फेंगशुई स्पेशल बैम्बू स्टिक



Hindi feng shui tips
फेंगशुई को मानने वालों के अनुसार पेड़ों से आप अपनी किस्मत संवार सकते हैं। सुनने में यह अजीब लगता है, लेकिन इसमें कुछ हद तक सच्चाई है। यह सही है और वास्तव में इससे फायदा होता है। खैर सच्चाई चाहे जो भी हो, इससे आपकी किस्मत सजे या नहीं सजे आपका घर जरूर सजेगा और बेहद खूबसूरत लगेगा। आप ज्यादा मत सोचिए यहां पर किसी दैवीय पेड़ की बात नहीं हो रही है, बल्कि आकर्षक लगने वाले पेड़ बैम्बू स्टिक की बात हो रही है।

पिछले कुछ समय से बाजारों में बैम्बू स्टिक की जमकर बिक्री हो रही है। फेंगशुई के मानने वाले भी इसे खरीद रहे हैं और नहीं मानने वाले भी अपने घरों में इसे रख रहे हैं। यह देखने में बेहद खूबसूरत और आकर्षक लगता है, साथ ही इसकी खासियत है कि रूम के अंदर छोटे से जगह में भी यह सालों तक हरा और ताजा रहता है। लम्बे समय तक हरा और ताजा रखने के लिए सप्ताह में एक बार पानी बदलना जरूरी है। 

फेंगशुई के अनुसार इसे घर के किसी कोने में आप सजा सकते हैं। छोटे वाले बैम्बू स्टिक को टेबल पर रखना ज्यादा पसंद करते हैं, जबकि बड़े वाले को घर के अन्दर कहीं भी रखा जाए, वह खूबसूरत ही लगेगा। वास्तु के हिसाब से बैम्बू स्टिक शुभ होता है, इसलिए लोग अपने घरों में इस पेड़ को रखते हैं। बेहद खूबसूरत दिखने वाले इस स्टिक को किसी को गिफ्ट देने के लिए भी अच्छा विकल्प है, इस पेड़ को आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को किसी भी मौके पर गिफ्ट कर सकते हैं, क्योंकि यह सस्ता भी है और आकर्षक भी है। तो देर मत कीजिए, बैम्बू स्टिक से अपना घर सजाइए और फेंगशुई से होने वाले फायदों का लाभ उठाइए। 

आजकल अधिकांश लोग अपने कमरों में फूल के पौधे या किसी और सजावटी पेड़ों को लगाने के बजाए बैम्बू स्टिक को लगाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। यह तीन तरह के साइज में मिल रहा है। छोटे वाले बैम्बू स्टिक पॉट की कीमत 50 रुपए, मीडियम साइज वाला 70से 150 रुपए और बड़े 500 से 700 रुपए में मिलता है। 

Hindi feng shui tips
बैम्बू स्टिक के उपयोग में ध्यान रखने योग्य बातें...

खरीदते समय मोलभाव करके खरीदें। 

पेड़ को घर के अन्दर ठंडे जगह पर ही रखें। 

पेड़ को कभी भी धूप न लगने दें। 

पॉट में पानी रखकर ही पेड़ को रखें। 

3-4 दिनों पर पानी बदल दिया करें। 

पॉट में हमेशा ठंडा पानी ही रखें। 

इन कुछेक बातों को ध्यान में रखकर आप बैम्बू स्टिक को अपने लिए उपयोगी बना सकते हैं।

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स्वादिष्ट बादाम की शक्तियां बादाम के गुण और प्रयोग


बादाम तेल से कब्ज दूर होती है और यह शरीर को ताकतवर बनाता है।

पूरे परिवार के लिए आदर्श टॉनिक बादाम तेल का सेवन फूड एडिटिव के तौर पर किया जा सकता है।

यह पेट की तकलीफों को दूर करने के साथ आंत की कैंसर में भी उपचारी है।

बादाम तेल के नियमित सेवन से कोलेस्ट्रॉल कम होता है। यानी यह दिल की सेहत के लिए भी अच्छा है।

