विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
समाज में बदलाव लाने के लिए हमें एकजुटता की आवश्यकता है - We need unity to bring change in society
जाति और धर्म बदलने से DNA नहीं बदलता, यह बात उन भटके हुए लोगों को समझने की आवश्यकता है जो राजनीतिक, संप्रदायिक, मानवता और राष्ट्र विरोधी लोगों की बातों में आकर भटक गए हैं। जब हम जाति और धर्म बदलकर अपने पूर्वजों से विरोध करते हैं, तो यह व्यक्ति की नासमझी और व्यक्तित्व को दर्शाता है।
हमारे पूर्वजों का DNA, हमारे संस्कार, हमारे मूलभूत मूल्य और हमारे विचार, ये सभी चीजें हमें एक पहचान देती हैं। जाति या धर्म बदलने से हम अपनी पहचान को नहीं बदल सकते। इसके बावजूद, आज समाज में कुछ लोग इसे एक रूप में देखते हैं, जिससे समाज में विभाजन और असमानता बढ़ती है।
हमें समझना होगा कि समाज में एकता और समरसता की आवश्यकता है। इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण है कि हम अपनी बुद्धि का उपयोग करें। हमें यह विचार करना चाहिए कि क्या हमारा व्यवहार और हमारी सोच सही दिशा में जा रही है या नहीं। यदि हम अपने पूर्वजों के मूल्य और सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं, तो हम अपनी पहचान और संस्कृति को खो देंगे।
समाज में बदलाव लाने के लिए हमें एकजुटता की आवश्यकता है। यह एकता तब ही संभव है जब हम एक-दूसरे को समझें और एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखें। हमें किसी भी राजनीतिक या धार्मिक विभाजन से ऊपर उठकर सोचने की आवश्यकता है। जो लोग हमें जाति, धर्म, और अन्य सामाजिक विभाजन के आधार पर बांटने का प्रयास कर रहे हैं, हमें उनके खिलाफ खड़ा होना चाहिए।
हमारी बुद्धिमत्ता का सही उपयोग यही है कि हम समाज में एकता के लिए हो रहे बदलाव का सदुपयोग करें। यह बुद्धिमत्ता हमें यह सिखाती है कि हम सभी एक ही मानवता का हिस्सा हैं, और हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। जब हम अपनी पहचान को समझेंगे और अपने भीतर एकता की भावना को जगाएंगे, तभी हम सही दिशा में बढ़ेंगे।
हमें यह भी समझना चाहिए कि जाति और धर्म केवल सामाजिक निर्माण हैं, जबकि हमारी पहचान हमारे DNA में बसी हुई है। यही DNA हमें जोड़ता है, और इसे समझकर हम अपने समाज को एक नया दिशा दे सकते हैं।
समाज में बदलाव लाने के लिए हमें संगठित होकर काम करना होगा। हमें उन लोगों के खिलाफ खड़ा होना होगा जो समाज में नफरत और विभाजन फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। हमें चाहिए कि हम अपने समुदाय में एकता, प्यार और सहिष्णुता का संदेश फैलाएं।
इसलिए, हमें अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए एक समृद्ध और सहिष्णु समाज का निर्माण करना चाहिए। यही हमारी जिम्मेदारी है, और यही हमारी पहचान का सही अर्थ है। जब हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे, तो हम न केवल अपने लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर समाज की नींव रखेंगे।
भारत के नागरिकों को एक-दूसरे के धर्म को नीचा दिखाने के लिए टीका-टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, बल्कि अपनी गलतियों को मानवता और राष्ट्रहित के अनुकूल खुद ही सुधारने का संकल्प लेना हर नागरिक का कर्तव्य है। तभी भारत में समानता और शांति स्थापित होगी और देश तरक्की करेगा।
