Dashnam Gosavi or Goswami Samaj

ब्राह्मणों द्वारा पूजित 'दशनामी गोस्वामी संप्रदायका संबंध आदि शंकराचार्य से हैं, उन्होंने अपनी पांचों इन्द्रियों को वश में कर लिया था इसलिए वे गोस्वामी कहलाए। गो का एक अर्थ इन्द्रियां होता है और स्वामी का अर्थ उनको वश में करने वाला होता है। इस प्रकार गोस्वामी का अर्थ पांचों इन्द्रियों को वश में करने वाला होता है।
 दशनामी गोस्वामी संप्रदाय स्थान विशेष और वेद से संबंध रखता है। इनमें शंकराचार्यमहंतआचार्य और महामंडलेश्वर आदि होते हैं। यह धर्म रक्षकों का संप्रदाय है।
दशनामी गोस्वामी संप्रदाय के 10 नाम : गिरीपर्वतसागरपुरीभारतीसरस्वतीवनअरण्यतीर्थ और आश्रम।
13 अखाड़े :
तेरह अखाड़ों में से जूना अखाड़ा इनका खास अखाड़ा है। इसके अलावा अग्नि अखाड़ाआह्वान अखाड़ानिरंजनी अखाड़ाआनंद अखाड़ामहानिर्वाणी अखाड़ा एवं अटल अखाड़ा आदि सभी शैव से संबंधित है। वैष्णवों में वैरागीउदासीनरामादंन और निर्मल आदि अखाड़ा है।

दशनामी व्यक्तित्व :
शंकराचार्य से सन्यासियों के दशनामी सम्प्रदाय का प्रचलन हुआ। शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित किए थे जो 10 क्षेत्रों में बंटें थे जिनके एक-एक मठाधीश थे। दशनामियों को धर्म की सबसे ज्यादा समझ होती है। शंकराचार्य के काल में ब्राह्मणजन उन्हीं से दीक्षित और शिक्षित होते थे। साधुओं के इस समाज की हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा है। इस समाज में अदम्य साहस और नेतृत्व शक्ति होती है।

दशनामी सम्प्रदाय के साधु प्रायः भगवा वस्त्र पहनतेएक भुजवाली लाठी रखते और गले में चौवन रुद्राक्षों की माला पहनते हैं। हर सुबह वे ललाट पर राख से तीन या दो क्षैतिज रेखाएं बना लेते। तीन रेखाएं शिव के त्रिशूल का प्रतीक होती हैदो रेखाओं के साथ एक बिन्दी ऊपर या नीचे बनातेजो शिवलिंग का प्रतीक होती है। इनमें निर्वस्त्रधारियों को नागा बाबा कहते हैं। इस संप्रदाय के लोग अभिवादन एवं तपस्या में " नमो नारायणका प्रयोग करते हैं।

कौन किस कुल से संबंधित है जानिए...
1.गिरी, 2.पर्वत और 3.सागर। इनके ऋषि हैं भ्रुगु।
4.पुरी, 5.भारती और 6.सरस्वती। इनके ऋषि हैं शांडिल्य।
7.वन और 8.अरण्य के ऋषि हैं कश्यप।
9.तीर्थ और 10. आश्रम के ऋषि अवगत हैं।

पक्के साधु :
ऐसे साधु जो अब समाज को त्यागकर साधना में लीन रहना चाहते हैं उनको दीक्षित किया जाता है। आचार्य आदि शंकराचार्य द्वारा संन्यासियों की पहले से चली  रही परंपरा को जब संगठित किया तो उसे नाम दियादशनामी साधु संघ।
दीक्षा के समय प्रत्येक दशनामी जैसा कि उसके नाम से ही स्पष्ट हैनिम्न नामोंगिरीपुरीभारतीवनअरण्यपर्वतसागरतीर्थआश्रम या सरस्वती नाम के साधु समाज के साधु किसी एक नाम और परंपरा के साधु बनकर सात में से किसी एक अखाड़े के सदस्य बनते हैं।

दशनामी साधुओं में मंडलेश्वर और नागा पद होते हैं। उनमें भी शास्त्रधारी और अस्त्रधारी महंत होते हैं। शास्त्रधारी शास्त्रों आदि का अध्ययन कर अपना आध्यात्मिक विकास करते हैं तथा अस्त्रधारी अस्त्रादि में कुशलता प्राप्त करते हैं।

चार आध्यात्मिक पद:- 1.कुटीचक, 2.बहूदक, 3.हंस और सबसे बड़ा 4.परमहंस। नागाओं में परमहंस सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। नागाओं में शस्त्रधारी नागा अखाड़ों के रूप में संगठित हैं। इसके अलावा नागाओं में औघड़ीअवधूतमहंतकापालिकशमशानी आदि भी होते हैं।

