चूना Lime

१- ५०-५० मिली चूने का पानी और नारियल का तेल मिलाकर खूब फेंटे | इसके गाढ़ा होने पर आग से जले स्थान पर इसे लगाने से दर्द और जलन ठीक होकर घाव भी ठीक हो जाते हैं |

२- दस ग्राम बुझा हुआ चूना तथा दस ग्राम आमा हल्दी मिलाकर गुमचोट पर लगाने से सूजन उतर जाती है |

३- बुझे हुए चूने को शहद के साथ मिलाकर गिल्टी पर बाँधने से गिल्टी में आराम मिलता है |

४- चूने के पानी में भीगा हुआ कपड़ा फोड़ों पर रखने से फोड़े ठीक हो जाते हैं


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एक्ज़िमा (ECZIMA)

एक्ज़िमा एक प्रकार का चर्म रोग है जिसमें रोगी की स्थिति अति कष्टपूर्ण होती है| इस रोग की शुरुआत में रोगी को तेज़ खुजली होती है तथा बार-बार खुजाने पर उसके शरीर में छोटी-छोटी फुंसियां निकल आती हैं | इन फुंसियों में भी खुजली और जलन होती है तथा पकने पर उनमें से मवाद बहता रहता है और फिर यह जख्म का रूप ले लेता है |
एक्ज़िमा शरीर के किसी भी भाग में एक गोलाकार दाने के रूप में पैदा होता है जिसमें हर समय खुजली होती रहती है | मुख्य रूप से यह रोग खून की खराबी के कारण होता है और चिकित्सा न कराने पर तेज़ी से शरीर में फैलता है | कब्ज़,हाज़मे की खराबी आदि और भी कारण से एक्ज़िमा हो सकता है | इस रोग में सफाई रखना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यह संक्रमित रोग है | एक्ज़िमा में रोगी को खून साफ़ करने वाली औषधियों का प्रयोग करने के साथ-साथ नहाने के पानी में नीम की पत्तियां या एंटीसेप्टिक लिक्विड डालकर नहाना चाहिए| रोगी को खट्टी-मीठी वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए |
आज हम आपको एक्ज़िमा के उपचारार्थ कुछ औषधि बताएंगे -

१- नारियल के तेल में कपूर मिलाकर एक्ज़िमा वाले स्थान पर लगाने से लाभ होता है |

२- अजवायन को पानी के साथ पीसकर लेप बना लें | इस लेप को प्रतिदिन पीड़ायुक्त स्थान पर लगाने से कुछ ही दिनों में एक्ज़िमा समाप्त हो जाता है |

३- नीम के कोमल पत्तों का रस निकालकर उसमें थोड़ी सी मिश्री मिला लें | इसे प्रतिदिन सुबह पीने से खून की खराबी दूर होकर एक्ज़िमा ठीक होने लगता है |

४- हरड़ को गौमूत्र में पीसकर लेप बना लें | यह लेप प्रतिदिन दो से तीन बार एक्जिमा पर लगाने से लाभ होता है |

५- आश्रम द्वारा निर्मित कायाकल्प तेल के प्रयोग से भी एक्ज़िमा में बहुत लाभ होता है | यह तेल दिन में दो बार पीड़ायुक्त स्थान पर लगाने से आराम मिलता है |

६- एक लीटर तिल के तेल में २५० ग्राम कनेर की जड़ को उबालें | कुछ देर उबालने के बाद यह जड़ जल जाती है | इसे ठण्डा करके छान लें| इस तेल को प्रतिदिन रुई से एक्ज़िमा पर सुबह-शाम लगाने से एक्ज़िमा जल्दी ही ठीक हो जाता है |

