विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
www.goswamirishta.com "The spiritual path is rugged, thorny, and precipitous. The thorns must be weeded out with patience and perseverance. Some of the thorns are internal; some are external. Lust, greed, wrath, delusion, vanity, etc., are the internal thorns. Company with the evil-minded persons is the worst of all the external thorns. Therefore, shun ruthlessly evil company." swami sivananda
This is the one truth about God: He is infinite love, immeasurable love, boundless love, that does not know barriers of time and space swami chidananda.
Chant the Maha Mantra Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare BE HAPPY
भगवान श्रीकृष्ण ‘लीलाधर’ पुकारे जाते हैं। श्रीकृष्ण ने हर लीला के जरिए अधर्म को सहन करने की आदत से सभी के दबे व सोए आत्मविश्वास और पराक्रम को जगाया। भगवान होकर भी श्रीकृष्ण का सांसारिक जीव के रूप में लीलाएं करने के पीछे मकसद उन आदर्शों को स्थापित करना ही था, जिनको साधारण इंसान देख, समझ व अपनाकर खुद की शक्तियों को पहचाने और ज़िंदगी को सही दिशा व सोच के साथ सफल बनाए। इसी कड़ी में श्रीकृष्ण का सांसारिक धर्म का पालन कर, गुरुकुल जाना, वहां अद्भुत 64 कलाओं व विद्याओं को सीखने के पीछे भी असल में, गुरुसेवा व ज्ञान की अहमियत दुनिया के सामने उजागर करने की ही एक लीला थी। यह इस बात से भी जाहिर होता है कि साक्षात जगतपालक के अवतार होने से श्रीकृष्ण स्वयं ही सारे गुण, ज्ञान व शक्तियों के स्त्रोत थे। इस बात को भागवतपुराण में कुछ इस तरह उजागर भी किया गया है – प्रभवौ सर्वविद्यानां सर्वज्ञौ जगदीश्वरौ। नान्यसिद्धामलज्ञानं गूहमानौ नरेहितैः।। यानी श्रीकृष्ण और बलराम ही जगत के स्वामी हैं। सारी विद्याएं व ज्ञान उनसे ही निकला है और स्वयंसिद्ध है। फिर भी उन दोनों ने मनुष्य की तरह बने रहकर उन्हें छुपाए रखा।
दरअसल, किताबी ज्ञान से कोई भी व्यक्ति भरपूर पैसा और मान-सम्मान तो बटोर सकता है, किंतु मन की शांति भी मिल जाए, यह जरूरी नहीं। शांति के लिए अहम है – सेवा। क्योंकि खुद की कोशिशों से बटोरा ज्ञान अहंकार पैदा कर सकता है व अधूरापन भी। किंतु सेवा से, वह भी गुरु सेवा से पाया ज्ञान इन दोषों से बचाने के साथ संपूर्ण, विनम्र व यशस्वी बना देता है। श्रीकृष्ण व बलराम ने भी अंवतीपुर (आज के दौर का उज्जैन) नगरी में गुरु सांदीपनी से केवल 64 दिनों में ही गुरु सेवा व कृपा से ऐसी 64 कलाओं में दक्षता हासिल की, जो न केवल कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में बड़े-बड़े सूरमाओं को पस्त करने का जरिया बनी, बल्कि गुरु से मिले इन कलाओं और ज्ञान के अक्षय व नवीन रहने का आशार्वाद श्रीमद्भगवद्गगीता के रूप में आज भी जगतगुरु श्रीकृष्ण के साक्षात ज्ञानस्वरूप के दर्शन कराता है और हर युग में जीने की कला भी उजागर करने वाला विलक्षण धर्मग्रंथ है। गुरु सांदीपनि ने श्रीकृष्ण व बलराम को सारे वेद, उनका गूढ़ रहस्य बताने वाले शास्त्र, उपनिषद, मंत्र व देवाताओं से जुड़ा ज्ञान, धनुर्वेद, मनुस्मृति सहित सारे धर्मशास्त्रों, तर्क विद्या या न्यायशास्त्र का ज्ञान दिया। संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैध व आश्रय जैसे 6 रहस्यों वाली राजनीति भी सिखाई। यही नहीं, दोनों भाइयों ने केवल गुरु के 1 बार बोलनेभर से ही 64 दिन-रात में 64 अद्भुत कलाओं को भी सीख लिया।
