राम प्रभूजी

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हे राम प्रभूजी दयाभवन ।
तुमसा है जग में और कवन ।।

सुखसागर नागर जलजनयन ।
गुन आगर करुना क्षमा अयन ।।
...
सुखदायक लायक विपतिसमन ।
भवतारन हारन जरा-मरन ।।

संकोचसिन्धु धुर धर्म धरन ।
शारंग धर टाँरन भार अवन ।।

जग पालन कारन सियारमन ।
देवों को दायक तुम्ही अमन ।।

मन लाजे तुमको देखि मदन ।
शोभा की सीमा शील सदन ।।

विश्वाश्रय रघुवर विश्व भरन ।
तुमको प्रभु वारंवार नमन ।।

तुम बिनु प्रभु क्या यह मानुष तन ।
बन जाओ मेरे जीवनधन ।।

दुःख दारिद दावन दोष दमन ।
तुमको ही ध्याये मेरा मन ।।

प्रभुजी अवगुन अघ ओघ हरन ।
हो चित चकोर विधु आप वदन ।।


नहि मालुम मुझको एक जतन ।
तुम बिनु को हारे दुख दोष तपन ।।

कहते हैं स्वामी तव गुनगन ।
सरनागत राखन प्रभु का पन ।।

मेरा उर हो प्रभु आप सदन ।
गहि बाँह रखो मोहि जानिके जन ।।

विनती प्रभुजी तारन-तरन ।
मन का भी मेरे हो नियमन ।।

हे रामप्रभू मेरे भगवन ।
मै चाह रहा तेरी चितवन ।।

करुनासागर संतोष सरन ।
है ठौर इसे बस आप चरन ।।
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