असली सुकून का अहसास

 जब पति कानों में कहे, "आज तुम बहुत अच्छी लग रही हो"

एक छोटे से प्यार भरे वाक्य में छुपा होता है पूरी दुनिया का सुकून। उस एक वाक्य से मिलती है उसे अपनेपन की गर्माहट, जैसे सारा दिन की थकान एक झटके में गायब हो जाती हो।

जब बेटा भरपेट खाना खा ले 

माँ का दिल तभी तो सुकून से भरता है जब बेटा खुशी-खुशी थाली साफ कर देता है। बिना किसी शिकवे-शिकायत के जब बेटा कहता है, "माँ, आज बहुत स्वादिष्ट खाना था," तो उसकी सारी मेहनत सफल हो जाती है।

 जब बेटी कहे, "माँ, आज तुम बैठो, खाना मैं बनाती हूँ"

इस वाक्य में एक बेटी का प्यार छुपा होता है, माँ के प्रति उसकी परवाह। जब बेटी खुद रसोई संभालने का जिम्मा लेती है, तो माँ के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान जाती है, और दिल को सुकून मिलता है।

 जब ससुर कहें, "आज खाना खाकर मजा गया"

हर बहू के लिए अपने ससुराल में यह सुनना, जैसे उसे उसकी मेहनत का सबसे बड़ा इनाम मिल गया हो। उनके इस छोटे से तारीफ में सुकून की वो मिठास होती है, जो उसे पूरे दिन खुशी से भर देती है।

जब सास कहें, "बहुत हो गया काम, अब आराम कर लो"

सास के ये शब्द बहू के दिल को वो सुकून देते हैं, जो किसी भी आराम से कहीं ऊपर होता है। ये वाक्य जैसे बहू के काम की सराहना करता है और एक मजबूत रिश्ता बनने का एहसास दिलाता है।

यही वो छोटे-छोटे पल हैं, जो किसी भी गृहिणी को असली सुकून का अहसास कराते हैं। क्योंकि सुकून वही है, जो बिना शोर-शराबे के, रिश्तों की गहराई में छुपा होता है।

 जब पति कानों में कहे, "आज तुम बहुत अच्छी लग रही हो"

एक छोटे से प्यार भरे वाक्य में छुपा होता है पूरी दुनिया का सुकून। उस एक वाक्य से मिलती है उसे अपनेपन की गर्माहट, जैसे सारा दिन की थकान एक झटके में गायब हो जाती हो।

जब बेटा भरपेट खाना खा ले 

माँ का दिल तभी तो सुकून से भरता है जब बेटा खुशी-खुशी थाली साफ कर देता है। बिना किसी शिकवे-शिकायत के जब बेटा कहता है, "माँ, आज बहुत स्वादिष्ट खाना था," तो उसकी सारी मेहनत सफल हो जाती है।

 जब बेटी कहे, "माँ, आज तुम बैठो, खाना मैं बनाती हूँ"

इस वाक्य में एक बेटी का प्यार छुपा होता है, माँ के प्रति उसकी परवाह। जब बेटी खुद रसोई संभालने का जिम्मा लेती है, तो माँ के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान जाती है, और दिल को सुकून मिलता है।

 जब ससुर कहें, "आज खाना खाकर मजा गया"

हर बहू के लिए अपने ससुराल में यह सुनना, जैसे उसे उसकी मेहनत का सबसे बड़ा इनाम मिल गया हो। उनके इस छोटे से तारीफ में सुकून की वो मिठास होती है, जो उसे पूरे दिन खुशी से भर देती है।

जब सास कहें, "बहुत हो गया काम, अब आराम कर लो"

सास के ये शब्द बहू के दिल को वो सुकून देते हैं, जो किसी भी आराम से कहीं ऊपर होता है। ये वाक्य जैसे बहू के काम की सराहना करता है और एक मजबूत रिश्ता बनने का एहसास दिलाता है।

यही वो छोटे-छोटे पल हैं, जो किसी भी गृहिणी को असली सुकून का अहसास कराते हैं। क्योंकि सुकून वही है, जो बिना शोर-शराबे के, रिश्तों की गहराई में छुपा होता है।


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कुंभ का महत्व

भारत के नाट्‌य शास्त्र में जिन नाटकों के मंचन का उल्लेख मिलता है उनमें 'अमृत मंथन' सर्वप्रथम गिना जाता है। भारतीय नाटक देवासुर-संग्राम की पृष्ठभूमि में जन्मा, इसे जानने के बाद कुंभ का महत्व और बढ़ जाता है और प्राचीनता भी अधिक सिद्ध होती है।