1- नृत्य – नाचना 2- वाद्य- तरह-तरह के बाजे बजाना 3- गानविद्या – गायकी। 4- नाट्य – तरह-तरह के हाव-भाव व अभिनय 5- इंद्रजाल-जादूगरी 6- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना 7- सुगंधित चीजें- इत्र, तैल आदि बनाना 8- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना 9- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या 10- बच्चों के खेल 11- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या 12- मन्त्रविद्या 13- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना 14- रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना 15- नाना प्रकार के मातृकायन्त्र बनाना 16- सांकेतिक भाषा बनाना 17- जल को बांध देना। 18- बेल-बूटे बनाना 19- चावल और फूलों से पूजा के उपहार की रचना करना। ( देव पूजन या अन्य शुभ मौकों पर कई रंगों से रंगे चावल, जौ आदि चीजों और फूलों को तरह-तरह से सजाना ) 20- फूलों की सेज बनाना 21- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना – इस कला के जरिए तोता-मैना की तरह बोलना या उनको बोल सिखाए जाते हैं। 22- वृक्षों की चिकित्सा 23- भेड़, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति 24- उच्चाटन की विधि 25- घर आदि बनाने की कारीगरी 26- गलीचे, दरी आदि बनाना 27- बढ़ई की कारीगरी 28- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना यानी आसन, कुर्सी, पलंग आदि को बेंत आदि चीजों से बनाना। 29- तरह-तरह खाने की चीजें बनाना यानी कई तरह सब्जी, रस, मीठे पकवान, कड़ी आदि बनाने की कला। 30- हाथ की फुर्ती कें काम 31- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना 32- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना 33- द्यू्त क्रीड़ा 34- समस्त छन्दों का ज्ञान 35- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या 36- दूर के मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण 37- कपड़े और गहने बनाना 38- हार-माला आदि बनाना 39- विचित्र सिद्धियां दिखलाना यानी ऐसे मंत्रों का प्रयोग या फिर जड़ी-बुटियों को मिलाकर ऐसी चीजें या औषधि बनाना जिससे शत्रु कमजोर हो या नुकसान उठाए। 40-कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना – स्त्रियों की चोटी पर सजाने के लिए गहनों का रूप देकर फूलों को गूंथना। 41- कठपुतली बनाना, नाचना 42- प्रतिमा आदि बनाना 43- पहली 44- सूई का काम यानी कपड़ों की सिलाई, रफू, कसीदाकारी व मोजे, बनियान या कच्छे बुनना। 45 - बालों की सफाई का कौशल 46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना 47- कई देशों की भाषा का ज्ञान 48 - म्लेच्छ-काव्यों का समझ लेना – ऐसे संकेतों को लिखने व समझने की कला जो उसे जाननेवाला ही समझ सके। 49 - सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा 50 - सोना-चांदी आदि बना लेना 51 - मणियों के रंग को पहचानना 52- खानों की पहचान 53- चित्रकारी 54- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना 55- शय्या-रचना 56- मणियों की फर्श बनाना यानी घर के फर्श के कुछ हिस्से में मोती, रत्नों से जड़ना। 57- कूटनीति 58- ग्रंथों के पढ़ाने की चातुरी 59- नयी-नयी बातें निकालना 60- समस्यापूर्ति करना 61- समस्त कोशों का ज्ञान 62- मन में कटक रचना करना यानी किसी श्लोक आदि में छूटे पद या चरण को मन से पूरा करना। 63-छल से काम निकालना 64- कानों के पत्तों की रचना करना यानी शंख, हाथीदांत सहित कई तरह के कान के गहने तैयार करना।
www.goswamirishta.com रेलवे ने बदला नियम, अब 2 महीना पहले तक का ही रिजर्वेशन
