पुराणों और धार्मिक कथाओँ में प्राणदान, शक्तिपात आदि का वर्णन मिलता है। गुरुजन अपने शिष्यों को उत्तराधिकार में बहुत कुछ देते रहे हैं। विवरणों को अक्सर कपोल कल्पित कथाएं या कोई आध्यात्मिक सत्य सिखाने के लिए गढ़े गए दृष्टांत समझा जाता रहा है। पर अब इस तरह की बातें हकीकत साबित होने लगी हैं। इस ऊर्जा को प्राण शक्ति या मानवी शरीर में मौजूद बिजली कहा जाता है। सामान्य तथ्य यह है कि प्राणियों के जीवन का आधार सूक्ष्म प्राण शक्ति है।
मनुष्य में यह प्राण शक्ति विशेष होती है। उसे बढ़ाया जा सकता है। शरीर और मन दोनों प्राण पर निर्भर हैं। प्राण शक्ति द्वारा रोगों की चिकित्सा के संबंध में योग व तन्त्र ग्रंथों में बहुत वर्णन मिलता है। फिलीपीन्स के कुछ चिकित्सा विज्ञानियों ने इस प्राण शक्ति से सर्जरी के प्रयोग किए हैं। डॉ. हिरोशी मोटोयामा ने अपनी ‘साइकिक सर्जरी इन द फिलीपिन्स’ नामक पुस्तक में ऐसे रोगियों के बारे में लिखा है जिनका उपचार इस विधि से किया गया। इन रोगियों में हृदय रोगी, मिरगी या आंतों के फोड़े वाले रोगी भी थे।
इन रोगों की सत्यता है की जांच वैज्ञानिक ढंग से कर ली गई। डॉक्टर हिरोशी के अनुसार परीक्षण के दौरान यह भी देखा गया कि प्राण शक्ति का प्रभाव दूसरे कमरे में बैठे रोगी व्यक्ति पर भी उसी प्रकार पड़ता है जैसे कोई अवरोध बीच में न हो। किर्लियन फोटो विधि की खोज तो बीसियों साल पुरानी है।
सर जॉन मूरी और डॉ. ग्रेडेन रिक्सेन ने पत्तों और अंगुलियों की छाप पर अनुसन्धान के दौरान पाया कि शरीर का हर हिस्सा इस ऊर्जा से सराबोर है। इस ऊर्जा वलय को पराविद्या की भाषा में ओरा या आभामंडल कहते हैं। और आसान शब्दावली में प्राण शक्ति अथवा शारीरिक विद्युत भी कहा जा सकता है।
वैज्ञानिक विलियम टीलर एवं थेलमा माम ने प्राणशक्ति पर प्रयोगों के दौरान पाया कि दो विभिन्न शरीरों से निकलने वाला प्रवाह अलग अलग प्रकृति का होता है। प्राण शक्ति इस ब्रह्माण्ड के कण-कण में प्रवाहित हो जाती है। यही शक्ति प्राणियों में फैल कर प्रवाहित हो कर उन्हें जीवन देती है। शरीर के अस्वस्थ एवं अविकसित कोशों को प्राण शक्ति ही नव जीवन देती है। विभिन्न यौगिक क्रियाओं आसन, प्राणयाम, मुद्रा, बन्ध और ध्यान आदि के द्वारा प्राण का संचार सुचारू रूप से होने लगता है।
हाथों की उंगुलियों से प्राण शक्ति अन्य अंगों की अपेक्षा अधिक मात्रा में बहती है। न्यूयार्क विश्व विद्यालय की नर्सों की प्रशिक्षण के दौरान डॉ. डोलारेस क्रीगर ने कुछ रोगियों को दो समूहों में विभक्त करके प्रयोग किया। एक समूह के रोगियों पर स्पर्श चिकित्सा प्रारंभ की तथा दूसरे समूह के रोगियों की नित्य की भांति परिचर्या की गयी तथा औषधियां दी जाती रही।
पहले समूह के रोगियों पर दिन में दो बार नर्सें अपने हाथों के स्पर्श से और विचारों से मानसिक शक्ति संचरित करतीं। एक ही दिन में डॉ. क्रीगर ने देखा कि पहले समूह के रोगियों के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ गई, जब कि औषधि प्रयोग करने वाले दूसरे समूह के रोगियों के खून में कोई परिवर्तन नहीं आया।