'अमृत मंथन' के अभिनय से पूर्व कुंभ-स्थापन का उल्लेख भरत ने किया है पर वह पूजा के अंग रूप में ग्रहण किया गया है। 'अमृत कुंभ' से उसका सीधा संबंध नहीं है, किन्तु कुंभ की कल्पना अवश्य उससे सम्बद्ध मानी जा सकती है।

कुम्भं सलिल-सम्पूर्ण पुष्पमालापुरस्कृत्‌म।
स्थापयेद्रंगमध्ये तु सुवर्ण चात्र दापयेत्‌
एवं तु पूजनं कृत्वा मया प्रोक्तः पितामहः।
आज्ञापय विभौ क्षिप्रं कः प्रयोगाः प्रयुज्यताम्‌।
सचेतनो स्म्युक्तो भगवता योजयामृतमंथनम्‌ एतदुत्साहजननं सुरप्रीतिकरः तथा

अर्थः-रंगपीठ के मध्य में पुष्पमालाओं से सज्जित जल से पूर्ण कुंभ स्थापित करना चाहिए और उसके भीतर स्वर्ण डालना चाहिए।

इस प्रकार पूजन करके मैंने ब्रह्मा से कहा- 'हे वैभवशाली, शीघ्र आज्ञा प्रदान करें कि कौन-सा नाटक खेला जाए। तब भगवान ब्रह्मा द्वारा मुझसे कहा गया-'अमृत मंथन का अभिनय करो। यह उत्साह बढ़ाने वाला तथा देवताओं के लिए हितकर है।

वह नाट्‌य-प्रकार 'समवकार' कहलाता था और भरत द्वारा उसका अभिनय धर्म और अर्थ को सिद्ध करने वाला माना गया है। देवताओं के साथ शंकर की अभ्यर्थना भी की गई। 'अमृत मंथन' से इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु-महेश की एकता और देवताओं की प्रसन्नता अभीष्ट रही, जो आज तक चली आ रही है।

'त्रिपुरा-दाह' का अभिनय 'अमृत मंथन' के बाद हुआ, भरत मुनि के इस कथन से 'अमृत मंथन' की कथा व महत्ता और बढ़ जाती है। नाट्‌यवेद की रचना जम्बूद्वीप के भरत खण्ड में पंचम वेद के रूप में मानी गई, क्योंकि शूद्र जाति द्वारा वेद का व्यवहार उनके समय निषिद्ध माना जाता था।

यह पांचवां वेद सब वर्णों के लिए रचा गया, क्योंकि भरत शूद्र जाति को भी अधिकार सम्पन्न बनाना चाहते थे, साथ ही अन्य वर्णों का भी उन्हें ध्यान था। 'सार्ववर्णिकम्‌' शब्द इसलिए महत्वपूर्ण है।

यथा-
न वेदव्यवहारों यं संश्रव्यं शूद्रजातिषु।
तस्मात्सृजापरं वेदं पंचमं सार्ववर्णिकम्‌।

कुंभ का महत्व भी इसी प्रकार सभी वर्णों के समन्वित है। किसी वर्ण का गंगा स्नान अथवा कुंभ-स्नान में निषेध नहीं है। वर्णेत्तर लोग भी स्नान करते रहे हैं।

विष्णु के चरणों से चौथे वर्ण की उत्पत्ति मानी गई है और गंगा भी विष्णु के चरणों से निकली हैं ऐसी पौराणिक मान्यता है। दोनों का विशेष संबंध सांस्कृतिक दृष्टि से उपकारक एवं प्रेरक सिद्ध होगा। इस प्रकार कुंभ हर प्रकार के भेदभाव का निषेध करता है।
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नागा बाबाओं की रहस्मय दुनिया

शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए संन्यासी संघों का गठन किया था। बाहरी आक्रमण से बचने के लिए कालांतर में संन्यासियों के सबसे बड़े संघ जूना आखाड़े में संन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र-अस्त्र में पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया।

वनवासी समाज के लोग अपनी रक्षा करने में समर्थ थे, और शस्त्र प्रवीण भी। इन्हीं शस्त्रधारी वनवासियों की जमात नागा साधुओं के रूप में सामने आई। ये नागा जैन और बौद्ध धर्म भी सनातन हिन्दू परम्परा से ही निकले थे। वन, अरण्य, नामधारी संन्यासी उड़ीसा के जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धन पीठ से संयुक्त हुए।

आज संतों के तेरह-चौदह अखाड़ों में सात संन्यासी अखाड़े (शैव) अपने-अपने नागा साधु बनाते हैं:- ये हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।
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कुंभक्षेत्र तीर्थक्षेत्र

