धर्म ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेय भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। इनका जन्म मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को प्रदोषकाल में हुआ था। ऐसी मान्यता है कि भक्त के स्मरण करते ही भगवान दत्तात्रेय उसकी हर समस्या का निदान कर देते हैं इसलिए इन्हें स्मृतिगामी व स्मृतिमात्रानुगन्ता कहा जाता है। श्रीमद्भगावत आदि ग्रंथों के अनुसार इन्होंने चौबीस गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी।
भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। गिरनारक्षेत्र श्रीदत्तात्रेय भगवान की सिद्धपीठ है। इनकी गुरुचरणपादुकाएं वाराणसी तथा आबूपर्वत आदि कई स्थानों पर हैं।
श्री दत्तात्रय याने अत्रि ऋषि और अनसूया के तपश्या का फल.
"दत्तात्रय " शब्द दत्त+अत्रेय की संधि से बना है। अत्रेय याने अत्रि ऋषि का पुत्र,ब्रह्मा,विष्णू व महेश इन तीन देवों का अवतार दत्तात्रया के रूप में होने से उन्हे तीन मुखहोना प्रसिध्द है व ये सत्व-रज-तम,उत्पत्ति-स्थिती-लय,जाग्रति-स्वप्न-सुषुप्ति के ध्योतक है।
ब्रह्मा,विष्णू व महेश का समावेश करनेवाले तीन मुख छ:हात में नीचे के दो हात ब्रह्मदेवके प्रतिक कमंडल व जयमाला,बीच के दो हात भगवान् शंकर के प्रतिक त्रिशूल व डमरू और उपर के दो हात विष्णू देवता के प्रतिक शंख व चक्र ऐसे रूप का वर्णन है।
श्री दत्तात्रय के बगल में एक झोली रहती है जो अंह नष्ट होने का प्रतिक है। घर घर भिक्षा मांगने से अंह कम होता है।
औदुंबर वृक्ष आद्य कलियुग से दत्तात्रय का प्रिय वृक्ष है। इसलिये दत्तात्रय के चित्र में और जहाँ जहाँ दत्तात्रय की मूर्ती या पादुका होगी वहाँ वहाँ अधिकतर औदुंबर वृक्ष दिखाई देता है।
श्री दत्तात्रयके पीछे माया का प्रतिक गायखडी होती है।
श्री दत्तात्रया के आस पास इच्छा,वासना,आशा व तृष्णा के प्रतिक चार श्वान होते हैं जो काम,क्रोध,मद आणि मत्सर श्री दत्तात्रयके काबू में होते हैं।
श्रीदत्तात्रय की विविध रूपों में उपासना की जाती है। इन्हे 'तीन मस्तक छ:हात'के स्वरूपमें पहचाना जाता है। उनके पीछे गाय पृथ्वीमाता की, चार कुत्ते वेदों के प्रतिक माने जाते है। इसलिये श्रीदत्तात्रय पवित्र पृथ्वी व पवित्र वेद इनका अधिष्ठाता देव है।
सोलह अवतार :
भक्त जनों के कल्याण के लिये दत्तात्रया के जो विविध अवतार हुये उनमें सोलह अवतारों को प्राधान्य दिया गया है। इन सोलह अवतारों के नाम नि हैं
1. योगिराज
2. अत्रिवरदा
3. दत्तात्रय
4. कालाग्निशमन
5. योगिजनवल्लभ
6. लीलाविश्वंभर
7. सिध्दराज
8. ग्यानसागर
9. विश्वंभरावधूत
10 मायामुक्तावधूत
11 मायायुक्तावधूत
12 आदिगुरू:
13. शिव
14 देवदेव
15 दिगंबर
16कमललोचन
श्री दत्तात्रय याने अत्रि ऋषि और अनसूया के तपश्या का फल.
"दत्तात्रय " शब्द दत्त+अत्रेय की संधि से बना है। अत्रेय याने अत्रि ऋषि का पुत्र,ब्रह्मा,विष्णू व महेश इन तीन देवों का अवतार दत्तात्रया के रूप में होने से उन्हे तीन मुखहोना प्रसिध्द है व ये सत्व-रज-तम,उत्पत्ति-स्थिती-लय,जाग्रति-स्वप्न-सुषुप्ति के ध्योतक है।
ब्रह्मा,विष्णू व महेश का समावेश करनेवाले तीन मुख छ:हात में नीचे के दो हात ब्रह्मदेवके प्रतिक कमंडल व जयमाला,बीच के दो हात भगवान् शंकर के प्रतिक त्रिशूल व डमरू और उपर के दो हात विष्णू देवता के प्रतिक शंख व चक्र ऐसे रूप का वर्णन है।
श्री दत्तात्रय के बगल में एक झोली रहती है जो अंह नष्ट होने का प्रतिक है। घर घर भिक्षा मांगने से अंह कम होता है।
औदुंबर वृक्ष आद्य कलियुग से दत्तात्रय का प्रिय वृक्ष है। इसलिये दत्तात्रय के चित्र में और जहाँ जहाँ दत्तात्रय की मूर्ती या पादुका होगी वहाँ वहाँ अधिकतर औदुंबर वृक्ष दिखाई देता है।
श्री दत्तात्रयके पीछे माया का प्रतिक गायखडी होती है।
श्री दत्तात्रया के आस पास इच्छा,वासना,आशा व तृष्णा के प्रतिक चार श्वान होते हैं जो काम,क्रोध,मद आणि मत्सर श्री दत्तात्रयके काबू में होते हैं।
श्रीदत्तात्रय की विविध रूपों में उपासना की जाती है। इन्हे 'तीन मस्तक छ:हात'के स्वरूपमें पहचाना जाता है। उनके पीछे गाय पृथ्वीमाता की, चार कुत्ते वेदों के प्रतिक माने जाते है। इसलिये श्रीदत्तात्रय पवित्र पृथ्वी व पवित्र वेद इनका अधिष्ठाता देव है।
सोलह अवतार :
भक्त जनों के कल्याण के लिये दत्तात्रया के जो विविध अवतार हुये उनमें सोलह अवतारों को प्राधान्य दिया गया है। इन सोलह अवतारों के नाम नि हैं
1. योगिराज
2. अत्रिवरदा
3. दत्तात्रय
4. कालाग्निशमन
5. योगिजनवल्लभ
6. लीलाविश्वंभर
7. सिध्दराज
8. ग्यानसागर
9. विश्वंभरावधूत
10 मायामुक्तावधूत
11 मायायुक्तावधूत
12 आदिगुरू:
13. शिव
14 देवदेव
15 दिगंबर
16कमललोचन
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