Photo: एक्ज़िमा (ECZIMA) -
                                    एक्ज़िमा एक प्रकार का चर्म रोग है जिसमें रोगी की स्थिति अति कष्टपूर्ण होती है| इस रोग की शुरुआत में रोगी को तेज़ खुजली होती है तथा बार-बार खुजाने पर उसके शरीर में छोटी-छोटी फुंसियां निकल आती हैं | इन फुंसियों में भी खुजली और जलन होती है तथा पकने पर उनमें से मवाद बहता रहता है और फिर यह जख्म का रूप ले लेता है | 
                   एक्ज़िमा शरीर के किसी भी भाग में एक गोलाकार दाने के रूप में पैदा होता है जिसमें हर समय खुजली होती रहती है | मुख्य रूप से यह रोग खून की खराबी के कारण होता है और चिकित्सा न कराने पर तेज़ी से शरीर में फैलता है | कब्ज़,हाज़मे की खराबी आदि और भी कारण से एक्ज़िमा हो सकता है | इस रोग में सफाई रखना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यह संक्रमित रोग है | एक्ज़िमा में रोगी को खून साफ़ करने वाली औषधियों का प्रयोग करने के साथ-साथ नहाने के पानी में नीम की पत्तियां या एंटीसेप्टिक लिक्विड डालकर नहाना चाहिए| रोगी को खट्टी-मीठी वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए | 
                    आज हम आपको एक्ज़िमा के उपचारार्थ कुछ औषधि बताएंगे -

१- नारियल के तेल में कपूर मिलाकर एक्ज़िमा वाले स्थान पर लगाने से लाभ होता है |

२- अजवायन को पानी के साथ पीसकर लेप बना लें | इस लेप को प्रतिदिन पीड़ायुक्त स्थान पर लगाने से कुछ ही दिनों में एक्ज़िमा समाप्त हो जाता है | 

३- नीम के कोमल पत्तों का रस निकालकर उसमें थोड़ी सी मिश्री मिला लें | इसे प्रतिदिन सुबह पीने से खून की खराबी दूर होकर एक्ज़िमा ठीक होने लगता है | 

४- हरड़ को गौमूत्र में पीसकर लेप बना लें | यह लेप प्रतिदिन दो से तीन बार एक्जिमा पर लगाने से लाभ होता है | 

५- आश्रम द्वारा निर्मित कायाकल्प तेल के प्रयोग से भी एक्ज़िमा में बहुत लाभ होता है | यह तेल दिन में दो बार पीड़ायुक्त स्थान पर लगाने से आराम मिलता है | 

६- एक लीटर तिल के तेल में २५० ग्राम कनेर की जड़ को उबालें | कुछ देर उबालने के बाद यह जड़ जल जाती है | इसे ठण्डा करके छान लें| इस तेल को प्रतिदिन रुई से एक्ज़िमा पर सुबह-शाम लगाने से एक्ज़िमा जल्दी ही ठीक हो जाता है |
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पुदीना peppermint


गर्मी में पुदीना खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। ये एक बहुत अच्छी औषधि भी है साथ ही इसका सबसे बड़ा गुण यह है कि पुदीने का पौधा कहीं भी किसी भी जमीन, यहां तक कि गमले में भी आसानी से उग जाता है। यह गर्मी झेलने की शक्ति रखता है। इसे किसी भी उर्वरक की आवश्यकता नहीं पडती है।
थोड़ी सी मिट्टी और पानी इसके विकास के लिए पर्याप्त है। पुदीना को किसी भी समय उगाया जा सकता है। इसकी पत्तियों को ताजा तथा सुखाकर प्रयोग में लाया जा सकता है।

- हरा पुदीना पीसकर उसमें नींबू के रस की दो-तीन बूँद डालकर चेहरे पर लेप करें। कुछ देर बाद चेहरा ठंडे पानी से धो लें। कुछ दिनों के प्रयोग से मुँहासे दूर हो जाएँगे तथा चेहरा निखर जाएगा।

-अधिक गर्मी या उमस के मौसम में जी मिचलाए तो एक चम्मच सूखे पुदीने की पत्तियों का चूर्ण और -आधी छोटी इलायची के चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर पीने से लाभ होता है।

