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विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
सांवरे सलोने का दीदार चाहिए
मानवता और राष्ट्रीयता के अनुकूल व्यवहार ही इंसान का प्रमुख धर्म है।
जय श्री राम
तेरा दर्श पाने को जी चाहता है
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तेरा दर्श पाने को जी चाहता है।
तेरा दर्श पाने को जी चाहता है।
खुदी को मिटाने का जी चाहता है॥
पिला दो मुझे मस्ती के प्याले।
मस्ती में आने को जी चाहता है॥
उठे श्याम तेरे मोहोब्बत का दरिया।
मेरा डूब जाने को जी चाहता है॥
यह दुनिया है एक नज़र का धोखा।
इसे ठुकराने को जी चाहता है॥
श्री कृष्ण गोविन्द, हरे मुरारी, हे
नाथ, नारायण, वासुदेव.
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मानवता और राष्ट्रीयता के अनुकूल व्यवहार ही इंसान का प्रमुख धर्म है।
जय श्री राम
जय कारा वीर बजरंगी....
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♥ ॐ श्री गणेशाय नमः
♥ ॐ श्री गणेशाय नमः
♥ जय कारा वीर बजरंगी......हर हर महादेव ♥
रामु मातु पितु बंधु सुजन गुरु पूज्य परमहित साहेबु
सखा सहाय नेह नाते , पुनीत चितदेसु , कोसु ,
कुलु , कर्म , धर्म , धनु , धामु , धरनि ,गति
जाति पाति सब भाँति लागि रामहि हमारि पति
परमारथु , स्वारथु , सुजसु , सुलभ राम तें सकल फल
कह तुलसीदासु अब जब - कबहूँ एक रामते मोर भल !!
बोलो सियावर राम चन्द्र महाराज की जय !
बोलो पवन पुत्र हनुमान की जय
उमापति महादेव की जय !
संकलनकर्ता.......शंकर डंग.....
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मानवता और राष्ट्रीयता के अनुकूल व्यवहार ही इंसान का प्रमुख धर्म है।
जय श्री राम
राधा का नाम जपने से श्रीकृष्ण जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं।
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शास्त्रों के अनुसार राधा का नाम जपने से श्रीकृष्ण जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के बाद किसी भी व्यक्ति के लिए सुख-समृद्धि के सभी द्वार खुल जाते हैं। श्रीकृष्ण और राधा अपने अटूट निस्वार्थ प्रेम के कारण ही सच्चे प्रेम के प्रतीक माने गए हैं। राधा नाम की महिमा के संबंध में एक प्रसंग है। देवर्षि नारद राधा की महिमा और ख्याति देखकर उससे ईष्र्या करने लगे थे। इसी ईष्र्या वश वे श्रीकृष्ण से राधा को दिए गए महत्व को जानने के लिए उनके पास पहुंचे। जब वे श्रीकृष्ण के पास पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने नारदजी से कहा कि मेरे सिर में दर्द है। तब देवर्षि ने कहा प्रभु आप बताएं मैं क्या कर सकता हूं? जिससे आपका सिर दर्द शांत हो। श्रीकृष्ण ने कहा आप मेरे किसी भक्त का चरणामृत लाकर मुझे पिला दें। उसी चरणामृत से मुझे शांति मिलेगी। नारदजी से सोच में पड़ गए कि भगवन् का भक्त तो मैं भी हूं, परंतु मेरे चरणों का जल श्रीकृष्ण को कैसे पिला सकता हूं? ऐसा करना तो घोर पाप है और इससे निश्चित ही मुझे नरक भोगना पड़ेगा। यह सोचते हुए वे देवी रुकमणी के पास पहुंचे और श्रीकृष्ण की वेदना कह सुनाई। रुकमणी ने भी देवर्षि नारद की बात का समर्थन किया और कहा कि प्रभु को अपने चरणों का जल पिलाना अवश्य की घोर पाप है। तब नारदजी ने सोचा राधा भी श्रीकृष्ण की भक्त है उसी से प्रभु का कष्ट दूर करने की बात करनी चाहिए। वे राधा के पास पहुंच गए और श्रीकृष्ण के सिर दर्द और उसके निवारण के