एक दिन मैंने अपनी पत्नी से पूछा - "क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता कि मैं बार-बार तुम्हें कुछ भी कह देता हूँ, और डाँट भी देता हूँ, फिर भी तुम पति भक्ति में लगी रहती हो, जबकि मैं कभी पत्नी भक्ति का प्रयास नहीं करता?"
मैंने वेदों का अध्ययन किया है और भारतीय संस्कृति में गहरी रुचि रखता हूँ, जबकि मेरी पत्नी विज्ञान की विद्यार्थी रही है। फिर भी, उसकी आध्यात्मिक शक्ति मुझसे कई गुना अधिक है, क्योंकि मैं केवल पढ़ता हूँ और वह उसका पालन करती है।
मेरे प्रश्न पर उसने मुस्कुराते हुए पानी का गिलास पकड़ा और बोली - "एक पुत्र यदि माता की भक्ति करे तो उसे मातृ भक्त कहते हैं, परन्तु माता चाहे कितनी भी सेवा करे, उसे पुत्र भक्त नहीं कहा जा सकता।"
मैं सोच रहा था, आज भी यह मुझे निरुत्तर करेगी। मैंने पूछा, "जीवन के प्रारंभ में पुरुष और स्त्री समान थे, फिर पुरुष बड़ा कैसे हो गया, जबकि स्त्री शक्ति का प्रतीक है?"
वह हँसते हुए बोली - "आपको थोड़ा विज्ञान भी पढ़ना चाहिए। दुनिया दो चीज़ों से बनी है - ऊर्जा और पदार्थ। पुरुष ऊर्जा का प्रतीक है और स्त्री पदार्थ का। जब पदार्थ को विकसित होना होता है, तो वह ऊर्जा का आधान करता है। इसी प्रकार, जब स्त्री पुरुष का आधान करती है, तो शक्ति स्वरूप हो जाती है। यही कारण है कि स्त्री प्रथम पूज्या बनती है।"
मैंने चुपचाप पूछा, "तो तुम मेरी भी पूज्य हो गईं, क्योंकि तुम ऊर्जा और पदार्थ दोनों की स्वामिनी हो।"
उसने झेंपते हुए कहा, "आप भी पढ़े-लिखे मूर्ख जैसे बात करते हैं। आपकी ऊर्जा से मैंने शक्ति पाई, तो क्या उस शक्ति का उपयोग आप पर करूँ? यह कृतघ्नता होगी।"
मैंने कहा, "मैं तो तुम पर शक्ति का प्रयोग करता हूँ, फिर तुम क्यों नहीं?"
उसका उत्तर सुनकर मेरी आँखें भर आईं। उसने कहा, "जिसके साथ मात्र संसर्ग से मैं जीवन उत्पन्न करने की शक्ति पा गई, उसे मैं कैसे विद्रोह करूँ? यदि शक्ति प्रयोग करना होगा तो मुझे क्या आवश्यकता... मैं माता सीता की भाँति लव-कुश तैयार कर लूँगी, जो आपसे मेरा हिसाब कर लेंगे।"
सभी मातृ शक्तियों को सहस्त्रों नमन, जिन्होंने सृष्टि को प्रेम और मर्यादा में बाँध रखा है। 🙏
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