भगवान से कुछ मांगने के बजाय, हमें उन्हें सब कुछ सौंप देना चाहिए, Instead of asking for something from God, we should hand over everything to Him,

 भगवान से कुछ मांगने के बजाय, हमें उन्हें सब कुछ सौंप देना चाहिए, Instead of asking for something from God, we should hand over everything to Him

भगवान से कुछ मांगने के बजाय, हमें उन्हें सब कुछ सौंप देना चाहिए, Instead of asking for something from God, we should hand over everything to Him,

एक बार की बात है, एक राजा अपने राज्य की प्रजा का हाल जानने के लिए गांवों का दौरा कर रहा था। चलते-चलते उसके कुर्ते का सोने का बटन टूट गया। राजा ने तुरंत अपने मंत्री से पूछा, "इस गांव में कोई सुनार है जो मेरे कुर्ते का बटन ठीक कर सके?"

मंत्री ने जानकारी जुटाई और बताया, "महाराज, इस गांव में एक ही सुनार है, जो गहने बनाता है। उसे बुलाया जाए?"

राजा ने हामी भरी, और जल्द ही उस सुनार को राजा के सामने पेश किया गया। राजा ने सुनार से कहा, "तुम मेरे कुर्ते का सोने का बटन बना सकते हो?"

सुनार ने झुककर कहा, "हुज़ूर, यह कोई मुश्किल काम नहीं है।"

सुनार ने राजा के कुर्ते का दूसरा बटन ध्यान से देखा और हूबहू वैसा ही एक नया बटन बना दिया। उसने बटन को कुर्ते में लगा दिया, और राजा का कुर्ता फिर से पहले जैसा चमकने लगा।

राजा उसकी कुशलता और मेहनत से बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सुनार से पूछा, "कितने पैसे दूं?"

सुनार विनम्रता से बोला, "महाराज, रहने दीजिए, यह तो छोटा सा काम था।"

सुनार ने मन में सोचा, "सोना तो राजा का ही था, मैंने बस अपनी कला का इस्तेमाल किया है। राजा से मजदूरी लेना उचित नहीं है।"

लेकिन राजा ने दोबारा पूछा, "नहीं, तुम अपनी मेहनत की कीमत बताओ, कितने दूं?"

अब सुनार असमंजस में पड़ गया। उसने सोचा, "अगर मैं दो रुपये मांगता हूँ, तो राजा कहीं यह न सोचे कि यह तो एक बटन के लिए भी इतने पैसे मांग रहा है। फिर राजा मुझ पर नाराज हो सकता है। उस जमाने में दो रुपये की कीमत भी बहुत होती थी।"

थोड़ी देर सोचने के बाद, सुनार ने विनम्रता से कहा, "महाराज, जो आपकी इच्छा हो, दे दीजिए।"

राजा ने सुनार की सादगी और निस्वार्थ भाव को देखकर मंत्रियों से कहा, "इस सुनार को दो गांव इनाम में दे दो। यह हमारा हुक्म है।"

सुनार, जो दो रुपये की मामूली मजदूरी सोच रहा था, यह सुनकर चौंक गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि राजा ने उसे दो गांव दे दिए। उसकी विनम्रता और निस्वार्थ सेवा ने उसे जीवन का सबसे बड़ा इनाम दिला दिया था।

शिक्षा:

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जब हम कुछ मांगते हैं, तो हमारी सोच सीमित होती है। हम अपनी परिस्थितियों के अनुसार छोटी-छोटी चीजें मांगते हैं, लेकिन जब हम अपनी इच्छाएं भगवान पर छोड़ देते हैं, तो वह हमें हमारे सपनों से भी अधिक और बेहतर देता है। भगवान से कुछ मांगने के बजाय, हमें उन्हें सब कुछ सौंप देना चाहिए, क्योंकि वह हमें हमारे हिस्से का सर्वश्रेष्ठ देते हैं।

कई बार, हमारी माँग छोटी होती है, लेकिन देने वाला अनंत है। इसलिए, हर परिस्थिति में भरोसा बनाए रखें और यह मानें कि जो कुछ भी वह हमें दे रहा है, वह हमारे भले के लिए है।

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इंसानियत का धर्म - religion of humanity

इंसानियत का धर्म - religion of  humanity

इंसानियत का धर्म - religion of humanity

कुछ दिन पहले की बात है, जब मैं राजधानी के एक व्यस्त चौराहे से गुजर रहा था। वहाँ एक विद्यालय के पास किसी प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन था, और परीक्षार्थियों की भीड़ जमा थी। भीड़ में ऐसे लोग भी मौजूद थे, जो इस अवसर का फायदा उठाने की फिराक में थे। अचानक मेरी नजर सड़क के किनारे बैठे एक आदमी पर पड़ी। उसके सामने एक छोटा सा मेज था, और पास की दीवार पर एक बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था: "पता पूछने और बताने का 5 रुपये, और रास्ता दिखाने का 10 रुपये।"