लिए उनके भक्त के चरणामृत की बात कही। राधा ने तुरंत ही एक पात्र में जल भरा और उसमें अपने पैर डालकर वह पात्र नारदजी देते हुए कहा कि मैं जानती हूं ऐसा जल श्रीकृष्ण को पिलाना बहुत बड़ा पाप है और मुझे अवश्य ही नरक भोगना पड़ेगा परंतु मेरे प्रियतम के कष्ट को दूर करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं, नरक भी भोगना पड़ेगा तब भी मुझे खुशी ही प्राप्त होगी। यह सुनकर देवर्षि नारद की आंखे खुल गई कि देवी राधा परम पूजनीय है। वे प्रभु श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त हैं। इसी वजह से भगवन् श्रीकृष्ण राधे-राधे के जप से तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। अब नारदजी भी राधे-राधे का जप करने लगे।
शास्त्रों के अनुसार राधा का नाम जपने से श्रीकृष्ण जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के बाद किसी भी व्यक्ति के लिए सुख-समृद्धि के सभी द्वार खुल जाते हैं। श्रीकृष्ण और राधा अपने अटूट निस्वार्थ प्रेम के कारण ही सच्चे प्रेम के प्रतीक माने गए हैं। राधा नाम की महिमा के संबंध में एक प्रसंग है। देवर्षि नारद राधा की महिमा और ख्याति देखकर उससे ईष्र्या करने लगे थे। इसी ईष्र्या वश वे श्रीकृष्ण से राधा को दिए गए महत्व को जानने के लिए उनके पास पहुंचे। जब वे श्रीकृष्ण के पास पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने नारदजी से कहा कि मेरे सिर में दर्द है। तब देवर्षि ने कहा प्रभु आप बताएं मैं क्या कर सकता हूं? जिससे आपका सिर दर्द शांत हो। श्रीकृष्ण ने कहा आप मेरे किसी भक्त का चरणामृत लाकर मुझे पिला दें। उसी चरणामृत से मुझे शांति मिलेगी। नारदजी से सोच में पड़ गए कि भगवन् का भक्त तो मैं भी हूं, परंतु मेरे चरणों का जल श्रीकृष्ण को कैसे पिला सकता हूं? ऐसा करना तो घोर पाप है और इससे निश्चित ही मुझे नरक भोगना पड़ेगा। यह सोचते हुए वे देवी रुकमणी के पास पहुंचे और श्रीकृष्ण की वेदना कह सुनाई। रुकमणी ने भी देवर्षि नारद की बात का समर्थन किया और कहा कि प्रभु को अपने चरणों का जल पिलाना अवश्य की घोर पाप है। तब नारदजी ने सोचा राधा भी श्रीकृष्ण की भक्त है उसी से प्रभु का कष्ट दूर करने की बात करनी चाहिए। वे राधा के पास पहुंच गए और श्रीकृष्ण के सिर दर्द और उसके निवारण के लिए उनके भक्त के चरणामृत की बात कही। राधा ने तुरंत ही एक पात्र में जल भरा और उसमें अपने पैर डालकर वह पात्र नारदजी देते हुए कहा कि मैं जानती हूं ऐसा जल श्रीकृष्ण को पिलाना बहुत बड़ा पाप है और मुझे अवश्य ही नरक भोगना पड़ेगा परंतु मेरे प्रियतम के कष्ट को दूर करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं, नरक भी भोगना पड़ेगा तब भी मुझे खुशी ही प्राप्त होगी। यह सुनकर देवर्षि नारद की आंखे खुल गई कि देवी राधा परम पूजनीय है। वे प्रभु श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त हैं। इसी वजह से भगवन् श्रीकृष्ण राधे-राधे के जप से तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। अब नारदजी भी राधे-राधे का जप करने लगे।
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मानवता और राष्ट्रीयता के अनुकूल व्यवहार ही इंसान का प्रमुख धर्म है।
जय श्री राम
राम प्रभूजी
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हे राम प्रभूजी दयाभवन ।
तुमसा है जग में और कवन ।।
सुखसागर नागर जलजनयन ।
गुन आगर करुना क्षमा अयन ।।
...
