बुलाओ।"
"वह तो घर में नहीं है, साहब। दो दिन से कहीं गया है," माँ ने बताया।
"कहाँ गया है, आपको तो पता होना चाहिए?" पुलिसवाले ने पूछा।
माँ ने डरी-सहमी आवाज में कहा, "नहीं साहब, बिना बताए कहीं गया है। पिताजी ने भी सब जगह पता किया।"
पुलिसवाले ने चेतावनी दी, "ठीक है, आए तो उसे पुलिस थाने भेज देना।"
पुलिस चली गई, लेकिन माँ और नीतू की आँखों से नींद गायब हो चुकी थी। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि रवि कहाँ गया होगा, कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया?
सुबह जब पिता आए, तो माँ ने रात की घटना बताई। पूरे मोहल्ले में खबर फैल गई कि पुलिस रवि को ढूंढने घर आई थी। दिनभर सबके मन में चिंता और भय छाया रहा। माँ और पिता के चेहरों पर चिंता की लकीरें और गहरी हो गईं।
रात को पुलिस फिर से आई और उन्हें थाने ले गई। वहाँ जाकर पता चला कि रिया के गायब होने में रवि और उसके दोस्तों का हाथ था। थाने में सभी से कड़ी पूछताछ हुई। माँ खन्ना आंटी के यहाँ काम करती थीं, इसलिए पुलिस को शक था कि रिया के अपहरण में उनके परिवार का हाथ हो सकता है। पुलिस ने माँ और पिता को वहीं बैठा दिया और नीतू को घर भेज दिया।
नीतू की आंखों के सामने रिया की मासूम सी तस्वीर बार-बार घूम रही थी। वह सोचने लगी, इतनी प्यारी, भोली भाली बच्ची के साथ ऐसा क्या हुआ होगा? क्या रवि ने उसे सच में नुकसान पहुंचाया? क्या उसकी मासूमियत का खून कर दिया गया?
सुबह-सुबह माँ और पिता घर लौट आए, लेकिन उनके चेहरे पर थकान और चिंता के सिवाय कुछ नहीं था। पुलिस की पूछताछ में रवि और उसके दोस्तों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था।
पार्टी के दिन जब सब जश्न में मशगूल थे, रवि ने रिया को आइसक्रीम देने के बहाने बुलाया और उसे बाहर ले गया। रिया उसे पहचानती थी, इसलिए वह बिना किसी शक के उसके साथ चली गई। रवि के दोस्तों ने रिया को रिक्शा में बिठाकर भगा ले गए। वे लोग पैसे वसूलने की योजना बना रहे थे, लेकिन जब रिया ने भागने की कोशिश की, तो उन्होंने उसकी हत्या कर दी। शायद उसके साथ कुछ और भी अनहोनी की गई थी।
नीतू की देह कांप उठी। कैसे उसके भाई ने इतनी छोटी बच्ची के साथ ऐसा घिनौना काम कर दिया? पैसे की लालच ने उसे राक्षस बना दिया।
नीतू ने अपने मन में ठान लिया कि वह अब रवि को भाई नहीं मानेगी। जिस भाई को राखी बांधकर वह रक्षा का वचन लेती थी, वह अब उसके लिए एक अजनबी से भी बुरा हो गया था।
माँ और पिता की हालत देखकर नीतू का दिल बैठा जा रहा था। पिता, जो कभी शराब तक नहीं पीते थे, अब धुएं में अपने ग़म को उड़ाते नज़र आ रहे थे। माँ का काम भी छूट गया था, और अब लोग उनके परिवार को अपराधी की नजर से देखने लगे थे।
शहर में जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे थे, और दोषियों को फांसी की सजा की मांग की जा रही थी। कुछ लोगों ने उनके घर पर पत्थर फेंके।
नीतू दो दिन से स्कूल नहीं गई थी। वह अपनी सहेलियों का सामना कैसे कर सकती थी? पिता भी पूरे दिन गुमसुम बैठे रहे।
