कुंभ में नरेन्द्रानंद सरस्वती का महायज्ञ




काच्ची सुमेरु पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती के शिविर में 31 जनवरी से 'पराशक्ति महायज्ञ' होगा। इसमें पांच करोड़ आहुतियां दी जाएंगी। यह महायज्ञ 15 दिनों तक चलेगा।

स्वामीजी ने कहा कि वोट बैंक की राजनीति के चलते सरकार जवानों को दांव पर लगा रही है। केन्द्र सरकार की नीतियों पर प्रहार करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि कहा कि वर्तमान में पूरा देश असुरक्षित दौर से गुजर रहा है। इस शासन में न तो जनता सुरक्षित है और न ही देश की सेना।

चलो मन गंगा यमुना तीर : एक माह से भी अधिक दिनों तक चलने वाले इस सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत 16 जनवरी से होगी। प्रथम दिवस की सांस्कृतिक संध्या शहनाई वादन, ऋचा पाठ व मंगल शंख ध्वनि व मंथन कथक शैली की प्रस्तुति के साथ प्रारंभ होगी। उद्‌घाटन दिवस के मुख्‍य आकर्षण सुप्रसिद्ध संगीतकार रवीन्द्र जैन होंगे।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों में धनबाद के सुशील बावजो के भजन, चंचल भारती की कव्वाली, पद्‌मश्री गोपाल दास नीरज एवं अन्य लोक बोली के कवियों का काव्य पाठ, सुप्रसिद्ध पंजाबी गायक लखबीरसिंह लक्खा का सूफी भजन गायन, राजू श्रीवास्तव के हास्य व्यंग्य आदि कार्यक्रम होंगे। 
0 0

कुंभ मेला, प्रथम नायक- त्रिवेणी संगम सिंहासन Kumbh Mela, First Hero- Triveni Sangam Throne

यह पवित्र संगम गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन स्थल है। भारत का यह सबसे ज्यादा पवित्र जल तीर्थ माना जाता है। वेद पुराण महाकाव्य और अन्य प्राचीन ग्रंथों में इस पवित्र तीर्थ की महिमा का उल्लेख है।

ऋग्वेद में कहा गया है कि सितासित तरंगों के संगम पर स्नान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस संगम पर यदि प्राणान्त हो जाए तो जीव को दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता।

महाकवि कालिदास ने कहा है कि इस पवित्र संगम में स्नान करने से ज्ञान प्राप्ति के बिना भी मुक्ति मिल जाती है। रामायण, महाभारत और अन्य पुराणों में त्रिवेणी संगम की महिमा का बखान किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने त्रिवेणी संगम क्षेत्र को तीर्थराज प्रयाग का राजसी भव्य सिंहासन कहा है-

संगम सिंहासन सुठि सोहा। छत्र अक्षयवट मुनि मन मोहा।
चंवर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुःख दारिद भंगा॥

त्रिवेणी के निर्गुण स्वरूप की व्याख्या करते हुए कवि ने कहा है-

देहेन्द्रिय प्राण मनो मनीषा
चित्ता ह यज्ञान विभिन्न रूपा
तत्साक्षिणी या स्फुरित स्व भासा
साक्षात्‌ त्रिवेणी मम सिद्धदास्तु

देह, इंद्रिय, प्राण, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, अज्ञान- इन सबसे जिनका भिन्न रूप है, लेकिन जो इन सबकी साक्षी रूपा त्रिवेणी हैं, जो अपने ही प्रकाश से प्रकाशित हैं, वह मुझे सिद्धि प्रदान करें।

जाग्रत्प्रदं स्वप्नपदं सुषुप्तं
विद्योतयन्ती विकृति तदीयाम्‌।
या निर्विकारोपनिषत्प्रसिद्धा
साक्षात्‌ त्रिवेणी मम सिद्धदास्तु