अब आप 4 महीना पहले ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं करा पाएंगे। रेलवे ने अडवांस रिजर्वेशन के लिए नया नियम बना दिया है। नए नियम के मुताबिक अब 2 महीना पहले ही रिजर्वेशन हो सकेगा। नया नियम 1 मई से लागू होगा। रेलवे ने रेल टिकट के रिजर्वेशन में बढ़ती कालाबाजारी को रोकने के लिए कड़ा कदम उठाया है। गुरुवार को इस मामले में एक अहम फैसला लिया गया। अब इस फैसले के तहत यात्रा की तारीख से अधिकतम 60 दिन (2 महीने) पहले रेल टिकट का रिजर्वेशन करवाया जा सकेगा। अभी 4 महीने पहले रिजर्वेशन करवाने की सुविधा है।
वह गुफा, जहां हनुमान का जन्म हुआ था। इतिहास के मिथकीय साक्ष्य भी इतिहास के तथ्यों को समझने में सहायक रहे हैं। इन्हीं में से एक हनमानजी के जन्मस्थल से भी जुड़ी कहानी है। नवसारी (गुजरात) स्थित डांग जिला रामायण काल में दंडकारण्य प्रदेश के रूप में पहचाना जाता था। डांग जिले के आदिवासियों की हमेशा से यह मान्यता रही है कि भगवान राम वनवास के दौरान पंचवटी की ओर जाते समय डांग प्रदेश से गुजरे थे। डांग जिले के सुबिर के पास भगवान राम और लक्ष्मण को शबरी माता ने बेर खिलाए थे। आज यह स्थल शबरी धाम नाम से जाना जाता है। शबरी धाम से लगभग 7 किमी की दूरी पर पूर्णा नदी पर स्थित पंपा सरोवर है। यहीं मातंग ऋषि का आश्रम था। डांग जिले के आदिवासियों की सबसे प्रबल मान्यता यह भी है कि डांग जिले के अंजनी पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमानजी का भी जन्म हुआ था। कहा जाता है कि अंजनी माता ने अंजनी पर्वत पर ही कठोर तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न यानी हनुमान जी की प्राप्ति हुई थी। माता अंजनी ने अंजनी गुफा में ही हनुमानजी को जन्म दिया था ।यही है वह स्थान, परंपरागत मान्यता के अनुसार हनुमान जी ने जन्म लिया था। डांग जिले का हरेक व्यक्ति हनुमानजी का भक्त है। अंजनी पर्वत की तलहटी में ही अंजनकुंड गांव बसा हुआ है। इसके अलावा अंजनी पर्वत के बारे में यह भी कहा जाता है कि वनवास के दौरान राम भगवान पंचवटी की ओर जाने के लिए यहां से दानवों का संहार कर ऋषि-मुनियों का उद्धार करने के लिए ही गुजरे थे। अंजनी पर्वत आज भी अनेक प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियों और जड़ी-बूटियों से भरा पड़ा है। यहां रहने वाले अनेक लोग अपने आपको शबरी माता का वंशज भी मानते हैं। (फोटो व विवरण- साभार दैनिक भाष्कर )
अदालत ने भी सरकार से पूछा- 18 साल से कम उम्र वालों को सोशल नेटवर्किंग साइट्स व जीमेल अकाउंट खोलने की अनुमति कैसे दी ?
मैं निजी काम से घर के पास एक साइबर कैफे में बैठा अपना काम कर रहा था तभी देखा कि तीन-चार लड़के -लड़कियों का समूह कैफे में घुसा। मैंने सोचा शायद कुछ डाक्यूमेंट जीराक्स कराने आए हैं क्यों कि उस कैफे में जीराक्स के अलावा रेल टिकट आरक्षण , फोटो स्कैन, लैमिनेशन वगैरह सभी कुछ होता है। मगर मेरा अनुमान गलत निकला। बच्चे संभवतः आठवीं - नवीं कक्षा के थे। आते ही बड़ी बेफिक्री से दो कंप्यूटर परबैठ गए। फेसबुक अकाउंट में लागिन किया। और अपनी ई-मित्र मंडली से कनेक्ट हो गए। किसी के फोटो पर कमेंट तो किसी के कमेंट पर कमेंट करते रहे। साथ के बच्चों के सुझाव से भी कुछ कमेंट करते रहे। इन सभी की स्कूल की छुट्टी हुई थी और वे घर जाने से पहले कैफे चले आए थे। यह उन बच्चों की सोशल नेटवर्किंग से जुड़ने की कथा हैजिन्हें कंप्यूटर के लिए कैफे में जाना पड़ता है। इनसे ईतर वे बच्चे भी हैं जो अपने घरों में ही कंप्यूटर पर या मोबाइल पर अधिकतर समय फेसबुक पर गुजारते हैं। सोशलनेटवर्किंग की यह सुविधा एक मायने में ठीक भी है कि बच्चे देश-दुनिया के अपने हमउम्र से जुड़कर अपने विचारों का आदान-प्रदान कर लेते हैं मगर इसका दूसरा पहलू यह है कि वे