हम सबकी तरक्की एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुई है। अगर हम अपने समाज में भेदभाव और असमानता को खत्म नहीं करेंगे, तो तरक्की का कोई अर्थ नहीं होगा। यह ज़रूरी है कि हम सभी एकजुट होकर एक सकारात्मक और सहिष्णु माहौल बनाएँ।
जनसंख्या नियंत्रण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। बढ़ती जनसंख्या के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ता है, जिससे विकास में रुकावट आती है। इसलिए, हमें जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। यह न केवल हमारे लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी आवश्यक है।
महिलाओं का सम्मान करना भी हमारी जिम्मेदारी है। समाज में महिलाओं को समानता और सुरक्षा प्रदान करना बेहद जरूरी है। जब हम महिलाओं का सम्मान करेंगे, तभी एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज का निर्माण कर सकेंगे।
गायों की हत्या पर भी ध्यान देना चाहिए। गाय हमारे लिए केवल एक जानवर नहीं है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का हिस्सा है। गाय की पूजा करने और इसे बचाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे हमारी परंपराएं और अधिक मजबूत होंगी।
राजनीतिक लोगों की बातों को सुनते समय हमें अपनी बुद्धि का भी उपयोग करना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि क्या उनके विचार मानवता और देश के लिए सही हैं या नहीं। इसी आधार पर हमें अपने वोट का निर्णय लेना चाहिए। यह सही चुनाव करना ही हमारे राष्ट्र धर्म का एक हिस्सा है।
हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश के विकास में अपनी भूमिका निभाएँ। हमें एकजुट होकर काम करना होगा, ताकि हम अपने देश को एक बेहतर स्थान बना सकें। जब हम सभी मिलकर काम करेंगे, तभी हम अपने समाज में बदलाव ला सकेंगे।
इसलिए, आइए हम सब मिलकर एक सकारात्मक बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाएँ। हमें अपने कर्तव्यों को समझते हुए, एकता, समानता और सहिष्णुता का परिचय देना होगा। यही हमारे लिए सही रास्ता है, और यही भारत की तरक्की का आधार बनेगा।
हमारी पुरानी पीढ़ी द्वारा साग-सब्जियों का भंडारण ! Storage of greens and vegetables by our old generation
हमारे पुरखे बड़े कमाल के अर्थशास्त्री थे। हमारे घर की गृहणियां तो क्या ही कहने? उनकी रसोई घर और भंडार घर की व्यवस्था बेहद तगड़ी होती थी।
आजी बताती हैं कि रसोई घर के क्या हालात हैं इसका अंदाज़ा भोजन बनाने वाली महिला के अलावा घर की अन्य महिलाएं तक नहीं जान पाती थीं और पुरुषों की तो आप बात ही छोड़ दीजिए।
आजी बताती हैं कि अय्या (दादी सास) जब रसोई संभालती थी तब भोजन बनाने के लिए आटा, चावल, दाल भंडार घर से जो प्रतिदिन निकालती थी उनमें से एक एक मुट्ठी अन्न एक अलग गगरी में डाल दिया करती थी।
इस प्रकार से उनके पास कुछ दिनों में एक अच्छी राशि के रूप में राशन इकठ्ठा हो जाता था जो प्रतिदिन के बनने वाले भोजन से बचाया जाता था और फिर भी बनने वाला भोजन घर के सभी सदस्यों के लिए पर्याप्त होता था।
जब किसी की मृत्यु या कोई कार्यक्रम अचानक आ जाता था और सबको लगता था कि राशन की व्यवस्था इतनी जल्दी कैसे होगी? तब अय्या अपने गुप्त राशन का पर्दाफाश करती थी और उनका बचाया ये गुप्त राशन काम आता था। गृहणी यूं ही लक्ष्मी, अन्नपूर्णा थोड़ी न कहलाती है!