जागृति स्वप्न सुषुप्ति और इनके विचारों को भी जो प्रकाशित करती है, जो उपनिषदों में निर्विकार के नाम से प्रसिद्ध है, वह साक्षात त्रिवेणी मेरे लिए सिद्धि देने वाली हो।

त्रिवेणी के निर्विकार और सगुण दोनों ही रूपों की प्रशंसा ऋषि-मुनियों और कवियों ने की है। इन मनीषियों ने उन्हें तीर्थराज प्रयाग की प्रिया कहा है-

उत्फुल्लारुण पद्‌मनेत्र युगला मुद्‌दण्ड दैत्यापहाम्‌।
उद्योतोज्ज्वल तीर्थराज रमणी उल्लास तेजोवतीम्‌॥
उत्तकर्षाभयदान पेशलकरा मुच्छास शक्तिप्रदाम्‌।
उर्वस्यार्चित पादुकाम्‌ पर कलां देवीं त्रिवेणीं भजे॥

खिले हुए लाल कमल के समान जिनके नेत्र हैं, जो उद्‌दण्ड दैत्यों का नाश करने वाली हैं, प्रभा से विलसित हैं, तीर्थराज प्रयाग की प्रिया हैं, उल्लास और तेज से युक्त हैं, उत्कर्ष और अभयदान देती हैं, जीवन शक्ति देती हैं, जिनकी खड़ाऊ की पूजा उर्वशी करती हैं, जो उत्कृष्ट कलाओं का रूप हैं, ऐसी त्रिवेणी देवी की मैं वंदना करता हूं।

त्रिवेणी में गंगा-यमुना के साथ गुप्त सरस्वती का संगम माना गया है। इस जलधारा की आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महिमा से आकर्षित होकर हजारों साल से ऋषि-मुनि, राजा और सम्राट संगम क्षेत्र में आते हैं। अनेक दार्शनिकों, धर्म प्रचारकों ने इस संगम में स्नान करके अपने मत, संप्रदाय और सिद्धांत का प्रचार-प्रसार किया।

तीर्थराज प्रयाग का यह संगम सिंहासन एक तरह से ज्ञान-विज्ञान, दर्शन और धार्मिक सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार का मंच बन गया है। संगम क्षेत्र से ही अनेक दार्शनिकों ने अपने समाज कल्याणकारी सिद्धांतों का प्रचार किया। इन दार्शनिक संतों में जगद्‌गुरु शंकराचार्य, गुरु रामानंद, निम्बाकाचार्य, वल्लभाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, रूप गोस्वामी, संत रविदास को आज भी बड़ी श्रद्धा से याद किया जाता है।
0 0

इलाहाबाद कुंभ, षष्ठ नायक : अक्षयवट वृक्ष

www.goswamirishta.com


FILE
अक्षयवट तीर्थराज प्रयाग का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। पुराण कथाओं के अनुसार यह सृष्टि और प्रलय का साक्ष्य है। नाम से ही जाहिर है कि इसका कभी नाश नहीं होता।

प्रलयकाल में जब सारी धरती जल में डूब जाती है तब भी अक्षयवट हरा-भरा रहता है। बाल मुकुंद का रूप धारण करके भगवान विष्णु इस बरगद के पत्ते पर शयन करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह पवित्र वृक्ष सृष्टि का परिचायक है।

करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दं विनिवशयन्तम्‌। 
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥ 

शूलपाणि महेश्वर इस वृक्ष की रक्षा करते हैं, तव वटं रक्षति सदा शूलपाणि महेश्वरः। पद्‌म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है-

छत्तेऽमितश्चामर चारुपाणी सितासिते यत्र सरिद्वरेण्ये। 
अद्योवटश्छत्रमिवाति भाति स तीर्थ राजो जयति प्रयागः॥ 

अक्षयवट का धार्मिक महत्व सभी शास्त्र-पुराणों में कहा गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग प्रयागराज के संगम तट पर आया था। उसने अक्षयवट के बारे में लिखा है- नगर में एक देव मंदिर (पातालपुरी मंदिर) है। यह अपनी सजावट और विलक्षण चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है।