अपना अधिकतर समय सोशलनेटवर्किंग पर बिताने के आदी हो जाते हैं। जो इनके विकास में निश्चित रूप से बाधा पहुंचाती है। हालांकि अपेक्षाकृत बड़ी उम्र के यानी किशोर बच्चे से लेकर ऊंची कक्षा की पढ़ाई कर रहे बच्चों से भी मां-बाप को यही शिकायत हो सकती है। मगर स्नातक स्तर के बच्चे अपना बला-बुरा समझने की क्षमता रखते हैं। निहायत कम उम्र के बच्चों की शायद इतनी समझ नहीं होती कि वे खुद को अनुशासित रख सकें। शायद इसी कारण से एक जनहित याचिका दायर करके कम उम्र के बच्चों के सोशलनेटवर्किंग अकाउंट खोलने पर सवाल खड़ा कर दिया गया है। और अदालत ने भी सरकार से पूछा है कि 18 साल से कम उम्र वालों को फेसबुक सहित सोशल नेटवर्किंग साइट्स व जीमेल वगैरह पर पर अकाउंट खोलने की अनुमति कैसे दी गई? जबकि भारतीय कानून इसकी इजाजत नहीं देते। एक साइबर कानून विशेषज्ञ के अनुसार- अगर कोई नबालिग इन सोशलनेटवर्किंग साइट में अकाउंट खोलता है तो न सिर्फ इस साइट को चलाने वाले बल्कि संबंधित बच्चों के माता-पिता भी कानून तोड़ने के लिए आपराधिक करार दिए जाएंगे । भारतीय वयस्कता कानून, भारतीय संविदा अधिनियम और सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा ४६५ में ऐसे लोग अपराधी करार दिए जाएंगे और इसके लिए उन्हें दो साल तक की सजा हो सकती है। दरअसल सोशल मीडिया साइट फेसबुक की लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। यही कारण है की बच्चे भी फेसबुक के जाल में बुक होते जा रहे है। दुनिया के किसी भी कोने में अपने दोस्त बनाना और उनसे बाते करने का ऑपशन बच्चों को इसकी ओर खींचता है। कोर्ट ने भाजपा के पूर्व नेता गोविंदाचार्य की याचिका पर फेसबुक और गूगल को नोटिस भेजकर जवाब मांगे हैं। आइए देखते हैं कि जनहित याचिका में क्या मेंग की गई है.-------
भाजपा नेता गोविंदाचार्य की जनहित याचिका------
भारत में 18 साल से कम आयु के बच्चों को नाबालिग माना जारहा हैऔर फेसबुक पर अकाउंट खोलते वक्त एक एग्रीमेंट साइन करना होता है, ऐसे में अगर बच्चा नाबालिग है तो भारतीय कानून के मुताबिक किसी भी तरह के एग्रीमेंट का अधिकार प्राप्त नहीं है। ये भारतीय वयस्कता कानून, भारतीय संविदा अधिनियम और सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम के खिलाफ है। कोर्ट ने अमेरिका की दो कंपनियों फेसबुक और गूगल से भी बीजेपी के पूर्व नेता के एन गोविंदाचार्य की याचिका पर जवाब देने को कहा जिसमें उन्होंने भारत में अपनी वेबसाइटों के संचालन से इन कंपनियों को हो रही आय पर कर वसूले जाने का आदेश दिए जाने की मांग की है।
जस्टिस बीडी अहमद व विभू बाखरू की बेंच ने सरकार के वकील सुमित पुष्करणा से 10 दिन में हलफनामा पेश करने को कहा। मामले की अगली सुनवाई 13 मई को होगी। पीठ ने कहा, कैसे 18 साल से कम उम्र के बच्चों का फेसबुक समेत सोशल नेटवर्किंग साइटों के साथ अनुबंध हो सकता है! याचिका में कहा गया है कि पहचान का कोई तरीका न होने के कारण दुनियाभर में फेसबुक के आठ करोड़ यूजर्स फर्जी हैं। खुद फेसबुक इस बात को अमेरिकी अधिकारियों के सामने मान चुकी है। भारत सरकार इस मामले में कोई कदम नहीं उठा रही है।
राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संरक्षक गोविंदाचार्य ने जनहित याचिका में केंद्र और दो वेबसाइटों को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया है कि वे आरबीआई के दिशा-निर्देशों का पालन करे। उनके मुताबिक फेसबुक का पिछले साल तकरीबन 37 अरब डॉलर का व्यापार किया था, लेकिन कंपनी ने भारत सरकार को एक रुपए तक का कर नहीं दिया। इस याचिका में 5 करोड़ भारतीय उपयोगकर्ताओं के आंकड़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट ने मांग की है कि-