आजी बताती हैं कि यदि कोई अचानक से आ गया रसोई में तब तक भोजन बन चुका है लेकिन घर के पुरुष तो बिन सोचे समझे अपने साथ उसे भी भोजन के लिए बैठा लेते थे। ऐसे में भोजन बनाने वाली की सूझ बूझ ही काम आती थी और फिर वो बड़ी चतुराई से इस स्थिति का सामना करती थी। सभी को भरपेट भोजन भी करवा देती थी और किसी को किसी प्रकार की भनक भी नहीं लगने देती थी। इस आपातकाल की स्थिति से सामना करने के लिए तब गृहिणियां सत्तू, चिवड़ा इत्यादि का हमेशा विकल्प रखती थीं।
पहले के समय में दाल, मसाले, सब्जी सब कुछ अपने खेत में पैदा हुआ ही वर्ष भर खाया जाता था। बाजार से खरीदकर कोई सामान नहीं आता था और न ही ये अच्छा माना जाता था। अगर नमक के अलावा कोई सामान रसोई घर के लिए खरीद कर आता था तो ये माना जाता था कि ये गृहणी लक्ष्मी रूपा नहीं है और घर में संपन्नता बरकत नहीं हो सकती है।
यूं तो वर्ष भर सारे अन्न, दाल, तेल चल जाते थे परंतु सब्जियां बारिश के सीजन में धोखा दे जाती थीं इसलिए हमारी गृहणियों ने उनका तोड़ निकाला और उन्हें सूखा कर, बड़ियों के रूप में भंडारण करके रखने लगी।
अब जब बारिश आती थी तब आजी के भंडार घर से अदौरी, कोहड़ौरी, गोभौरी, मैथौरी, सूखी गोभी, उबालकर सुखाए आलू, बेसन मसाले लपेट कर सुखाए गए तमाम प्रकार के साग निकलते थे और फिर हरी सब्जियां खाकर ऊबे इस जिभ्या को बारिश भर नए प्रकार की अलग अलग सब्जियां खाने को मिलती थी।
तस्वीर में खटिया पर पेहटुल (काचरी) सुखाई जाती जा रही जो वर्ष भर सब्जियों को चटपटा बनाने के काम आएंगी।
It's time we truly move towards a change - samanata aur raashtra bachaane ke lie vote karen - समानता और राष्ट्र बचाने के लिए वोट करें - #Election
भारत की जनता को राजनीतिक नेताओं की भाषणबाजी से मुर्ख नहीं बनाना चाहिए। यह आवश्यक है कि लोग यह समझें कि हमारे देश में मानवता और हिन्दू विरोधी राजनीति के पक्ष और विपक्ष में कौन है। जब तक जनता को यह स्पष्ट नहीं होगा कि कौन सच में उनके हित में काम कर रहा है, तब तक नेता अपनी रोटी सेंकते रहेंगे।
राजनीतिक दलों के बीच खींचतान के कारण अक्सर जनता के असली मुद्दे पीछे रह जाते हैं। यह समझना जरूरी है कि राजनीति केवल वोट बैंक की राजनीति नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की बुनियाद है। अगर हम अपनी आवाज़ नहीं उठाएंगे, तो वे नेता जो केवल स्वार्थ की राजनीति करते हैं, हमारे अधिकारों को छीन लेंगे।
समानता और राष्ट्रहित के लिए जरूरी है कि हम अपने नागरिक कर्तव्यों को समझें और सक्रिय रूप से भाग लें। हमें यह देखने की जरूरत है कि हमारे प्रतिनिधि क्या करते हैं और क्या वे वास्तव में हमारे लिए काम कर रहे हैं। इसके लिए हमें जागरूक रहना होगा और राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेना होगा।
राजनीतिक दलों का यह कर्तव्य है कि वे समाज के सभी वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करें। लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि हम खुद अपने हक के लिए आवाज नहीं उठाएंगे। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि राजनीति का असली अर्थ है सेवा करना, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए खेलना।
इसलिए, जनता को जागरूक होना होगा और समझना होगा कि राजनीतिक विमर्श में जो मुद्दे उठाए जाते हैं, वे केवल चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं। समाज में समानता और न्याय को सुनिश्चित करने के लिए हमें सोच-समझकर निर्णय लेने की आवश्यकता है। केवल उसी स्थिति में हम एक मजबूत और समृद्ध भारत का निर्माण कर सकते हैं।
समानता और राष्ट्रहित के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। जब तक हम एकजुट नहीं होंगे और अपनी आवाज़ नहीं उठाएंगे, तब तक राजनीति के अंधेरे में फंसे रहेंगे। यही वक्त है कि हम अपनी सोच में बदलाव लाएं और अपने भविष्य के प्रति जागरूक बनें। हमारी एकता ही हमें मजबूत बनाएगी और तभी हम अपने अधिकारों की रक्षा कर सकेंगे।