बादाम मस्तिष्क और स्नायु प्रणालियों के लिए पोषक तत्व है। 

यह बौद्धिक ऊर्जा बढ़ाने वाला, दीर्घायु बनाने वाला है।

मीठे बादाम तेल के सेवन से माँसपेशियों में दर्द जैसी तकलीफ से तत्काल आराम मिलता है।

बादाम तेल का प्रयोग रंगत में निखार लाता है और बेजान त्वचा को रौनक प्रदान करता है। त्वचा की खोई नमी लौटाने में भी बादाम तेल सर्वोत्तम माना गया है।

बादाम के गुण और प्रयोग
शुद्ध बादाम तेल तनाव को दूर करता है। दृष्टि पैनी करता है और स्नायु के दर्द में भी राहत दिलाता है।

विटामिन डी से भरपूर बादाम तेल बच्चों की हड्डियों के विकास में भी योगदान करता है। 

बादाम तेल से रूसी दूर होती है और बालों की साज-सँभाल में भी यह कारगर है। इसमें मौजूद विटामिन तथा खनिज पदार्थ बालों को चमकदार और सेहतमंद बनाते हैं। 


बादाम तेल का इस्तेमाल बाहर से किया जाए या फिर इसका सेवन किया जाए, यह हर लिहाज से उपचारी और उपयोगी साबित होता है। 

बादाम के गुण और प्रयोग
हर रोज रात को 250 मिग्रा गुनगुने दूध में 5-10 मिली बादाम तेल मिलाकर सेवन करना लाभदायक होता है। 

त्वचा को नरम, मुलायम बनाने के लिए भी आप इसे लगा सकते हैं। 

नहाने से 2-3 घंटे पहले इसे लगाना आदर्श रहता है। बादाम तेल की मालिश न सिर्फ बालों के लिए अच्छी होती है, बल्कि मस्तिष्क के विकास में भी फायदेमंद होती है। हफ्ते में एक बार बादाम तेल की मालिश गुणकारी है।

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"झगड़े क़ी जड़ हांसी और बीमारी क़ी जड़ खांसी The root of quarrel is laughter and the root of disease is cough

कहते हैं "झगड़े क़ी जड़ हांसी और बीमारी क़ी जड़ खांसी"। खांसी एक ऐसा लक्षण है, जो एक सामान्य ज्वर से लेकर तपेदिक जैसी बीमारियों में एक लक्षण के रूप में देखा जाता है। यह सूखी और गीली दो प्रकार क़ी हो सकती है। सूखी में रोगी आवाज करता हुआ खांसता है जबकि गीली खांसी में खांसने के साथ कफ निकलता है। कई बार रोगी का खांस-खांस कर इतना बुरा हाल होता है, क़ि खुद के अलावा पड़ोसी क़ी नींद भी दूभर हो जाती है।
कई बार खांसी के रूप में निकलने वाले ड्रॉपलेट्स दूसरों में भी संक्रमण फैला सकते हैं कुछ ऐसे सरल आयुर्वेदिक नुस्खे हैं, जिनसे रोगों क़ी जड़ खांसी को दूर भगाया जा सकता है :-
- शुद्ध घी यदि गाय का हो तो अच्छा को 15-20 ग्राम के मात्रा में लेकर, काली मिर्च के 15-20 नग़ लेकर एक कटोरी में आग पर गर्म करें, जब काली मिर्च कड़कडाने लगे और ऊपर आ जाय तब उतारकर थोड़ा ठंडा कर 20 ग्राम पिसी मिश्री या शक्कर मिला लें ,तक़रीबन आधे मिनट के बाद उतार लें अब थोड़ा गर्म रहने पर ही चीनी या मिश्री के साथ मिलाकर काली मिर्च चबा-चबा कर खा लें, इसके एक घंटे बाद तक कुछ न लें, इस प्रयोग को सोते समय तीन-चार दिन तक लगातार करने से पुरानी से पुरानी खांसी ठीक हो जाती है।
- मिश्री,वंशलोचन, पिप्पली, बड़ीइलाइची, तेजपत्र इन सबको सम मात्रा में शहद या गुनगुने पानी से लेना खांसी को जड़ से मिटाता है।
- वासा क़ी ताज़ी पत्तियों को छोटा-छोटा काटकर इसे निचोड़कर रस निकालकर प्रयोग बलगमयुक्त खांसी के रोगी में अत्यंत लाभकारी है।
- आयुर्वेद में वर्णित सितोपलादि चूर्ण, च्यवनप्राश, वासापुटपक्व स्वरस, तालिशादी चूर्ण आदि कुछ ऐसे नुस्खे हैं जिनका चिकित्सक के निर्देशन में प्रयोग कर रोगी खांसी से राहत पा सकता है। बस इतना ध्यान रखें क़ि खांसी की अनदेखी न हो और समय रहते इसके लिए उपाय किये जांय।
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कार्य क्षमता बढ़ा कर सफल होने, स्फूर्ति वान होने व चर्बी घटा कर तन्दरूस्त होने का यह आजमाया हुआ नुस्खा है।