सुखदायक लायक विपतिसमन ।
भवतारन हारन जरा-मरन ।।
संकोचसिन्धु धुर धर्म धरन ।
शारंग धर टाँरन भार अवन ।।
जग पालन कारन सियारमन ।
देवों को दायक तुम्ही अमन ।।
मन लाजे तुमको देखि मदन ।
शोभा की सीमा शील सदन ।।
विश्वाश्रय रघुवर विश्व भरन ।
तुमको प्रभु वारंवार नमन ।।
तुम बिनु प्रभु क्या यह मानुष तन ।
बन जाओ मेरे जीवनधन ।।
दुःख दारिद दावन दोष दमन ।
तुमको ही ध्याये मेरा मन ।।
प्रभुजी अवगुन अघ ओघ हरन ।
हो चित चकोर विधु आप वदन ।।
नहि मालुम मुझको एक जतन ।
तुम बिनु को हारे दुख दोष तपन ।।
कहते हैं स्वामी तव गुनगन ।
सरनागत राखन प्रभु का पन ।।
मेरा उर हो प्रभु आप सदन ।
गहि बाँह रखो मोहि जानिके जन ।।
विनती प्रभुजी तारन-तरन ।
मन का भी मेरे हो नियमन ।।
हे रामप्रभू मेरे भगवन ।
मै चाह रहा तेरी चितवन ।।
करुनासागर संतोष सरन ।
है ठौर इसे बस आप चरन ।।
तुमसा है जग में और कवन ।।
सुखसागर नागर जलजनयन ।
गुन आगर करुना क्षमा अयन ।।
...
सुखदायक लायक विपतिसमन ।
भवतारन हारन जरा-मरन ।।
संकोचसिन्धु धुर धर्म धरन ।
शारंग धर टाँरन भार अवन ।।
जग पालन कारन सियारमन ।
देवों को दायक तुम्ही अमन ।।
मन लाजे तुमको देखि मदन ।
शोभा की सीमा शील सदन ।।
विश्वाश्रय रघुवर विश्व भरन ।
तुमको प्रभु वारंवार नमन ।।
तुम बिनु प्रभु क्या यह मानुष तन ।
बन जाओ मेरे जीवनधन ।।
दुःख दारिद दावन दोष दमन ।
तुमको ही ध्याये मेरा मन ।।
प्रभुजी अवगुन अघ ओघ हरन ।
हो चित चकोर विधु आप वदन ।।
नहि मालुम मुझको एक जतन ।
तुम बिनु को हारे दुख दोष तपन ।।
कहते हैं स्वामी तव गुनगन ।
सरनागत राखन प्रभु का पन ।।
मेरा उर हो प्रभु आप सदन ।
गहि बाँह रखो मोहि जानिके जन ।।
विनती प्रभुजी तारन-तरन ।
मन का भी मेरे हो नियमन ।।
हे रामप्रभू मेरे भगवन ।
मै चाह रहा तेरी चितवन ।।
करुनासागर संतोष सरन ।
है ठौर इसे बस आप चरन ।।
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मानवता और राष्ट्रीयता के अनुकूल व्यवहार ही इंसान का प्रमुख धर्म है।
जय श्री राम
Hey Shiv Shankar
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Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,
Bhav Sagar Se Par Utaro,aaye Sharan Tihari,
Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,
Chandra Lalat Bhabut Ramaye,gatgambar Hari,
Karn Mein Damru Gale Bhujanga, Nandi Khado Dware,
Hey Ganga Dhar Daras Dikha Do, Hey Bhole Bhandari,
Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,
Bhav Sagar Se Par Utaro,aaye Sharan Tihari
Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,
Janam Maran Ke Tum Ho Swami, Hey Shankar Abhilashi,
Kan Kan Mein Hai Rup Tumhara, Hey Bhole Kailashi,
Charan Sharan Mein Aaya Jo Bhi, Rakhyo Laaj Hamari
Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,
Bhav Sagar Se Par Utaro,aaye Sharan Tihari
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Chandra Lalat Bhabut Ramaye,gatgambar Hari,
Karn Mein Damru Gale Bhujanga, Nandi Khado Dware,
Hey Ganga Dhar Daras Dikha Do, Hey Bhole Bhandari,
Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,
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Janam Maran Ke Tum Ho Swami, Hey Shankar Abhilashi,
Kan Kan Mein Hai Rup Tumhara, Hey Bhole Kailashi,
Charan Sharan Mein Aaya Jo Bhi, Rakhyo Laaj Hamari
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मानवता और राष्ट्रीयता के अनुकूल व्यवहार ही इंसान का प्रमुख धर्म है।
जय श्री राम
शीश गंग अर्धग पार्वती सदा विराजत कैलासी।
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Om Namah Shivay -
शीश गंग अर्धग पार्वती सदा विराजत कैलासी।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुखरासी॥