कुंभक्षेत्र तीर्थक्षेत्र हैं । वहांकी पवित्रता तथा सात्त्विकता बनाए रखनेका प्रयास करना, यह स्थानीय पुरोहित, देवालयोंके न्यासी तथा प्रशासनके साथ ही वहां आए प्रत्येक तीर्थयात्रीका भी कर्तव्य है । १. कुंभक्षेत्रमें पर्यटकोंकी भांति आचरण न करें ! : कुंभक्षेत्रमें आए अनेक लोग वहां पर्यटकोंकी भांति आचरण करते दिखाई देते हैं । एक-दूसरेका उपहास उडाना, पश्चिमी वेशभूषा करना, संगीत सुनना, अभक्ष्य भक्षण करना आदि कृत्य उनसे होते हैं । तीर्थक्षेत्रगमन एक ‘साधना’ है । वह पूर्ण होनेके लिए तीर्थक्षेत्रमें आनेपर भावपूर्ण गंगास्नान करना, देवताओंके दर्शन करना, दान-धर्म करना, उपास्यदेवताका नामजप करना, इस प्रकार अधिकाधिक समय ईश्वरसे सायुज्य (आंतरिक सान्निध्य) रखना अपेक्षित है । ऐसा करनेपर गंगास्नान एवं यात्राका आध्यात्मिक स्तरपर लाभ होता है । २. तीर्थक्षेत्रकी पवित्रता बनाएं रखें ! : कुंभक्षेत्रमें पवित्र तीर्थस्नान करनेवाले तीर्थयात्री वह तीर्थ प्रदूषित करनेवाले कृत्य करते हैं । कुछ लोग प्लास्टिककी थैलियां, सिगरेटके वेष्टन, पुराने अंतर्वस्त्र इ. भी नदी / कुंडमें डालते हैं । इससे तीर्थकी पवित्रता घटती है । धर्मशास्त्रके अनुसार गंगा, गोदावरी एवं क्षिप्रा, इन पवित्र नदियोंको प्रदूषित करना बडा अपराध है । इसलिए तीर्थयात्री इस बातका ध्यान रखें कि स्नानके समय तीर्थकी पवित्रता बनी रहे । ३. पर्वस्नानके आरंभमें प्रार्थना तथा स्नान करते समय नामजप करें ! : पर्वस्नानके समय तीर्थयात्री जोर-जोरसे बातें करना, चिल्लाना, एक-दूसरेपर पानी उछालना इत्यादि अनुचित कृत्य करते हैं । स्नान करनेवालेका मन तीर्थक्षेत्रकी पवित्रता एवं सात्त्विकता अनुभव न करता हो, तो उसके पापकर्म धुलना असंभव है; इसलिए पर्वस्नानका आध्यात्मिक लाभ होने हेतु उसके आरंभमें गंगामातासे आगे दिए अनुसार प्रार्थना करें । ३ अ. हे गंगामाता, आपकी कृपासे मुझे ये पर्वस्नान करनेका अवसर प्राप्त हुआ है । इसके लिए मैं आपके चरणोंमें कृतज्ञ हूं । हे माते, आपके इस पवित्र तीर्थमें मुझसे श्रद्धायुक्त अंतःकरणसे पर्वस्नान हो । ३ आ. हे पापविनाशिनी गंगादेवी, आप मेरे सर्व पापोंको हर लीजिए । ३ इ. ‘हे मोक्षदायिनी देवी, आप मेरी आध्यात्मिक प्रगति हेतु आवश्यक साधना करवा लीजिए और मुझे मोक्षकी दिशामें ले जाइए’ । तदुपरांत उपास्यदेवताका नामजप करते हुए स्नान करें  !..
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१.पापा कहते है "बेटा पढाई करके कुछ बनो" तो बुरा लगता है, पर यही बात जब गर्लफ्रेंड कहती है तो लगता है केयर करती है | २. गर्लफ्रेंड के लिए माँ-बाप से झूठ बोलते है, पर माँ-बाप के लिए गर्लफ्रेंड से क्यूँ नहीं ? ३. गर्लफ्रेंड से शादी के लिए माँ-पापा को छोड़ देते है, पर माँ-पापा के लिए गर्लफ्रेंड को क्यूँ नहीं ? 4. गर्लफ्रेंड से रोज रात में मोबाईल से पूछते है खाना खाया की नहीं या कितनी रोटी खाई, पर क्या आज तक ये बात माँ-पापा से पूछी ? 5.गर्लफ्रेंड की एक कसम से सिगरेट छूट जाती है, पर पापा के बार-बार कहने से क्यूँ नहीं ? कृपया अपने माँ-बाप की हर बात माने और उनकी केयर करे...और करते हो तो आपके माँ-बाप आपके लिए कुछ भी गर्व से करने को तैय्यार है | और ये सबको बताये और समझाए, क्या पता आपकी बात उसके समझ में आ जाये...? अपने को माहोल ही ऐसा बनाना है की हर बच्चा अपने माता-पिता को ही भगवान समझे | अगर आप को ये postपसंद आये तो इसे share and like...
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कबीर हिंदू थे या मुसलमान?

