विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
हरी मिर्च लगभग पूरे भारतवर्ष में पाई जाती है | यह कई किस्मों में होती है , इसका पौधा छोटा-सा होता है | हरी मिर्च का स्वाद तीखा होता है और इसकी प्रकृति गर्म होती है | हरी मिर्च का नाम सुनते ही कुछ लोगों को उस का तीखापन याद करके पसीने आ जाते है तो कुछ के मुंह में पानी हरी मिर्च को यदि तरीके से खाया जाए अर्थात उचित मात्र में खाया जाये तो वो औषधि का भी काम करती है आइये जानते है कैसे
गर्मी के दिनों में यदि हम भोजन के साथ हरी मिर्च खाएं और फिर घर से बाहर जाएँ तो कभी भी लू नहीं लग सकती |
खून में हेमोग्लोबिन की कमी होने पर रोजाना खाने के साथ हरी मिर्च खाए कुछ ही दिन में आराम मिल जायेगा |
मिर्च में अमीनो एसिड, एस्कार्बिक एसिड, फोलिक एसिड, सिट्रीक एसिड, ग्लीसरिक एसिड, मैलिक एसिड जैसे कई तत्व होते है जो हमारे स्वास्थ के साथ – साथ शरीर की त्वचा के लिए भी काफी फायदेमंद होता है
मिर्च के सेवन से भूख कम लगती है और बार बार खाने की इच्छा नहीं होती जिससे वजन बढ़ने का खतरा कम हो जाता है।
सहजन - दक्षिण भारत में साल भर फली देने वाले पेड़ होते है. इसे सांबर में डाला जाता है . वहीँ उत्तर भारत में यह साल में एक बार ही फली देता है. सर्दियां जाने के बाद इसके फूलों की भी सब्जी बना कर खाई जाती है. फिर इसकी नर्म फलियों की सब्जी बनाई जाती है. इसके बाद इसके पेड़ों की छटाई कर दी जाती है. - आयुर्वेद में ३०० रोगों का सहजन से उपचार बताया गया है। इसकी फली, हरी पत्तियों व सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। - इसके फूल उदर रोगों व कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, शियाटिका,गठिया आदि में उपयोगी है| - जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग आदि के लिए उपयोगी है तथा छाल का उपयोग शियाटिका ,गठिया, यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है| - सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है| - सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात, व कफ रोग शांत हो जाते है| इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया,शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है| शियाटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है, - मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है | - सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है| - इसकी सब्जी खाने से पुराने गठिया , जोड़ों के दर्द, वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है. - सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है. - सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है. - इसकी जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पिने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है. - इसके पत्तों का रस बच्चों के पेट के किडें निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है. - इसका रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है. - इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है. - इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है. - इसके कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है. - इसकी जड़ का काढे को सेंधा नमक और हिंग के साथ पिने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है. - इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है. - सर दर्द में इसके पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे. - इसमें दूध की तुलना में ४ गुना कैलशियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है। - सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है। - कैन्सर व पेट आदि शरीर के आभ्यान्तर में उत्पन्न गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह भी पाया गया है कि यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ो में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में लाभकारी है। - सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। - आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से विषाणु जनित रोग चेचक के होने का खतरा टल जाता है। - सहजन में हाई मात्रा में ओलिक एसिड होता है जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिये अति आवश्यक है। - सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शीर के कई रोगों से लड़ता है, खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तो, आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी। - इसमें कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आइरन, मैग्नीशियम और सीलियम होता है। - इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है। - सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है। इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है। - आप सहजन को सूप के रूप में पी सकते हैं, इससे शरीर का रक्त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा।