अपनी कार्य क्षमता बढ़ा कर सफल होने, स्फूर्ति वान होने व चर्बी घटा कर तन्दरूस्त होने का यह आजमाया हुआ नुस्खा है। अनेक लोगों ने इसका प्रयोग कर सफलता पाई है। नुस्खा निम्न प्रकार है:

मिश्रण: 50 ग्राम मेथी$ 20 ग्राम अजवाइन$10 ग्राम काली जीरीबनाने की विधिः- मेथी, अजवाइन तथा काली जीरी को इस मात्रा में खरीद कर साफ कर लें। तत्पश्चात् प्रत्येक वस्तु को धीमी आंच में तवे के उपर हल्का सेकें। सेकने के बाद प्रत्येक को मिक्सर-ग्राइंडर मंे पीसकर पाउडर बनालें। तीनों के पाउडर को मिला कर पारदर्शक डिब्बे में भर लेवें। आपकी अमूल्य दवाई तैयार है।

दवाई लेने की विधिः- तैयार दवाई को रात्रि को खाना खाने के बाद सोते समय 1 चम्मच गर्म पानी के साथ लेवें। याद रखें इसे गर्म पानी के साथ ही लेना है। इस दवाई को रोज लेने से शरीर के किसी भी कोने मंे अनावश्यक चर्बी/ गंदा मैल मल मुत्र के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है, तथा शरीर सुन्दर स्वरूपमान बन जाता है। मरीज को दवाई 30 दिन से 90 दिन तक लेनी होगी।
लाभः- इस दवाई को लेने से न केवल शरीर मंे अनावश्यक चर्बी दूर हो जाती है बल्किः-

•शरीर में रक्त का परिसंचरण तीव्र होता है। ह्नदय रोग से बचाव होता है तथा कोलेस्ट्रोल घटता है।
•पुरानी कब्जी से होेने वाले रोग दूर होते है। पाचन शक्ति बढ़ती है।
•गठिया वादी हमेशा के लिए समाप्त होती है।
•दांत मजबूत बनते है। हडिंया मजबूत होगी।
•आॅख का तेज बढ़ता है कानों से सम्बन्धित रोग व बहरापन दूर होता है।
•शरीर में अनावश्यक कफ नहीं बनता है।
•कार्य क्षमता बढ़ती है, शरीर स्फूर्तिवान बनता है। घोड़े के समान तीव्र चाल बनती है।
•चर्म रोग दूर होते है, शरीर की त्वचा की सलवटें दूर होती है, टमाटर जैसी लालिमा लिये शरीर क्रांति-ओज मय बनता है।
•स्मरण शक्ति बढ़ती है तथा कदम आयु भी बढ़ती है, यौवन चिरकाल तक बना रहता है।
•पहले ली गई एलोपेथिक दवाईयां के साइड इफेक्ट को कम करती है।
•इस दवा को लेने से शुगर (डायबिटिज) नियंत्रित रहती है।
•बालों की वृद्धि तेजी से होती है।
•शरीर सुडौल, रोग मुक्त बनता है।
स्वामी रामदेवजी के योग करने से दवाई का जल्दी लाभ होता है।
परहेजः- 1. इस दवाई को लेने के बाद रात्रि मंे कोई दूसरी खाद्य-सामग्री नहीं खाएं।