यह देखकर मैं हैरान रह गया। ऐसा अनोखा तरीका मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मुझे एक तरह से उस आदमी की होशियारी पर हंसी भी आई और साथ ही मैं उसके दिमाग की तारीफ किए बिना नहीं रह सका। "वाह, ऐसे भी पैसे कमाए जा सकते हैं!" मैंने मन ही मन सोचा। वह बंदा शायद रोज़ कुछ न कुछ कमाई कर ही लेता होगा।

एक और घटना कल ही की है। मेरे जान-पहचान के चायवाले का नाम मोहन है। मोहन को अपने बैंक खाते में नया मोबाइल नंबर अपडेट कराना था, और इसके चलते उसका एटीएम भी ब्लॉक हो गया था। वह कई दिनों से परेशान था, क्योंकि जब भी वह बैंक जाता, कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था। आखिरकार उसने मुझसे बैंक चलने की गुजारिश की। मैंने तुरंत हामी भर दी और उसे बाइक पर बिठाकर बैंक की ओर चल पड़ा।

रास्ते में मोहन ने कहा, "साहब, पेट्रोल भरवा लीजिए। गाड़ी तो पानी से चलती नहीं।"

मैंने उसकी बात सुनकर हंसते हुए कहा, "बाइक में पहले से पेट्रोल है, फिर भरवाने की क्या जरूरत?"

मोहन ने शर्मिंदगी भरी आवाज़ में कहा, "साहब, आप मेरे काम से जा रहे हैं, तो पेट्रोल तो मैं ही भरवाऊंगा न। ये मेरा फर्ज है।"

उसकी मजबूरी समझकर मैंने उसे आश्वासन दिया, "तुम्हें पेट्रोल की चिंता करने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारी मदद कर रहा हूँ, और इसके लिए तुम्हें कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ेगा।"

बैंक पहुंचने पर कुछ ही मिनटों में उसका काम हो गया। नया मोबाइल नंबर खाते में अपडेट हो गया और वह खुशी से फूला नहीं समा रहा था। बाहर निकलते ही उसने मुझसे बगल के होटल में चलने का आग्रह किया, ताकि हम कुछ नाश्ता कर सकें। मैंने विनम्रता से मना कर दिया। जब हम उसकी चाय की दुकान पर वापस पहुंचे, तो उसने मुझे चाय पीने की ज़िद की। लेकिन इस बार भी मैंने इंकार कर दिया।

इस पर मोहन की आँखें नम हो गईं। उसने अपनी आंखों से ढुलकती आंसुओं की बूंदों को पोंछते हुए कहा, "साहब, पहली बार ऐसा हुआ है कि मेरा कोई काम बिना खर्च के हो गया है। यहां लोग तो मुफ्त की सलाह भी नहीं देते, और मेरी दुकान पर फ्री में चाय पीते हैं। पांच साल से यहां चाय बेच रहा हूँ, लेकिन आज पहली बार किसी ऐसे इंसान से मिला हूँ जो मेरी मजबूरी को समझता है। साहब, आप बहुत बड़े आदमी बनेंगे। मेरी दुआ है आपके लिए।"

उसकी ये बातें सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने उसे प्रणाम किया और ऑफिस वापस चला आया। पूरे दिन यही सोचता रहा कि अगर इंसान इंसान के काम न आ सके, तो यह जीवन वास्तव में बेकार है।

शिक्षा:

इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि इंसानियत सबसे बड़ा गुण है। किसी की मदद करना, बिना स्वार्थ के उसे सहारा देना ही असली जीवन है। जब आप किसी की मदद करते हैं, उसकी मजबूरी को समझते हैं, तो उसकी दिल से निकली दुआयें आपके जीवन में चमत्कार कर सकती हैं। हमें हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि जीवन का असली उद्देश्य एक-दूसरे के लिए खड़े होना है।

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अहम, क्रोध और गलतफहमियों से भरे रिश्ते - Relationships full of ego, anger and misunderstandings

 अहम, क्रोध और गलतफहमियों से भरे रिश्ते - Relationships full of ego, anger and misunderstandings

अहम, क्रोध और गलतफहमियों से भरे रिश्ते - Relationships full of ego, anger and misunderstandings

जीवन की सबसे कड़वी सच्चाई यह है कि रिश्ते, जो कभी बेहद मजबूत हुआ करते थे, आजकल बहुत नाजुक हो गए हैं। एक छोटी सी बात रिश्तों में इतनी दरार डाल देती है कि सालों की मेहनत, प्यार और सम्मान पल भर में खो जाता है। मेरे अपने जीवन का अनुभव इस कड़वे सच को और भी गहराई से समझाता है।

मेरी मां के दो छोटे भाई और एक छोटी बहन हैं। बड़े मामा फैज़ाबाद में रहते हैं और हाल ही में विद्युत विभाग से रिटायर हुए हैं। उनका एक बेटा दरोगा था, लेकिन अब शायद सीबीआई में काम कर रहा है। मैंने "शायद" इसलिए कहा क्योंकि वो हमसे कोई खास रिश्ता नहीं रखते।