शीतल मन्द सुगन्ध पवन बह बैठे हैं शिव अविनाशी।
करत गान-गन्धर्व सप्त स्वर राग रागिनी मधुरासी॥
यक्ष-रक्ष-भैरव जहँ डोलत, बोलत हैं वनके वासी।
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत हैं गुंजा-सी॥
कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु लाग रहे हैं लक्षासी।
कामधेनु कोटिन जहँ डोलत करत दुग्ध की वर्षा-सी॥
सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्त सम हिमराशी।
नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित सेवत सदा प्रकृति दासी॥
ऋषि मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी।
ब्रह्मा, विष्णु निहारत निसिदिन कछु शिव हमकू फरमासी॥
ऋद्धि सिद्ध के दाता शंकर नित सत् चित् आनन्दराशी।
जिनके सुमिरत ही कट जाती कठिन काल यमकी फांसी॥
त्रिशूलधरजी का नाम निरन्तर प्रेम सहित जो नरगासी।
दूर होय विपदा उस नर की जन्म-जन्म शिवपद पासी॥
कैलाशी काशी के वासी अविनाशी मेरी सुध लीजो।
सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान कृपा कीजो॥
तुम तो प्रभुजी सदा दयामय अवगुण मेरे सब ढकियो।
सब अपराध क्षमाकर शंकर किंकर की विनती सुनियो॥
शीश गंग अर्धग पार्वती सदा विराजत कैलासी।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुखरासी॥
शीतल मन्द सुगन्ध पवन बह बैठे हैं शिव अविनाशी।
करत गान-गन्धर्व सप्त स्वर राग रागिनी मधुरासी॥
यक्ष-रक्ष-भैरव जहँ डोलत, बोलत हैं वनके वासी।
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत हैं गुंजा-सी॥
कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु लाग रहे हैं लक्षासी।
कामधेनु कोटिन जहँ डोलत करत दुग्ध की वर्षा-सी॥
सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्त सम हिमराशी।
नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित सेवत सदा प्रकृति दासी॥
ऋषि मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी।
ब्रह्मा, विष्णु निहारत निसिदिन कछु शिव हमकू फरमासी॥
ऋद्धि सिद्ध के दाता शंकर नित सत् चित् आनन्दराशी।
जिनके सुमिरत ही कट जाती कठिन काल यमकी फांसी॥
त्रिशूलधरजी का नाम निरन्तर प्रेम सहित जो नरगासी।
दूर होय विपदा उस नर की जन्म-जन्म शिवपद पासी॥
कैलाशी काशी के वासी अविनाशी मेरी सुध लीजो।
सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान कृपा कीजो॥
तुम तो प्रभुजी सदा दयामय अवगुण मेरे सब ढकियो।
सब अपराध क्षमाकर शंकर किंकर की विनती सुनियो॥
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मानवता और राष्ट्रीयता के अनुकूल व्यवहार ही इंसान का प्रमुख धर्म है।
जय श्री राम
श्री शनि चालीसा Shri Shani Chalisa
श्री शनि चालीसा -
जय गनेश गिरिजा सुवन. मंगल करण कृपाल.
दीनन के दुःख दूर करि. कीजै नाथ निहाल.
जय जय श्री शनिदेव प्रभु. सुनहु विनय महाराज.
करहु कृपा हे रवि तनय. राखहु जन की लाज.
जयति जयति शनिदेव दयाला. करत सदा भक्तन प्रतिपाला.
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै. माथे रतन मुकुट छवि छाजै.
परम विशाल मनोहर भाला. टेढ़ी दृश्टि भृकुटि विकराला.
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके. हिये माल मुक्तन मणि दमके.
कर में गदा त्रिशूल कूठारा. पल बिच करैं अरिहिं संसारा.
पिंगल, कृश्णों, छाया, नन्दन. यम कोणस्थ, रौद्र, दुःखभंजन.
सौरी, मन्द, शनि, दशनामा. भानु पुत्र पूजहिं सब कामा.
जापर प्रभु प्रसन्न हो जाहीं. रंकहुं राव करै क्षण माहीं.
पर्वतहु तृण होई निहारत. तृणहु को पर्वत करि डारत.
राज मिलत बन रामहिं दीन्हा. कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हा.
बनहूँ में मृग कपट दिखाई. मातु जानकी गई चुराई.
लक्षमन विकल शक्ति के मारे. रामा दल चनंतित बहे सारे
रावण की मति गई बौराई. रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई.
दियो छारि करि कंचन लंका. बाजो बजरंग वीर की डंका.