2. यदि कोई व्यक्ति धुम्रपान करता है, तम्बाकू-गुटखा खाता या मांसाहार करता है तो उसे यह चीजे छोड़ने पर ही दवा फायदा पहुचाएंगी।

3. शाम का भोजन करने के कम-से-कम दो घण्टे बाद दवाई लें।

(आभारः मानव सेवा केन्द्र, सादड़ी जिला पाली
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विश्व का एकमात्र हिन्दी माता का मंदिर





भारत भर में अपने देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति लोगों का लगाव अलग-अलग रूप में देखने को मिलता है, लेकिन ग्वालियर शहर की पहचान इस मायने में कुछ अलग है। यहां विश्व का एकमात्र हिन्दी माता का मंदिर बना हुआ है, जहां हिन्दी माता की प्रतिमा स्थापित है। 

नेपाल की राजधानी काठमांडू सहित देश के अन्य शहरों में भी ऐसे मंदिर खोलने की तैयारी चल रही है। 

ग्वालियर में अंतरराष्ट्रीय अभिभाषक मंच ने घोसीपुरा स्टेशन के पास सत्यनारायण की टेंकरी गेंडेवाली सड़क पर पांच साल पहले हिंदी माता का मंदिर स्थापित किया।

इस मंदिर के संचालक वरिष्ठ वकील विजय सिंह चौहान ने बताया कि इस मंदिर को बनाने के बाद शहर के कवियों, साहित्यकारों को इस मंदिर से जोड़ा गया, ताकि लोगों में जो मां के प्रति प्रेम होता है, वह इस मंदिर के प्रति भी जागृत हो। 

इस मंदिर के अंदर हाथों में वर्णमाला की पुस्तक लिए पृथ्वी और प्रकृति पर विराजमान मां की मूर्ति स्थापित है। 

मंदिर में दर्शन के लिए रोजाना 100 से अधिक लोग अपने परिवारों के साथ आते हैं।

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आत्मा का विकास ही सच्चा धर्म... सभी बंधनों से मुक्त हैं ईश्वर Development of soul is the true religion... God is free from all bondages.

हम सबके मन में कभी न कभी यह प्रश्न आता होगा कि वास्तव में धर्म क्या है? हमारे जीवन में धर्म धारण करने का क्या उपाय है? क्या किसी मन में दीक्षित हो जाना धार्मिक बनने की पहचान है? आमतौर पर धर्म को मत-मतांतरों से जोड़ दिया गया है। 

असल में धर्म बाहर की वस्तु नहीं यह भीतर का विकास है, उसे समाज में नहीं, व्यक्ति के अंतराल में ढूंढ़ा जाना चाहिए। धर्म व्यक्ति और व्यष्टि के बीच में तादाम्य की फलश्रुति है, जब कि व्यक्ति और समाज के मध्य का संबंध संप्रदाय कहलाता है। धर्म और संप्रदायवाद में उतना ही अंतर है जितना जीवन और मृत्यु। जहां धर्म होगा, वहां सर्वत्र सुगंधि बिखरती रहेगी, जहां संप्रदायवाद होगा, वहां सड़न और दुर्गंध होगी। करुणा उदारता, सेवा सहकारिता, यह तो जीवन की सहचरी और चैतन्यता के लक्षण हैं।

धर्म और संप्रदाय में यदि कोई अंतर है तो उसे उतना ही विशाल होना चाहिए जितना कि आकाश और पाताल क्योंकि धर्म हमें ऊंचाइयों के प्रति श्रद्धावान बनाता है और इस बात की प्रेरणा देता है कि हमारा अंतराल अहंकारपूर्ण नहीं अहंशून्य होना चाहिए। जहां अहमन्यता होगी, विवाद और विग्रह वहीं पैदा होंगे। जहां सरलता होगी वहां सात्विकता पनपेगी। सरल और सात्विक होना दैवी विभूतियां हैं। जो इन्हें जितने अंशों में धारण करता है, उनके बारे में यह कहा जा सकता है कि वे उस अनुपात में धार्मिक हैं। 