अश्वगंधा:नपुंसकता,बांझपन,हड्डी कमजोर,लिंग वृद्धि,योनि रोग
अश्वगंधा:नपुंसकता,बांझपन,हड्डी कमजोर,लिंग वृद्धि,योनि रोग
अश्वगंधा
सामान्य परिचय : सम्पूर्ण भारतवर्ष में विशेषकर शुष्क प्रदेशों में असगंध के जंगली या कृषिजन्य पौधे 5,500 फुट की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। इसके जंगली पौधे की अपेक्षा कृषिजन्य पौधे गुणवत्ता की दृष्टि से उत्तम होते हैं, परंतु तेल आदि के लिए जगंली पौधे ही उपयोगी होते हैं। यह देश भेद से कई प्रकार की कही गई है, परंतु असली असगंध के पौधे को मसलने पर घोड़े के मूत्र जैसी गंध आती है जो इसकी ताजी जड़ में अपेक्षाकृत अधिक होती है।
स्वरूप : असगंध (अश्वगंधा) का झाड़ीदार पौधा 60 से 90 सेमी तक लंबा होता है। इसकी जड़ ही औषधि रूप में प्रयोग की जाती है। इसकी जड़ अन्दर से सफेद, कड़ी, मोटी-पतली, और 10 से 15 सेमी के लगभग लंबी होती है। इसकी जड़ को सुखाकर उपयोग में लाया जाता है। इसके पौधे पर 5-5 फूलों के गुच्छे पीले या लाल रंग के होते हैं तथा बीज पीले रंग के छोटे, चिपटे और चिकने होते हैं।
विभिन्न भाषाओं नाम : संस्कृत अश्वगंधा, वराहकर्णी हिंदी असंगध, अश्वगंधा गुजराती आसंध, घोड़ा आहन, घोड़ा आकुन मराठी आसंध, डोरगुंज बंगाली अश्वगंधा तेलगू पनेरू अंग्रेजी वीनटर चेरी (Winter Cherry)
रासायनिक संघटन : असगंध की जड़ में एक उड़नशील तेल तथा बिथेनिओल नामक तत्व पाया जाता है। इसके अलावा सोम्मीफेरिन नामक क्रिस्टेलाइन एल्केलायड एवं फाइटोस्टेरोल आदि तत्व भी पाये जाते हैं।
गुण-धर्म : यह कफ वातनाशक, बलकारक, रसायन, बाजीकारक, नाड़ी-शक्तिवर्द्धक तथा पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला होता है।
हानिकारक : गर्म प्रकृति वालों के लिए अश्वगंधा का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।
दोषों को दूर करने वाला : गोंद, कतीरा एवं घी इसके गुणों को सुरक्षित रखते हुए, दोषों को कम करता है।
विभिन्न रोगों का अश्वगंधा से उपचार :
1 गंडमाला :-असंगध के नये कोमल पत्तों को समान मात्रा में पुराना गुड़ मिलाकर तथा पीसकर झाड़ी के बेर जितनी गोलियां बना लें। इसे सुबह ही एक गोली बासी पानी के साथ निगल लें और असगंधा के पत्तों को पीसकर गंडमाला पर लेप करें।.
2 हृदय शूल :-*वात के कारण उत्पन्न हृदय रोग में असगंध का चूर्ण दो ग्राम गर्म पानी के साथ लेने से लाभ होता है। *असगंध चूर्ण में बहेड़े का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर 5-10 ग्राम की मात्रा गुड़ के साथ लेने से हृदय सम्बंधी वात पीड़ा दूर होती है।"
3 क्षयरोग (टी.बी.) : -*2 ग्राम असंगध के चूर्ण को असगंध के ही 20 मिलीलीटर काढ़े के साथ सेवन करने से क्षय रोग में लाभ होता है। *2 ग्राम असगंध की जड़ के चूर्ण में 1 ग्राम बड़ी पीपल का चूर्ण, 5 ग्राम घी और 10 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से क्षय रोग (टी.बी.) मिटता है।"
4 खांसी : -*असगंध (अश्वगंधा) की 10 ग्राम जड़ को कूट लें, इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर 400 मिलीलीटर पानी में पकाएं, जब 8वां हिस्सा रह जाये तो इसे थोड़ा-थोड़ा पिलाने से कुकुर खांसी या वात जन्य खांसी पर विशेष लाभ होता है। *असगंध के पत्तों का काढ़ा 40 मिलीलीटर, बहेडे़ का चूर्ण 20 ग्राम, कत्था का चूर्ण 10 ग्राम, कालीमिर्च 50 ग्राम, लगभग 3 ग्राम सेंधानमक को मिलाकर लगभग आधा ग्राम की गोलियां बना लें। इन गोलियों को चूसने से सभी प्रकार की खांसी दूर होती है। टी.बी. खांसी में भी यह लाभदायक है।"
5 गर्भधारण : -*अश्वगंधा का चूर्ण 20 ग्राम, पानी 1 लीटर तथा गाय का दूध 250 मिलीलीटर तीनों को हल्की आंच पर पकाकार जब दूध मात्र शेष रह जाये तब इसमें 6 ग्राम मिश्री और 6 ग्राम गाय का घी मिलाकर मासिक-धर्म की शुद्धिस्नान के 3 दिन बाद 3 दिन तक सेवन करने से स्त्री अवश्यगर्भ धारण करती है। *अश्वगंधा का चूर्ण, गाय के घी में मिलाकर मासिक-धर्म स्नान के पश्चात् प्रतिदिन गाय के दूध के साथ या ताजे पानी से 4-6 ग्राम की मात्रा में 1 महीने तक निरंतर सेवन करने से स्त्री गर्भधारण अवश्य करती है। *अश्वगंधा की जड़ के काढ़े और लुगदी में चौगुना घी मिलाकर पकाकर सेवन करने से वात रोग दूर होता है तथा स्त्री गर्भधारण करती है।"