दूसरे छोटे मामा जौनपुर के पास मुफ्तिगंज में रहते हैं। उनके भी दो बेटे हैं, जो ठीक-ठाक नौकरी करते हैं। मेरी मौसी, जो सबसे छोटी हैं, उनकी भी दो बेटे हैं—सोनू और मोनू। सोनू अमेरिका में एचसीएल में काम करता था, और अब दिल्ली में है।

हमारा परिवार बहुत बड़ा है—दो भाई और दो बहनें। मेरे बड़े मामा और मौसी के पास अच्छा पैसा है, जबकि मेरी मां और छोटे मामा सामान्य आर्थिक स्थिति में हैं। रिश्ते ऐसे ही असमानता के बावजूद चलते थे, जब तक कि एक छोटी सी घटना ने सब कुछ बदल कर रख दिया।

यह घटना 2012 की है, जब बड़े मामा के घर फैज़ाबाद में शादी थी। जैसा हर शादी में होता है, सब रिश्तेदार आए हुए थे। लेकिन शादी के दौरान कुछ बातों पर छोटे मामा के रिश्तेदारों और अन्य लोगों के बीच कहासुनी हो गई। इस पर छोटे मामा नाराज़ हो गए और बोले कि वो अब वहां नहीं रुकेंगे और वापस जौनपुर चले जाएंगे।

सबने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। मेरी मां, जो परिवार की सबसे बड़ी थीं और सब उनका बहुत सम्मान करते थे, गुस्से में छोटे मामा से बोलीं, "यह क्या हो रहा है? सारे रिश्तेदार आए हुए हैं, थोड़ी मर्यादा रखो। बात बाद में सुलझाई जा सकती है।"

लेकिन मामा जी को यह बात इतनी बुरी लगी कि उन्होंने उस दिन से मां से बात करना ही बंद कर दिया। मेरी मां 2016 में इस दुनिया से चली गईं, लेकिन उन्होंने आखिरी समय तक छोटे मामा को बुलाया—फिर भी वे नहीं आए। यह सोचकर दिल बहुत दुखता है कि मेरी मां, जो छोटे मामा से इतना प्यार करती थीं, उनका आखिरी समय ऐसे बीता।

हम जब भी भुवनेश्वर से आते थे, सीधे जौनपुर जाते थे। आजमगढ़, लखनऊ, कानपुर, गोरखपुर, फैज़ाबाद और दिल्ली में रिश्तेदार होते हुए भी हम कहीं और नहीं जाते थे, सिर्फ छोटे मामा के पास। लेकिन उस एक छोटी सी बात ने सारे रिश्तों को बर्बाद कर दिया।

मैं आज भी सोचता हूँ—क्या वह सही समय और जगह थी लड़ाई के लिए? क्या बाद में इस बात पर विचार नहीं हो सकता था? लेकिन नहीं, मामा जी ने एक छोटी सी बात को इतना बड़ा बना दिया कि मेरी मां रोते-रोते इस दुनिया से चली गईं, और उनका फोन तक नहीं आया।

आजकल रिश्ते इतने नाजुक हो गए हैं। पचास साल का प्यार पांच मिनट में खत्म हो गया। कोई भी माफी मांगने को तैयार नहीं होता। यह सच्चाई बहुत दर्दनाक है।

मैंने बहुत बार मामा जी को फोन किया, उनसे बात की, लेकिन वो पहले जैसा प्यार और अपनापन कभी महसूस नहीं हुआ। जब तक मैं फोन करता हूँ, बात होती है, लेकिन उनकी ओर से पहल कभी नहीं होती।

मां के जाने के बाद, मुझे दो बार कैंसर हो चुका है, और हम अपने परिवार में बहुत अकेले हो गए हैं। मामा जी या उनके बेटे एक बार भी फोन करके हालचाल पूछने नहीं आए।

तो अगर आप मुझसे पूछते हैं, जीवन की कड़वी सच्चाई क्या है?

सच्चाई यही है—आप चाहे 99 बार सही करें, लेकिन एक बार गलती हो जाए, तो लोग सिर्फ उसी एक गलती को याद रखते हैं। कोई आपकी 99 अच्छाइयों की कदर नहीं करेगा। आजकल लोग माफी देने को तैयार नहीं होते, और रिश्ते अहम की बलि चढ़ जाते हैं।

रिश्ते, जो प्यार, समझ और माफी पर टिके होते हैं, आज केवल अहम, क्रोध और गलतफहमियों से भरे हैं। और यह सच्चाई आज हमारे समाज का नासूर बन गई है।

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शब्दों का प्रभाव गहरा होता है - words have a deep impact

शब्दों का प्रभाव गहरा होता है - words have a deep impact


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शब्दों का प्रभाव गहरा होता है - words have a deep impact