मुगल काल से ही देश में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई है। धर्म और संप्रदाय के नाम पर लोगों को आपस में खूब लड़ाया जाता है। पहले राजा हुआ करते थे फिर अंग्रेज हुए और अब राजनैतिक दल एवं राजनेता स्वयं जातिवाद या सांप्रदायवाद के प्रतीक बन गए हैं। ऐसे तनाव भरे माहौल को हटाने के लिए समय-समय पर कई संत हुए हैं, जैसे साँईं बाबा, अजमेर वाला ख्‍याजा साहब, सत रहिम, रैदास आदि। उन्हीं की जमात के एक संत थे संत कबीर। कबीर हिंदू थे या मुसलमान यह सवाल आज भी जिंदा है उसी तरह कि साँईं हिंदू है या मुसलमान। कबीर का पहनावा कभी सूफियों जैसा होता था तो कभी वैष्णवों जैसा। लोग समझ नहीं पाते थे कि असल में वे हैं क्या? कबीर वैरागी साधु थे उसी तरह जिस तरह की सूफी होते हैं। उनका विवाह वैरागी समाज की लोई के साथ हुआ जिससे उन्हें दो संतानें हुईं। लड़के का नाम कमाल और लड़की का नाम कमाली था। कबीर का पालन-पोषण नीमा और नीरू ने किया जो जाति से जुलाहे थे। ये नीमा और नीरू उनके माता-पिता थे या नहीं इस संबंध में मतभेद हैं। एकता के प्रयास : कुछ लोगों का मानना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के माध्यम से उन्हें हिंदू धर्म की बातें मालूम हुईं और रामानंद ने चेताया तो उनके मन में वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया और उन्होंने उनसे दीक्षा ले ली। कबीर ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया। सांप्रदयिक भेद- भाव को समाप्त करने और जनता के बीच खुशहाली लाने के लिए निमित्त संत- कबीर अपने समय के एक मजबूत स्तंभ साबित हुए। उनकी खरी, सच्ची वाणी और सहजता के कारण दोनों ही धर्म के लोग उनसे प्रेम करने लगे थे। कुछ लोग मानते हैं कि वे नाथों की परंपरा से थे। हालाँकि उन्होंने वैष्णव पंथी गुरु रामानंद से दीक्षा जरूर ली थी, लेकिन उनका जो बाना था व मुस्लिमों जैसा और जो विचार थे वे सभी शैव कुल के संकेत देते हैं। कुछ भी हो वे थे तो अक्खड़, फक्कड़ या विद्रोही किस्म के इसीलिए माना जाता है कि उन्होंने अपने गुरु से अलग ही एक मार्ग बनाया। काशी से मगहर : ऐसी मान्यता है कि काशी में देह त्यागने वाला स्वर्ग और मगहर में देह त्यागने वाला नरक जाता है। कबीर जीवन भर काशी में रहे, लेकिन कबीर ने काशी के पास मगहर में देह त्याग दी। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा। बाद में वहाँ से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने। मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया। मगहर में कबीर की समाधि है और दरगाह भी। दलितों के मसीहा : दलित व गरीबों के मसीहा कबीर जन नायक थे। आज भी उनके भक्ति गीत ग्रामीण, आदिवासी और दलित इलाकों में ही प्रचलित हैं। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के गाँवों में कबीर के गीतों की धून आज भी जिंदा है। कबीर पंथ : कबीर पंथ एकेश्वरवादी और मूर्तिभंजकों का पंथ हैं। यह ईश्वर के निर्गुण रूप की उपासना करते हैं और किसी भी प्रकार के पूजा और पाठ से दूर रहकर ईश्वर की भक्ति को ही सर्वोपरी मानते हैं। माना जाता है कि इस पंथ की बारह प्रमुख शाखाएँ हैं, जिनके संस्थापक नारायणदास, श्रुतिगोपाल साहब, साहब दास, कमाली, भगवान दास, जागोदास, जगजीवन दास, गरीब दास, तत्वाजीवा आदि कबीर के शिष्य हैं। शुरुआत में कबीर साहब के शिष्य श्रुतिगोपाल साहब ने उनकी जन्मभूमि वाराणसी में मूलगादी नाम से गादी परंपरा की शुरुआत की थी। इसके प्रधान भी श्रुतिगोपाल ही थे। उन्होंने कबीर साहब की शिक्षा को देशभर में प्रचार प्रसार किया। कालांतर में मूलगादी की अनेक शाखाएँ उत्तरप्रदेश, बिहार, आसाम, राजस्थान, गुजरात आदि प्रांतों में स्थापित होती गई ।
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मरने के बाद