नागा उपाधियां :
चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग-अलग नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद के कुंभ में उपाधि पाने वाले को 1.नागाउज्जैन में 2.खूनी नागाहरिद्वार में 3.बर्फानी नागा तथा नासिक में उपाधि पाने वाले को 4.खिचडिया नागा कहा जाता है। इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है।

नागाओं के अखाड़ा पद : नागा में दीक्षा लेने के बाद साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं। कोतवालपुजारीबड़ा कोतवालभंडारीकोठारीबड़ा कोठारीमहंत और सचिव उनके पद होते हैं। सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पद महंत का होता है।
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दशनामी संप्रदाय


ब्राह्मणों द्वारा पूजित 'दशनामी संप्रदाय' का संबंध आदि शंकराचार्य से हैं। दशनामी संप्रदाय स्थान विशेष और वेद से संबंध रखता है। इनमें शंकराचार्य, महंत, आचार्य और महामंडलेश्वर आदि होते हैं। यह धर्म रक्षकों का संप्रदाय है।
दशनामी संप्रदाय के 10 नाम : गिरी, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, तीर्थ और आश्रम।
13 अखाड़े :
तेरह अखाड़ों में से जूना अखाड़ा इनका खास अखाड़ा है। इसके अलावा अग्नि अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा एवं अटल अखाड़ा आदि सभी शैव से संबंधित है। वैष्णवों में वैरागी, उदासीन, रामादंन और निर्मल आदि अखाड़ा है।

दशनामी व्यक्तित्व :
शंकराचार्य से सन्यासियों के दशनामी सम्प्रदाय का प्रचलन हुआ। शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित किए थे जो 10 क्षेत्रों में बंटें थे जिनके एक-एक मठाधीश थे। दशनामियों को धर्म की सबसे ज्यादा समझ होती है। शंकराचार्य के काल में ब्राह्मणजन उन्हीं से दीक्षित और शिक्षित होते थे। साधुओं के इस समाज की हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा है। इस समाज में अदम्य साहस और नेतृत्व शक्ति होती है।

दशनामी सम्प्रदाय के साधु प्रायः भगवा वस्त्र पहनते, एक भुजवाली लाठी रखते और गले में चौवन रुद्राक्षों की माला पहनते हैं। हर सुबह वे ललाट पर राख से तीन या दो क्षैतिज रेखाएं बना लेते। तीन रेखाएं शिव के त्रिशूल का प्रतीक होती है, दो रेखाओं के साथ एक बिन्दी ऊपर या नीचे बनाते, जो शिवलिंग का प्रतीक होती है। इनमें निर्वस्त्रधारियों को नागा बाबा कहते हैं। इस संप्रदाय के लोग अभिवादन एवं तपस्या में " नमो नारायण" का प्रयोग करते हैं।

कौन किस कुल से संबंधित है जानिए...
1.गिरी, 2.पर्वत और 3.सागर। इनके ऋषि हैं भ्रुगु।
4.पुरी, 5.भारती और 6.सरस्वती। इनके ऋषि हैं शांडिल्य।
7.वन और 8.अरण्य के ऋषि हैं कश्यप।
9.तीर्थ और 10. आश्रम के ऋषि अवगत हैं।

पक्के साधु :
ऐसे साधु जो अब समाज को त्यागकर साधना में लीन रहना चाहते हैं उनको दीक्षित किया जाता है। आचार्य आदि शंकराचार्य द्वारा संन्यासियों की पहले से चली रही परंपरा को जब संगठित किया तो उसे नाम दिया- दशनामी साधु संघ।
दीक्षा के समय प्रत्येक दशनामी जैसा कि उसके नाम से ही स्पष्ट है, निम्न नामों, गिरी, पुरी, भारती, वन, अरण्य, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम या सरस्वती नाम के साधु समाज के साधु किसी एक नाम और परंपरा के साधु बनकर सात में से किसी एक अखाड़े के सदस्य बनते हैं।

दशनामी साधुओं में मंडलेश्वर और नागा पद होते हैं। उनमें भी शास्त्रधारी और अस्त्रधारी महंत होते हैं। शास्त्रधारी शास्त्रों आदि का अध्ययन कर अपना आध्यात्मिक विकास करते हैं तथा अस्त्रधारी अस्त्रादि में कुशलता प्राप्त करते हैं।

चार आध्यात्मिक पद:- 1.कुटीचक, 2.बहूदक, 3.हंस और सबसे बड़ा 4.परमहंस। नागाओं में परमहंस सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। नागाओं में शस्त्रधारी नागा अखाड़ों के रूप में संगठित हैं। इसके अलावा नागाओं में औघड़ी, अवधूत, महंत, कापालिक, शमशानी आदि भी होते हैं।