 एक गाँव में एक बुजुर्ग व्यक्ति, रामनाथ, ने एक दिन बिना किसी आधार के यह अफवाह फैला दी कि उसके पड़ोस में रहने वाला एक युवा, मोहन, चोर है। यह अफवाह धीरे-धीरे गाँव में फैल गई, और लोग मोहन से बचने लगे। हर कोई उसे संदेह भरी नज़रों से देखने लगा। मोहन, जो एक सीधा-साधा और मेहनती युवक था, इस झूठी बात से बहुत परेशान हो गया। वह सफाई देने की कोशिश करता, लेकिन कोई उसकी बात पर भरोसा नहीं करता था।

कुछ दिनों बाद, गाँव में एक चोरी की घटना हो गई। बिना किसी ठोस कारण के, लोगों का शक मोहन पर ही गया और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। गाँव वाले अब और भी ज्यादा उस पर उंगली उठाने लगे, मानो वह चोर साबित हो चुका हो। परंतु, कुछ दिनों के बाद, सबूतों की कमी के कारण मोहन निर्दोष साबित हुआ और उसे रिहा कर दिया गया।

मोहन के मन में गुस्सा और दुख था। उसने ठान लिया कि अब वह इस झूठी अफवाह का जवाब कानूनी तरीके से देगा। उसने रामनाथ पर झूठे आरोप लगाने के लिए कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया। कोर्ट में, जब रामनाथ को बुलाया गया, तो उसने अपने बचाव में कहा, "मैंने तो सिर्फ एक सामान्य टिप्पणी की थी, मेरा मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं था।"

जज ने रामनाथ की बात सुनी और फिर कहा, "आप ऐसा करें, एक कागज पर वह सारी बातें लिखें जो आपने मोहन के बारे में फैलाई थीं, और फिर उस कागज के टुकड़े-टुकड़े कर के घर जाते समय रास्ते में फेंक दें। कल आप वापस कोर्ट में आएं, तब मैं आपको फैसला सुनाऊंगा।"

रामनाथ ने वैसा ही किया। अगले दिन, जब वह फिर से कोर्ट में हाज़िर हुआ, तो जज ने उससे कहा, "अब आप उन कागज के टुकड़ों को इकट्ठा कर के ले आइए जो आपने कल रास्ते में फेंक दिए थे।"

रामनाथ ने हैरानी से कहा, "यह तो नामुमकिन है, उन टुकड़ों को तो हवा न जाने कहाँ-कहाँ उड़ा कर ले गई होगी। मैं उन्हें कैसे ढूंढूंगा?"

जज ने मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक इसी तरह, एक झूठी टिप्पणी या अफवाह भी लोगों के बीच फैलकर किसी का सम्मान इस हद तक नष्ट कर सकती है कि उसे वापस पाना नामुमकिन हो जाता है। आपकी एक साधारण सी बात ने मोहन की इज्जत को बर्बाद कर दिया।"

यह सुनकर रामनाथ को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने कोर्ट और मोहन से माफी मांगते हुए वचन दिया कि वह अब से कभी बिना सोचे-समझे किसी पर गलत आरोप नहीं लगाएगा और न ही किसी के सम्मान को ठेस पहुंचाएगा।

इस कहानी से यह सीख मिलती है कि शब्दों का प्रभाव गहरा होता है। हमें अपनी बातों का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि एक बार कुछ कहने या फैलाने के बाद, उसे वापस लेना उतना ही मुश्किल होता है जितना कि हवा में बिखरे कागज के टुकड़ों को इकट्ठा करना। 

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बच्चों और बुजुर्गों दोनों को समान ध्यान और प्यार की आवश्यकता - Both children and elders need equal attention and love

बच्चों और बुजुर्गों दोनों को समान ध्यान और प्यार की आवश्यकता - Both children and elders need equal attention and love


बच्चों और बुजुर्गों दोनों को समान ध्यान और प्यार की आवश्यकता - Both children and elders need equal attention and love

सात साल का छोटू जब खांसता हुआ कमरे में दाखिल हुआ, तो उसकी माँ, सविता, ने उसे देखा और तुरंत पूछा, "क्या हुआ बेटा, तबीयत ठीक नहीं है?"

छोटू ने अपनी शरारती मुस्कान के साथ जवाब दिया, "नहीं माँ, मेरी तबीयत ठीक है। मैं तो दादाजी की नकल कर रहा था!"

माँ ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा, "ये अच्छी बात नहीं बेटा। दादाजी की तबीयत सच में खराब है, उन्हें सच में खांसी हो रही है।"

छोटू ने मासूमियत से कहा, "पर माँ, आपने तो दादाजी को दवाई नहीं दी। मैंने दादाजी से भी पूछा था कि आपको खांसी की दवाई क्यों नहीं दी गई, तो उन्होंने कहा कि तुम्हारी माँ ने दवाई नहीं दी।"

माँ ने धीरे से समझाते हुए कहा, "बेटा, घर में खांसी की दवाई खत्म हो गई है। इसलिए मैं दादाजी को दवाई नहीं दे पा रही हूँ।"

छोटू ने थोड़ी हैरानी से कहा, "लेकिन माँ, जब मैं खांसते हुए आया था, तो आप मुझे खांसी की दवाई देने वाली थीं।"

माँ मुस्कुराई और बोली, "बेटा, वो बच्चों की खांसी की दवाई है, बड़ों की नहीं। वह दवाई दादाजी को नहीं दी जा सकती।"

छोटू अब थोड़ा गंभीर हो गया और बोला, "तो इसका मतलब है कि आपने मेरे लिए पहले से दवाई खरीद कर रखी है, ताकि जब मुझे खांसी आए तो आप मुझे तुरंत दवाई दे सकें। लेकिन आपने दादाजी के लिए दवाई क्यों नहीं रखी?"