इसलिए, हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम राजनीतिक दावों और भाषणों में न फंसें, बल्कि अपने हक के लिए समझदारी से लड़ें। यही सही समय है कि हम सच में एक परिवर्तन की ओर बढ़ें।
माँ की मौत के बाद जब तेरहवी भी निमट गई तब नम आँखों से चारु ने अपने भाई से विदा ली।
" सब काम निमट गये भैया माँ चली गई अब मैं चलती हूँ भैया !" आंसुओ के कारण उसके मुंह से केवल इतना निकला।
" रुक चारु अभी एक काम तो बाकी रह गया ... ये ले माँ की अलमारी खोल और तुझे जो सामान चाहिए तू ले जा !" एक चाभी पकड़ाते हुए भैया बोले।
" नही भाभी ये आपका हक है आप ही खोलिये !" चारु चाभी भाभी को पकड़ाते हुए बोली। भाभी ने भैया के स्वीकृति देने पर अलमारी खोली।
" देख ये माँ के कीमती गहने , कपड़े है तुझे जो ले जाना ले जा क्योकि माँ की चीजों पर बेटी का हक सबसे ज्यादा होता है !" भैया बोले।
"भैया पर मैने तो हमेशा यहां इन गहनो , कपड़ो से कीमती चीज देखी है मुझे तो वही चाहिए !" चारु बोली।
" चारु हमने माँ की अलमारी को हाथ तक नही लगाया जो है तेरे सामने है तू किस कीमती चीज की बात कर रही है !" भैया बोले।
" भैया इन गहने कपड़ो पर तो भाभी का हक है क्योकि उन्होंने माँ की सेवा बहू नही बेटी बनकर की है। मुझे तो वो कीमती सामान चाहिए जो हर बहन बेटी चाहती है !" चारु बोली।
" मैं समझ गई दीदी आपको किस चीज की चाह है । दीदी आप फ़िक्र मत कीजिये मांजी के बाद भी आपका ये मायका हमेशा सलामत रहेगा ! पर फिर भी मांजी की निशानी समझ कुछ तो ले लीजिये !" भाभी भरी आँखों से बोली तो चारु रोते हुए उनके गले लग गई।
" भाभी जब मेरा मायका सलामत है मेरे भाई भाभी के रूप मे फिर मुझे किसी निशानी की जरूरत नही फिर भी आप कहती है तो मैं ये हँसते खेलते मेरे मायके की तस्वीर ले जाना चाहूंगी जो मुझे हमेशा एहसास कराएगा की मेरी माँ भले नही पर मायका है !
" चारु पूरे परिवार की तस्वीर उठाते हुए बोली और नम आँखों से विदा ली सबसे..
Govardhan Puja, also known as Annakut, is celebrated the day after Diwali to honor Lord Krishna’s lifting of the Govardhan Hill. Here’s a simple vidhi (procedure) for performing Govardhan Puja:
Materials Needed
- A small hill made of cow dung or clay (to represent Govardhan Hill)
- Flowers and leaves (especially of the tulsi plant)
- Fruits, sweets, and other food items (for the offering)
- Incense sticks and diyas (oil lamps)
- A picture or idol of Lord Krishna
- Pooja thali (plate)
Procedure
1. **Preparation of the Idol or Hill:**
- Shape cow dung or clay into a small hill, representing Govardhan Hill.
- Decorate it with flowers and leaves.
2. **Setting the Pooja Place:**
- Clean the area where you will perform the puja.
- Place the idol or hill in a clean spot.
3. **Offering Food:**
- Arrange a variety of food items, especially those made of grains, fruits, and sweets, around the hill.
- You can prepare dishes like khichdi, puris, and various sweets.
4. **Performing the Aarti:**
- Light the diyas and incense sticks.
- Offer the light to the hill/Idol while singing devotional songs or chanting mantras.
5. **Prayers and Mantras:**
- Offer prayers to Lord Krishna, asking for his blessings.
- You can chant specific mantras, such as the Govardhan Puja mantra.
6. **Concluding the Puja:**
- After the prayers, distribute the prasad (offered food) to family and friends.
- Sing bhajans or kirtans in praise of Lord Krishna.
After the Puja
- It’s customary to visit a temple if possible, or participate in community celebrations.