-पांच करोड़ भारतीय यूजर्स की जानकारी की सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित की जाए। -इस जानकारी का अमेरिका में व्यावसायिक उपयोग रुकवाया जाए। -भविष्य में सभी यूजर्स की पहचान सुनिश्चित करवाई जाए।
दांपत्य बंधन में बंधने के बाद एक समय ऐसा भी आता है जब बात-बात पर पति-पत्नी में झगड़े शुरू हो जाते हैं। व्यक्ति अपने जीवनसाथी से व्यर्थ के झगड़ों में उलझ, अपना जीवन भी तनावमय बना लेता है। शादी के बाद आप अपने जीवन साथी के साथ सुकुन का जीवन व्यतीत कर सकें, अपने जीवनसाथी के सुख-दुख में अपना साथ दे सकें इसके लिए जरूरी है कि आप कुछ बातों का ध्यान रखें। आइए जानें दांपत्य के झगड़ों से बचने के लिए क्या करें।
पति-पत्नी 24 घंटे साथ रहते हैं और उनका रिश्ता बहुत ही नाजुक होता है। ऐसे में तमाम मुद्दों पर असहमति और मतभेद होने की गुजाइंश रहती है। हालांकि दोनों को ही छोटी-छोटी बात पर मतभेद करने से बचना चाहिए। यदि आपके साथी का स्वभाव तेज है तो आपको अपने साथी को समझते हुए नरमी से पेश आना चाहिए। हर बात पर तर्क-वितर्क और बहस न करें। कभी-कभी बातें सुनना भी अच्छात रहता है। यदि पति-पत्नी के बीच एक को बहुत ज्यादा बोलने की आदत है, तो दूसरे को चुपचाप सुन लेना चाहिए। झगड़ा होने के बावजूद लंबे समय तक बातचीत बंद न करें। लगातार संवाद करते रहें। पुरानी बातों को लेकर बहस न करें और अतीत को लेकर झगड़ा न करें। कभी भी तीसरे व्यक्ति के लिए आपस में न झगड़े या फिर किसी के बहकावे में आकर बिना कारण जानें झगड़ा न करें। यदि आपस में झगड़ा है भी तो बाहर के किसी तीसरे व्यक्ति के साथ शेयर न करें। झगड़े के दौरान एक-दूसरे के परिवार को बीच में न लाएं, इससे झगड़ा अधिक बढ़ने की संभावना रहती है। एक-दूसरे की कमजोरी का मजाक न उड़ाए और न ही झगड़े में ऐसी बातों को तूल दें। जितनी जल्दी हो सकें झगड़े को खत्म करें या फिर झगड़े का कारण ढूंढ उसका समाधान करें। आपकी गलती है, तो भी आप माफी मांगने की पहल करें इससे आपके साथी को अच्छा लगेगा और आपके बीच पैदा हुई गलतफहमियां भी दूर होंगी। एक-दूसरे पर गलत आरोप लगाने से बचें। साथ ही सार्वजनिक तौर पर बिल्कुल न झगड़े।
इन टिप्स को अपनाकर आप झगड़े से आराम से बच सकते हैं साथ ही अपने साथी को अपने करीब ला सकती हैं।
इस छोटी सी कथा में एक बहुत बड़ा सन्देश है। गीता एक छोटी सी पुस्तक नही बल्कि एक अंतर्राष्ट्रीय ग्रन्थ है। यह सभी धर्मों से उपर उठकर मानवता को एक विशेष सन्देश देती है।
ब्रिटेन के वैज्ञानिक डॉ. हाल्डेन ने सन् 1922 ई. में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शरीर के अंदर होने वाली रासायनिक क्रियाओं पर अनुसंधान कर पूरे संसार में ख्याति प्राप्त की। इस अनुसंधान के बाद उन्होंने सोचा कि अब धर्म और आध्यात्मिक रहस्यों का अध्ययन किया जाए।
उन्होंने अनेक हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन कर डाला। फिर वह गीता पढ़ने लगे। जैसे-जैसे वह गीता का एकाग्रता से मनन करते गए वैसे-वैसे उनका मोह भौतिक वस्तुओं से हटता गया और उन्हें अहसास हो गया कि भौतिकवादी साधनों से कभी भी मानव को सच्ची शांति व सुख प्राप्त नहीं हो सकता।
सन् 1951 में वह अपनी पत्नी के साथ भारत आए। यहां घूमते हुए वह भुवनेश्वर पहुंचे। वहां अनेक धर्म प्रचारक भी मौजूद थे। अचानक ब्रिटेन के एक धर्म प्रचारक ने उनसे पूछा, 'आप एक अंग्रेज होते हुए भी गीता को सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ क्यों मानते हैं? क्या आपकी नजरों में गीता से बेहतर और कोई ग्रंथ नहीं है?'