6 गर्भपात : -बार-बार गर्भपात होने पर अश्वगंधा और सफेद कटेरी की जड़ इन दोनों का 10-10 मिलीलीटर रस पहले 5 महीने तक सेवन करने से अकाल में गर्भपात नहीं होगा और गर्भपात के समय सेवन करने से गर्भ रुक जाता है।
7 रक्तप्रदर एवं श्वेतप्रदर :-अश्वगंधा के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच गाय के दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
8 कृमि रोग (पेट के कीड़े) : -इसके चूर्ण में बराबर मात्रा में गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ 5-10 ग्राम नियमित सेवन करने से लाभ होता है।
9 संधिवात (जोड़ों का दर्द) में : -*अश्वगंधा के पंचांग (जड़, पत्ती, तना, फल और फूल) को कूटकर, छानकर 25 से 50 ग्राम तक सेवन करने से जोड़ों का दर्द (गठियावात) दूर होता है। गठिया में अश्वगंधा के 30 ग्राम ताजा पत्ते, 250 मिलीलीटर पानी में उबालकर जब पानी आधा रह जाये तो छानकर पी लें। 1 सप्ताह पीने से ही गठिया में जकड़ा और तकलीफ से रोता रोगी बिल्कुल अच्छा हो जाता है तथा इसका लेप भी बहुत लाभदायक है। *अश्वगंधा के चूर्ण की मात्रा 2 ग्राम सुबह-शाम गर्म दूध तथा पानी के साथ खाने से गठिया के रोगी को आराम हो जाता है। *अश्वगंधा के तीन ग्राम चूर्ण को तीन ग्राम घी में मिलाकर, एक ग्राम शक्कर मिलाकर सुबह-शाम खाने से संधिवात दूर होता है। अश्वगंधा की 15 ग्राम कोंपले या कोमल पत्ते लेकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालें जब पत्ते गल जाये या नरम हो जायें तो छानकर गर्म-गर्म तीन-चार दिन पीयें, इससे कफ जन्य खांसी भी दूर होती है।"
10 कमर दर्द : -*अश्वगंधा के 2-5 ग्राम चूर्ण को गाय के घी या शक्कर के साथ चाटने से कमरदर्द और नींद में लाभ होता है। *असगंध और सोंठ बराबर मात्रा में लेकर इनका चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करें। इससे कमर दर्द से आराम मिलता है। *असंगध और सफेद मूसली को पीसकर बराबर मात्रा में बनाया गया चूर्ण 1 चम्मच भर, रोजाना दूध के साथ सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है। *1-1 छोटे चम्मच असगंध का चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह- शाम खाने और ऊपर से एक गिलास दूध पीने से शरीर की कमजोरी दूर होती है।"
11 नपुंसकता :-*अश्वगंधा का कपड़े से छना हुआ बारीक चूर्ण और चीनी बराबर मिलाकर रखें, इसको 1 चम्मच गाय के ताजे दूध के साथ सुबह भोजन से 3 घंटे पूर्व सेवन करें। इस चूर्ण को चुटकी-चुटकी भर खाते हैं और ऊपर से दूध पीते रहें। रात के समय इसके बारीक चूर्ण को चमेली के तेल में अच्छी तरह घोटकर लगाने से इन्द्रिय की शिथिलता दूर होकर वह कठोर और दृढ़ हो जाती हैं। *अश्वगंधा, दालचीनी और कडुवा कूठ बराबर मात्रा में कूटकर छान लें और गाय के मक्खन में मिलाकर 5-10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सुपारी छोड़करक शेष लिंग पर मलें, इसको मलने के पूर्व और बाद में लिंग को गर्म पानी से धो लें।"
12 कमजोरी :-*असगंध एक वर्ष तक यथाविधि सेवन करने से शरीर रोग रहित हो जाता है। केवल सर्दीयों में ही इसके सेवन से दुर्बल व्यक्ति भी बलवान होता है। वृद्धावस्था दूर होकर नवयौवन प्राप्त होता है। *असंगध चूर्ण, तिल व घी 10-10 ग्राम लेकर और तीन ग्राम शहद मिलाकर नित्य सर्दी में सेवन करने से कमजोर शरीर वाला बालक मोटा हो जाता है। *अश्वगंधा का चूर्ण 6 ग्राम, इसमें बराबर की मिश्री और बराबर शहद मिलाकर इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलायें, इस मिश्रण को सुबह शाम शीतकाल में चार महीने तक सेवन करने से बूढ़ा व्यक्ति भी युवक की तरह प्रसन्न रहता है। *अश्वगंधा चूर्ण 20 ग्राम, तिल इससे दुगने, और उड़द आठ गुने अर्थात 140 ग्राम, इन तीनों को महीन पीसकर इसके बड़े बनाकर ताजे-ताजे एक ग्राम तक खायें। *अश्वगंधा चूर्ण और चिरायता बराबर-बराबर लेकर खरल (कूटकर) कर रखें। इस चूर्ण को 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह ग्राम शाम दूध के साथ खायें। *एक ग्राम अश्वगंधा चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिश्री डालकर उबालें हुए दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है, बल बढ़ता है।
13 खून की खराबी : -4 ग्राम चोपचीनी और अश्वगंधा का बारीक पिसा चूर्ण बराबर मात्रा में लें। इसे शहद के साथ नियमित सुबह-शाम चाटने से रक्तविकार मिट जाता है।
14 ज्वर : -इसका चूर्ण पांच ग्राम, गिलोय की छाल का चूर्ण चार ग्राम, दोनों को मिलाकर प्रतिदिन शाम को गर्म पानी से खाने से जीर्णवात ज्वर दूर हो जाता है।.