छोटू ने एक पल रुककर फिर मासूमियत से कहा, "मेरी टीचर ने तो कहा था कि बच्चे और बूढ़े एक जैसे होते हैं।"

माँ के पास अब कोई जवाब नहीं था। छोटू की बात ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने धीरे से अपने बेटे के सिर पर हाथ फेरा और मन ही मन ठान लिया कि दादाजी के लिए तुरंत दवाई का इंतजाम करेगी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि हम अक्सर अपने बच्चों की देखभाल में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि घर के बुज़ुर्गों की ज़रूरतें भूल जाते हैं। बच्चों और बुजुर्गों दोनों को समान ध्यान और प्यार की आवश्यकता होती है। 

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बेटियों को पालने का सुख जितना अनमोल है, उनकी विदाई का दुख भी उतना ही गहरा होता है -As precious as the joy of raising daughters is, the pain of their departure is equally deep

 बेटियों को पालने का सुख जितना अनमोल है, उनकी विदाई का दुख भी उतना ही गहरा होता है -As precious as the joy of raising daughters is, the pain of their departure is equally deep

बात उस दिन की है जब मुझे अपनी बेटी साक्षी का KVS का परीक्षा दिलवाने के लिए पानीपत के पास एक दूरस्थ गाँव जाना पड़ा था। परीक्षा का समय दोपहर 2:30 से 4:30 तक था और हमें उसी शाम घर वापस लौटना था। मेरे पास कोई निजी वाहन नहीं था, इसलिए मुझे सरकारी बस से लौटना था। पानीपत से मेरे गांव रायपुर तक की यात्रा लगभग 3 घंटे की थी। ऐसे में मेरे मन में लगातार चिंता थी कि यदि समय पर कोई साधन नहीं मिला तो क्या होगा। रात रुकने की भी कोई व्यवस्था नहीं थी, क्योंकि न तो उस गांव में कोई जान-पहचान थी और न ही ठहरने का कोई ठिकाना।

बेटियों को पालने का सुख जितना अनमोल है, उनकी विदाई का दुख भी उतना ही गहरा होता है -As precious as the joy of raising daughters is, the pain of their departure is equally deep

जब साक्षी परीक्षा देने के लिए अंदर चली गई, मैं बगल के कुछ और माता-पिता के साथ स्कूल के लान में बैठ गया। धीरे-धीरे बातचीत शुरू हुई, और वहाँ मौजूद अजनबी से लोग भी अपने से लगने लगे। उनमें से एक व्यक्ति, जिसका नाम राजेश सिंह था, चंडीगढ़ से अपनी बेटी का पेपर दिलवाने आया था। उसने बताया कि वह कारगिल युद्ध में लड़ चुका है और उसकी बेटी उसके ससुर के साथ पेपर देने आई थी। राजेश के पास अपनी कार थी, और हमारी बातों के बीच वह मेरी चिंता को समझ गया।

"चिंता मत करो भाई, अगर कोई साधन नहीं मिला तो मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूंगा। आखिर हम भी बेटी के पिता हैं," राजेश ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा। उसकी बात सुनकर मेरे दिल का बोझ हल्का हो गया। वह मिलनसार और मजबूत व्यक्तित्व का व्यक्ति था। उसने अपने पैर में लगी कारगिल युद्ध के दौरान की गोली का निशान भी दिखाया, जिसे देखकर मैं उसकी बहादुरी का कायल हो गया।

शाम होने को आई, पेपर समाप्त हुआ, और हम सभी स्कूल के बाहर इकट्ठे हो गए। राजेश ने अपनी कार में मुझे और साक्षी को बिठाया और हम करनाल तक साथ आए। संयोगवश, वहीं से चंडीगढ़ से रोहतक जाने वाली एक बस मिल गई। राजेश ने कार रोकी, और जल्दी से हमें बस में बैठा दिया। हम मुस्कराते हुए एक-दूसरे से विदा हुए। मैंने दिल से उसका धन्यवाद किया और हम दोनों ने एक-दूसरे के फोन नंबर का आदान-प्रदान भी किया।

करीब 9 बजे हम रोहतक पहुंचे, और वहाँ से मुझे रायपुर बाईपास तक ऑटो पकड़ना था क्योंकि मेरा गाँव उसी रास्ते में पड़ता था। संयोगवश, जिस ऑटो में हम बैठे, उसमें एक बुजुर्ग सरदार जी बैठे थे, जिनकी उम्र करीब 55 साल रही होगी। थोड़ी देर तक वह बिल्कुल शांत बैठे रहे। फिर अचानक उन्होंने मेरी बेटी साक्षी की ओर देखा और फिर मेरी तरफ। उनकी आँखों में हल्की नमी थी, और वो अपनी आँखों से आंसू पोंछने लगे। उन्होंने अपनी लाल होती आँखों को रुमाल से छिपाने की कोशिश की, लेकिन आंसू रुक नहीं रहे थे।

मैंने उनसे पूछ लिया, "सरदार जी, क्या बात है? आप इतने दुखी क्यों हैं?"