लोग कहते हैं कि धर्म में लिखा है कि मरने के बाद व्यक्ति अपने पुण्य कर्मों के अनुसार स्वर्ग में जाता है और पाप कर्मों के अनुसार नर्क में दुख भोगता है। क्या यह सच है?

दुनिया के सभी धर्म में स्वर्ग और नर्क की बातें कही गई है। स्वर्ग अर्थात वह स्थान जहां अच्छी आत्माएं रहती है और नर्क वह स्थान जहां बुरी आत्माएं रहती है। कहा जाता है कि पापी व्यक्ति को नर्क में यातनाएं देने के लिए भेज दिया जाता है और पुण्यात्माओं को स्वर्ग में सुख भोगने के लिए भेज दिया जाता है।

स्वर्ग को इस्लाम में जन्नत कहा जाता है और नर्क को दोजख या जेहन्नूम। इसी तरह हर धर्म में यह धारणा है कि ईश्वर ने स्वर्ग और नर्क की रचना की है जहां व्यक्ति को उनके कर्मों के हिसाब से रखा जाता है। पुराणों अनुसार मृत्यु का देवता यमराज आत्माओं को दंड या पुरस्कार देता है। यमराज के मंत्री चित्रगुप्त सभी आत्माओं के कर्मों का हिसाब रखते हैं फिर यम के यमदूत उन्हें स्वर्ग या नर्क में भेज देते हैं। बहुत भयानक है गरुढ़ पुराण।

धर्म के तीन आधार : धर्म को जिंदा बनाए रखने और लोगों में नैतिकता को कायम रखने के तीन आधार है- 1.ईश्वर 2.स्वर्ग-नर्क और प्रॉफेट। यह तीनों ही वेद विरुद्ध माने जा सकते हैं। जब मानव असभ्य और जंगली था तब लोगों को सभ्य और नैतिक बनाने के लिए कुछ लोगों ने भय और लालच का सहारा लिया और लोगों को एक परिवार और समाज में ढाला। डराया ईश्वर और नर्क से और लालच दिया स्वर्ग का, अप्सराओं का। जिन लोगों ने समाज को ईश्वर, स्वर्ग, नर्क से डराकर नए नियम बताए उन्हें फ्रॉफेट माना जाने लगा। फ्रॉफेटों की अपनी किताबें भी होती हैं जिनके प्रति लोग पागल हैं।

वेद इस तरह की कपोल-कल्पनाओं के खिलाफ है। वेद आध्या‍त्म का सच्चा मार्ग ही बताते हैं। वेद अनुसार निश्चित ही व्यक्ति को अपने कर्म, भाव और विचार के अनुसार सद्गति और दुर्गति का सामना करना पड़ता है। जैसे शराब पीने वाले की चेतना गिरने लगती है तो उसे अधोगति कहते हैं और ध्यान करने वाली की चेतना उठने लगती है तो उसे उर्ध्व‍गति कहते हैं। वेद गति को मानता है। यदि आप अच्छी गति और स्थिति में रह हैं तो आप स्वर्ग में हैं और बुरी गति और स्थिति में रह रहे हैं तो आप नर्क में हैं। आदमी चलता फिरता नर्क और स्वर्ग है।
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यात्रा में जाने का शौक