- पेट में अचानक दर्द उठता हो तो अदरक और पुदीने के रस में थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर सेवन करे।
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अजीर्ण (अपच) Indigestion

पाचन तंत्र में किसी गड़बड़ी के कारण भोजन न पचने को अजीर्ण या अपच कहते हैं | कई बार समय-असमय भोजन करने से,कभी-भी,कहीं-भी,कुछ-भी खाने-पीने तथा बार-बार खाते रहने से पहले खाया हुआ भोजन ठीक से पच नहीं पाता है और दूसरा भोजन पेट में पहुँच जाता है | ऐसे में पाचनतंत्र भोजन को पूर्ण रूप से नहीः पचा पाता जो अजीर्ण का मुख्य कारण है | अधिक तला-भुना या मिर्च मसाले युक्त भोजन के सेवन से भी अजीर्ण या अपच हो जाता है |
इस रोग में रोगी को भूख नहीं लगती,खट्टी डकारें आती हैं,छाती में तेज़ जलन होती है,पेट में भारीपन महसूस होता है तथा बैचैनी सी होती रहती है | रोगी को पसीना अधिक आता है , नींद भी नहीं आती और कभी-कभी अतिसार [दस्त ] भी होता है |
अजीर्ण का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार ---------
१-अजवायन तथा सौंठ पीसकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण दिन में दो बार शहद के साथ चाटने से अपच में आराम मिलता है |
२-छाछ गरिष्ठ वस्तुओं को पचाने में बहुत लाभकारी होता है | छाछ में सेंधा नमक , भुना जीरा तथा कालीमिर्च मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण रोग दूर होता है |
३-अजवायन -200 ग्राम , हींग -4 ग्राम और कालानमक -20 ग्राम को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण 2 -2 ग्राम की मात्रा में सुबह -शाम गुनगुने पानी से खाने से लाभ होता है |
४-मेथी को पीस कर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को दिन में तीन बार 1-1 चम्मच गर्म पानी से खाने से अपच , पेटदर्द व भूख न लगना आदि दूर होता है |
५-प्रतिदिन पके हुए बेल का शर्बत पीने से अजीर्ण रोग ठीक होता है |
६-ताज़े पानी में आधे नींबू का रस , एक चम्मच अदरक का रस और चुटकी भर नमक मिलाकर पीने से अपच दूर होता है |
७-हरड़ , पिप्पली व सौंठ बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण 3 -3 ग्राम दिन में दो बार , पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण में लाभ होता है |
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छुहारे का गुणकारी -पाचक अचार Dates' beneficial digestive pickle


भारत में विविध प्रकार के अचार बनाये जाते हैं ,परन्तु छुहारे का अचार काफी गुणकारी होता है | यह अचार पाचक व रुचिवर्द्धक होता है तथा अपच को दूर करता है | इस अचार भोजन के समय या बाद में खा सकते हैं |
अचार बनाने की विधि -----
एक किलो छुहारे लेकर इन्हें नींबू के रस में 5 दिन तक भिगोकर रखें | जब यह फूल जाएँ तो बीज निकल दें तथा निम्नलिखित मिश्रण छुहारों में भर दें |
अंदर भरने का मिश्रण ----- काली मिर्च
************************ पीपल
दालचीनी
तीनों को १००-१००- ग्राम लें |
सौंठ
कालीजीरी
जीरा
इन तीनों को ५०-५० ग्राम की मात्रा में लें तथा कालानमक ३०० ग्राम और चीनी २ किलो लें , सबको एक साथ पीस लें |
बीज निकले हुए छुहारों में उक्त मिश्रण भर लें | इसे एक कांच के मर्तबान में भर कर ऊपर से निम्बू का रस डाल दें | मर्तबान का ढक्क्न उतारकर उसके मुँह पर कपड़ा बांधकर ४-५ दिन धूप में रखें , अचार तैयार हो जायगा |
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तुलसी के कुछ स्वानुभूत प्रयोग Some unique uses of Tulsi