सरदार जी का धैर्य टूट गया। उन्होंने फफक कर रोना शुरू कर दिया। मेरी बेटी भी आश्चर्य से मेरी ओर देख रही थी। बार-बार पूछने पर उन्होंने बताया, "मेरी बेटी भी आपकी बेटी की तरह है। दो दिन बाद उसकी शादी है। हम उसकी शादी की तैयारियों में लगे हैं, लेकिन जब सोचता हूँ कि मेरी बेटी मुझे छोड़कर चली जाएगी, तो मेरा दिल टूट जाता है। क्या हम बेटियों को इसी दिन के लिए पालते हैं?"

उनकी बात सुनकर मेरा दिल भारी हो गया। मैंने किसी तरह उन्हें सांत्वना दी, ढांढस बंधाया। लेकिन जब मैंने अपनी बेटी साक्षी की ओर देखा, तो मेरे खुद के आंसू निकल आए। वह पल मेरे दिल में गहरे उतर गया।

उस दिन मैंने जाना कि बेटियों की विदाई हर पिता के लिए कितनी कठिन होती है। हम उन्हें बड़े प्यार से पालते हैं, उनकी हर छोटी-बड़ी ख़ुशी का ख्याल रखते हैं। लेकिन जब वो पल आता है, जब हमें उन्हें किसी और के साथ उनके नए जीवन के लिए विदा करना होता है, तो हमारा दिल भारी हो जाता है। शायद यह दुनिया का सबसे सुंदर और सबसे दर्दभरा एहसास होता है, जिसे हर पिता महसूस करता है।

कहानी का सार:

यह कहानी एक पिता के उन भावनात्मक क्षणों की है जब वह अपनी बेटी की विदाई के बारे में सोचता है। यह अनुभव हर पिता को जीवन में कभी न कभी होता है, और यह सोच कि बेटी अब किसी और घर की हो जाएगी, दिल को भावुक कर देती है। बेटियों को पालने का सुख जितना अनमोल है, उनकी विदाई का दुख भी उतना ही गहरा होता है।

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रिश्ते और वफादारी की कीमत - Value of relationships and loyalty

 रिश्ते और वफादारी की कीमत - Value of relationships and loyalty

रिश्ते और वफादारी की कीमत - Value of relationships and loyalty

रात का समय था, मेरी पत्नी मेरे बगल में गहरी नींद में सो रही थी। दिनभर की थकान उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। अचानक मेरे फोन पर एक नोटिफिकेशन आया—किसी महिला ने मुझे सोशल मीडिया पर जोड़ने के लिए अनुरोध भेजा था। बिना ज्यादा सोचे, मैंने उस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और एक सामान्य संदेश भेजा, "क्या हम एक-दूसरे को जानते हैं?"

थोड़ी देर बाद उसका जवाब आया, "मुझे पता चला है कि तुम्हारी शादी हो गई है, लेकिन मैं आज भी तुमसे प्यार करती हूँ।"

वह एक पुरानी दोस्त थी, जो कई साल पहले मेरे जीवन का हिस्सा रह चुकी थी। उसकी प्रोफाइल फोटो में वह बेहद आकर्षक लग रही थी। मैं एक पल के लिए रुका और फिर चैट बंद कर दी। मेरे मन में खयाल आया—क्या यह ठीक है? मैंने अपनी पत्नी की ओर देखा, जो पूरी निश्चिंतता के साथ सो रही थी, जैसे उसे मुझ पर पूरा भरोसा हो। यह भरोसा, यह निश्चिंतता, उसने अपने घर-परिवार से दूर रहकर मुझ पर किया था।

मैं सोचने लगा, वह अपने माता-पिता के घर से इतनी दूर है, जहां उसका परिवार 24 घंटे उसके आस-पास रहता था। जब वह दुखी होती, तो उसकी मां का कंधा हमेशा उसकी आंसुओं का सहारा होता। उसकी बहनें और भाई उसकी उदासी को मिटाने के लिए हमेशा उसके साथ हंसी-ठिठोली करते थे। उसके पिता, जो उसे उसकी हर छोटी-बड़ी जरूरतें पूरी करते थे, अब उससे दूर थे। और अब, वह मुझ पर पूरा भरोसा करते हुए, एक अजनबी घर में पूरी निश्चिंतता के साथ सो रही थी।

मेरे दिल में एक अजीब सी भावना जाग उठी। मैं अपने फोन की ओर देख रहा था और उस महिला के संदेश को याद कर रहा था, लेकिन फिर मैंने तुरंत फोन उठाया और "ब्लॉक" बटन दबा दिया।