15 सभी प्रकार के रोगों में : -लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग गिलोय का चूर्ण को 5 ग्राम अश्वगंधा के चूर्ण के साथ मिलाकर शहद के साथ चाटने से सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।
16 बांझपन दूर करना : -*असगंध, नागकेसर और गोरोचन इन तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस-छान लेते हैं। इसे शीतल जल के साथ सेवन करें तो गर्भ ठहर जाता है। *असगंध तथा नागौरी को 50 ग्राम की मात्रा में लेकर कूटकर कपड़छन कर लेते हैं। जब मासिक-धर्म के बाद स्त्री स्नान करके शुद्ध हो जाए तो 10 ग्राम की मात्रा में इसका सेवन करें। उसके बाद पुरुष के साथ रमण (मैथुन) करें तो इससे बांझपन दूर होकर महिला गर्भवती हो जाएगी। "
17 गर्भधारण :-*असगंध के काढे़ में दूध और घी मिलाकर 7 दिनों तक पिलाने से स्त्री को निश्चित रूप से गर्भधारण होता है। *असगंध का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में मासिक-धर्म के शुरू होने के लगभग 4 दिन पहले से सेवन करना चाहिए। इससे गर्भ ठहरता है। *असगंध 100 ग्राम दरदरा कूटकर इसकी 20 ग्राम मात्रा को 200 मिलीलीटर पानी में रात को भिगोकर रख देते हैं। सुबह इसे उबालते हैं। एक चौथाई रह जाने पर इसे छानकर 200 मिलीलीटर गुनगुने मीठे दूध में एक चम्मच घी मिलाकर माहवारी के पहले दिन से 5 दिनों तक लगातार प्रयोग करना चाहिए।"
18 दस्त :-असगंध, दालचीनी, नागरमोथा, बाराही फल, धाय के फूल और कुड़ा (कोरैया) की छाल को निकालकर काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी बने काढ़े को 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से बुखार के दौरान आने वाले दस्त बंद हो जाते हैं और आराम मिलता है।
19 मासिक-धर्म सम्बंधी विकार :-असगंध 35 ग्राम की मात्रा में कूटकर छान लेते हैं। इसमें 35 ग्राम की मात्रा में चीनी मिला देते हैं। इसकी 10 ग्राम मात्रा को पानी से खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग एक सप्ताह पहले सेवन करना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।
20 प्रदर :-*असगंध और शतावर का बराबर मात्रा का चूर्ण 3 ग्राम ताजे पानी के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है। *असगंध का चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से श्वेत प्रदर मिट जाता है। 25-25 ग्राम की मात्रा में असगंध, बिधारा, लोध्र पठानी, को कूट-पीस छानकर 5-5 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर में आराम मिलता है। *5-10 ग्राम असगंध, नागौरी चूर्ण सुबह-शाम घी के साथ सेवन करने से प्रदर में आराम मिलता है।"
21 अल्सर :-4 ग्राम असगंध को गौमूत्र (गाय के पेशाब) में पीसकर सेवन करना चाहिए।
22 हड्डी कमजोर होना : -असगंध नागौरी का चूर्ण 1 से 3 ग्राम शहद एवं मिश्री मिले दूध के साथ सुबह-शाम खाने से हड्डी की विकृति आदि दूर होकर शरीर पुष्ट और सबल हो जाता है।
23 रक्तप्रदर :-अश्वगंधा को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में आराम मिलता है।
24 स्तनों के आकार में वृद्धि : -*असगंध नागौरी और शतावरी को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह से पीसकर चूर्ण बनायें, फिर इसी चूर्ण को देशी घी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रखें, इसी चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करने से स्तनों के आकार में बढ़ोत्तरी होती है। *असंगध नागौरी, गजपीपल और बच आदि को बराबर लेकर पीसकर चूर्ण बना लें, फिर मक्खन के साथ मिलाकर स्तनों पर लगायें। इससे स्तनों का उभार होता है।"
25 मोटापे के रोग में :-असगंध 50 ग्राम, मूसली 50 ग्राम, काली मूसली 50 की मात्रा में कूटकर छानकर रख लें, इसे 10 ग्राम की मात्रा में सुबह दूध के साथ लेने से मोटापा दूर होता है।
26 स्तनों को आकर्षक होना :-असगंध और शतावरी को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग 2-2 ग्राम की मात्रा में शहद के खाकर ऊपर से दूध में मिश्री को मिलाकर पीने से स्तन आकर्षक हो जाते हैं।
27 वात रोग : -*असगंध के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को खाने से लाभ प्राप्त होता है। *असगंध और विधारा 500-500 ग्राम कूट पीसकर रख लें। 10 ग्राम दवा सुबह गाय के दूध के साथ खाने से वात रोग खत्म हो जाते हैं। *असगंध और मेथी की 100-100 ग्राम मात्रा का बारीक चूर्ण बनाकर, आपस में गुड़ में मिलाकर 10 ग्राम के लड्डू बना लें। 1-1 लड्डू सुबह-शाम खाकर ऊपर से दूध पी लें। यह प्रयोग वात रोगों में अच्छा आराम दिलाता है। जिन्हें डायबिटीज हो, उन्हें गुड़ नहीं मिलाना चाहिए, उन्हें सिर्फ अश्वगंध और मेथी का चूर्ण पानी के साथ लेना चाहिए।".