इसलिए यह कहना अत्युक्तिपूर्ण न होगा कि धर्म हमें देवत्व की ओर ले चलता है, जबकि संप्रदाय अधोगामी भी बनाता है। कट्टरवाद, उग्रवाद यह सभी संप्रदायवाद की देन है। सांप्रादायिक होने का मतलब है कूपमंडूक होना, केवल अपने वर्ग एवं समूह की ही चिंता करना। इसके अतिरिक्त धर्म अधिक उदार बनाता तथा आत्मविस्तार का उपदेश देता है। 'आत्मवत सर्वभुतेषु एवं वसुधैव कुटुम्कबम' यह इसी की शिक्षा है।

संप्रदाय असहिष्णु होता है। वह उन्माद और आतंक फैलाता है। जाति, भाषा, लिंग, क्षेत्र आदि के आधार पर विभेद करना यह संप्रदाय का काम है। धर्म तो ईश्वर की तरह समदष्टा है वह कहता है कि हम सब को परमात्मा की रक्षा करनी चाहिए। हम इसी ऊहापोह में फंसे रहते हैं कि कहीं कोई शूद्र मंदिर के ईश विग्रह को अपवित्र न कर दे, किसी तनखैये को गुरुद्वारे में क्या काम, कोई काफिर मस्जिद में न घुसे। 

हमारे मनीषियों का कहना है, ' धर्म एवं हतो हन्ति रक्षति रक्षतः' अर्थात्‌ मरा हुआ धर्म मार डालता है, रक्षा किया हुआ धर्म रक्षा करता है। आज की सामाजिक परिस्थिति के इस सत्य के प्रमाण रूप में देखा जा सकता है। धर्म को खतरा अधर्म से नहीं, नकली धर्म से होता है। अधर्म तो प्रत्यक्ष है, इसमें दुराव- छुपाव जैसी कोई बात तो होती नहीं, खतरनाक वे है जो धर्म की आड़ लेकर काम करते हैं, क्योंकि वहां असली आवरण में नकली व्यक्ति होता है। 

हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवताओं की मान्यता है देवताओं की संख्या तैंतीस कोटि बताई जाती है। देवताओं की इतनी बड़ी संख्या एक सत्य शोधक को बड़ी उलझन में डाल देती है। इन देवताओं में अनेक की तो ईश्वर से समता मानी जाने लगी है इस प्रकार 'बहुईश्वरवाद' उपज खड़ा होता है। 

संसार के प्रायः सभी प्रमुख धर्म एक ईश्वरवाद को मानते हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों में भी अनेक अभिवचन एक ईश्वर होने के समर्थन में भरे पड़े हैं। फिर यह अनेक ईश्वर कैसे? ईश्वर की ईश्वरता में साझेदारी का होना कुछ बुद्धिसंगत प्रतीत नहीं होता। अनेक देवताओं का अपनी-अपनी मर्जी से मनुष्यों पर शासन करना, शाप-वरदान देना आदि ईश्वर जगत की अराजकता है।

एक शास्त्र वचन है-
उत्तमो ब्रह्म, सद्भावो ध्यानभावस्तु मध्यमः
सतुर्तिजपोऽधमो भावो बहिः पूजाऽधमाधमा।

अर्थात्‌ बाह्यपूजा या मूर्ति पूजा सब से नीचे की अवस्था है। आगे बढ़ने, ऊंचा उठने का प्रयास करते समय मानसिक प्रार्थना साधना की दूसरी अवस्था है। सबसे उच्च अवस्था वह है जब परमेश्वर का साक्षात्कार हो जाए। 

वेद भी कहते हैं न 'तस्य प्रतिमा अस्ति' अर्थात्‌ ईश्वर तेरी कोई प्रतिमा नहीं है। अध्यात्म विज्ञान में महान वैज्ञानिक महर्षि पतंजलि ईश्वर को बड़ा स्पष्ट रीति से परिभाषित करते हैं। यह परिभाषा साधनों के लिए आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य भी है, क्योंकि यह ऐसा शब्द है, ऐसा सत्य है जिसके बारे में ज्यादातर लोग भ्रमित हैं। 