मैंने खुद से कहा, "मैं एक इंसान हूँ, कोई बच्चा नहीं। मैंने अपनी पत्नी से वफादारी की शपथ ली है, और मैं उसे निभाऊंगा। मैं कभी ऐसा कुछ नहीं करूंगा जो उसे धोखा दे या हमारे परिवार को तोड़े।"

मैं फिर अपनी पत्नी की ओर मुड़ा, उसे देखा, और उसकी बगल में लेट गया। मुझे एक अद्भुत शांति महसूस हुई, क्योंकि मैंने सही फैसला लिया था। मैंने अपने भीतर उस व्यक्ति को खोज लिया था, जो न सिर्फ एक अच्छा पति है, बल्कि एक मजबूत इंसान भी है, जो अपने रिश्ते और वफादारी की कीमत जानता है।

अब मैं जानता था कि जीवन में असली प्यार और वफादारी क्या होती है, और मैं हमेशा इसे बनाए रखने के लिए संघर्ष करूंगा।

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विचार परिवर्तन से समाज और राष्ट्र में भी परिवर्तन हो जाता है। Change in thoughts also brings change in society and nation

 विचार परिवर्तन से समाज और राष्ट्र में भी परिवर्तन

विचार परिवर्तन से समाज और राष्ट्र में भी परिवर्तन हो जाता है। Change in thoughts also brings change in society and nation


इस उपलब्ध मानव जीवन में कर्म की गति, कर्म का स्वरूप और निषिद्ध कर्म-इन तीनों को जान लेना जरूरी है। इसके बाद सारी कामनाओं और संकल्पों से मुक्त होकर आगे बढऩा चाहिए ताकि चित्त को शुद्ध बनाया जा सके।

इस उपलब्ध मानव जीवन में कर्म की गति, कर्म का स्वरूप और निषिद्ध कर्म-इन तीनों को जान लेना जरूरी है। इसके बाद सारी कामनाओं और संकल्पों से मुक्त होकर आगे बढऩा चाहिए ताकि चित्त को शुद्ध बनाया जा सके। विचार में परिवर्तन होने से मनुष्य में परिवर्तन हो जाता है, उसका व्यक्तित्व बदलने लगता है। व्यक्तित्व बदलने से समाज और राष्ट्र में भी परिवर्तन हो जाता है। नतीजतन, आप देख सकते हैं कि पूरा विश्व कहीं न कहीं युद्ध के कगार पर खड़ा है। राष्ट्रीय नेताओं और धार्मिक नेताओं के विचारों में कोई सामंजस्य नहीं रह गया है। समाज में अराजकता, अनाचार, अत्याचार और व्यभिचार चरम पर है। आज का मानव कहां भाग रहा है, उसे स्वयं पता नहीं। विचारों की दौड़ में सब एक दूसरे को मात देने में जुटे हैं। नैतिक पतन तेजी से हो रहा है। आपसी प्रेम और भाईचारा घृणा में कभी-कभी बदलता नजर आता है। अपनी आय से परेशान व्यक्ति शांति की तलाश में इधर-उधर भटक रहा है? परंतु शायद वह विचार ठीक से नहीं कर पाता है कि यह उसे मिलेगी कैसे? शांति है कहां? मनुष्य की बढ़ती कामनाएं, महत्वाकांक्षाएं उसे अशांति की तरफ जबरन ले जा रही हैं। बाहरी दुनिया की चकाचौंध के सामने वह अपने अस्तित्व को भूल गया है, अपने मूल स्नोत से कटकर रह गया है।

इस प्रगतिशील विकासवाद की गोद में मनुष्य की शांति का मार्ग अवरुद्ध हो गया है। ऐसे में धर्म ही एकमात्र ऐसा मार्ग रह गया है, जो मनुष्य को शांति प्रदान कर सकता है। यदि विश्व के हर राष्ट्र और उसके नागरिक यह भली-भांति समझ लें कि उनका अपने प्रति, समाज के प्रति, राष्ट्र और विश्व के प्रति क्या उत्तरदायित्व है, तो एक बार खुशहाली और प्रसन्नता पुन: वापस आ सकती है। यह समझ तभी आएगी, जब विचारों में परिवर्तन हो। इसलिए यह नितांत आवश्यक है कि हम योग को जीवन में उतारें। योग जीवन जीने की कला है। साथ ही सरल, सहज और सुदृढ़ है। धर्म एक व्यवस्था है, जो संस्कृति और सभ्यता का निर्माण करती है। संस्कृति और सभ्यता से चरित्र का निर्माण होता है, जिसके निर्माण में योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योग कर्म करने के ढंग, व्यवस्था और कुशलता को बढ़ाता है।

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पति-पत्नी का सच्चा प्यार, Real love of a husband and wife