28 वीर्य रोग में : -*असगंध नागौरी, विधारा, सतावरी 50-50 ग्राम कूट-पीसकर छान लें, फिर इसमें 150 ग्राम चीनी मिला दें। 10-10 ग्राम दूध से सुबह-शाम लें। *नागौरी असगंध, गोखरू, शतावर तथा मिश्री मिलाकर खायें। *असगंध, विधारा 25-25 ग्राम को मिलाकर बारीक पीस लें। इसमें 50 ग्राम चीनी मिलाकर 10 ग्राम दवा सोते समय हल्के गर्म दूध से लें। इससे बल वीर्य बढ़ता है। *300 ग्राम असगंध को बारीक पीस लें। इसकी 20 ग्राम मात्रा को 250 मिलीलीटर दूध में मिलाकर उबालें, जब यह गाढ़ा हो जाये तो इसमें चीनी मिलाकर पीना चाहिए। "
29 अंगुलियों का कांपना :-3 से 6 ग्राम असगंध नागौरी को गाय के घी और उसके चार गुना दूध में उबालकर मिश्री मिलाकर प्रतिदिन पीने से अंगुलियों का कांपना दूर हो जाता है। इससे रोगी को काफी लाभ मिलता है।
30 योनि रोग :-असगंध को दूध में अच्छी तरह पका लें, फिर ऊपर से देशी घी को डालकर एक दिन सुबह और शाम माहवारी के बाद स्नान हुई महिला को पिलाने से योनि के विकार हो नष्ट जाते हैं और गर्भधारण के योग्य हो जाता है।
31 दिल की धड़कन : -असगंध और बहेड़ा दोनों को कूट- पीसकर चूर्ण बना लें। फिर 3 ग्राम चूर्ण में थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर हल्के गर्म पानी से सेवन करें। इससे दिल की तेज धड़कन और निर्बलता नष्ट होती है।
32 गठिया रोग :-*असगंध, सुरंजन मीठी, असपन्द और खुलंजन 30-30 ग्राम को कूट-छानकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 5-5 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम गर्म पानी से लें। इससे गठिया का दर्द दूर हो जाता है। *50 ग्राम असगंध और 25 ग्राम सोंठ को कूट-छानकर इसमें 75 ग्राम चीनी को मिला लें। 4-4 ग्राम मिश्रण पानी से सुबह-शाम लेने से गठिया का दर्द दूर हो जाता है। *3 ग्राम असगंध का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में 3 ग्राम घी मिलाकर रोजाना सुबह-शाम लेने से गठिया के रोग में आराम मिलता है।"
33 हाई ब्लडप्रेशर :-अश्वगंधा चूर्ण 3 ग्राम, सूरजमुखी बीज का चूर्ण 2 ग्राम, मिश्री 5 ग्राम और गिलोय का बारीक चूर्ण (सत्व) 1 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) में लाभ होता है।
34 हृदय की दुर्बलता :-असंगध 3-3 ग्राम सुबह-शाम गर्म दूध से लें। इससे दिल दिमाग की कमजोरी ठीक हो जाती है।
35 हाथ-पैरों की ऐंठन :-सुरंजन मीठी, असगंध नागौरी 50-50 ग्राम, 25 ग्राम सोंठ और 120 ग्राम मिश्री को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 4 से 6 ग्राम प्रतिदिन सुबह- शाम ताजे पानी के साथ लेने से पैरों के जोड़ व हाथ- पैरों का दर्द खत्म हो जाता है।
36 क्रोध : -लगभग 3 से 6 ग्राम असगंध नागौरी के चूर्ण को मिश्री और घी में मिलाकर हल्के गर्म दूध के साथ सुबह- शाम को खाने से स्नायुतंत्र अपना कार्य ठीक तरह से करता है, जिससे क्रोध नष्ट हो जाता है।
37 सदमा :-लगभग 3-6 ग्राम असगंध नागौरी के चूर्ण को सुबह-शाम को रोजाना घी और चीनी मिले दूध के साथ खाने से स्नायुविक ऊर्जा प्राप्त होने के कारण बार-बार आने वाले सदमे खत्म हो जाते हैं।
38 खून का बहना :-अश्वगंधा के चूर्ण और चीनी को बराबर मात्रा में मिलाकर खाने से खून निकलना बंद हो जाता है।
