भगवान हमें कभी अकेला नहीं छोड़ता - god never leaves us alone

 एक दिन की बात है, जब मुझे सूरत जाना पड़ा। मेरे पास वहां एक दिन का काम था, जिसके लिए मैं ट्रेन से सफर कर रही थी। सूरत पहुंचने पर, मैंने एक छोटा सा होटल देखा जो साधारण और आरामदायक लग रहा था। वहां मैंने अपना सामान रखा और अपने काम के लिए निकल गई। दिनभर की भागदौड़ के बाद, जब मैं शाम को वापस लौटने लगी, तो रात हो गई थी।

god never leaves us alone


कार्यक्रम स्थल से निकलकर मैंने एक ऑटो लिया और उस गली के करीब पहुंची जहां मेरा होटल था। गली तंग थी, इसलिए मुझे वहां तक पहुंचने के लिए पैदल या रिक्शे का सहारा लेना पड़ा। लेकिन गली में पहुंचने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं रास्ता भूल गई हूँ। हड़बड़ी में होटल का पूरा पता लेना भूल गई थी, सिर्फ नाम याद था। मगर सूरत की तंग गलियों में सब जगह बस गलियां ही नजर आ रही थीं, और मुझे नहीं पता था कि किस तरफ जाऊं।


मैंने रिक्शा वाले से होटल का नाम बताया, लेकिन उसे भी उस जगह की जानकारी नहीं थी। मेरी चिंता बढ़ने लगी। मैंने उससे कहा कि वह मुझे उतार दे, मैं खुद ही रास्ता ढूंढ लूंगी। उसने मुझे एक मोड़ पर उतार दिया, और मैं अकेले ही होटल की तलाश में चलने लगी।


जैसे ही मैं आगे बढ़ी, मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरा पीछा कर रहा है। जब मैंने पलटकर देखा, तो वही रिक्शा वाला दूर से मेरे पीछे-पीछे आ रहा था। मैं थोड़ी देर रुकी, और उसने भी वहीं रुककर इंतजार किया। इससे मुझे बेचैनी होने लगी। मुझे लगा कि कुछ गलत है, और मैंने तेजी से चलना शुरू कर दिया, लेकिन वह आदमी अब भी मेरे पीछे-पीछे आ रहा था।


आखिरकार, मैंने हिम्मत जुटाई और वापस जाकर उस रिक्शा वाले से पूछा, "आप मेरे पीछे-पीछे क्यों आ रहे हैं?"


उसने शांत स्वर में कहा, "आप रास्ता भटक गई हैं, इसलिए मैं देख रहा हूँ कि आप सही जगह पहुंच जाएं।"


मुझे और गुस्सा आ गया। मैंने कहा, "आप जाइए, मुझे अकेला छोड़ दीजिए।"


उसने थोड़ा झुंझलाकर कहा, "नहीं, मैं कहीं नहीं जाऊंगा। रात का समय है और आप इस शहर से अनजान लगती हैं। मुझे पैसे की परवाह नहीं है, बस यही खड़ा रहूंगा जब तक आपको आपका होटल नहीं मिल जाता।"


उसकी बातों में सच्चाई थी, जिसे मैंने धीरे-धीरे समझा। वह कहीं जाने को तैयार नहीं था, और मैं भी थक चुकी थी। मैंने आगे बढ़ने का फैसला किया, और जब भी पलटकर देखती, वह व्यक्ति दूर खड़ा मिलता, लेकिन कहीं नहीं जा रहा था।


काफी देर बाद, जब मैं थककर एक जगह रुक गई और सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए, तभी मेरी नजर उस होटल पर पड़ी, जहां मैंने सुबह अपना सामान रखा था। होटल मेरे ठीक सामने था, और मैंने राहत की सांस ली। मैंने मुस्कुराते हुए उस आदमी को इशारा किया, और वह पास आया।


मैंने पास की दुकान से मिठाई खरीदी और उसे दी। मैंने उसके साथ देने और मेरी मदद करने के लिए शुक्रिया कहा। वह पहली बार मुस्कुराया और बोला, "मेरी दो बेटियां हैं। एक तुम्हारी उम्र की है। इसलिए मैं खड़ा रहा, ताकि तुम सुरक्षित रहो।"


उसकी बात सुनकर मेरा दिल भर आया। मैं उसे देखती रही, जबकि वह धीरे-धीरे अंधेरे में गुम हो गया। उस रात मैंने महसूस किया कि हमारा ईश्वर हमेशा हमारे साथ होता है, हमें सही रास्ता दिखाने के लिए।


मैंने बाहर की एक दुकान से चाय ली और अपने भीतर एक नई ऊर्जा और विश्वास महसूस किया। उस रिक्शा वाले ने मेरे लिए किसी देवदूत का काम किया, जिसने मेरे विश्वास को और मजबूत किया। सच में, भगवान हमें कभी अकेला नहीं छोड़ता, वह हमारे आसपास के लोगों के जरिए हमारी मदद करता है।

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