तुलसी के कुछ स्वानुभूत प्रयोग -

1. तुलसी रस से बुखार उतर जाता है। इसे पानी में मिलाकर हर दो-तीन घंटे में पीने से बुखार कम हो जाता है।

2. जुकाम में इसके सादे पत्ते खाने से भी फायदा होता है।

3. तुलसी के तेल में विटामिन सी,कैरोटीन,कैल्शियम और फोस्फोरस प्रचुर मात्रा में होते हैं।

4. साथ ही इसमें एंटीबैक्टेरियल,एंटीफंगल और एंटीवायरल गुण भी होते हैं।

5. यह मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है।साथ ही यह पाचन क्रिया को भी मज़बूत करती हैं।

6. तुलसी के प्रयोग से हम स्वास्थय और सुंदरता दोनों को ही ठीक रख सकते हैं।
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व्य्वयहारिक बुद्धि common sense


एक सरोवर मेँ तीन दिव्य मछलियाँ रहती थीँ। वहाँ की तमाम मछलियाँ उन तीनोँ के प्रति ही श्रध्दा मेँ बँटी हुई थीँ।
एक मछली का नाम व्यावहारिकबुद्धि था, दुसरी का नाम मध्यमबुद्धि और तीसरी का नाम अतिबुद्धि था।
अतिबुद्धि के पास ज्ञान का असीम भंडार था। वह सभी प्रकार के शास्त्रोँ का ज्ञान रखती थी।
मध्यमबुद्धि को उतनी ही दुर तक सोचनेँ की आदत थी, जिससे उसका वास्ता पड़ता था। वह सोचती कम थी, परंपरागत ढंग से अपना काम किया करती थी।
व्यवहारिक बुद्धि न परंपरा पर ध्यान देती थी और न ही शास्त्र पर। उसे जब जैसी आवश्यकता होती थी निर्णय लिया करती थी और आवश्यकता न पड़नेँ पर किसी शास्त्र के पन्ने तक नहीँ उलटती थी।
एक दिन कुछ मछुआरे सरोवर के तट पर आये और मछलियोँ की बहुतायत देखकर बातेँ करनेँ लगे कि यहाँ काफी मछलियाँ हैँ, सुबह आकर हम इसमेँ जाल डालेँगे। उनकी बातेँ मछलियोँ नेँ सुनीँ।
व्यवहारिक बुद्धि नेँ कहा-” हमेँ फौरन यह तालाब छोड़ देना चाहिए। पतले सोतोँ का मार्ग पकड़कर उधर जंगली घास से ढके हुए जंगली सरोवर मेँ चले जाना चाहिये।”
मध्यमबुद्धि नेँ कहा- ” प्राचीन काल से हमारे पूर्वज ठण्ड के दिनोँ मेँ ही वहाँ जाते हैँ और अभी तो वो मौसम ही नहीँ आया है, हम हमारे वर्षोँ से चली आ रही इस परंपरा को नहीँ तोड़ सकते। मछुआरोँ का खतरा हो या न हो, हमेँ इस परंपरा का ध्यान रखना है।”
अतिबुद्धि नेँ गर्व से हँसते हुए कहा-” तुम लोग अज्ञानी हो, तुम्हेँ शास्त्रोँ का ज्ञान
नहीँ है। जो बादल गरजते हैँ वे बरसते नहीँ हैँ। फिर हम लोग एक हजार तरीकोँ से तैरना जानते हैँ, पानी के तल मेँ जाकर बैठनेँ की सामर्थ्यता है, हमारे पूंछ मेँ इतनी शक्ति है कि हम जालोँ को फाड़ सकती हैँ। वैसे भी कहा गया है कि सँकटोँ से घिरे हुए हो तो भी अपनेँ घर को छोड़कर परदेश चले जाना अच्छी बात नहीँ है। अव्वल तो वे मछुआरे आयेँगे नहीँ, आयेँगे तो हम तैरकर नीचे बैठ जायेँगी उनके जाल मेँ आयेँगे ही नहीँ, एक दो फँस भी गईँ तो पुँछ से जाल फाड़कर निकल जायेंगे। भाई! शास्त्रोँ और ज्ञानियोँ के वचनोँ के विरूध्द मैँ तो नहीँ जाऊँगी।”
व्यवहारिकबुद्धि नेँ कहा-” मैँ शास्त्रोँ के बारे मेँ नहीँ जानती , मगर मेरी बुद्धि कहती है कि मनुष्य जैसे ताकतवर और भयानक शत्रु की आशंका सिर पर हो, तो भागकर कहीँ छुप जाओ।” ऐसा कहते हुए वह अपनेँ अनुयायिओं को लेकर चल पड़ी।
मध्यमबुद्धि और अतिबुद्धि अपनेँ परँपरा और शास्त्र ज्ञान को लेकर वहीँ रूक गयीं । अगले दिन मछुआरोँ नेँ पुरी तैयारी के साथ आकर वहाँ जाल डाला और उन दोनोँ की एक न चली। जब मछुआरे उनके विशाल शरीर को टांग रहे थे तब व्यवहारिकबुद्धि नेँ गहरी साँस लेकर कहा-” इनके शास्त्र ज्ञान नेँ ही धोखा दिया। काश! इनमेँ थोड़ी व्यवहारिक बुद्धि भी होती।”
व्यवहारिक बुद्धि से हमारा आशय है कि किस समय हमेँ क्या करना चाहिए और जो हम कर रहे हैँ उस कार्य का परिणाम निकलनेँ पर क्या समस्यायेँ आ सकती हैँ, यह सोचना ही व्यवहारिक बुद्धि है। बोलचाल की भाषा में हम इसे कॉमन सेंस भी कहते हैं , और भले ही हम बड़े ज्ञानी ना हों मोटी- मोटी किताबें ना पढ़ीं हों लेकिन हम अपनी व्य्वयहारिक बुद्धि से किसी परिस्थिति का सामना आसानी से कर सकते हैं।

