अहम, क्रोध और गलतफहमियों से भरे रिश्ते - Relationships full of ego, anger and misunderstandings

 अहम, क्रोध और गलतफहमियों से भरे रिश्ते - Relationships full of ego, anger and misunderstandings

अहम, क्रोध और गलतफहमियों से भरे रिश्ते - Relationships full of ego, anger and misunderstandings

जीवन की सबसे कड़वी सच्चाई यह है कि रिश्ते, जो कभी बेहद मजबूत हुआ करते थे, आजकल बहुत नाजुक हो गए हैं। एक छोटी सी बात रिश्तों में इतनी दरार डाल देती है कि सालों की मेहनत, प्यार और सम्मान पल भर में खो जाता है। मेरे अपने जीवन का अनुभव इस कड़वे सच को और भी गहराई से समझाता है।

मेरी मां के दो छोटे भाई और एक छोटी बहन हैं। बड़े मामा फैज़ाबाद में रहते हैं और हाल ही में विद्युत विभाग से रिटायर हुए हैं। उनका एक बेटा दरोगा था, लेकिन अब शायद सीबीआई में काम कर रहा है। मैंने "शायद" इसलिए कहा क्योंकि वो हमसे कोई खास रिश्ता नहीं रखते।

दूसरे छोटे मामा जौनपुर के पास मुफ्तिगंज में रहते हैं। उनके भी दो बेटे हैं, जो ठीक-ठाक नौकरी करते हैं। मेरी मौसी, जो सबसे छोटी हैं, उनकी भी दो बेटे हैं—सोनू और मोनू। सोनू अमेरिका में एचसीएल में काम करता था, और अब दिल्ली में है।

हमारा परिवार बहुत बड़ा है—दो भाई और दो बहनें। मेरे बड़े मामा और मौसी के पास अच्छा पैसा है, जबकि मेरी मां और छोटे मामा सामान्य आर्थिक स्थिति में हैं। रिश्ते ऐसे ही असमानता के बावजूद चलते थे, जब तक कि एक छोटी सी घटना ने सब कुछ बदल कर रख दिया।

यह घटना 2012 की है, जब बड़े मामा के घर फैज़ाबाद में शादी थी। जैसा हर शादी में होता है, सब रिश्तेदार आए हुए थे। लेकिन शादी के दौरान कुछ बातों पर छोटे मामा के रिश्तेदारों और अन्य लोगों के बीच कहासुनी हो गई। इस पर छोटे मामा नाराज़ हो गए और बोले कि वो अब वहां नहीं रुकेंगे और वापस जौनपुर चले जाएंगे।

सबने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। मेरी मां, जो परिवार की सबसे बड़ी थीं और सब उनका बहुत सम्मान करते थे, गुस्से में छोटे मामा से बोलीं, "यह क्या हो रहा है? सारे रिश्तेदार आए हुए हैं, थोड़ी मर्यादा रखो। बात बाद में सुलझाई जा सकती है।"

लेकिन मामा जी को यह बात इतनी बुरी लगी कि उन्होंने उस दिन से मां से बात करना ही बंद कर दिया। मेरी मां 2016 में इस दुनिया से चली गईं, लेकिन उन्होंने आखिरी समय तक छोटे मामा को बुलाया—फिर भी वे नहीं आए। यह सोचकर दिल बहुत दुखता है कि मेरी मां, जो छोटे मामा से इतना प्यार करती थीं, उनका आखिरी समय ऐसे बीता।

हम जब भी भुवनेश्वर से आते थे, सीधे जौनपुर जाते थे। आजमगढ़, लखनऊ, कानपुर, गोरखपुर, फैज़ाबाद और दिल्ली में रिश्तेदार होते हुए भी हम कहीं और नहीं जाते थे, सिर्फ छोटे मामा के पास। लेकिन उस एक छोटी सी बात ने सारे रिश्तों को बर्बाद कर दिया।

मैं आज भी सोचता हूँ—क्या वह सही समय और जगह थी लड़ाई के लिए? क्या बाद में इस बात पर विचार नहीं हो सकता था? लेकिन नहीं, मामा जी ने एक छोटी सी बात को इतना बड़ा बना दिया कि मेरी मां रोते-रोते इस दुनिया से चली गईं, और उनका फोन तक नहीं आया।

आजकल रिश्ते इतने नाजुक हो गए हैं। पचास साल का प्यार पांच मिनट में खत्म हो गया। कोई भी माफी मांगने को तैयार नहीं होता। यह सच्चाई बहुत दर्दनाक है।

मैंने बहुत बार मामा जी को फोन किया, उनसे बात की, लेकिन वो पहले जैसा प्यार और अपनापन कभी महसूस नहीं हुआ। जब तक मैं फोन करता हूँ, बात होती है, लेकिन उनकी ओर से पहल कभी नहीं होती।

मां के जाने के बाद, मुझे दो बार कैंसर हो चुका है, और हम अपने परिवार में बहुत अकेले हो गए हैं। मामा जी या उनके बेटे एक बार भी फोन करके हालचाल पूछने नहीं आए।

तो अगर आप मुझसे पूछते हैं, जीवन की कड़वी सच्चाई क्या है?

सच्चाई यही है—आप चाहे 99 बार सही करें, लेकिन एक बार गलती हो जाए, तो लोग सिर्फ उसी एक गलती को याद रखते हैं। कोई आपकी 99 अच्छाइयों की कदर नहीं करेगा। आजकल लोग माफी देने को तैयार नहीं होते, और रिश्ते अहम की बलि चढ़ जाते हैं।

रिश्ते, जो प्यार, समझ और माफी पर टिके होते हैं, आज केवल अहम, क्रोध और गलतफहमियों से भरे हैं। और यह सच्चाई आज हमारे समाज का नासूर बन गई है।

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