कहा जाता है कि जो श्रद्धालु इस स्थान पर एक पैसा चढ़ाता है, उसे एक हजार स्वर्ण मुद्रा चढ़ाने का फल मिलता है। मंदिर के आंगन में एक विशाल वृक्ष (अक्षयवट) है, जिसकी शाखाएं और पत्तियां दूर-दूर तक फैली हैं।

पौराणिक और ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार मुक्ति की इच्छा से श्रद्धालु इस बरगद की ऊंची डालों पर चढ़कर कूद जाते थे।

मुगल शासकों ने यह प्रथा खत्म कर दी। उन्होंने अक्षयवट को भी आम तीर्थयात्रियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया। इस वृक्ष को कालान्तर में नुकसान पहुंचाने का विवरण भी मिलता है।

आज का अक्षयवट पातालपुरी मंदिर में स्थित है। यहां एक विशाल तहखाने में अनेक देवताओं के साथ बरगद की शाखा रखी हुई है। इसे तीर्थयात्री अक्षयवट के रूप में पूजते हैं।

अक्षयवट का पहला उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है। भारद्वाज ऋषि ने भगवान राम से कहा था- नर श्रेष्ठ तुम दोनों भाई गंगा और यमुना के संगम पर जाना, वहां से पार उतरने के लिए उपयोगी घाट में अच्छी तरह देखभाल कर यमुना के पार उतर जाना। आगे बढ़ने पर तुम्हें बहुत बड़ा वट वृक्ष मिलेगा। उसके पत्ते हरे रंग के हैं। वह चारों ओर से दूसरे वृक्षों से घिरा हुआ है। उसका नाम श्यामवट है। उसकी छाया में बहुत से सिद्ध पुरुष निवास करते हैं। वहां पहुंचकर सीता को उस वृक्ष से आशीर्वाद की याचना करनी चाहिए। यात्री की इच्छा हो तो यहां कुछ देर तक रुके या वहां से आगे चला जाए।

अक्षयवट को वृक्षराज और ब्रह्मा, विष्णु, शिव का रूप कहा गया है-

नमस्ते वृक्ष राजाय ब्रह्ममं, विष्णु शिवात्मक।
सप्त पाताल संस्थाम विचित्र फल दायिने॥
नमो भेषज रूपाय मायायाः पतये नमः।
माधवस्य जलक्रीड़ा लोल पल्लव कारिणे॥
प्रपंच बीज भूताय विचित्र फलदाय च।
नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमो नमः॥
0 0

सांवरे सलोने का दीदार चाहिए

www.goswamirishta.com

हमे सांवरे सलोने का दीदार चाहिए
हमे नटवर के इश्क का बीमार चाहिए
माधुरी सी मूर्ति हरदम हो सामने
हमे सांवरे के प्रेम का इतबार चाहिए
रसिक सांवरे की नजर हो इस तरफ
...हमे मोर मुकुट वाला ही दिलदार चाहिए
हमे सांवरे सलोने का दीदार चाहिए
हमे नटवर के इश्क का बीमार चाहिए
माधुरी सी मूर्ति हरदम हो सामने
हमे सांवरे के प्रेम का इतबार चाहिए
रसिक सांवरे की नजर हो इस तरफ
...हमे मोर मुकुट वाला ही दिलदार चाहिए
♥¸.•* जय श्रीकृष्ण *•.¸♥(shashikhillan)
0 0

सांवरे सलोने का दीदार चाहिए

www.goswamirishta.com


हमे सांवरे सलोने का दीदार चाहिए
हमे नटवर के इश्क का बीमार चाहिए
माधुरी सी मूर्ति हरदम हो सामने
हमे सांवरे के प्रेम का इतबार चाहिए
रसिक सांवरे की नजर हो इस तरफ
...हमे मोर मुकुट वाला ही दिलदार चाहिए
♥¸.•* जय श्रीकृष्ण *•.¸♥(shashikhillan)
0 0

