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(1) भोगवार अर्थात वे संसार की समस्त वस्तुओं के प्रति उदासीन भाव रखते हैं। भोग उन सांसारिक वस्तुुओं का स्वाद लेने को कहते हैं जो जीवन के नितान्त आवश्यक नहीं हैं।
(2) कीटवार अथवा वे जो स्वल्पाहार करने का प्रयत्न करते है।
(3) आनन्दवार अथवा वे जो भिक्षा की याचना से विरत रहते हैं और उतने ही पर निर्वाह करते है जितना उन्हे स्वतन्त्र रूप से मिल जाता है।
(4) भूरिवार अथवा वे जो जंगल में उत्पन्न होनेवाली वनस्पति आदि से अपना निर्वाह करते हैं।
(2) कीटवार अथवा वे जो स्वल्पाहार करने का प्रयत्न करते है।
(3) आनन्दवार अथवा वे जो भिक्षा की याचना से विरत रहते हैं और उतने ही पर निर्वाह करते है जितना उन्हे स्वतन्त्र रूप से मिल जाता है।
(4) भूरिवार अथवा वे जो जंगल में उत्पन्न होनेवाली वनस्पति आदि से अपना निर्वाह करते हैं।