नृप विकृम पर दशा जो आई. चित्र मयूर हार सो ठाई.
हार नौलख की लाग्यो चोरी. हाथ पैर डरवायो तोरी.
अतिनिन्दा मय बिता जीवन. तेलिहि सेवा लायो निरपटन.
विनय राग दीपक महँ कीन्हो. तव प्रसन्न प्रभु सुख दीन्हो.
हरिश्चन्द्र नृप नारी बिकाई. राजा भरे डोम घर पानी.
वक्र दृश्टि जब नल पर आई. भूंजी- मीन जल बैठी दाई.
श्री शंकर के गृह जब जाई. जग जननि को भसम कराई.
तनिक विलोकत करि कुछ रीसा. नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा.
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी. अपमानित भई द्रौपदी नारी.
कौरव कुल की गति मति हारि. युद्ध महाभारत भयो भारी.
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला. कुदि परयो ससा पाताला.
शेश देव तब विनती किन्ही. मुख बाहर रवि को कर दीन्ही.
वाहन प्रभु के सात सुजाना. जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना.
कौरव कुल की गति मति हारि. युद्ध महाभारत भयो भारी.
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला. कुदि परयो ससा पाताला.
शेश देव तब विनती किन्ही. मुख बाहर रवि को कर दीन्ही.
वाहन प्रभु के सात सुजाना. जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना.
जम्बुक सिंह आदि नख धारी सो फ़ल जयोतिश कहत पुकारी.
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवै.हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं.
गदर्भ हानि करै बहु काजा. सिंह सिद्ध कर राज समाजा.
जम्बुक बुद्धि नश्ट कर डारै . मृग दे कश्ट प्राण संहारै.
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी. चोरी आदि होय डर भारी.
तैसहि चारि चरण यह नामा. स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा.
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं. धन जन सम्पति नश्ट करावै.
समता ताम्र रजत शुभकारी. स्वर्ण सदा सुख मंगल कारी.
जो यह शनि चरित्र नित गावै. दशा निकृश्ट न कबहुं सतावै.
नाथ दिखावै अदभुत लीला. निबल करे जय है बल शिला.
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई. विधिवत शनि ग्रह शांति कराई.
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत. दीप दान दै बहु सुख पावत.
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा. शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा.
दोहा
पाठ शनिचर देव को, कीन्हों विमल तैयार.
करत पाठ चालीसा दिन, हो दुख सागर पार
जय गनेश गिरिजा सुवन. मंगल करण कृपाल.
दीनन के दुःख दूर करि. कीजै नाथ निहाल.
जय जय श्री शनिदेव प्रभु. सुनहु विनय महाराज.
करहु कृपा हे रवि तनय. राखहु जन की लाज.
जयति जयति शनिदेव दयाला. करत सदा भक्तन प्रतिपाला.
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै. माथे रतन मुकुट छवि छाजै.
परम विशाल मनोहर भाला. टेढ़ी दृश्टि भृकुटि विकराला.
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके. हिये माल मुक्तन मणि दमके.
कर में गदा त्रिशूल कूठारा. पल बिच करैं अरिहिं संसारा.
पिंगल, कृश्णों, छाया, नन्दन. यम कोणस्थ, रौद्र, दुःखभंजन.
सौरी, मन्द, शनि, दशनामा. भानु पुत्र पूजहिं सब कामा.
जापर प्रभु प्रसन्न हो जाहीं. रंकहुं राव करै क्षण माहीं.
पर्वतहु तृण होई निहारत. तृणहु को पर्वत करि डारत.
राज मिलत बन रामहिं दीन्हा. कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हा.
बनहूँ में मृग कपट दिखाई. मातु जानकी गई चुराई.
लक्षमन विकल शक्ति के मारे. रामा दल चनंतित बहे सारे
रावण की मति गई बौराई. रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई.
दियो छारि करि कंचन लंका. बाजो बजरंग वीर की डंका.
नृप विकृम पर दशा जो आई. चित्र मयूर हार सो ठाई.
हार नौलख की लाग्यो चोरी. हाथ पैर डरवायो तोरी.
अतिनिन्दा मय बिता जीवन. तेलिहि सेवा लायो निरपटन.
विनय राग दीपक महँ कीन्हो. तव प्रसन्न प्रभु सुख दीन्हो.
हरिश्चन्द्र नृप नारी बिकाई. राजा भरे डोम घर पानी.