ब्रिटेन के धर्म प्रचारक की बात सुनकर डॉ हाल्डेन बोले, 'गीता निरंतर निष्काम कर्म करते रहने की प्रेरणा देकर आलसी लोगों को भी कर्म से जोड़ती है। वह भक्ति और कर्म दोनों को एक-दूसरे का पूरक बताती है। वह किसी संप्रदाय या धर्म का नहीं मानव मात्र के कल्याण का संदेश देती है। इसलिए मुझे गीता ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया है। मैं वैज्ञानिक होकर भी इसे अपने काम के लिए उपयोगी मानता हूं। दूसरे पेशे के लोगों के लिए भी यह उपयोगी है।'
ब्रिटेन के धर्म प्रचारक डॉ. हाल्डेन की यह बात सुनकर चुप हो गए।
Repeat कर रहे हैं क्योंकि बहुत महत्त्वपूर्ण शब्द हैं। 'गीता निरंतर निष्काम कर्म करते रहने की प्रेरणा देकर आलसी लोगों को भी कर्म से जोड़ती है। वह भक्ति और कर्म दोनों को एक-दूसरे का पूरक बताती है। वह किसी संप्रदाय या धर्म का नहीं मानव मात्र के कल्याण का संदेश देती है। इसलिए मुझे गीता ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया है। मैं वैज्ञानिक होकर भी इसे अपने काम के लिए उपयोगी मानता हूं। दूसरे पेशे के लोगों के लिए भी यह उपयोगी है।'
सुबह उठने के पश्चात ( यदि संभव हो तो सूर्योदय के पहले उठें ) और बिछावन त्यागने से पूर्व एवं भूमिमें चरण स्पर्श हो उससे पूर्व इन प्रार्थनाओं को अपनी दिनचर्या का भाग बनाएँ ! सर्व प्रथम अपने दोनों हाथों को अपने नेत्र के समक्ष रखकर यह प्रार्थना करना चाहिए ! कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वति | करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् || अर्थ : हाथके अग्रभाग में लक्ष्मी का वास है । हस्तके मध्य में सरस्वती का वास है, और हस्तके मूल में गोविंद भगवान का वास है | अतः सुबह सुबह प्रथम अपने हस्त का दर्शन करना चाहिये | तत्पश्चात भूमि को हाथ से स्पर्श कर भूमि प्रार्थना इस प्रकार करें | समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले । विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥ हे पृथ्वी माँ आप विष्णु पत्नी हैं, समुद्र आपके वस्त्र हैं और पर्वत आपके वक्षस्थल हैं, मैं आपको वंदन करता हूँ और चलते समय मेरे चरणों के स्पर्श आपको होंगे कृपया मेरी इस धृष्टता को क्षमा करें ! Try to do these two prayers after getting up in the morning (preferably before sunrise ) . First open your palm and mediate on it by saying the first verse and then and before letting the feet touch the ground , recite the second verse in the form of prayer to Mother earth by touching the ground with your hand .
Meaning : Goddess Lakshmii dwells at the beginning of the hand. In the center of the palm resides Sarasvati, the Goddess of wisdom. At the base of the palm is Govinda, the Lord of the universe. Hence, one should look and meditate on the hand early in the morning immediately after rising.
Meaning: (O Mother Earth) The Devi Who is having Ocean as Her Garments and Mountains as Her Bosom, Who is the Consort of Sri Vishnu, I Bow to You; Please Forgive Us for Touching You with Our Feet.
