शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकाल मंदिर। यह दुनिया का एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग है। तंत्र की दृष्टि से इसे बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार महाकाल की स्तुति महाभारत कालीन वेदव्यास से लेकर कालिदास, बाणभट्ट और राजा भोज आदि ने की है।
प्राचीन श्री महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। इसके तकरीबन 140 साल बाद दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण कर श्री महाकाल मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया था। वर्तमान मंदिर मराठाकालीन माना जाता है। इसका जीर्णोद्धार आज से करीब 250 साल पूर्व सिंधिया राजघराने के दीवान बाबा रामचंद्र शैणवी ने करवाया था।
महाकालेश्वर की चित्रमय झलकियाँ
‘‘दूषण नामक दैत्य के अत्याचार से जब उज्जयिनी के निवासी त्रस्त हो गए, तो उन्होंने अपनी रक्षा के लिए शिव की आराधना की। आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ज्योति के रूप में प्रकट हुए। दैत्य का संहार किया और भक्तों के आग्रह पर लिंग के रूप में उज्जयिनी में प्रतिष्ठित हो गए।’’ - शिवपुराण में वर्णित कथा से उद्धृत
महाकाल शिवलिंग दुनिया का एकमात्र शिवलिंग है, जहाँ भस्म आरती की जाती है। यह आरती बेहद अलौकिक होती है। प्रातः 4 से 6 बजे तक वैदिक मंत्रों, स्तोत्र पाठ, वाद्य-यंत्रों, शंख, डमरू और घंटी-घड़ियालों के साथ भस्म आरती की जाती है। बम-बम भोले के जयघोष के साथ यह आरती आपकी अंतःचेतना को जाग्रत करती है। इस आरती में भाग लेने के लिए क्या आम- क्या खास हर व्यक्ति आतुर रहता है।
भस्म आरती के समय पूजा-अर्चना के लिए साधारण वस्त्र धारण कर गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं है। पुरुषों को रेशमी सोला (धोती) और महिलाओं को साड़ी पहनने के बाद ही गर्भगृह में जाने दिया जाता है। मुख्य आरती में सिर्फ पुरुष शामिल होते हैं। इस समय यहाँ स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है। गर्भगृह के बाहर बने नंदी हॉ़ल में दर्शनार्थी इस भस्म आरती का अलौकिक आनंद ले सकते हैं।
“ पहले यहाँ मुर्दों की चिताभस्म से भोलेनाथ का श्रृंगार किया जाता था, लेकिन एक बार चिता की ताजी भस्म नहीं मिलने के कारण महाकाल के पुजारी ने अपने जीवित पुत्र को अग्नि के हवाले कर दिया था और बालक की चिताभस्म से भूतभावन का श्रृंगार किया था। तबसे यहाँ मुर्दे की भस्म की जगह गाय के गोबर के कंडों से बनी भस्म से शिव का श्रृंगार किया जाता है।”
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