Photo: एक सरोवर मेँ तीन दिव्य मछलियाँ रहती थीँ। वहाँ की तमाम मछलियाँ उन तीनोँ के प्रति ही श्रध्दा मेँ बँटी हुई थीँ।
एक मछली का नाम व्यावहारिकबुद्धि था, दुसरी का नाम मध्यमबुद्धि और तीसरी का नाम अतिबुद्धि था।
अतिबुद्धि के पास ज्ञान का असीम भंडार था। वह सभी प्रकार के शास्त्रोँ का ज्ञान रखती थी।
मध्यमबुद्धि को उतनी ही दुर तक सोचनेँ की आदत थी, जिससे उसका वास्ता पड़ता था। वह सोचती कम थी, परंपरागत ढंग से अपना काम किया करती थी।
व्यवहारिक बुद्धि न परंपरा पर ध्यान देती थी और न ही शास्त्र पर। उसे जब जैसी आवश्यकता होती थी निर्णय लिया करती थी और आवश्यकता न पड़नेँ पर किसी शास्त्र के पन्ने तक नहीँ उलटती थी।
एक दिन कुछ मछुआरे सरोवर के तट पर आये और मछलियोँ की बहुतायत देखकर बातेँ करनेँ लगे कि यहाँ काफी मछलियाँ हैँ, सुबह आकर हम इसमेँ जाल डालेँगे। उनकी बातेँ मछलियोँ नेँ सुनीँ।
व्यवहारिक बुद्धि नेँ कहा-” हमेँ फौरन यह तालाब छोड़ देना चाहिए। पतले सोतोँ का मार्ग पकड़कर उधर जंगली घास से ढके हुए जंगली सरोवर मेँ चले जाना चाहिये।”
मध्यमबुद्धि नेँ कहा- ” प्राचीन काल से हमारे पूर्वज ठण्ड के दिनोँ मेँ ही वहाँ जाते हैँ और अभी तो वो मौसम ही नहीँ आया है, हम हमारे वर्षोँ से चली आ रही इस परंपरा को नहीँ तोड़ सकते। मछुआरोँ का खतरा हो या न हो, हमेँ इस परंपरा का ध्यान रखना है।”
अतिबुद्धि नेँ गर्व से हँसते हुए कहा-” तुम लोग अज्ञानी हो, तुम्हेँ शास्त्रोँ का ज्ञान
नहीँ है। जो बादल गरजते हैँ वे बरसते नहीँ हैँ। फिर हम लोग एक हजार तरीकोँ से तैरना जानते हैँ, पानी के तल मेँ जाकर बैठनेँ की सामर्थ्यता है, हमारे पूंछ मेँ इतनी शक्ति है कि हम जालोँ को फाड़ सकती हैँ। वैसे भी कहा गया है कि सँकटोँ से घिरे हुए हो तो भी अपनेँ घर को छोड़कर परदेश चले जाना अच्छी बात नहीँ है। अव्वल तो वे मछुआरे आयेँगे नहीँ, आयेँगे तो हम तैरकर नीचे बैठ जायेँगी उनके जाल मेँ आयेँगे ही नहीँ, एक दो फँस भी गईँ तो पुँछ से जाल फाड़कर निकल जायेंगे। भाई! शास्त्रोँ और ज्ञानियोँ के वचनोँ के विरूध्द मैँ तो नहीँ जाऊँगी।”
व्यवहारिकबुद्धि नेँ कहा-” मैँ शास्त्रोँ के बारे मेँ नहीँ जानती , मगर मेरी बुद्धि कहती है कि मनुष्य जैसे ताकतवर और भयानक शत्रु की आशंका सिर पर हो, तो भागकर कहीँ छुप जाओ।” ऐसा कहते हुए वह अपनेँ अनुयायिओं को लेकर चल पड़ी।
मध्यमबुद्धि और अतिबुद्धि अपनेँ परँपरा और शास्त्र ज्ञान को लेकर वहीँ रूक गयीं । अगले दिन मछुआरोँ नेँ पुरी तैयारी के साथ आकर वहाँ जाल डाला और उन दोनोँ की एक न चली। जब मछुआरे उनके विशाल शरीर को टांग रहे थे तब व्यवहारिकबुद्धि नेँ गहरी साँस लेकर कहा-” इनके शास्त्र ज्ञान नेँ ही धोखा दिया। काश! इनमेँ थोड़ी व्यवहारिक बुद्धि भी होती।”
व्यवहारिक बुद्धि से हमारा आशय है कि किस समय हमेँ क्या करना चाहिए और जो हम कर रहे हैँ उस कार्य का परिणाम निकलनेँ पर क्या समस्यायेँ आ सकती हैँ, यह सोचना ही व्यवहारिक बुद्धि है। बोलचाल की भाषा में हम इसे कॉमन सेंस भी कहते हैं , और भले ही हम बड़े ज्ञानी ना हों मोटी- मोटी किताबें ना पढ़ीं हों लेकिन हम अपनी व्य्वयहारिक बुद्धि से किसी परिस्थिति का सामना आसानी से कर सकते हैं।
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चिरौंजी [Calumpang -nut -Tree ]