डॉ. विलियम मेगोरी ने डॉ. क्रीगर की खोज को प्रमाणित करते हुए कहा है कि स्पर्श से प्राण शक्ति के संचार करने पर रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ जाती है और यह कोई मनौवैज्ञानिक परिवर्तन नहीं है। अपने और दूसरों के काम में जिस तरह श्रम और समय का उपयोग होता रहता है उसी प्रकार प्राण विद्युत को भी एक संपदा मानकर उसका सदुपयोग किया जा सकता है।
मनुष्य में यह प्राण शक्ति विशेष होती है। उसे बढ़ाया जा सकता है। शरीर और मन दोनों प्राण पर निर्भर हैं। प्राण शक्ति द्वारा रोगों की चिकित्सा के संबंध में योग व तन्त्र ग्रंथों में बहुत वर्णन मिलता है। फिलीपीन्स के कुछ चिकित्सा विज्ञानियों ने इस प्राण शक्ति से सर्जरी के प्रयोग किए हैं। डॉ. हिरोशी मोटोयामा ने अपनी ‘साइकिक सर्जरी इन द फिलीपिन्स’ नामक पुस्तक में ऐसे रोगियों के बारे में लिखा है जिनका उपचार इस विधि से किया गया। इन रोगियों में हृदय रोगी, मिरगी या आंतों के फोड़े वाले रोगी भी थे।
इन रोगों की सत्यता है की जांच वैज्ञानिक ढंग से कर ली गई। डॉक्टर हिरोशी के अनुसार परीक्षण के दौरान यह भी देखा गया कि प्राण शक्ति का प्रभाव दूसरे कमरे में बैठे रोगी व्यक्ति पर भी उसी प्रकार पड़ता है जैसे कोई अवरोध बीच में न हो। किर्लियन फोटो विधि की खोज तो बीसियों साल पुरानी है।
सर जॉन मूरी और डॉ. ग्रेडेन रिक्सेन ने पत्तों और अंगुलियों की छाप पर अनुसन्धान के दौरान पाया कि शरीर का हर हिस्सा इस ऊर्जा से सराबोर है। इस ऊर्जा वलय को पराविद्या की भाषा में ओरा या आभामंडल कहते हैं। और आसान शब्दावली में प्राण शक्ति अथवा शारीरिक विद्युत भी कहा जा सकता है।
वैज्ञानिक विलियम टीलर एवं थेलमा माम ने प्राणशक्ति पर प्रयोगों के दौरान पाया कि दो विभिन्न शरीरों से निकलने वाला प्रवाह अलग अलग प्रकृति का होता है। प्राण शक्ति इस ब्रह्माण्ड के कण-कण में प्रवाहित हो जाती है। यही शक्ति प्राणियों में फैल कर प्रवाहित हो कर उन्हें जीवन देती है। शरीर के अस्वस्थ एवं अविकसित कोशों को प्राण शक्ति ही नव जीवन देती है। विभिन्न यौगिक क्रियाओं आसन, प्राणयाम, मुद्रा, बन्ध और ध्यान आदि के द्वारा प्राण का संचार सुचारू रूप से होने लगता है।
हाथों की उंगुलियों से प्राण शक्ति अन्य अंगों की अपेक्षा अधिक मात्रा में बहती है। न्यूयार्क विश्व विद्यालय की नर्सों की प्रशिक्षण के दौरान डॉ. डोलारेस क्रीगर ने कुछ रोगियों को दो समूहों में विभक्त करके प्रयोग किया। एक समूह के रोगियों पर स्पर्श चिकित्सा प्रारंभ की तथा दूसरे समूह के रोगियों की नित्य की भांति परिचर्या की गयी तथा औषधियां दी जाती रही।
पहले समूह के रोगियों पर दिन में दो बार नर्सें अपने हाथों के स्पर्श से और विचारों से मानसिक शक्ति संचरित करतीं। एक ही दिन में डॉ. क्रीगर ने देखा कि पहले समूह के रोगियों के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ गई, जब कि औषधि प्रयोग करने वाले दूसरे समूह के रोगियों के खून में कोई परिवर्तन नहीं आया।
डॉ. विलियम मेगोरी ने डॉ. क्रीगर की खोज को प्रमाणित करते हुए कहा है कि स्पर्श से प्राण शक्ति के संचार करने पर रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ जाती है और यह कोई मनौवैज्ञानिक परिवर्तन नहीं है। अपने और दूसरों के काम में जिस तरह श्रम और समय का उपयोग होता रहता है उसी प्रकार प्राण विद्युत को भी एक संपदा मानकर उसका सदुपयोग किया जा सकता है।