 पति-पत्नी का सच्चा प्यार, Real love of a husband and wife

पति-पत्नी का सच्चा प्यार, Real love of a husband and wife

एक आदमी ने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की से शादी की।

शादी के बाद दोनो की ज़िन्दगी बहुत प्यार से गुजर रही थी।

वह उसे बहुत चाहता था और उसकी खूबसूरती की हमेशा तारीफ़ किया करता था।



लेकिन कुछ महीनों के बाद लड़की चर्मरोग से ग्रसित हो गई और धीरे-धीरे उसकी खूबसूरती जाने लगी।



खुद को इस तरह देख उसके मन में डर समाने लगा कि यदि वह बदसूरत हो गई, तो उसका पति उससे नफ़रत करने लगेगा और वह उसकी नफ़रत बर्दाशत नहीं कर पाएगी।

इस बीच एकदिन पति को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा।

काम ख़त्म कर जब वह घर वापस लौट रहा था, उसका हो गया।

में उसने अपनी दोनो आँखें खो दी।

लेकिन इसके बावजूद भी उन दोनो की जिंदगी सामान्य तरीके से आगे बढ़ती रही।

समय गुजरता रहा और अपने चर्मरोग के कारण लड़की ने अपनी खूबसूरती पूरी तरह गंवा दी।

वह बदसूरत हो गई, लेकिन अंधे पति को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था।



इसलिए इसका उनके खुशहाल विवाहित जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

वह उसे उसी तरह प्यार करता रहा।

एकदिन उस लड़की की मौत हो गई।

पति अब अकेला हो गया था। वह बहुत दु:खी था। वह उस शहर को छोड़कर जाना चाहता था।

उसने अंतिम संस्कार की सारी क्रियाविधि पूर्ण की और शहर छोड़कर जाने लगा।

तभी एक आदमी ने पीछे से उसे पुकारा और पास आकर कहा,

“अब तुम बिना सहारे के अकेले कैसे चल पाओगे?

इतने साल तो तुम्हारी पत्नि तुम्हारी मदद किया करती थी।

पति ने जवाब दिया, दोस्त! मैं अंधा नहीं हूँ! मैं बस अंधा होने का नाटक कर रहा था।

क्योंकि यदि मेरी पत्नि को पता चल जाता कि मैं उसकी बदसूरती देख सकता हूँ, तो यह उसे उसके रोग से ज्यादा दर्द देता।

इसलिए मैंने इतने साल अंधे होने का दिखावा किया।

वह बहुत अच्छी पत्नि थी। मैं बस उसे खुश रखना चाहता था।

खुश रहने के लिए हमें भी एक दूसरे की कमियो के प्रति आखे बंद कर लेनी चाहिए..

और उन कमियो को नजरन्दाज कर देना चाहिए...।

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सच्चाई की जीत - victory of truth

 एक समय की बात है, एक धर्मात्मा राजा ने अपने राज्य में एक अनोखी चुनौती रखी। उन्होंने घोषणा की कि जो कोई भी सच्चाई के साथ पूरा जीवन जीता होगा, उसे अपार धन और सम्मान से नवाजा जाएगा। इस घोषणा से पूरे राज्य में हलचल मच गई। हर कोई इस इनाम को पाने के लिए उत्सुक था। उसी राज्य में एक गरीब लेकिन ईमानदार किसान रहता था। उसने अपने जीवन के हर कदम पर सच्चाई को अपनाया था। चाहे वह उसके खेती का काम हो या उसके पड़ोसियों के साथ उसका व्यवहार, वह हमेशा सच्चाई के मार्ग पर चलता रहा।

सच्चाई की जीत - victory of truth

एक दिन, किसान ने सोचा कि वह भी राजा की चुनौती का हिस्सा बनेगा। वह राजा के दरबार में गया और अपनी सादगी और ईमानदारी की कहानियाँ सुनाई। उसने बताया कैसे उसने अपने खेत में सोने की मुद्राएँ पाई थीं, परंतु उसने उन्हें उसके असली मालिक को लौटा दिया। कैसे उसने अपने पड़ोसी की भूलवश भेजी गई अनाज की बोरी उसे वापस कर दी थी।

राजा उसकी कहानियों से प्रभावित हुए। उन्होंने महसूस किया कि किसान ने न केवल शब्दों में, बल्कि कर्मों में भी सच्चाई को अपनाया था। राजा ने उसे इनाम के रूप में सोने के सिक्के, नई भूमि और राज्य में सम्मानित स्थान दिया और आश्वासन दिया कि उसकी सच्चाई और ईमानदारी का राज्य भर में गुणगान किया जाएगा। इस घटना से प्रेरित होकर, अन्य लोगों ने भी सच्चाई के मार्ग को अपनाने का संकल्प लिया।

यह घटना पूरे राज्य में सच्चाई और ईमानदारी के महत्व को उजागर करने वाली बन गई। लोगों ने समझा कि भले ही सच्चाई का मार्ग कठिन हो, परंतु उसके परिणाम हमेशा शुभ और संतोषजनक होते हैं।

सच्चाई हमेशा जीतती है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चाई का मार्ग चुनना हमेशा फलदायी होता है और अंत में, यही जीत की कुंजी होती है।


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Feetured Post

रिश्तों की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक प्राइवेट बैंक में एक अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर और पति...