- Share the prasad with neighbors and friends as a symbol of sharing and community spirit.
Notes
- The puja can be performed in the morning or evening, depending on family traditions.
- The essence of Govardhan Puja is gratitude and devotion, so focus on the spirit of the festival.
योगेश ट्रेन की जनरल बोगी में बर्थ सीट पर सोया हुआ था |
गाडी रूककर वापस चली तो अचानक उसकी नजर अपनी तलाकशुदा पत्नी रागिनी पर पडी | पता नहीं कब वह उसके सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई थी | 6 साल बाद वह उसे देख रहा था | वह बहुत कमजोर हो गई थी | उसने पुरानी सस्ती सी साडी पहन रखी थी | ना माथे पर बिंदी और ना गले में मंगलसूत्र था | तो क्या उसने अभी तक दूसरा विवाह नहीं किया | क्या अभी तक वह मेरी तरह अकेली ही है | योगेश
ऐसा सोच ही रहा था कि तभी रागिनी की नजर उस पर पडी .नजरे मिली तो योगेश दूसरी तरफ देखने लगा | फिर पता नहीं योगेश के दिमाग में क्या आया कि वह सीट से नीचे उतर आया और रागिनी के पास बैठे लडके से कहा कि वह ऊपर
वाली सीट पर चला जाये | लडका मान गया तब योगेश रागिनी के पास बैठ गया | बैठते ही योगेश बोला " रागिनी
कैसी हो ?"
रागिनी ने नजर न मिलाते हुए खिडकी की तरफ देखते हुए बोला कि " मैं ठीक हूँ और आप? "
योगेश बोला मैं भी ठीक हूँ और कानपुर जा रहा हूँ | त्यौहार होने के कारण रिजर्वेशन सीट नहीं मिली | इस कारण जनरल बोगी में आना पडा | तुम कहां जा रही हो ?
वह बोली मैं भी कानपुर ही जा रही हूँ | आजकल माँ वही बडे भईया के पास ही है | बीमार है इसलिए मिलने जा रही हूँ |
काफी देर दोनों चुप रहे |
फिर योगेश बोला " एक बात पूछूँ ?"
रागिनी ने आँखों से ही पूछा क्या?
योगेश संकोच करते हुए पूछा " अभी तक शादी क्यों नहीं
की ?
वह कुछ नहीं बोली |
मगर जब योगेश ने दोबारा नहीं पूछा तो रागिनी ने पूछा "
आपने की है शादी "
योगेश ने भी बिना बोले ना में गर्दन हिला दी |
फिर काफी देर तक दोनों चुप रहे |
मानो एक दूसरे को परख रहे थे |
डिब्बे में कुल्फी बेचने वाला आ गया था |
योगेश बोला खाओगी रागिनी ने ना में सिर हिला दिया
योगेश ने रिक्वेस्ट करते हुए फिर पूछा " खा लो यार , तुम्हारे साथ मैं भी खा लूंगा " | जानता हूँ तुम्हारी सबसे बडी कमजोरी कुल्फी है | वह थोडा मुस्कुराई तो योगेश ने महसूस
किया कि वह अपनी आँखों से बहने वाली आंसुओं को समेटने का प्रयास कर रही है | 5 साल उसके साथ रहा
था ,जब वह अपने आँसुओं को समेटने का प्रयास करती थी
तो ऐसे ही मुस्कुराया करती थी | योगेश दूसरी तरफ देखने लगा तो रागिनी चुपके से अपनी आँसुओ को पोछने लगी |
फिर वह सहज होकर बोली " एक शर्त पर खाउंगी "
योगेश बोला क्या शर्त है ?