पुलिस थाने में शिनाख्त के लिए बुलाया गया, लेकिन नीतू नहीं गई। वह अपने भाई का चेहरा भी नहीं देखना चाहती थी। जो भाई रक्षा का वचन देकर उसे राखी बांधने का वादा करता था, वह अब एक दरिंदा बन चुका था, जिसने एक मासूम बच्ची की जिंदगी को मिटा दिया।
माँ और पिता की हालत देखी नहीं जा रही थी। नीतू के दिल में दर्द और गुस्सा भरा हुआ था। उसने ठान लिया कि वह अब कभी भी अपने भाई का मुंह नहीं देखेगी। उसके लिए अब रवि कोई नहीं था।
लेकिन एक दिन, नीतू ने अपने मन में यह भी ठान लिया कि वह अपने अनुभव से बाकी बहनों को जागरूक करेगी। उसने अपने अंदर एक नई उम्मीद जगा ली।
अब उसने अपने भाई से रक्षा का वचन नहीं लिया, लेकिन बाकी सभी बहनों से विनती की, "अपने भाई से महंगा उपहार भले ही न लो, लेकिन यह वचन जरूर लो कि उसे भाई कहते हुए तुम्हें शर्मिंदा न होना पड़े।"
नीतू का यह संदेश हर उस बहन के लिए था, जो अपने भाई की राखी बांधते समय गर्व महसूस करती है। उसने अपने जीवन से सीखा कि रिश्तों का असली मतलब क्या होता है, और वह बाकी बहनों को भी यही सिखाना चाहती थी कि सच्ची रक्षा का मतलब है सम्मान और गरिमा बनाए रखना।
सीख: रिश्तों में सबसे महत्वपूर्ण है विश्वास और इज्जत। किसी भी रिश्ते को बनाए रखने के लिए सच्चाई, ईमानदारी, और सही राह पर चलना जरूरी है। गलत रास्ते पर चलकर जो संबंधों को तोड़ते हैं, वे कभी भी अपने रिश्तों को पूरी तरह से नहीं जी पाते। इसलिए, अपने परिवार, अपने संबंधों और अपने आत्मसम्मान को हमेशा बनाए रखें।
सुहागरात एक ऐसी रात होती है, जिसे लेकर नए शादीशुदा जोड़े के मन में उत्सुकता, थोड़ी घबराहट और कई सवाल होते हैं। यह रात जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है, जहां दो लोग एक-दूसरे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नया आयाम देते हैं। हालांकि समय के साथ समाज में परिवर्तन हुआ है, परंपराएं बदली हैं, लेकिन इस रात का महत्व अभी भी वही है। इसलिए, इस रात को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, ताकि यह अनुभव सुखद और यादगार बन सके।
1. जल्दबाजी से बचें:
अर्जुन और नेहा की शादी को लेकर पूरे परिवार में खुशी का माहौल था। सुहागरात की रात, अर्जुन ने अपने दोस्तों की बातों में आकर जल्दबाजी दिखाने की कोशिश की, लेकिन नेहा की झिझक देखकर उसे एहसास हुआ कि प्यार और विश्वास को बनाने में समय लगता है। यह रात किसी प्रतियोगिता की तरह नहीं होती, बल्कि एक-दूसरे को समझने और करीब आने का समय होती है। इसलिए, किसी भी तरह की जल्दबाजी से बचें और अपने साथी की भावनाओं का सम्मान करें।
2. संवाद की अहमियत:
राज और सुमन की शादी के बाद, जब वे अपनी पहली रात एक साथ बिताने वाले थे, तो राज ने महसूस किया कि सुमन थोड़ी चिंतित है। उसने प्यार भरे शब्दों में सुमन से उसकी भावनाओं के बारे में पूछा। सुमन ने खुलकर अपनी बात रखी और दोनों ने एक-दूसरे के विचारों और भावनाओं को समझा। इससे उनके बीच का बंधन और मजबूत हो गया। याद रखें, खुलकर बातचीत करना बहुत जरूरी है। इससे न केवल एक-दूसरे को समझने में मदद मिलती है, बल्कि भविष्य के लिए भी एक मजबूत आधार तैयार होता है।
3. सहमति और सम्मान:
सुहागरात के दौरान सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी कदम उठाने से पहले दोनों की सहमति होनी चाहिए। आकाश और कविता की कहानी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। आकाश ने अपनी पत्नी से पहले पूछा कि वह क्या चाहती है और क्या नहीं। यह उनके रिश्ते में एक नई गहराई लाया। किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध से पहले, साथी की सहमति लेना और उसकी इच्छाओं का सम्मान करना अनिवार्य है। यह न केवल रिश्ते में विश्वास बढ़ाता है, बल्कि एक-दूसरे के प्रति आदर का भाव भी पैदा करता है।
4. सामाजिक दबाव से मुक्त रहें:
कुछ जोड़े समाज या परिवार के दबाव में आकर अपनी पहली रात को लेकर अलग-अलग प्रकार की अपेक्षाएं पाल लेते हैं। मोहित और पायल के साथ भी ऐसा ही हुआ था, लेकिन मोहित ने पायल को भरोसा दिलाया कि वह किसी भी सामाजिक दबाव से परे है और उनके रिश्ते में सबसे महत्वपूर्ण उनकी आपसी समझ है। इसलिए, समाज की अपेक्षाओं से प्रभावित हुए बिना, अपने साथी के साथ सहज और सच्चे रहें।
5. संवेदनशीलता और समर्थन:
अक्सर देखा गया है कि नए शादीशुदा जोड़े अपनी पहली रात को लेकर संवेदनशील होते हैं। इसी प्रकार, रितेश और स्नेहा की शादी के बाद, रितेश ने स्नेहा के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता दिखाई। उसने स्नेहा के हर संकेत को समझा और उसे पूरा समर्थन दिया। अगर आपके साथी को किसी भी प्रकार की असहजता महसूस हो, तो उसे समझने की कोशिश करें और उसे सहारा दें। इससे रिश्ते में प्यार और विश्वास और गहरा होगा।
6. कंडोम और अन्य सुरक्षा उपाय:
वर्तमान समय में, शादीशुदा जोड़े अक्सर परिवार नियोजन के लिए विभिन्न सुरक्षा उपायों का सहारा लेते हैं। रोहन और माया ने भी इसी तरह अपनी सुहागरात को एक सुरक्षित अनुभव बनाने के लिए कंडोम का उपयोग किया। यह सुनिश्चित करता है कि दोनों साथी सुरक्षित और जिम्मेदार तरीके से अपने रिश्ते को आगे बढ़ा सकें।
7. पुरानी धारणाओं से मुक्त हों:
पारंपरिक धारणाएं और पुराने समय के रिवाज आज के समय में बदल गए हैं। यह जरूरी नहीं कि जो पहले होता था, वह आज भी सही हो। आयुष और नेहा ने अपने रिश्ते में इस बात को अच्छी तरह से समझा। उन्होंने एक-दूसरे के साथ खुलकर अपने विचार साझा किए और समाज के पुराने नियमों से परे जाकर अपने रिश्ते को एक नई दिशा दी।
सुहागरात एक अनमोल क्षण होता है, जिसे यादगार बनाने के लिए समझदारी, संवेदनशीलता और सहमति का होना बहुत जरूरी है। यह रात न केवल शारीरिक संबंधों का प्रतीक होती है, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक भी होती है, जिसे आपसी विश्वास और प्यार से सजाया जा सकता है।
राज और अमन, दो ऐसे नाम थे जो उनके छोटे से गाँव के हर व्यक्ति के दिल में बसे हुए थे। बचपन से ही दोनों की दोस्ती मिसाल थी, जिसे पूरा गाँव जानता था। उनके घर-परिवार भले ही साधारण थे, लेकिन उनके आदर्श और मूल्य आसमान छूते थे। राज का परिवार खेती-बाड़ी में लगा हुआ था, वहीं अमन के घरवाले छोटे-मोटे व्यवसाय के जरिए अपना गुजारा करते थे।