छुट्टियाँ बिताने के लिये पूरे परिवार के साथ यात्रा में जाने का शौक भला किसे नहीं होता। घूमने जाने के नाम से बच्चे सबसे अधिक रोमांचित होते हैं पर साथ ही साथ बड़े भी उत्साहित रहते हैं। पर अक्सर होता यह है कि लोग बिना किसी पूर्व योजना तथा तैयारी के यात्रा में निकल पड़ते हैं जिससे उन्हें अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। घूमने का सारा मजा किरकिरा हो जाता है। इसलिये अच्छा यही है कि पूरी तरह से सोच-समझ कर यात्रा की पूर्व योजना बनायें और समस्त तैयारियों के साथ ही यात्रा में निकलें।
पूर्व योजनाः
यात्रा में जाने की योजना पर्याप्त समय पहले ही बनायें और अपना कार्यक्रम निश्‍चित कर लें जैसे कि कहाँ जाना है, कब जाना है, वहाँ रहने के दौरान वहाँ का अनुमानित मौसम कैसा रहेगा इत्यादि।
यह भी विचार कर लें कि किस स्थान पर किस माध्यम से जायेंगे फ्लाइट, रेल या टैक्सी/बस से। यह भी तय कर लें कि किस स्थान में कितने दिनों तक ठहरना है।
अपने जेब को ध्यान में रखते हुये अपना बजट भी पहले ही निश्‍चित कर लें।
हवाई जहाज से घूमने की इच्छा भला किसे नहीं होती। आजकल कई कंपनियाँ पर्यटकों को सस्ते दर पर टिकिट देती हैं इसलिये पहले ही पता कर लें कि कौन सी कंपनी आपके बजट के अनुरूप दर पर टिकिट दे रही है।
सब कुछ तय हो जाने के बाद अपने जाने तथा आने के लिये फ्लाइट, रेल आदि के आरक्षण की उचित व्यवस्था कर लें। जहाँ तक हो सके होटल आदि की व्यवस्था भी पहले ही कर लें जिससे कि गंतव्य स्थान में पहुँचने के बाद जगह ढूँढने में आपका समय बर्बाद न हो। आजकल इंटरनेट की सुविधा होने से आरक्षण, होटल बुकिंग आदि कार्य घर बैठे ही आसानी के साथ किया जा सकता है।
यात्रा के दौरान अपने साथ ले जाने वाली वस्तुओं की सूची भी बना लें ताकि ऐन वक्‍त पर कोई चीज छूट न जाये।
तैयारियाँ
घर से निकलने के पहले निश्‍चित कर लीजिये कि टूथब्रश, टूथपेस्ट, साबुन, शैम्पू, तौलिया, शेविंग किट, बाल सँवारने के सामान आदि रख लिया गया है। प्रायः लोग इन्हीं चीजों को रखना भूल जाते हैं।
बुखार तथा दर्दनिवारक गोलियाँ, बैंडएड आदि जैसी कुछ आवश्यक दवाएँ और फर्स्ट-एड बाक्स रखना कदापि न भूलें। सम्पूर्ण यात्रा के दौरान कभी भी इनकी जरूरत पड़ सकती है।
एक छोटा टार्च, एक छोटा चाकू और एक छोटा ताला अपने साथ अवश्य रखें, ये यात्रा में बहुत काम आती हैं।
यद्यपि आजकल सभी पर्यटन स्थलों मे खान-पान की पर्याप्त व्यवस्था होती है, फिर भी अपने साथ कुछ हल्के नाश्ते का सामान भी रख लें।
अपने साथ अनावश्यक और भारी सामान कभी भी न रखें। छोटी-छोटी पैकिंग करें जिन्हें परिवार के लोग स्वयं ही उठा सकने में समर्थ हों क्योंकि यात्रा के दौरान अपने सामानों को स्वयं उठा कर ले जाने के अवसर अनेकों बार आते हैं।
कुछ सुझाव
महत्वपूर्ण कागजातों जैसे कि टिकिट, पासपोर्ट, क्रेडिट तथा एटीएम कार्ड्स, ड्राइव्हिंग लायसेंस आदि की छायाप्रति बनवा लें ताकि यदि कोई कागजात खो जाता है तो छायाप्रति से काम चलाया जा सके।
आवश्यकता से अधिक नगद रकम साथ न रखें और प्लास्टिक मनी अर्थात् क्रेडिट तथा एटीएम कार्ड्स का पूरा-पूरा उपयोग करें।
अपने सभी पैकिंगों पर अपना नाम व पता लिख दें, उनके भीतर भी अपने नाम व पते की स्लिप डाल दें।
परिचित लोगों के फोन नंबरों की सूची साथ रखें।
कहीं पर भी कूड़ा-करकट न फैलायें बल्कि उपयोग करने के बाद पालीथिन झिल्ली, डिस्पोजेबल गिलास आदि को कूड़ेदान में ही डालें।
नियम और कानून की अवहेलना ना करें।
हमेशा अपना व्यवहार सम्भ्रान्त रखें और अनजान लोगों पर एकाएक विश्‍वास न करें।
यदि आप उपरोक्‍त बातों का ध्यान रखेंगे तो आपको निश्‍चिंत होकर अपनी छुट्टियों तथा यात्रा का पूरा-पूरा मजा लेने का मौका अवश्य ही मिलेगा।
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Brahmin Dashnam Goswami Gosavi Gusai Samaj matrimonial portal for prospective brides and grooms. Find life partners and matrimonial matches for Shaadi within the Goswami community.