39 लिंग वृद्धि :-*लिंग को बढ़ाने के लिए लोध्र, केशर, असगंधा, पीपल, शालपर्णी को तेल में पकाकर लिंग पर मालिश करने से लिंग में वृद्धि हो जाती है। *कूटकटेरी, असगंध, बच, शतावरी आदि को तिल में अच्छी तरह से पकायें। सब औषधियों के जल जाने पर ही उसे आग से उतारे और लिंग पर मालिश करें। इससे लिंग का छोटापन दूर हो जाता है। "
40 थकावट होना :-*लगभग 3 से 6 ग्राम असगंध नागौरी के चूर्ण को मिश्री और घी मिले हुए दूध के साथ सुबह-शाम लेने से शरीर में ताजगी और जोश आ जाता है। *असगंध नागौरी और क्षीर विदारी की जड़ को बराबर भाग में लेकर, हल्के गर्म दूध में 3 से 6 ग्राम मिश्री और घी मिलाकर एक साथ सुबह और शाम को लेने से शरीर की मानसिक और शारीरिक थकावट दूर हो जाती है।"
41 शरीर को शक्तिशाली बनाना :-*असगंध के चूर्ण को दूध में मिलाकर पीने से शरीर शक्तिशाली होता है और वीर्य में वृद्धि होती है। *बराबर मात्रा में असगंध और विधारा को पीसकर इसका चूर्ण बना लें। इसके चूर्ण को एक शीशी में भरकर रख लें। इस चूर्ण को सुबह और शाम को दूध के साथ लेने से मनुष्य के शरीर की संभोग करने की क्षमता बढ़ती है। *असगंध के चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ चाटने से शरीर में ताकत बढ़ती है। *लगभग 100-100 ग्राम की मात्रा में नागौरी असगंध, सफेद मूसली और स्याह मूली को लेकर इसका चूर्ण बना लें। रोजाना लगभग 10-10 ग्राम की मात्रा में इस चूर्ण को 500 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह और शाम को खाने से मनुष्य के शरीर में जबरदस्त शक्ति आ जाती है। *बराबर मात्रा में असगंध या अश्वगंधा, सौंठ, मिश्री और विधारा को लेकर बारीक चूर्ण बना लें। इसके बाद एक-एक चम्मच की मात्रा में सुबह और शाम को दूध के साथ इस चूर्ण का सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर हो जाती है, सर्दी कम लगती है और शरीर में वीर्य बल बढ़ता है।"
42 आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए : -अश्वगंधा का चूर्ण 2 ग्राम, धात्रि फल चूर्ण 2 ग्राम तथा 1 ग्राम मुलेठी का चूर्ण मिलाकर 1 चम्मच सुबह और शाम पानी के साथ सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
मधुमालती पेड़ पौधे भगवान की बनाई हुई दवाई की जीवित
फैक्टरियां है . अपने आस पास ही बाग़ बगीचों में नज़र
दौडाएं तो कई लाभदायक जड़ी बूटियाँ मिल जाएंगी .
मधुमालती की बेल कई घरों में लगी होंगी इसके फूल और
पत्तियों का रस मधुमेह के लिए बहुत अच्छा है . इसके फूलों से आयुर्वेद में वसंत कुसुमाकर रस नाम की दवाई बनाई जाती है . इसकी 2-5 ग्राम की मात्रा लेने से कमजोरी दूर होती है और हारमोन ठीक हो जाते है . प्रमेह , प्रदर , पेट दर्द , सर्दी-जुकाम और मासिक धर्म आदि सभी समस्याओं का यह समाधान है . प्रमेह या प्रदर में इसके 3-4 ग्राम फूलों का रस मिश्री के साथ लें . शुगर की बीमारी में करेला , खीरा, टमाटर के साथ मालती के फूल डालकर जूस निकालें और सवेरे खाली पेट लें . या केवल इसकी 5-7 पत्तियों का रस ही ले लें . वह भी लाभ करेगा . कमजोरी में भी इसकी पत्तियों और फूलों का रस ले सकते हैं . पेट दर्द में इसके फूल और पत्तियों का रस लेने से पाचक रस बनने लगते हैं . यह बच्चे भी आराम से ले सकते हैं . सर्दी ज़ुकाम के लिए इसकी एक ग्राम फूल पत्ती और एक ग्राम तुलसी का काढ़ा बनाकर पीयें . यह किसी भी तरह का नुकसान नहीं करता . यह बहुत सौम्य प्रकृति का पौधा है .