शास्त्र पुराण धर्म, महजब सबने मिलकर ईश्वर की अनेक धारणाएं गढ़ी हैं कोई तो उसे सातवें आसमान में खोजता है तो कोई मंदिरों पूजाग्रहों में योगेश्वर पतंजलि ने सभी तरह का सत्यनिराकरण किया है। वे कहते हैं कि पहले तो ईश्वर को किसी व्यक्तित्व में न बांधो। वह सभी बंधनों से मुक्त हैं।

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आयुर्वेदिक नुस्खे स्त्री एवं पुरुषों में नपुंसकता

निसंतान होना हमारे समाज में आज भी अभिशाप माना जाता रहा है। नपुंसकता के कारण निःसंतान होना भी एक सामान्य कारण होता है। कुछ एलोपैथिक दवाएं भी नपुंसकता उत्पन्न कर संतान उत्पन्न करने में व्याधा उत्पन्न कर सकती हैं।

इनमें उच्चरक्तचाप की औषधियां एवं मधुमेह जैसे रोग शामिल हैं। कई बार नपुंसकता का कारण शारीरिक न होकर मानसिक होता है, ऐसे में केवल चिकित्सकीय काऊंसीलिंग ही काफी होती है। ऐसे ही कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे स्त्री एवं पुरुषों में नपुंसकताजन्य निःसंतानता के साथ ही शुक्राणुजन्य समस्याओं को दूर करने में कारगर सिद्ध होती हैं, जो निम्न हैं :

- श्वेत कंटकारी के पंचांग को सुखाकर पाउडर बना लें तथा स्त्री में मासिक धर्म के ५ वें दिन से लगातार तीन दिन प्रातः एक बार दूध से दें एवं पुरुष को : अश्वगंधा 10 ग्राम, शतावरी 10 ग्राम, विधारा 10 ग्राम, तालमखाना 5 ग्राम, तालमिश्री 5 ग्राम सब मिलकर 2 चम्मच दूध के साथ प्रातः सायं लेने पर निश्चित लाभ होता है। - स्त्री में "फलघृत" नामक आयुर्वेदिक औषधि भी इनफरटीलीटी को दूर करता है। - पलाश के पेड़ की एक लम्बी जड़ में लगभग 250 एम.एल. की एक शीशी लगाकर, इसे जमीन में दबा दें, एक सप्ताह बाद इसे निकाल लें, अब इसमें इकठ्ठा होने वाला निर्यास द्रव प्रातः पुरुष को एक चम्मच शहद से दें। यह शुक्रानुजनित कमजोरी (ओलिगोस्पर्मीया) को दूर करने में मददगार होता है। - अश्वगंधा 1.5 ग्राम. शतावरी 1.5 ग्राम, सफ़ेद मुसली 1.5 ग्राम एवं कौंच बीज चूर्ण को 75 मिलीग्राम की मात्रा में गाय के दूध से सेवन करने से भी नपुंसकता दूर होकर कामशक्ति बढ़ जाती है। - शिलाजीत का 250 मिलीग्राम से 500 मिलीग्राम की मात्रा में दूध के साथ नियमित सेवन भी मधुमेह आदि के कारण आयी नपुंसकता को दूर करता है। अतः नपुंसकता को दूर करने के लिए उचित चिकित्सकीय परामर्श एवं समय पर कुछ आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग कर इस बीमारी से निजात पाया जा सकता है।
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हमारे दशनाम इस परकार है

(1)-वन, (2)-अरण्य, (3)-गिरि, (4)-सागर, (5)-पर्वत, (6)-तीर्थ, (7)-आश्रम, (8)-पुरि, (9)-भारती, (10)-सरस्वती