दशनाम गोस्वामी समुदाय और गोस्वामीरिश्ता.कॉम (मैट्रिमोनी साइट) के बारे में विस्तृत जानकारी :-Brahmin Dashnam Goswami Gosavi Gusai Samaj matrimonial portal for prospective brides and grooms. Find life partners and matrimonial matches for Shaadi within the Goswami community.

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1. दशनाम गोस्वामी समुदाय :-
दशनाम गोस्वामी एक प्रमुख ब्राह्मिन समुदाय है, जो भारतीय संस्कृति, धार्मिक परंपराओं और शास्त्रों में गहरी रुचि रखता है। "दशनाम" शब्द का अर्थ होता है "दस नाम", और यह गोस्वामी समुदाय के विभिन्न उपनामों को संदर्भित करता है। इस समुदाय को धार्मिक, संस्कृतिक और सामाजिक मामलों में सम्मान प्राप्त है।
गोस्वामी समुदाय के लोग आमतौर पर उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं और समाज में अच्छे स्थान पर रहते हैं। वे अपने धर्म, संस्कृति और परंपराओं को बहुत महत्व देते हैं। विवाह के संदर्भ में यह समुदाय पारंपरिक और धार्मिक रूप से रिश्तों की तलाश करता है, जिसमें दोनों परिवारों की सामाजिक स्थिति, जाति, शिक्षा और संस्कारों का अहम स्थान होता है।
दशनाम गोस्वामी समुदाय के प्रमुख उपनाम :-
- गिरि
- पुरी
- भारती
- पर्वत
- सरस्वती
- सागर
- वन
- अरण्य
- आश्रम
- तीर्थ
यह समुदाय भारत के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और अन्य राज्य। इस समुदाय के लोग अक्सर विवाह के लिए एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं और पारिवारिक माध्यम से मैच ढूंढ़ने की परंपरा रखते हैं।
2. गोस्वामीरिश्ता.कॉम (मैट्रिमोनी साइट) के बारे में :-
गोस्वामीरिश्ता.कॉम एक विशेष मैट्रिमोनी प्लेटफार्म है, जो दशनाम गोस्वामी समुदाय के लोगों के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह एक ऑनलाइन सेवा है जहां गोस्वामी समाज के लोग अपने जीवनसाथी के लिए उपयुक्त पार्टनर की तलाश कर सकते हैं। इस साइट पर उपयोगकर्ता अपनी प्रोफाइल बना सकते हैं, अपने पसंदीदा मैच खोज सकते हैं, और सुरक्षित तरीके से संपर्क कर सकते हैं।
गोस्वामीरिश्ता.कॉम की प्रमुख विशेषताएँ :-
1. समुदाय आधारित मैचमेकिंग :-
गोस्वामीरिश्ता.कॉम विशेष रूप से दशनाम गोस्वामी समुदाय के लिए तैयार किया गया है, जिससे उपयोगकर्ता अपनी संस्कृति, धर्म और सामाजिक स्थिति के आधार पर सही जीवनसाथी ढूंढ सकते हैं। यह प्लेटफार्म पारिवारिक सामंजस्य और धार्मिक अनुकूलता को प्राथमिकता देता है, ताकि विवाह के बाद जीवन सुखमय और संतुलित हो सके।
2. प्रोफाइल निर्माण और कस्टमाइजेशन :-
- विस्तृत प्रोफाइल :- उपयोगकर्ता अपनी प्रोफाइल में व्यक्तिगत जानकारी जैसे नाम, आयु, शिक्षा, कार्य, स्थान, परिवारिक पृष्ठभूमि, शौक, और जीवनसाथी के लिए इच्छाएँ भर सकते हैं।
- सहायक उपकरण :- प्रोफाइल को कस्टमाइज करने के लिए सरल और उपयोगकर्ता-अनुकूल इंटरफेस दिया गया है, जिससे उपयोगकर्ता आसानी से अपनी जानकारी अपलोड कर सकते हैं।
3. सत्यापन प्रक्रिया :-
प्रत्येक प्रोफाइल को सत्यापित किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दी गई जानकारी सही और प्रमाणिक है। यह सत्यापन न केवल उपयोगकर्ता की पहचान को प्रमाणित करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि वे शादी के लिए एक योग्य और विश्वसनीय व्यक्ति हैं।
4. सुरक्षा और गोपनीयता :-
- गोपनीयता का ध्यान :- गोस्वामीरिश्ता.कॉम पर उपयोगकर्ता की व्यक्तिगत जानकारी केवल उन्हीं लोगों के साथ साझा की जाती है, जिन्हें उपयोगकर्ता स्वीकृति देता है। यह साइट सुरक्षा और गोपनीयता के सभी पहलुओं पर विशेष ध्यान देती है।
- डेटा सुरक्षा :- उच्च स्तर की सुरक्षा नीतियाँ लागू की जाती हैं ताकि आपके व्यक्तिगत विवरण को सुरक्षित रखा जा सके।
5. उन्नत सर्च और फिल्टरिंग सिस्टम :-
- सर्च टूल्स :- गोस्वामीरिश्ता.कॉम पर एक उन्नत सर्च इंजन है, जो उपयोगकर्ताओं को उनके पसंदीदा मैच ढूंढने में मदद करता है। इसमें आयु, शिक्षा, स्थान, जाति, समुदाय, और पारिवारिक पृष्ठभूमि जैसे कई फिल्टर शामिल हैं।
- लाइफ पार्टनर की प्राथमिकताएँ :- उपयोगकर्ता अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर जीवनसाथी की खोज कर सकते हैं, जैसे पेशेवर, धार्मिक, या पारिवारिक स्थिति के हिसाब से।
6. ग्राहक सहायता :-
- 24/7 सहायता :- साइट पर एक कस्टमर सपोर्ट टीम है, जो किसी भी समस्या या सवाल का समाधान देने के लिए हमेशा उपलब्ध रहती है। यदि उपयोगकर्ताओं को साइट के उपयोग में कोई परेशानी हो, तो वे आसानी से मदद ले सकते हैं।
- मार्गदर्शन :- टीम उपयोगकर्ताओं को प्रोफाइल बनाने से लेकर सही पार्टनर चयन तक मार्गदर्शन देती है।
7. वैश्विक पहुंच :-
- दुनियाभर से संपर्क :- गोस्वामीरिश्ता.कॉम केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। यह दुनियाभर के गोस्वामी समुदाय के लोगों के लिए खुला है। अगर आप विदेश में रहते हैं तो भी आप अपनी प्रोफाइल बना सकते हैं और संभावित जीवनसाथी से संपर्क कर सकते हैं।
8. प्रीमियम सेवाएँ :-
- सदस्यता योजनाएँ :- गोस्वामीरिश्ता.कॉम विभिन्न भुगतान योजनाएँ प्रदान करता है। प्रीमियम सदस्यता के साथ, उपयोगकर्ताओं को प्रोफाइल हाइलाइटिंग, अधिक मेल-मिलाप के अवसर, और अनलिमिटेड चैटिंग जैसी सुविधाएँ मिलती हैं।