नागा उपाधियां :
चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग-अलग नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद के कुंभ में उपाधि पाने वाले को 1.नागा, उज्जैन में 2.खूनी नागा, हरिद्वार में 3.बर्फानी नागा तथा नासिक में उपाधि पाने वाले को 4.खिचडिया नागा कहा जाता है। इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है।

नागाओं के अखाड़ा पद : नागा में दीक्षा लेने के बाद साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं। कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं। सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पद महंत का होता है।

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ये है सनातन धर्म के संस्कार These are the rituals of Sanatan Dharma

 ये है सनातन धर्म के संस्कार These are the rituals of Sanatan Dharma

गर्व है हमें #सनातनी #अरुणा_जैन जी पर..अरुणा ने 25 लाख का इनाम ठुकरा दिया पर अंडा नही बनाया. ये सबक है उन लोगों के लिए जो अंडा और मांसाहार खाने को अपना स्टैंडर्ड मानने लगे है.

दरअसल अरुणा को मास्टर शेफ इंडिया में टॉप- 10 में आने के बाद एक नया टास्क दिया गया। इस टास्क में उन्हें डिश में अंडे को डालना था और ये जरूरी था। लेकिन अरुणा ने स्पष्ट मना किया कि वह अंडे को डिश में नहीं डालेंगी। अरुणा ने 25 लाख की इनामी दौड़ से हटने का फैसला किया।
"ये है #सनातन #धर्म के संस्कार"🙏


 

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गायत्री शिखा बंधन क्या है? What is Gayatri Shikha Bandhan?

  गायत्री शिखा बंधन क्या है ?

शिखाबन्धन (वन्दन) आचमन के पश्चात् शिखा को जल से गीला करके उसमें ऐसी गाँठ लगानी चाहिये, जो सिरा नीचे से खुल जाए।

इसे आधी गाँठ कहते हैं। गाँठ लगाते समय गायत्री मन्त्र का उच्चारण करते जाना चाहिये ।
शिखा, मस्तिष्क के केन्द्र बिन्दु पर स्थापित है। जैसे रेडियो के ध्वनि विस्तारक केन्द्रों में ऊँचे खम्भे लगे होते हैं और वहाँ से ब्राडकास्ट की तरंगें चारों ओर फेंकी जाती हैं, उसी प्रकार हमारे मस्तिष्क का विद्युत् भण्डार शिखा स्थान पर है, उस केन्द्र में से हमारे विचार, संकल्प और शक्ति परमाणु हर घड़ी बाहर निकल-निकलकर आकाश में दौड़ते रहते हैं।
इस प्रवाह से शक्ति का अनावश्यक व्यय होता है और अपना कोष घटता है। इसका प्रतिरोध करने के लिये शिखा में गाँठ लगा देते हैं। सदा गाँठ लगाये रहने से अपनी मानसिक शक्तियों का बहुत-सा अपव्यय बच जाता है।
सन्ध्या करते समय विशेष रूप से गाँठ लगाने का प्रयोजन यह है कि रात्रि को सोते समय यह गाँठ प्रायः शिथिल हो जाती है या खुल जाती है। फिर स्नान करते समय केश-शुद्धि के लिये शिखा को खोलना पड़ता है। सन्ध्या करते समय अनेक सूक्ष्म तत्त्व आकर्षित होकर अपने अन्दर स्थिर होते हैं, वे सब मस्तिष्क केन्द्र से निकलकर बाहर न उड़ जाए इसलिये शिखा में गाँठ लगा दी जाती है।
इसमें गाँठ लगा देने से भीतर भरी हुई वायु बाहर नहीं निकल पाती। गाँठ लगी हुई शिखा से भी यही प्रयोजन पूरा होता है। वह बाहर के विचार और शक्ति समूह को ग्रहण करती है । भीतर के तत्त्वों का अनावश्यक व्यय नहीं होने देती ।
आचमन से पूर्व शिखा बन्धन इसलिये नहीं होता, क्योंकि उस समय त्रिविध शक्ति का आकर्षण जहाँ जल द्वारा होता है, वह मस्तिष्क के मध्य केन्द्र द्वारा भी होता है। इस प्रकार शिखा खुली रहने से दुहरा लाभ होता है । तत्पश्चात् उसे बाँध दिया जाता है।
गायत्री शिखा बंधन क्या है? What is Gayatri Shikha Bandhan?



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Sanson Ki Mala



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नारी शक्ति की सुरक्षा के लिये

 1. एक नारी को तब क्या करना चाहिये जब वह देर रात में किसी उँची इमारत की लिफ़्ट में किसी अजनबी के साथ स्वयं को अकेला पाये ?  जब आप लिफ़्ट में...