बवासीर गुदा मार्ग की बीमारी है | यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है -- खूनी बवासीर और बादी बवासीर | इस रोग के होने का मुख्य कारण '' कोष्ठबद्धता '' या ''कब्ज़ '' है | कब्ज़ के कारण मल अधिक शुष्क व कठोर हो जाता है और मल निस्तारण हेतु अधिक जोर लगाने के कारण बवासीर रोग हो जाता है | यदि मल के साथ बूंद -बूंद कर खून आए तो उसे खूनी तथा यदि मलद्वार पर अथवा मलद्वार में सूजन मटर या अंगूर के दाने के समान हो और मल के साथ खून न आए तो उसे बादी बवासीर कहते हैं | अर्श रोग में मस्सों में सूजन तथा जलन होने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है | बवासीर का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -------
१- जीरा - एक ग्राम तथा पिप्पली का चूर्ण आधा ग्राम को सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर ठीक होती है | २- जामुन की गुठली और आम की गुठली के अंदर का भाग सुखाकर इसको मिलाकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में हल्के गर्म पानी या छाछ के साथ सेवन से खूनी बवासीर में लाभ होता है | ३- पके अमरुद खाने से पेट की कब्ज़ दूर होती है और बवासीर रोग ठीक होता है | ४- बेल की गिरी के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर , ४ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है | ५- खूनी बवासीर में देसी गुलाब के तीन ताज़ा फूलों को मिश्री मिलाकर सेवन करने से आराम आता है | ६ - जीरा और मिश्री मिलकर पीस लें | इसे पानी के साथ खाने से बवासीर [अर्श ] के दर्द में आराम रहता है | ७- चौथाई चम्मच दालचीनी चूर्ण एक चम्मच शहद में मिलाकर प्रतिदिन एक बार लेना चाहिए | इससे बवासीर नष्ट हो जाती है |
पिप्पली (Indian long pepper) -
वैदेही,कृष्णा,मागधी,चपला आदि पवित्र नामों से अलंकृत,सुगन्धित पिप्पली भारतवर्ष के उष्ण प्रदेशों में उत्पन्न होती है | वैसे इसकी चार प्रजातियों का वर्णन आता है परन्तु व्यवहार में छोटी और बड़ी दो प्रकार की पिप्पली ही आती है | बड़ी पिप्पली मलेशिया,इंडोनेशिया और सिंगापुर से आयात की जाती है,परन्तु छोटी पिप्पली भारतवर्ष में प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होती है | इसका वर्ष ऋतू में पुष्पागम होता है तथा शरद ऋतू में इसकी बेल फलों से लद जाती है | बाजारों में इसकी जड़ पीपला मूल के नाम से मिलती है | यह सुगन्धित,आरोही अथवा भूमि पर फैलने वाली,काष्ठीय मूलयुक्त,बहुवर्षायु,आरोही लता है | इसके फल २.-३ सेमी लम्बे,२. मिमी चौड़े,कच्चे शहतूत जैसे,किन्तु छोटे व बारीक,पकने पर लाल रंग के व सूखने पर धूसर कृष्ण वर्ण के होते हैं | इसके फलों को ही पिप्पली कहते हैं | पिप्पली के विभिन्न औषधीय गुण -
१- पिप्पली को पानी में पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है |
२- पिप्पली और वच चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर ३ ग्राम की मात्रा में नियमित रूप से दो बार दूध या गर्म पानी के साथ सेवन करने से आधासीसी का दर्द ठीक होता है |
३- पिप्पली के १-२ ग्राम चूर्ण में सेंधानमक,हल्दी और सरसों का तेल मिलाकर दांत पर लगाने से दांत का दर्द ठीक होता है |
४- पिप्पली,पीपल मूल,काली मिर्च और सौंठ के समभाग चूर्ण को २ ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ चाटने से जुकाम में लाभ होता है |
५- पिप्पली चूर्ण में शहद मिलाकर प्रातः सेवन करने से,कोलेस्ट्रोल की मात्रा नियमित होती है तथा हृदय रोगों में लाभ होता है |
६-पिप्पली और छोटी हरड़ को बराबर-बररबर मिलाकर,पीसकर एक चम्मच की मात्रा में सुबह- शाम गुनगुने पानी से सेवन करने पर पेट दर्द,मरोड़,व दुर्गन्धयुक्त अतिसार ठीक होता है |
७- आधा चम्मच पिप्पली चूर्ण में बराबर मात्रा में भुना जीरा तथा थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ प्रातः खाली पेट सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है |