हमारे समाज की 52 मढी है जो इस परकार है-


गिरि,पर्वत,सागर की 27 मढी है,,,,, ओर पुरियो की 16 मढी है,...,,,, -ओर गुरू शंकरा चार्य सन्यासी वन की 4 मढी हैI -ओर भारतीयो की 4 मढी है --ओर लामा गुरू की 1 मढी है-----------जिनका विवरण इस परकार है======


{गिरि,पर्वत,सागर की 27 मढी इस परकार है --


1-रामदत़ी, 2-ओंकार लाल नाथी, 3-चन्दनाथी बोदला, 4-व्रहा नाथी, 5-दुर्गा नाथी, 6-व्रहा नाथी, 7-सेज नाथी, 8-जग जीवन नाथी, 9-पाटम्बर नाथी, 10-ज्ञान नाथी- -11-अघोर नाथी, 12-भाव नाथी, 13-ऋदि नाथी, 14-सागर नाथी, 15-चाँद नाथ बोदला, 16-कुसुम नाथी, 17-अपार नाथी, 18-रत्न नाथी, 19-नागेन्द्र नाथी, 20-रूद्र नाथी 21-महेश नाथी, 22-अजरज नाथी, 23-मेघ नाथी, 24-पर्वत नाथी, 25-मान नाथी, 26-पारस नाथी, 27-दरिया नाथी 


 पुरियो की 16 मढी इस परकार है------------- 1-वैकुण्ठ पुरि, 2-केशव पुरि मुलतानी, 3-गंगा पुरि दरिया पुरि, 4-ञिलोक पुरि, 5-वन मेघनाथ पुरि, 6-सेज पुरि, 7-भगवन्त पुरि, 8-पू्रण पुरि 9-भण्डारी हनुमत पुरि, 10-जड भरत पुरि, 11-लदेर दरिया पुरि, 12-संग दरिया पुरि, 13-सोम दरिया पुरि 14-नील कण्ठ पुरि, 15-तामक भियापुरि, 16-मुयापुरिनिरंजनी-



 गुरू शंकरा चार्य सन्यासी वन की 4 मढी इस परकार है---- -1-गंगासनी वन, 2-सिंहासनी वन, 3-वाल वन कुण्डली श्री वन, 4-होड सारी वन-अत्म वन, 


 भारती की 4 मढी इस परकार है----- -1-मन मुकुन्द भारती , 2-नृसिंह भारती, 3-पदम नाथ भारती , 4-बाल किषन भारती ,--


लामा गुरू की 1 मढी इस परकार है--------पाहरी की छाप लामा गुरु की मढी चीन में है॥ 


कृपया इस विवरण को समाज के व्यक्तियो तक पहुचाऎ ताकि सभी हमारे समाज के बारे में जान सके॥


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पूजन के वक्त सावधानियां---

(1)कुछ ऎसी गूढ़ बातें हैं जो देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के वक्त ध्यान जरूर दी जानी चाहिए।
घर या व्यावसायिक स्थल में पूजा का स्थान हमेशा ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) दिशा में ही होना चाहिए।

(2)पूजा हमेशा आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही करनी चाहिए। दीपक अवश्य जलाएं।

(3)दो शिवलिंग की पूजा एक साथ नहीं करनी चाहिए, लेकिन नर्बदेश्वर, पारदेश्वर शिवलिंग और सालिगराम घर में शुभ होते हैं।

(4)धर्म शास्त्रों के अनुसार तुलसी पत्र ऎसे दिन नहीं तोड़ने चाहिए, जिस दिन सूर्य संक्रांति हो, पूर्णिमा, द्वादशी, अमावस्या तिथि हो, रविवार का दिन हो, व्यतिपात, वैधृति योग हो। रात्रि और संध्याकाल में भी इन्हें नहीं तोड़ना चाहिए।

(5)भगवान गणपति के दूब चढ़ानी चाहिए, जिससे भगवान गणपति प्रसन्न होते हैं। जबकि देवी के दूब चढ़ाना निषेध बताया गया है।

