3 September 2024

वर्तमान समाज में पैर पसारते कलयुग के अशुभ लक्षण -Ominous signs of Kaliyuga spreading in the present society

वर्तमान समाज में पैर पसारते कलयुग के अशुभ लक्षण - Ominous signs of Kaliyuga spreading in the present society

yवर्तमान समाज में पैर पसारते कलयुग के अशुभ लक्षण -Ominous signs of Kaliyuga spreading in the present society

1. कुटुम्ब कम हुआ 

2. सम्बंध कम हुए 

3. नींद कम हुई. 

4. बाल कम हुए 

5. प्रेम कम हुआ  

6. कपड़े कम हुए 

7. शिष्टाचार कम हुआ 

8. लाज-लज्जा कम हुई 

9. मर्यादा कम हुई 

10. बच्चे कम हुए  

11. घर में खाना कम हुआ 

12. पुस्तक वाचन कम हुआ 

13. भाई-भाई प्रेम कम हुआ 

15. चलना कम हुआ 

16. खानपान की शुद्धता कम हुई 

17. खुराक कम हुई 

18. घी-मक्खन कम हुआ 

19. तांबे - पीतल के बर्तन कम हुए 

20. सुख-चैन कम हुआ 

21. अतिथि कम हुए 

22. सत्य कम हुआ 

23. सभ्यता कम हुई 

24. मन-मिलाप कम हुआ 

25. समर्पण कम हुआ 

26. बड़ों का सम्मान कम हुआ। 

27 सहनशक्ति कम हुई । 

28 धैर्य कम हुआ 

29 श्रद्धा-विश्वास कम हुआ ।

और भी बहुत कुछ कम हुआ जिससे जीवन सहज था, सरल था।

संतान को दोष न दें

बालक या बालिका को 'इंग्लिश मीडियम' में पढ़ाया...

'अंग्रेजी' बोलना सिखाया।

'बर्थ डे' और 'मैरिज एनिवर्सरी'

जैसे जीवन के 'शुभ प्रसंगों' को 'अंग्रेजी कल्चर' के अनुसार जीने को ही 'श्रेष्ठ' माना।

माता-पिता को 'मम्मी' और

'डैड' कहना सिखाया।

जब 'अंग्रेजी कल्चर' से परिपूर्ण बालक या बालिका बड़ा होकर, आपको 'समय' नहीं देता, आपकी 'भावनाओं' को नहीं समझता, आप को 'तुच्छ' मानकर 'जुबान लड़ाता' है और आप को बच्चों में कोई 'संस्कार' नजर नहीं आता है, 

तब घर के वातावरण को 'गमगीन किए बिना'... या...

'संतान को दोष दिए बिना'...कहीं 'एकान्त' में जाकर 'रो लें'...

क्योंकि...

पुत्र या पुत्री की पहली वर्षगांठ से ही,

'भारतीय संस्कारों' के बजाय,मंदिर जाने की जगह,

'केक' कैसे काटा जाता है सिखाने वाले आप ही हैं...

'हवन कुण्ड में आहुति' कैसे दी जाए... 

'मंत्र, आरती, हवन, पूजा-पाठ, आदर-सत्कार के संस्कार देने के बदले'...

केवल 'फर्राटेदार अंग्रेजी' बोलने को ही,

अपनी 'शान' समझने वाले भी शायद आप ही हैं...

बच्चा जब पहली बार घर से बाहर निकला तो उसे

'प्रणाम-आशीर्वाद' के बदले

'बाय-बाय' कहना सिखाने वाले आप...

परीक्षा देने जाते समय

'इष्टदेव/बड़ों के पैर छूने' के बदले

'Best of Luck'

कह कर परीक्षा भवन तक छोड़ने वाले आप...

बालक या बालिका के 'सफल' होने पर, घर में परिवार के साथ बैठ कर 'खुशियाँ' मनाने के बदले...

'होटल में पार्टी मनाने' की 'प्रथा' को बढ़ावा देने वाले आप...

बालक या बालिका के विवाह के पश्चात्...

'कुल देवता / देव दर्शन' 

को भेजने से पहले... 

'हनीमून' के लिए 'फाॅरेन/टूरिस्ट स्पॉट' भेजने की तैयारी करने वाले आप...

ऐसी ही ढेर सारी 'अंग्रेजी कल्चर्स' को हमने जाने-अनजाने 'स्वीकार' कर लिया है...

अब तो बड़े-बुजुर्गों और श्रेष्ठों के 'पैर छूने' में भी 'शर्म' आती है...

गलती किसकी..? 

मात्र आपकी '(माँ-बाप की)'...

अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा' है... 

कामकाज हेतु इसे 'सीखना'है,अच्छी बात है पर

इसकी 'संस्कृति' को,'जीवन में उतारने' की तो कोई बाध्यता नहीं थी? 

अपनी समृद्ध संस्कृति को त्यागकर नैतिक मूल्यों,मानवीय संवेदनाओं से रहित अन्य सभ्यताओं की जीवनशैली अपनाकर हमनें क्या पाया? अवैध संबंध? टूटते परिवार? व्यसनयुक्त तन? थकेहारे मन? छलभरे रिश्ते? अभद्र,अनुशासनहीन संतानें? असुरक्षित समाज? भयावह भविष्य?

एक बार विचार अवश्य कीजिएगा कि संस्कारवान पीढ़ी क्यों आवश्यक है.

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