जिंदगी में सभी के अपने कायदे या सिद्धांत होते हैं। हर व्यक्ति का जीवन जीने का अपना तरीका है। जो बात किसी के लिये उसका कर्तव्य और धर्म है वह किसी के लिये घोर पाप या नीच कृत्य हो सकता है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार जिन कर्मों को पाप माना गया है उसकी सजा उसे अपनी मृत्यु के बाद मिलती है। किस पाप की क्या सजा मिलती है। इसका वर्णन गरूड़ पुराण में कुछ इस प्रकार दिया हुआ है। गरुड़ जी बोले- भगवान जीवों को उनके कौन से पाप कौन सी सजा मिलती है। वे किन अगला जन्म किस रूप में लेते हैं व भी बताइए।
भगवान कहते हैं गरूड़ ध्यान से सुनो-
- ब्रह्महत्या करने वाला क्षयरोगी।
- गाय की हत्या करने वाले कुबड़ा।
- कन्या की हत्या करने वाला कोढ़ी।
- स्त्री पर हाथ उठाने वाला रोगी।
- परस्त्री गमन करने वाला नपुंसक।
- गुरुपत्नी सेवन से खराब शरीर वाला।
- मांस खाने व मदिरा पीने वाले के दांत काले व अंग लाल होते हैं।
- दूसरे को न देकर अकेले मिठाई खाने वाले को गले का रोगी।
- घमंड से गुरु का अपमान करने वाले को मिरगी।
- झूठी गवाही देने वाला गूंगा।
- किताब चोरी करने वाला जन्मांध।
- झूठ बोलने वाला बहरा।
- जहर देने वाला पागल होता है।
- अन्न चोरी करने वाला चूहा।
- इत्र की चोरी करने वाले छछुंदर।
- जहर पीकर मरन वाले काले सांप।
- किसी की आज्ञा नहीं मानते वे निर्जन वन में हाथी होते हैं।
- ब्राह्मण गायत्री जप नहीं करते वे अगले जन्म में बगुला होते हैं।
- पति को बुरा-भला कहने वाली जूं बनती है।
- परपुरूष की कामना रखने वाली स्त्री चमगादड़ बनती है।
- मृतक के ग्यारहवे में भोजन करने वाला कुत्ता बनता है।
स्त्री को अपनी मुक्ति के लिए अपने व्यक्तित्व को खड़ा करने की दिशा में सोचना चाहिए। प्रयोग करने चाहिए। लेकिन ज्यादा से ज्यादा वह क्लब बना लेती है, जहां ताश खेल लेती है, कपड़ों की बात कर लेती है, फिल्मों की बात कर लेती है, चाय-कॉफी पी लेती है, पिकनिक कर लेती है और समझती है कि बहुत है, शिक्षित होना पूरा हो गया। ताश खेल लेती होगी। पुरुषों की नकल में दो पैसे जुए के दांव पर लगा लेती होगी बाकी इससे उसको कुछ व्यक्तित्व नहीं मिलने वाला है।
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स्त्री को भी सृजन के मार्गों पर जाना पड़ेगा। उसे भी निर्माण की दिशाएं खोजनी पड़ेंगी। जीवन को ज्यादा सुंदर और सुखद बनाने के लिए उसे भी अनुदान करना पड़ेगा; तभी स्त्री का मान, स्त्री का सम्मान, उसकी प्रतिष्ठा है। वह समकक्ष आ सकती है।
स्त्री को एक और तरह की 'शिक्षा' चाहिए, जो उसे संगीतपूर्ण व्यक्तित्व दे, जो उसे नृत्यपूर्ण व्यक्तित्व दे, जो उसे प्रतीक्षा की अनंत क्षमता दे, जो उसे मौन की, चुप होने की, अनाक्रामक होने की, प्रेमी की और करुणा की गहरी शिक्षा दे। यह शिक्षा अनिवार्य रूपेण 'ध्यान' है।