चिरौंजी के पेड़ भारत के पश्चिम प्रायद्वीप एवं उत्तराखण्ड में 450 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है , महाराष्ट्र , नागपुर और मालाबार में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं | इसके वृक्ष छाल अत्यन्त खुरदुरी होती है इसलिए संस्कृत में खरस्कन्द तथा इसकी छाल अधिक मोटी होती है ,इसलिए इसे बहुलवल्कल कहते हैं | इसके फल ८-१२ मिलीमीटर के गोलाकार कृष्ण वर्ण के ,मांसल , काले बीजयुक्त होते हैं | फलों को फोड़ कर जो गुठली निकाली जाती है उसे चिरौंजीकहते हैं | यह अत्यंत पौष्टिक तथा बलवर्धक होती है | चिरौंजी एक मेवा होती है और इसे विभिन्न प्रकार के पकवानों और मिठाईयों में डाला है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जनवरी-मार्च तथा मार्च-मई तक होता है | इसके बीज एवं तेल में एमिनो अम्ल , लीनोलीक ,मिरिस्टीक , ओलिक , पॉमिटिक , स्टीएरिक अम्ल एवं विटामिन पाया जाता है |
विभिन्न रोगों चिरौंजी से उपचार --------
१- पांच-दस ग्राम चिरौंजी पीसकर उसमें मिश्री मिलाकर दूध के साथ खाने से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है |
२-चिरौंजी को गुलाब जल में पीसकर चेहरे पर लगाने से मुंहांसे ठीक होते हैं |
३-दूध में चिरौंजी की खीर बनाकर खाने से शरीर का पोषण होता है |
४-पांच -दस ग्राम चिरौंजी की गिरी को खाने से तथा चिरौंजी को दूध में पीसकर मालिश करने से शीतपित्त में लाभ होता है |
५-चिरौंजी की ५-१० ग्राम गिरी को भूनकर ,पीसकर २०० मिलीलीटर दूध मिलाकर उबाल लें | उबालने के बाद ५०० मिलीग्राम इलायची चूर्ण व थोड़ी सी चीनी मिलाकर पिलाने से खांसी तथा जुकाम में लाभ होता है ।
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बेटियां बोझ नहीं होती daughters are not a burden



