इंसानियत का धर्म - religion of humanity
कुछ दिन पहले की बात है, जब मैं राजधानी के एक व्यस्त चौराहे से गुजर रहा था। वहाँ एक विद्यालय के पास किसी प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन था, और परीक्षार्थियों की भीड़ जमा थी। भीड़ में ऐसे लोग भी मौजूद थे, जो इस अवसर का फायदा उठाने की फिराक में थे। अचानक मेरी नजर सड़क के किनारे बैठे एक आदमी पर पड़ी। उसके सामने एक छोटा सा मेज था, और पास की दीवार पर एक बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था: "पता पूछने और बताने का 5 रुपये, और रास्ता दिखाने का 10 रुपये।"
यह देखकर मैं हैरान रह गया। ऐसा अनोखा तरीका मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मुझे एक तरह से उस आदमी की होशियारी पर हंसी भी आई और साथ ही मैं उसके दिमाग की तारीफ किए बिना नहीं रह सका। "वाह, ऐसे भी पैसे कमाए जा सकते हैं!" मैंने मन ही मन सोचा। वह बंदा शायद रोज़ कुछ न कुछ कमाई कर ही लेता होगा।
एक और घटना कल ही की है। मेरे जान-पहचान के चायवाले का नाम मोहन है। मोहन को अपने बैंक खाते में नया मोबाइल नंबर अपडेट कराना था, और इसके चलते उसका एटीएम भी ब्लॉक हो गया था। वह कई दिनों से परेशान था, क्योंकि जब भी वह बैंक जाता, कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था। आखिरकार उसने मुझसे बैंक चलने की गुजारिश की। मैंने तुरंत हामी भर दी और उसे बाइक पर बिठाकर बैंक की ओर चल पड़ा।
रास्ते में मोहन ने कहा, "साहब, पेट्रोल भरवा लीजिए। गाड़ी तो पानी से चलती नहीं।"
मैंने उसकी बात सुनकर हंसते हुए कहा, "बाइक में पहले से पेट्रोल है, फिर भरवाने की क्या जरूरत?"
मोहन ने शर्मिंदगी भरी आवाज़ में कहा, "साहब, आप मेरे काम से जा रहे हैं, तो पेट्रोल तो मैं ही भरवाऊंगा न। ये मेरा फर्ज है।"
उसकी मजबूरी समझकर मैंने उसे आश्वासन दिया, "तुम्हें पेट्रोल की चिंता करने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारी मदद कर रहा हूँ, और इसके लिए तुम्हें कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ेगा।"
बैंक पहुंचने पर कुछ ही मिनटों में उसका काम हो गया। नया मोबाइल नंबर खाते में अपडेट हो गया और वह खुशी से फूला नहीं समा रहा था। बाहर निकलते ही उसने मुझसे बगल के होटल में चलने का आग्रह किया, ताकि हम कुछ नाश्ता कर सकें। मैंने विनम्रता से मना कर दिया। जब हम उसकी चाय की दुकान पर वापस पहुंचे, तो उसने मुझे चाय पीने की ज़िद की। लेकिन इस बार भी मैंने इंकार कर दिया।
इस पर मोहन की आँखें नम हो गईं। उसने अपनी आंखों से ढुलकती आंसुओं की बूंदों को पोंछते हुए कहा, "साहब, पहली बार ऐसा हुआ है कि मेरा कोई काम बिना खर्च के हो गया है। यहां लोग तो मुफ्त की सलाह भी नहीं देते, और मेरी दुकान पर फ्री में चाय पीते हैं। पांच साल से यहां चाय बेच रहा हूँ, लेकिन आज पहली बार किसी ऐसे इंसान से मिला हूँ जो मेरी मजबूरी को समझता है। साहब, आप बहुत बड़े आदमी बनेंगे। मेरी दुआ है आपके लिए।"
उसकी ये बातें सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने उसे प्रणाम किया और ऑफिस वापस चला आया। पूरे दिन यही सोचता रहा कि अगर इंसान इंसान के काम न आ सके, तो यह जीवन वास्तव में बेकार है।
शिक्षा:
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