स्त्री को पहले दफा यह सोचना है क्या स्त्री भी एक नई संस्कृति को जन्म देने के आधार रख सकती है? कोई संस्कृति जहां युद्ध और हिंसा नहीं। कोई संस्कृति जहां प्रेम, सहानुभूति और दया हो। कोई संस्कृति जो विजय के लिए आतुर न हो- जीने के लिए आतुर हो। जीने की आतुरता हो। जीवन को जीने की कला और जीवन को शान्ति से जीने की आस्था और निष्ठा पर खड़ी हो- यह संस्कृति- स्त्री जन्म दे सकती है- स्त्री जरूर जन्म दे सकती है।
आज तक चाहे युद्ध में कोई कितना ही मरा हो, स्त्री का मन निरंतर-प्राण उसके दुख से भरे रहे। उसका भाई मरता है, उसका बेटा मरता है, उसका बाप मरता है, पति मरता है, प्रेमी मरता है। स्त्री का कोई न कोई युद्ध में जा के मरता है।
अगर सारी दुनिया की स्त्रियां एक बार तय कर लें- युद्ध नहीं होगा; दुनिया पर कोई राजनैतिक युद्ध में कभी किसी को नही घसीट सकता। सिर्फ स्त्रियां तय कर लें; युद्ध अभी नहीं होगा- तो नहीं हो सकता। क्योंकि कौन जाएगा युद्ध पर? कोई बेटा जाता है, कोई पति जाता है, कोई बाप जाता है। स्त्रियां एक बार तय कर लें।
लेकिन स्त्रियां पागल हैं। युद्ध होता है तो टीका करती हैं कि जाओ युद्ध पर। पाकिस्तानी मां, पाकिस्तानी बेटे के माथे पर टीका करती है कि जाओ युद्ध पर। हिन्दुस्तानी मां, हिन्दुस्तानी बेटे के माथे पर टीका करती है कि जाओ बेटे; युद्ध पर जाओ।
पता चलता है कि स्त्री को कुछ पता नहीं कि यह क्या हो रहा है। वह पुरुष के पूरे जाल में सिर्फ एक खिलौना बन हर जगह एक खिलौना बन जाती है। चाहे पाकिस्तानी बेटा मरता हो, चाहे हिन्दुस्तानी; किसी मां का बेटा मरता है। यह स्त्री को समझना होगा। रूस का पति मरता हो चाहे अमेरिका का। स्त्री को समझना होगा, उसका पति मरता है। अगर सारी दुनिया की स्ित्रयों को एक ख्याल पैदा हो जाए कि आज हमें अपने पति को, बेटे को, अपने बाप को युद्ध पर नहीं भेजना है, तो फिर पुरुष की लाख कोशिश पर राजनैतिकों की हर कोशिशें व्यर्थ हो सकती हैं, युद्ध नहीं हो सकता है।
यह स्त्री की इतनी बड़ी शक्ति है, वह उसके ऊपर सोचती है कभी? उसने कभी कोई आवाज नहीं की। उसने कभी कोई फिक्र नहीं की। उस आदमी ने- पुरुष ने- जो रेखाएं खींची हैं राष्ट्रों की, उनको वह मान लेती है। प्रेम कोई रेखाएं नहीं मान सकता। हिंसा रेखाएं मानती है, क्योंकि जहां प्रेम है, वहां सीमा नहीं होती। सारी दुनिया की स्ित्रयों को एक तो बुनियादी यह खयाल जाग जाना चाहिए कि हम एक नई संस्कृति को, एक नए समाज को, एक नई सभ्यता को जन्म दे सकती हैं। जो पुरुष का आधार है उसके ठीक विपरीत आधार रखकर...
यह स्त्री कर सकती है। और स्त्री सजग हो, कॉन्शियस हो, जागे तो कोई भी कठिनाई नहीं। एक क्रांति- बड़ी से बड़ी क्रांति दुनिया में स्त्री को लानी है। वह यह 'एक प्रेम पर आधारित' देने वाली संस्कृति, जो मांगती नहीं, इकट्ठा नहीं करती, देती है, ऐसी एक संस्कृति, निर्मित करनी है। ऐसी संस्कृति के निर्माण के लिए जो भी किया जा सके वह सब। उस सबसे बड़ा धर्म स्त्री के सामने आज कोई और नहीं। यह पुरुष के संसार को बदल देना है आमूल।
शायद पुरानी पीढ़ी नहीं कर सकेगी। नई पीढ़ी की लड़कियां कुछ अगर हिम्मत जुटाएंगी और फिर पुरुष होने की नकल और बेवकूफी में नहीं पड़ेंगी तो यह क्रांति निश्चित हो सकती है।