तेरा दर्श पाने को जी चाहता है

www.goswamirishta.com

तेरा दर्श पाने को जी चाहता है।
खुदी को मिटाने का जी चाहता है॥
पिला दो मुझे मस्ती के प्याले।
मस्ती में आने को जी चाहता है॥
उठे श्याम तेरे मोहोब्बत का दरिया।
मेरा डूब जाने को जी चाहता है॥
यह दुनिया है एक नज़र का धोखा।
इसे ठुकराने को जी चाहता है॥
श्री कृष्ण गोविन्द, हरे मुरारी, हे
नाथ, नारायण, वासुदेव.
तेरा दर्श पाने को जी चाहता है।
खुदी को मिटाने का जी चाहता है॥
पिला दो मुझे मस्ती के प्याले।
मस्ती में आने को जी चाहता है॥
उठे श्याम तेरे मोहोब्बत का दरिया।
मेरा डूब जाने को जी चाहता है॥
यह दुनिया है एक नज़र का धोखा।
इसे ठुकराने को जी चाहता है॥
श्री कृष्ण गोविन्द, हरे मुरारी, हे
नाथ, नारायण, वासुदेव.shashikhillan

0 0

जय कारा वीर बजरंगी....

www.goswamirishta.com


♥ ॐ श्री गणेशाय नमः
♥ जय कारा वीर बजरंगी......हर हर महादेव ♥
रामु मातु पितु बंधु सुजन गुरु पूज्य परमहित साहेबु
सखा सहाय नेह नाते , पुनीत चितदेसु , कोसु ,
कुलु , कर्म , धर्म , धनु , धामु , धरनि ,गति
जाति पाति सब भाँति लागि रामहि हमारि पति
परमारथु , स्वारथु , सुजसु , सुलभ राम तें सकल फल
कह तुलसीदासु अब जब - कबहूँ एक रामते मोर भल !!
बोलो सियावर राम चन्द्र महाराज की जय !
बोलो पवन पुत्र हनुमान की जय
उमापति महादेव की जय !
संकलनकर्ता.......शंकर डंग.....
♥ ॐ श्री गणेशाय नमः
 ♥ जय कारा वीर बजरंगी......हर हर महादेव ♥
रामु मातु पितु बंधु सुजन गुरु पूज्य परमहित साहेबु
सखा सहाय नेह नाते , पुनीत चितदेसु , कोसु ,
कुलु , कर्म , धर्म , धनु , धामु , धरनि ,गति
जाति पाति सब भाँति लागि रामहि हमारि पति
परमारथु , स्वारथु , सुजसु , सुलभ राम तें सकल फल
कह तुलसीदासु अब जब - कबहूँ एक रामते मोर भल !!
बोलो सियावर राम चन्द्र महाराज की जय !
बोलो पवन पुत्र हनुमान की जय 
उमापति महादेव की जय !
संकलनकर्ता.......शंकर डंग.....

0 0

राधा का नाम जपने से श्रीकृष्ण जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं।