एक बार की बात है, जब गाँव में काले बादल घिर आए और भारी बारिश ने गाँव की धरती को तरबतर कर दिया। ये बारिश केवल खेतों में हरियाली नहीं लाई, बल्कि गाँव के कई घरों में बर्बादी भी ले आई। कई घर टूट गए, लोग बेघर हो गए, और बच्चों की किलकारियाँ सिसकियों में बदल गईं। राज और अमन इस विपत्ति को देखकर चुप नहीं बैठे। उन्होंने अपने बचपन की गुल्लक में जमा किए गए पैसों को निकाला और उससे जरूरतमंदों के लिए राहत सामग्री खरीदी। ये केवल सामग्री नहीं थी, बल्कि गाँव के लोगों के लिए उम्मीद की एक किरण थी। दोनों ने मिलकर ये सामग्री बाँटी, और गाँव में एकता और भाईचारे की भावना को और मजबूत कर दिया।
कुछ समय बाद, राज को शहर से एक अच्छी नौकरी का प्रस्ताव मिला। परिवार और दोस्तों से दूर जाना आसान नहीं था, लेकिन राज ने ये फैसला लिया। वह शहर चला गया, लेकिन गाँव के प्रति उसकी निष्ठा और प्यार कभी कम नहीं हुआ। वह हर महीने अपनी कमाई का एक हिस्सा गाँव के विकास के लिए भेजता रहा। उसके दिल में हमेशा वही गाँव बसा रहा, जहाँ उसकी जड़ें थीं।
इधर, अमन ने गाँव में शिक्षा की अहमियत को समझा और एक छोटे से स्कूल की नींव रखी। उसका सपना था कि गाँव के बच्चे भी अच्छी शिक्षा पा सकें और उनका भविष्य उज्जवल हो सके। अमन अकेले यह काम नहीं कर सकता था, लेकिन राज ने उसकी इस कोशिश में अपना पूरा सहयोग दिया। राज की आर्थिक मदद से स्कूल की सुविधाओं में दिन-ब-दिन सुधार होता गया। दोनों ने मिलकर बच्चों के लिए किताबें, कॉपियाँ, और अन्य आवश्यक सामग्री का प्रबंध किया।
धीरे-धीरे गाँव में बदलाव दिखने लगा। लोग राज और अमन की मेहनत और निष्ठा की तारीफ करने लगे। बच्चे अब पढ़ाई में मन लगाने लगे और उनके चेहरे पर भविष्य के सपने चमकने लगे। गाँव के बुजुर्ग भी अब इस बात को समझ गए थे कि शिक्षा ही वह रास्ता है जो उनके गाँव को तरक्की की ओर ले जाएगा।
एक दिन गाँव में एक बड़ा समारोह आयोजित किया गया। यह समारोह विशेष रूप से राज और अमन के सम्मान के लिए था। गाँव के प्रधान ने दोनों को मंच पर बुलाया और कहा, "राज और अमन ने हमें दिखाया है कि सच्ची निष्ठा और परोपकार से हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। इन्होंने अपने निस्वार्थ सेवा से हमारे गाँव को नई दिशा दी है।"
मंच पर खड़े राज और अमन ने प्रधान और गाँववालों का धन्यवाद किया। राज ने विनम्रता से कहा, "हमने सिर्फ वही किया जो हमारा कर्तव्य था। जब हम सभी मिलकर काम करेंगे, तभी असली बदलाव आएगा।" अमन ने भी राज की बात का समर्थन करते हुए कहा, "हमारा गाँव हमारी जड़ें हैं, और जड़ों को मजबूत करना हमारा फर्ज है।"
यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर हमारे दिल में सच्चाई, निष्ठा और परोपकार की भावना है, तो हम अपने समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। राज और अमन जैसे लोग हमारे लिए प्रेरणा हैं, जो हमें सिखाते हैं कि कभी भी अपने लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। उनके कार्य केवल गाँव के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक मिसाल हैं।
00:00 1. बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी
05:55 2. तुम अगर साथ देने का वादा करो
12:28 3. जिसके सपने हमें रोज आते रहे यह बता दो कहीं तुम वही तो नहीं
17:41 4. नील गगन के तले धरती का प्यार पले
21:22 5. दिल की ये आरजू थी कोई दिलरुबा मिले