एक औरत गर्भ से थी
पति को जब पता लगा 
की कोख में बेटी हैं तो 

वो उसका गर्भपात
करवाना चाहते हैं 
दुःखी होकर पत्नी अपने
पति से क्या कहती हैं :-

सुनो, 
ना मारो इस नन्ही कलि को,
वो खूब सारा प्यार हम पर 
लुटायेगी,
जितने भी टूटे हैं सपने, 
फिर से वो सब सजाएगी..

सुनो, 
ना मारो इस नन्ही कलि को,
जब जब घर आओगे 
तुम्हे खूब हंसाएगी,
तुम प्यार ना करना 
बेशक उसको,
वो अपना प्यार लुटाएगी..

सुनो
ना मारो इस नन्ही कलि को,
हर काम की चिंता 
एक पल में भगाएगी,
किस्मत को दोष ना दो,
वो अपना घर
आंगन महकाएगी..

😑ये सब सुन पति 
अपनी पत्नी को कहता हैं :-

सुनो 
में भी नही चाहता मारना 
इसनन्ही कलि को,
तुम क्या जानो,
प्यार नहीं हैं
क्या मुझको अपनी परी से,
पर डरता हूँ 
समाज में हो रही रोज रोज
की दरिंदगी से..

क्या फिर खुद वो इन सबसे अपनी लाज बचा पाएगी,
क्यूँ ना मारू में इस कलि को, 
वो बहार नोची जाएगी..
में प्यार इसे खूब दूंगा, 
पर बहार किस किस से 
बचाऊंगा,

जब उठेगी हर तरफ से 
नजरें, तो रोक खुद को 
ना पाउँगा..
क्या तू अपनी नन्ही परी को,
इस दौर में लाना चाहोगी,

जब तड़फेगी वो नजरो के आगे, क्या वो सब सह पाओगी,
क्यों ना मारू में अपनी नन्ही परी को, क्या बीती होगी उनपे, 
जिन्हें मिला हैं ऐसा नजराना,
क्या तू भी अपनी परी को 
ऐसी मौत दिलाना चाहोगी..