तो रागिनी बोली " पैसे मैं दूंगी "
योगेश कुछ नहीं बोला फिर रागिनी ने दो कुल्फियां खरीद ली |
और एक कुल्फी योगेश को देते हुए बोली " अब मैं भी कमाने लगी हूँ , एक प्राइवेट स्कूल में पढाती हूँ , महीने के 10 हजार मिलते हैं | कुल्फी खाते हुए योगेश बोला " तलाक के समय
कोर्ट के आदेश पर मैं तुम्हें 30 लाख रूपये दे तो रहा था |
अगर ले लेती तो अपना स्कूल खोल लेती | जबकि तुम बहुत स्वाभिमानी हो , इस जमाने में पैसे के बिना कुछ नहीं होता |
वह हंस कर बोली अगर ले लेती तो अपनी जमीर को क्या जवाब देती | तो ये जमीर रोज कहता कि जिसे छोड कर आयी हो उसी के सहारे पल रही हो |
योगेश बोला तुम बहुत अच्छी हो , मासूम हो | ये एहसास तुमसे तलाक लेने के बाद मुझे हुआ | तुम यकीन नहीं करोगी ? मैं बहुत बदल गया हूँ | पीना बिल्कुल छोड दिया है , गुस्सा बिल्कुल नहीं करता | अब मैं किसी को नीचा दिखाने की कोशिश भी नहीं करता जो तुम्हें बहुत बुरा लगता था | वो सब बुरी आदतें मैने छोड दी है |
वह उदास होकर बोली " अब क्या फायदा " जब मैं मना किया करती थी तब आप मेरी एक भी बात नहीं सुनते थे | आपके कारण मैं हमेशा टेंशन में रहती थी | इसी कारण मुझे दो बार गर्भपात भी हुआ | वरना आज मेरे भी दो बच्चे होते | एक 8
साल का हो गया होता और दूसरा 6 साल का होता | कहकर वो रो पडी |
बच्चों की बात पता चली तो योगेश के भी आंखों में आँसों आ गये लेकिन वह पुरूष था तो आँसुओं को पलकों तक पहुँचने से पहले ही पी गया और बोला " कभी कभी लगता है मैं बहुत बुरा आदमी हूँ | मैने कभी रिश्तों की कदर नहीं की , उसी की सजा झेल रहा हूँ आज | बिल्कुल अकेला हो गया हूँ , अब मां भी नहीं रही | "
मा के होने पर रागिनी को बडा दुख हुआ और बोली मा को भली चंगी छोड कर आयी थी , उनको क्या हो गया था | इस बार योगेश भावुकता वश अपने आँसुओं को नहीं रोक पाया
और बोला वो तुम्हें हर दिन याद करती थी , बोलती थी बहु को वापस घर ले आओ | मैं उन्हें कैसे समझाता कि तलाक के बाद बहुएं वापस घर नहीं आती | फिर दोनों के बीच चुप्पी छा गई थी | कानपुर आ गया था |
स्टेशन आने वाला था | योगेश बोला वापस कब जाओगी ?
रागिनी बोली आज रात यही रूकूंगी , कल की सुबह की ट्रेन से वापस जाउंगी | फिर वही खडी हो गई , योगेश भी खडा हो गया और पूछा" कितने बजे वाली ट्रेन से वापस जाओगी "
रागिनी बोली हम गरीब लोग हैं ,रिजर्वेशन नहीं करा पता हैं , जनरल डिब्बे में सफर करते हैं | इसलिए जो भी ट्रेन मिलती है टिकट लेकर चढ जाते हैं | इतना कहकर वह नीचे उतर गई |
योगेश अपना सूटकेस सम्हालता हुआ उसके पीछे लपका और बोला अगर मैं रिजर्वेशन की दो टिकटें ले लूं तो मुझे पता है कि तुम मेरे साथ नहीं चलोगी लेकिन मैं तुम्हारे साथ सफर करना चाहता हूँ | जनरल में ही चल लूंगा , बताओ कितने बजे
यहां मिलोगी ?