वक्र दृश्टि जब नल पर आई. भूंजी- मीन जल बैठी दाई.
श्री शंकर के गृह जब जाई. जग जननि को भसम कराई.
तनिक विलोकत करि कुछ रीसा. नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा.
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी. अपमानित भई द्रौपदी नारी.
कौरव कुल की गति मति हारि. युद्ध महाभारत भयो भारी.
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला. कुदि परयो ससा पाताला.
शेश देव तब विनती किन्ही. मुख बाहर रवि को कर दीन्ही.
वाहन प्रभु के सात सुजाना. जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना.
कौरव कुल की गति मति हारि. युद्ध महाभारत भयो भारी.
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला. कुदि परयो ससा पाताला.
शेश देव तब विनती किन्ही. मुख बाहर रवि को कर दीन्ही.
वाहन प्रभु के सात सुजाना. जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना.
जम्बुक सिंह आदि नख धारी सो फ़ल जयोतिश कहत पुकारी.
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवै.हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं.
गदर्भ हानि करै बहु काजा. सिंह सिद्ध कर राज समाजा.
जम्बुक बुद्धि नश्ट कर डारै . मृग दे कश्ट प्राण संहारै.
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी. चोरी आदि होय डर भारी.
तैसहि चारि चरण यह नामा. स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा.
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं. धन जन सम्पति नश्ट करावै.
समता ताम्र रजत शुभकारी. स्वर्ण सदा सुख मंगल कारी.
जो यह शनि चरित्र नित गावै. दशा निकृश्ट न कबहुं सतावै.
नाथ दिखावै अदभुत लीला. निबल करे जय है बल शिला.
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई. विधिवत शनि ग्रह शांति कराई.
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत. दीप दान दै बहु सुख पावत.
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा. शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा.
दोहा
पाठ शनिचर देव को, कीन्हों विमल तैयार.
करत पाठ चालीसा दिन, हो दुख सागर पार
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मानवता और राष्ट्रीयता के अनुकूल व्यवहार ही इंसान का प्रमुख धर्म है।
जय श्री राम
भगवान् मैं आपको भूलू नही
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मनुष्य का जन्म सिर्फ ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हुआ है। लगातार प्रार्थना करिए-- हे भगवान, हे भगवान क्या आप दर्शन नहीं देंगे? मैं आपके लिए व्याकुल हूं। लगातार प्रार्थना से उनका दिल पिघल जाता है।
ईश्वर हमसे प्रेम करता ही है। हमारे पैदा होने पर माता की देह में दूध पैदा कर देता है। हम वह पीकर बड़े होते हैं और बड़ा- बड़ा ग्यान बघारते हैं। फिर अंत में हमारी सांस खत्म हो जाती है और हमारा शरीर मुर्दा हो जाता है। तब हमारी सारी हेकड़ी कहां चली जाती है? ईश्वर हमें प्रेम करता है मां- बाप के रूप में, पत्नी के रूप में, प्रेमिका के रूप में, मित्र के रूप में, एक रोगी को सहानुभूति और दवा के रूप में। भूखे के पास वह भोजन के रूप में आता है। करने वाला वही है। हम नाहक घमंड कर बैठते हैं कि हमने यह किया, वह किया।
थोड़ी थोड़ी देर मैं ये कहते रहे की - " हे! मेरे नाथ ..हे ! मेरे भगवान् मैं आपको भूलू नही
ईश्वर हमसे प्रेम करता ही है। हमारे पैदा होने पर माता की देह में दूध पैदा कर देता है। हम वह पीकर बड़े होते हैं और बड़ा- बड़ा ग्यान बघारते हैं। फिर अंत में हमारी सांस खत्म हो जाती है और हमारा शरीर मुर्दा हो जाता है। तब हमारी सारी हेकड़ी कहां चली जाती है? ईश्वर हमें प्रेम करता है मां- बाप के रूप में, पत्नी के रूप में, प्रेमिका के रूप में, मित्र के रूप में, एक रोगी को सहानुभूति और दवा के रूप में। भूखे के पास वह भोजन के रूप में आता है। करने वाला वही है। हम नाहक घमंड कर बैठते हैं कि हमने यह किया, वह किया।
थोड़ी थोड़ी देर मैं ये कहते रहे की - " हे! मेरे नाथ ..हे ! मेरे भगवान् मैं आपको भूलू नही
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