ये सुनकर गर्भ से 
आवाज आती है.....ं
सुनो माँ पापा-
मैं आपकी बेटी हूँ
मेरी भी सुनो :-

पापा सुनो ना, 
साथ देना आप मेरा,
मजबूत बनाना मेरे हौसले को,
घर लक्ष्मी है आपकी बेटी,
वक्त पड़ने पर मैं काली भी बन जाऊँगी

पापा सुनो,
ना मारो अपनी नन्ही कलि को, तुम उड़ान देना मेरे हर वजूद को,
में भी कल्पना चावला की तरह, ऊँची उड़ान भर जाऊँगी..

पापा सुनो,
ना मारो अपनी नन्ही कलि को, आप बन जाना मेरी छत्र छाया,
में झाँसी की रानी की तरह खुद की गैरो से लाज बचाऊँगी...

😗पति (पिता) ये सुन कर 
मौन हो गया और उसने अपने फैसले पर शर्मिंदगी महसूस
करने लगा और कहता हैं
अपनी बेटी से :-

मैं अब कैसे तुझसे 
नजरे मिलाऊंगा,
चल पड़ा था तेरा गला दबाने,
अब कैसे खुद को तेरेे सामने लाऊंगा,
मुझे माफ़ करना 
ऐ मेरी बेटी, तुझे इस दुनियां में
सम्मान से लाऊंगा..

वहशी हैं ये दुनिया 
तो क्या हुआ, तुझे मैं दुनिया की सबसे बहादुर बिटिया
बनाऊंगा.

मेरी इस गलती की 
मुझे है शर्म,
घर घर जा के सबका 
भ्रम मिटाऊंगा
बेटियां बोझ नहीं होती..
अब सारे समाज में 
अलख जगाऊंगा!!! 
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छाछ (मठ्ठा ,तक्र ) Buttermilk - Maththa, Takra


दही को मथकर छाछ बनाया जाता है | छाछ अनेक शारीरिक दोषों को दूर करता है तथा आहार के रूप में महत्वपूर्ण है | छाछ या मठ्ठा शरीर के विजातीय तत्वों को बाहर निकालकर रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता की वृद्धि करता है | गाय के दूध से बानी छाछ सर्वोत्तम होती है | छाछ में घी नहीं होना चाहिए तथा यह खट्टी नहीं होनी चाहिए |
जिन्हे भूख न लगती हो या भोजन न पचता हो,खट्टी-खट्टी डकारें आती हों या पेट फूलता हो उनके लिए छाछ का सेवन अमृत के सामान लाभकारी होता है | छाछ गैस को दूर करती है,अतः मल विकारों और पेट की गैस में छाछ का सेवन लाभकारी होता है | यह पित्तनाशक होती है और रोगी को ठंडक और पोषण देती है |
विभिन्न रोगों में छाछ से उपचार-
१- छाछ में काला नमक और अजवायन मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है |
२- अपच में छाछ एक सर्वोत्तम औषधि है | गरिष्ठ वस्तुओं को पचाने में भी छाछ बहुत लाभकारी है | छाछ में सेंधानमक,भुना हुआ जीरा तथा काली मिर्च पीसकर , मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण दूर हो जाता है |
३- छाछ में शक्कर और काली मिर्च मिलाकर पीने से पित्त के कारण होने वाला पेट दर्द ठीक हो जाता है |
४- छाछ में नमक डालकर पीने से लू लगने से बचा जा सकता है |
५- एक गिलास छाछ में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन पीने से पीलिया में लाभ होता है |
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Feetured Post

नारी शक्ति की सुरक्षा के लिये

 1. एक नारी को तब क्या करना चाहिये जब वह देर रात में किसी उँची इमारत की लिफ़्ट में किसी अजनबी के साथ स्वयं को अकेला पाये ?  जब आप लिफ़्ट में...