www.goswamirishta.com

शास्त्रों के अनुसार राधा का नाम जपने से श्रीकृष्ण जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के बाद किसी भी व्यक्ति के लिए सुख-समृद्धि के सभी द्वार खुल जाते हैं। श्रीकृष्ण और राधा अपने अटूट निस्वार्थ प्रेम के कारण ही सच्चे प्रेम के प्रतीक माने गए हैं। राधा नाम की महिमा के संबंध में एक प्रसंग है। देवर्षि नारद राधा की महिमा और ख्याति देखकर उससे ईष्र्या करने लगे थे। इसी ईष्र्या वश वे श्रीकृष्ण से राधा को दिए गए महत्व को जानने के लिए उनके पास पहुंचे। जब वे श्रीकृष्ण के पास पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने नारदजी से कहा कि मेरे सिर में दर्द है। तब देवर्षि ने कहा प्रभु आप बताएं मैं क्या कर सकता हूं? जिससे आपका सिर दर्द शांत हो। श्रीकृष्ण ने कहा आप मेरे किसी भक्त का चरणामृत लाकर मुझे पिला दें। उसी चरणामृत से मुझे शांति मिलेगी। नारदजी से सोच में पड़ गए कि भगवन् का भक्त तो मैं भी हूं, परंतु मेरे चरणों का जल श्रीकृष्ण को कैसे पिला सकता हूं? ऐसा करना तो घोर पाप है और इससे निश्चित ही मुझे नरक भोगना पड़ेगा। यह सोचते हुए वे देवी रुकमणी के पास पहुंचे और श्रीकृष्ण की वेदना कह सुनाई। रुकमणी ने भी देवर्षि नारद की बात का समर्थन किया और कहा कि प्रभु को अपने चरणों का जल पिलाना अवश्य की घोर पाप है। तब नारदजी ने सोचा राधा भी श्रीकृष्ण की भक्त है उसी से प्रभु का कष्ट दूर करने की बात करनी चाहिए। वे राधा के पास पहुंच गए और श्रीकृष्ण के सिर दर्द और उसके निवारण के लिए उनके भक्त के चरणामृत की बात कही। राधा ने तुरंत ही एक पात्र में जल भरा और उसमें अपने पैर डालकर वह पात्र नारदजी देते हुए कहा कि मैं जानती हूं ऐसा जल श्रीकृष्ण को पिलाना बहुत बड़ा पाप है और मुझे अवश्य ही नरक भोगना पड़ेगा परंतु मेरे प्रियतम के कष्ट को दूर करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं, नरक भी भोगना पड़ेगा तब भी मुझे खुशी ही प्राप्त होगी। यह सुनकर देवर्षि नारद की आंखे खुल गई कि देवी राधा परम पूजनीय है। वे प्रभु श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त हैं। इसी वजह से भगवन् श्रीकृष्ण राधे-राधे के जप से तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। अब नारदजी भी राधे-राधे का जप करने लगे।
शास्त्रों के अनुसार राधा का नाम जपने से श्रीकृष्ण जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के बाद किसी भी व्यक्ति के लिए सुख-समृद्धि के सभी द्वार खुल जाते हैं। श्रीकृष्ण और राधा अपने अटूट निस्वार्थ प्रेम के कारण ही सच्चे प्रेम के प्रतीक माने गए हैं। राधा नाम की महिमा के संबंध में एक प्रसंग है। देवर्षि नारद राधा की महिमा और ख्याति देखकर उससे ईष्र्या करने लगे थे। इसी ईष्र्या वश वे श्रीकृष्ण से राधा को दिए गए महत्व को जानने के लिए उनके पास पहुंचे। जब वे श्रीकृष्ण के पास पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने नारदजी से कहा कि मेरे सिर में दर्द है। तब देवर्षि ने कहा प्रभु आप बताएं मैं क्या कर सकता हूं? जिससे आपका सिर दर्द शांत हो। श्रीकृष्ण ने कहा आप मेरे किसी भक्त का चरणामृत लाकर मुझे पिला दें। उसी चरणामृत से मुझे शांति मिलेगी। नारदजी से सोच में पड़ गए कि भगवन् का भक्त तो मैं भी हूं, परंतु मेरे चरणों का जल श्रीकृष्ण को कैसे पिला सकता हूं? ऐसा करना तो घोर पाप है और इससे निश्चित ही मुझे नरक भोगना पड़ेगा। यह सोचते हुए वे देवी रुकमणी के पास पहुंचे और श्रीकृष्ण की वेदना कह सुनाई। रुकमणी ने भी देवर्षि नारद की बात का समर्थन किया और कहा कि प्रभु को अपने चरणों का जल पिलाना अवश्य की घोर पाप है। तब नारदजी ने सोचा राधा भी श्रीकृष्ण की भक्त है उसी से प्रभु का कष्ट दूर करने की बात करनी चाहिए। वे राधा के पास पहुंच गए और श्रीकृष्ण के सिर दर्द और उसके निवारण के लिए उनके भक्त के चरणामृत की बात कही। राधा ने तुरंत ही एक पात्र में जल भरा और उसमें अपने पैर डालकर वह पात्र नारदजी देते हुए कहा कि मैं जानती हूं ऐसा जल श्रीकृष्ण को पिलाना बहुत बड़ा पाप है और मुझे अवश्य ही नरक भोगना पड़ेगा परंतु मेरे प्रियतम के कष्ट को दूर करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं, नरक भी भोगना पड़ेगा तब भी मुझे खुशी ही प्राप्त होगी। यह सुनकर देवर्षि नारद की आंखे खुल गई कि देवी राधा परम पूजनीय है। वे प्रभु श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त हैं। इसी वजह से भगवन् श्रीकृष्ण राधे-राधे के जप से तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। अब नारदजी भी राधे-राधे का जप करने लगे।