रागिनी आटो में बैठती हुई बोली " 9 बजे यहां मिलूंगी "फिर उसके देखते देखते आटो आँखों से ओझल हो गया |
योगेश कानपुर दो दिन के लिए आया था मगर रागिनी का साथ पाने के लिए उसने अपना शेड्यूल बदल लिया | उसने जल्दी से अपने बिजनेस का काम पूरा किया और अगले दिन सुबह साढे 8 बजे ही स्टेशन आ गया | रागिनी 9 की जगह 10 बजे स्टेशन पहुँची | और बोली आप अभी तक यहीं पर हो , मैं सोच रही थी कि आप चले गये होंगे |
रागिनी बहुत खुश थी | बोली मां अब बिल्कुल ठीक है |
योगेश बोला मैं तुम्हारा भी टिकट ले आया हूँ | अब 30 रूपये के टिकट के लिए कुछ कहना मत | रागिनी हंसते हुए बोली अभी ट्रेन आने में आधा घंटा है , चलो तब तक कुल्फी खाते हैं| पैसे मैं दे दूंगी , हिसाब बराबर हो जायेगा | इतना कहकर वह फिर मुस्कुरा दी | वह जब भी मुस्कुराती थी योगेश की नजर उसके चेहरे पर ठहर जाती थी | फिर दोनों ने कुल्फी खायी और तब तक ट्रेन आ गयी और फिर से एक नया सफर
शुरु हो गया मगर इस सफर में कुछ खास था | योगेश कुछ कहने के लिए तिलमिला रहा था ।मगर डर भी रहा था कि वह मना करा देगी तो | योगेश नोटिस कर रहा था कि रागिनी बडे भाई के
घर से नई साडी पहन कर आई थी |वह बहुत सुन्दर लग रही थी | खिडकी से आ रही ठंडी हवा के झोंके से रागिनी के ललाट पर लटकी बालों की एक लडी झूम उठती है | उसे ऐसे देखकर योगेश के दिल में एहसास सा उठता है कि ये औरत कभी उसकी जिन्दगी थी मगर मैं इसे सम्हाल कर नहीं रख पाया | योगेश की मन:स्थिति से अनजान रागिनी बोली " क्या हुआ आप गुमशुम से क्यों हो ?" | दोस्त बन कर ही सही कुछ बात तो कर लो | योगेश बोला मुझे दोस्ती नहीं चाहिए |
रागिनी को झटका सा लगा , बोली " फिर क्यों मेरे साथ सफर करने के लिए उतावले थे आप" योगेश बोला "मुझे तू चाहिए " | हमेशा के लिए | जन्मों जन्मों के लिए | मेरे साथ हंसने के लिए , मेरे साथ रोने के लिए | वह इतनी जल्दी में ये सारी बातें बोला कि रागिनी बस उसके मुंह की ओर देखती रह गई | वह आगे बोला " मैं गलत था , तुम्हारी कदर नहीं कर पाया " |
मगर तुम्हारे जाने के बाद मुझे मेरे गलतियों का एहसास हो गया है | मुझे माफ कर दो " कहकर वह रो पडा | रागिनी चुप हो गई , बस उसके चेहरे की तरफ देखे जा रही थी |
योगेश उसके दोनों हाथ पकड कर बोला " मुझे माफ कर दे यार | मैं वादा करता हूँ अब कभी भी तुम्हारे आंसुओं की वजह नहीं बनूंगा | तू जो कहेगी वही करूंगा , प्लीज लौट आ | " रागिनी ने माथे पर साडी थोडी सी पीछे सरकाई और बोली इधर देखिये जरा |" योगेश ने देखा रागिनी ने मांग भर रखी थी | वह बोली मैं जानती थी आप यही सब करोगे | मैंने कल ही सोच लिया था कि अब अकेले चलने के दिन खत्म हो गये हैं | मेरा हमसफर लौट आया है | अब आगे का सफर उसी के साथ तय करना है | थक गई हूँ मैं अकेले चलते चलते | कहते हुए
वह अजीब सी मुद्रा में मुस्कुराने लगी | योगेश बोला , मैं जानता हूँ जब तेरा दिल रोने को होता है तब तू ऐसे ही मुस्कुराती है | मत रोक इन आंसुओं को , इन्हें बह जाने दो | दिल हल्का हो जायेगा | इतना सुनते ही रागिनी का संयम
जवाब दे गया | वह जोर जोर से रोने लगी , पूरे डिब्बे के लोग उन्हें देखने लगे | मगर रागिनी ने लोगों की परवाह नहीं की |
वह योगेश के कंधे पर सर रखकर रोती रही | कुछ देर बाद रागिनी का गांव आ गया | गाडी कुछ पल रूकी फिर चल पडी
| रागिनी को अब वहां उतरना ही नहीं था | जिन्दगी में एक नया सफर फिर से शुरू हो गया | अब उसकी मंजिल मायका नहीं पिया का घर था | जो वर्षों से उसके उसके लौटने का इन्तजार कर रहा था | वह अब भी योगेश के कंधे पर सर रखी
