तेरा देश धर्म और मानवता है पस्त-पस्त

 तू खुद को समझ रहा है बहुत मस्त-मस्त,

तेरा देश धर्म और मानवता है पस्त-पस्त।

गौ हत्या के दंश से धरा रो रही है,

संस्कारों की जड़ें अब बिखरती दिख रही हैं।

धर्म स्थलों पर अतिक्रमण की मार है,

आस्था के मंदिरों पर शैतानों का भार है।


तू खुद को समझ रहा है बहुत मस्त-मस्त,

तेरा देश धर्म और मानवता है पस्त-पस्त।


धर्म परिवर्तन के जाल में फंसाए लोग हैं,

लालच और छल से विरोधी छिनाए लोग हैं।

गुरुकुल और शिक्षा के अधिकार छीने गए,

संस्कृति के दीपक हर ओर बुझाए गए।


तू खुद को समझ रहा है बहुत मस्त-मस्त,

तेरा देश धर्म और मानवता है पस्त-पस्त।


जनसंख्या बढ़ी, पर संसाधन घट गए,

भविष्य के विरोधी कहीं खो से गए।

शासन और प्रशासन बस खुद में मग्न है,

जनता की पुकार से उन्हें कोई डर नहीं है।


तू खुद को समझ रहा है बहुत मस्त-मस्त,

तेरा देश धर्म और मानवता है पस्त-पस्त।


बॉलीवुड से आई फुहड़ता की बाढ़ है,

संस्कारों के स्थान पर अपराधों का स्वाद है।

कानूनी अधिकारों का दुरुपयोग हर जगह,

नारी-पुरुष दोनों लड़ रहे अपने ही स्वार्थ पर।


तू खुद को समझ रहा है बहुत मस्त-मस्त,

तेरा देश धर्म और मानवता है पस्त-पस्त।


स्वयंभू और कुबेर बनने की है चाहत,

राजनीति के खेल में हो रही मानवता आहत।

आतंकी बनाने की शिक्षा का जोर है,

संस्कृति की जड़ों पर वार हर ओर है।


तू खुद को समझ रहा है बहुत मस्त-मस्त,

तेरा देश धर्म और मानवता है पस्त-पस्त।


आरक्षण ने योग्य लोगों को दबाया है,

अयोग्यता ने देश का विकास को रुकवाया है,

आओ उठाएं, फिर से मशाल जलाएं,

धर्म और संस्कृति को वापस अपनाएं।


तू खुद को समझ मत बहुत मस्त-मस्त,

देश धर्म और मानवता को चाहिए कट्टर भक्त।

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