यह मूल रूप से प्रशांत महासागरीय द्वीप एवं म्यांमार , श्रीलंका एवं अन्य उष्णकटिबंधीय समुद्रतटवर्ती प्रदेशों में पाया जाता है | भारत में यह विशेषतः केरल , उड़ीसा , पश्चिम बंगाल , महाराष्ट्र , गुजरात एवं दक्षिण भारत में सर्वत्र पाया जाता है | जिस प्रकार देवताओं में श्री गणेश जी प्रथम प्रतिष्ठित किए गए हैं , ठीक उसी प्रकार फलों में नारियल का स्थान है | आठ यह श्रीफल कहलाता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल वर्षपर्यंत तक होता है | नारियल के पेड़ समुद्र के किनारे पर उगते हैं | लगभग ७ से ८ साल बाद इस पर फल लगते हैं | नारियल का फल और पानी खाने-पीने में शीतल होता है । नारियल में कार्बोहाइड्रेट और खनिज क्षार काफी मात्रा में पाया जाता है | इसमें विटामिन और अनेक लाभदायक तत्व मिलते हैं | नारियल के पानी में मैग्नीशियम और कैल्शियम भी होता है | सूखे नारियल में इन तत्वों की मात्रा कम होती है | विभिन्न रोगों में नारियल से उपचार ---- १- नारियल-पानी पीने से उलटी आना और अधिक प्यास लगना कम हो जाता है | २- नारियल के पानी में नमक डालकर पीने से पेट के दर्द में आराम मिलता है | ३-नारियल के तेल की सिर में मालिश करने से बालों का गिरना बंद हो जाता है | ४-प्रतिदिन नारियल पानी चेहरे पर लगाने से चेहरे के कील- मुँहासे , दाग- धब्बे और चेचक के निशान दूर हो जाते हैं | ५ -सूखे नारियल को घिसकर बुरादा बना लें , फिर एक कप पानी में एक चौथाई कप बुरादा भिगो दें | दो घंटे बाद इसे छानकर नारियल का बुरादा निकालकर पीस लें | इसकी चटनी-सी बनाकर भिगोए हुए पानी में घोलकर पी जाएँ | इस प्रकार इसे प्रतिदिन तीन बार पीने से खांसी , फेफड़ों के रोगऔर टी.बी. में लाभ होता है।| ६- नारियल के तेल और कपूर को मिलाकर एग्ज़िमा वाले स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है | ७- शरीर के किसी भाग के जलने पर प्रतिदिन उस स्थान पर नारियल का तेल लगाने से जलन भी शांत होती है तथा निशान भी नहीं पड़ता है |
ईसबगोल का मूल उत्त्पत्ति स्थान ईरान है और यहीं से इसका भारत में आयात किया जाता है | इसका उल्लेख प्राचीन वैद्यक शास्त्रों व निघण्टुओं में अल्प मात्रा में पाया जाता है| 10वीं शताब्दी पूर्व के अरबी और ईरान के अलहवीं और इब्नसीना नामक हकीमों ने अपने ग्रंथों में औषधि द्रव्य के रूप में ईसबगोल का निर्देश किया था | तत्पश्चात कई यूनानी निघण्टुकारों ने इसका खूब विस्तृत विवेचन किया | फारस में मुगलों के शासनकाल में इसका प्रारम्भिक प्रचार यूनानी हकीमों ने इसे ईरान से यहां मंगाकर किया | तब से जीर्ण प्रवाहिका और आंत के मरोड़ों पर सुविख्यात औषधोपचार रूप में इसका अत्यधिक प्रयोग किया जाने लगा और आज भी यह आंत्र विकारों की कई उत्तमोत्तम औषधियों में अपना खास दर्जा रखती है |इनके बीजों का कुछ आकार प्रकार घोड़े के कान जैसा होने से इसे इस्पगोल या इसबगोल कहा जाने लगा | आजकल भारत में भी इसकी खेती गुजरात,उत्तर प्रदेश,पंजाब और हरियाणा में की जाती है| औषधि रूप में इसके बीज और बीजों की भूसी प्रयुक्त की जाती है | बीजों के ऊपर सफ़ेद भूसी होती है | भूसी पानी के संपर्क में आते ही चिकना लुआव बना लेती है जो गंधरहित और स्वादहीन होती है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल दिसम्बर से मार्च तक होता है | ईसबगोल के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव - १- ईसबगोल को यूकलिप्टस के पत्तों के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है |
२- ईसबगोल को दही के साथ सेवन करने से आंवयुक्त दस्त और खूनी दस्त के रोग में लाभ मिलता है |
३- एक से दो चम्मच ईसबगोल की भूसी सुबह भिगोई हुई शाम को तथा शाम की भिगोई हुई सुबह सेवन करने से सूखी खांसी में पूरा लाभ मिलता है |
४- चार चम्मच ईसबगोल भूसी को एक गिलास पानी में भिगो दें और थोड़ी देर बाद उसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है |
५- ईसबगोल को पानी में लगभग दो घंटे के लिए भिगोकर रखें | इस पानी को कपड़े से छानकर कुल्ले करने से मुँह के छाले दूर हो जाते हैं |
- यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है | - इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है| - पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है | - पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है | - हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए | - पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है| - सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा | - इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है | - पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे | - इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है | - इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है | - इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है | - यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सूजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है |