0 0

राम प्रभूजी

www.goswamirishta.com

हे राम प्रभूजी दयाभवन ।
तुमसा है जग में और कवन ।।

सुखसागर नागर जलजनयन ।
गुन आगर करुना क्षमा अयन ।।
...
सुखदायक लायक विपतिसमन ।
भवतारन हारन जरा-मरन ।।

संकोचसिन्धु धुर धर्म धरन ।
शारंग धर टाँरन भार अवन ।।

जग पालन कारन सियारमन ।
देवों को दायक तुम्ही अमन ।।

मन लाजे तुमको देखि मदन ।
शोभा की सीमा शील सदन ।।

विश्वाश्रय रघुवर विश्व भरन ।
तुमको प्रभु वारंवार नमन ।।

तुम बिनु प्रभु क्या यह मानुष तन ।
बन जाओ मेरे जीवनधन ।।

दुःख दारिद दावन दोष दमन ।
तुमको ही ध्याये मेरा मन ।।

प्रभुजी अवगुन अघ ओघ हरन ।
हो चित चकोर विधु आप वदन ।।


नहि मालुम मुझको एक जतन ।
तुम बिनु को हारे दुख दोष तपन ।।

कहते हैं स्वामी तव गुनगन ।
सरनागत राखन प्रभु का पन ।।

मेरा उर हो प्रभु आप सदन ।
गहि बाँह रखो मोहि जानिके जन ।।

विनती प्रभुजी तारन-तरन ।
मन का भी मेरे हो नियमन ।।

हे रामप्रभू मेरे भगवन ।
मै चाह रहा तेरी चितवन ।।

करुनासागर संतोष सरन ।
है ठौर इसे बस आप चरन ।।
0 0

Hey Shiv Shankar

www.goswamirishta.com

Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,

Bhav Sagar Se Par Utaro,aaye Sharan Tihari,
Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,

Chandra Lalat Bhabut Ramaye,gatgambar Hari,
Karn Mein Damru Gale Bhujanga, Nandi Khado Dware,
Hey Ganga Dhar Daras Dikha Do, Hey Bhole Bhandari,
Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,
Bhav Sagar Se Par Utaro,aaye Sharan Tihari
Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,

Janam Maran Ke Tum Ho Swami, Hey Shankar Abhilashi,
Kan Kan Mein Hai Rup Tumhara, Hey Bhole Kailashi,
Charan Sharan Mein Aaya Jo Bhi, Rakhyo Laaj Hamari
Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,
Bhav Sagar Se Par Utaro,aaye Sharan Tihari
Hey Shiv Shankar Hey Karunakar, Suniye Arj Hamari,
0 0

Feetured Post

नारी शक्ति की सुरक्षा के लिये

 1. एक नारी को तब क्या करना चाहिये जब वह देर रात में किसी उँची इमारत की लिफ़्ट में किसी अजनबी के साथ स्वयं को अकेला पाये ?  जब आप लिफ़्ट में...