निष्कर्ष :-
Goswamirishta.com एक संरचित और सुरक्षित मैट्रिमोनी प्लेटफार्म है, जो विशेष रूप से दशनाम गोस्वामी समुदाय के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस साइट पर उपयोगकर्ताओं को एक सुरक्षित और गोपनीय तरीके से विवाह के लिए उपयुक्त जीवनसाथी ढूंढने का अवसर मिलता है। अगर आप गोस्वामी समुदाय से हैं और एक अच्छा जीवनसाथी ढूंढ रहे हैं, तो गोस्वामीरिश्ता.कॉम एक बेहतरीन और विश्वसनीय विकल्प हो सकता है।



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बेटी के ससुराल जा कर भूल के भी बदतमीज़ी से पेश ना आए

 अगर बेटी या बहन आपको अपने ससुराल वालो की शिकायत करे तो एक तरफ़ा राय ना बनाए आराम से बात करे गाली गलोच से नही, बेटी के ससुराल जा कर भूल के भी बदतमीज़ी से पेश ना आए, ना ही भूल के भी दामाद पर या बेटी के सास व ससुर पर उंगली भी उठाए या उनके दोष निकाले, बेटी को घर वापस लाने की ग़लती कभी ना करे क्योंकि जो लड़की एक बार ससुराल की दहलीज़ लांघ जाती वो वापस पहले वाली जगह नहीं पा सकती, अगर अपने ऐसा कुछ भी किया तो समझ लीजिए की अपने खुद ही अपनी बेटी का घर उजाड़ दिया है, आप खुद अपनी बेटी के सबसे बड़े दुश्मन हे और अब आप उसका घर कुछ भी करके नही बसा सकते.

राधे राधे

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Feetured Post

रिश्तों की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक प्राइवेट बैंक में एक अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर और पति...