(6)घी का दीपक हमेशा देवताओं के दक्षिण में
तथा तेल का दीपक बाई तरफ रखना चाहिए।

(7)इसी प्रकार धूपबत्ती बाएं और नैवेद्य (भोग)
सन्मुख रखना चाहिए।

(8)दो सालिगराम जी, दो शंख और दो सूर्य भी पूजा में एक साथ नहीं रखें। सालिगराम बिना प्राण प्रतिष्ठा के भी पूजा योग्य है।

(9)तीन गणेश व तीन दुर्गा की भी घर में एक साथ रखकर पूजा नहीं करनी चाहिए। ऎसा करने पर जातक दोष का भागी बनता है।

(10)देवताओं को खंडित फल अर्पण नहीं करने चाहिए। जैसे- आधा केला, आधा सेब आदि।(

(11)पूजा के पश्चात देसी घी से प्रज्वलित दीपक से आरती अवश्य करनी चाहिए। यदि दीपक किसी कारणवश उपलब्ध नहीं हो, तो केवल जल आरती भी की जा सकती है। आरती करने से पूजा में संपूर्णता आ जाती है।

(12)देवताओं पर चढ़े हुए जल और पंचामृत को निर्माल्य कहा जाता है, जिसे पैरों से स्पर्श नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे बहुत बड़ा पाप लगता है। इसे किसी पेड़ में या बहते हुए जल में विसर्जित कर देना चाहिए।
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संयम विहीन जीवन बेकार

संयम ही जीवन का श्रृंगार है। मनुष्य संयम धारण कर सकता है, इसलिए समस्त जीवों में वह श्रेष्ठ है। जिसके जीवन में संयम नहीं, उसका जीवन बिना ब्रेक की गाड़ी जैसा है। उक्त उद्‍गार परम पूज्य 108 आचार्यश्री विशुद्घसागरजी महाराज ने पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के अंतर्गत उत्तम संयम धर्म आराधना के अवसर पर व्यक्त किए।

संयम बिना प्राणी अधूरा : जीवन रूपी नदी के लिए संयम धर्म का पालन करना जरूरी है। संयम को हम बंधन कह सकते हैं। लेकिन यह बंधन सांसारिक प्राणी के लिए दुखदाई नहीं वरन्‌ दुखों से छुटकारा दिलाने वाला है। नदी बहती है पर तटों का होना जरूरी है।

यदि नदी बिना तटों के बहती है तो वह अपने लक्ष्य से भटककर सागर तक नहीं पहुँचती और सूख जाती। इसी प्रकार संयमी जीवन ही अपने अनंत सुखों को प्राप्त कर सकता है। संयम को धारण करने का हमें पूर्ण अधिकार मिला है लेकिन सांसारिक प्राणी पंचेन्द्रिय विषय के वशीभूत होकर इससे दूर भागते हैं। जिससे वह जीवन रूपी गाड़ी में सफल नहीं हो पाते।

प्राणी और इन्द्रीय संयम के भेद से यह दो प्रकार का है। प्राणियों की रक्षा करना प्राणी संयम है। जबकि पंचेन्द्रिय विषयों से विरक्ति और मन की आकांक्षाओं पर नियंत्रण इन्द्रीय संयम है। इसीलिए सांसारिक प्राणी को संयम का पालन करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि जो इंद्रिय पर

विजय प्राप्त कर लेता है, वह निर्वाण प्राप्त कर सकता है।

उन्होंने कहा कि संयम के दिन को बंधन का दिन भी कह सकते हैं। पर यह वंदन दुखदायी नहीं, दुःखों से छुटकारा पाने के लिए बंधन अभिनंदन के रूप में है। जीवन में नियंत्रण जरूरी है, अश्व को लगाम, हाथी को अंकुश, ऊँट को नुकील और वाहन के लिए ब्रेक जरूरी है। ब्रेक है तो सुरक्षा नहीं तो दुर्घटना होना पक्का है।
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नारी शक्ति की सुरक्षा के लिये

 1. एक नारी को तब क्या करना चाहिये जब वह देर रात में किसी उँची इमारत की लिफ़्ट में किसी अजनबी के साथ स्वयं को अकेला पाये ?  जब आप लिफ़्ट में...