थी | आंखें बंद कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी , एक मासूम बच्चे की तरह |
कहानी कैसी लगी कमेन्ट करके जरूर बतायें | कहानी अच्छी लगी हो तो विडियो को प्लीज लाइक कर दीजिए , शेयर कर दीजिए and follow us
भारत एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न जातियाँ, धर्म, और संस्कृतियाँ एक साथ मिलकर बसी हुई हैं। यह विविधता हमारे देश की ताकत है, लेकिन कभी-कभी यह विविधता विभाजन का कारण भी बन जाती है। ऐसे में, भारत के राष्ट्र भक्तों की जिम्मेदारी है कि वे एकजुट होकर मानवता और राष्ट्र की रक्षा करें।
**मानवता की रक्षा का महत्व**
मानवता का मूल्य सभी भिन्नताओं से ऊपर है। जब हम जाति, धर्म, या समुदाय के बंधनों से ऊपर उठकर सोचते हैं, तब हम उन सामान्य मानव अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं जो सभी को समान रूप से मिलते हैं। मानवता का अर्थ है सहानुभूति, सहयोग, और एक-दूसरे के प्रति सम्मान।
**जाति और धर्म से ऊपर उठने की आवश्यकता**
आज के समय में, जब सामाजिक विषमताएँ और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही हैं, तब हमें जाति और धर्म की सीमाओं से परे जाकर सोचने की आवश्यकता है। राष्ट्र भक्तों को यह समझना होगा कि किसी भी समाज का असली मूल्य उसकी एकता में निहित है। जब हम जाति और धर्म के स्थान पर मानवता को प्राथमिकता देंगे, तब हम एक मजबूत और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकेंगे।
**एकता में बल**
राष्ट्र भक्तों को चाहिए कि वे एकजुट होकर मानवता और राष्ट्र के खिलाफ काम करने वाले तत्वों का सामना करें। ये तत्व हमारे समाज में असहिष्णुता और विभाजन फैलाते हैं। यदि हम एक साथ खड़े होते हैं, तो हम इन तत्वों को प्रभावी ढंग से चुनौती दे सकते हैं। यह एकता न केवल सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करेगी, बल्कि यह हमारे देश को एक नई दिशा में भी ले जाएगी।
**सकारात्मक संवाद का महत्व**
एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक संवाद बहुत आवश्यक है। हमें विभिन्न समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे कि हम एक-दूसरे की समस्याओं और विचारों को समझ सकें। जब संवाद खुला और ईमानदार होता है, तो यह आपसी समझ और सहिष्णुता को बढ़ावा देता है।
**समाज में बदलाव की दिशा में कदम**
राष्ट्र भक्तों को चाहिए कि वे अपने क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए सक्रिय रूप से काम करें। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे क्षेत्रों में हो सकता है। जब हम समाज में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं, तो हम न केवल अपने समुदाय की भलाई के लिए काम कर रहे होते हैं, बल्कि हम राष्ट्र की प्रगति में भी योगदान दे रहे होते हैं।
**आवश्यकता है जागरूकता की**
राष्ट्र भक्तों को चाहिए कि वे समाज में जागरूकता फैलाएँ। हमें यह समझाना होगा कि जाति और धर्म से ऊपर उठकर सोचने का क्या महत्व है। जागरूकता कार्यक्रमों, कार्यशालाओं, और सेमिनारों के माध्यम से हम इस विचार को व्यापक रूप से फैला सकते हैं।
**निष्कर्ष**
अंततः, भारत के राष्ट्र भक्तों को एकजुट होकर मानवता और राष्ट्र की रक्षा करनी होगी। जाति और धर्म से ऊपर उठकर सोचने की आवश्यकता है, ताकि हम एक मजबूत और एकजुट भारत का निर्माण कर सकें। एकता में बल है, और यही एकता हमें उन चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाएगी, जो आज हमारे सामने हैं। यदि हम सभी मिलकर काम करेंगे, तो हम निश्चित रूप से एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।