विचारों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति और गति होती है। श्रेष्ठ विचार सौभाग्य का द्वार हैं, जबकि निकृष्ट विचार दुर्भाग्य का,आपको इस ब्लॉग पर प्रेरक कहानी,वीडियो, गीत,संगीत,शॉर्ट्स, गाना, भजन, प्रवचन, घरेलू उपचार इत्यादि मिलेगा । The state and movement of man depends on his thoughts. Good thoughts are the door to good fortune, while bad thoughts are the door to misfortune, you will find moral story, videos, songs, music, shorts, songs, bhajans, sermons, home remedies etc. in this blog.
Diwali is a Indian festival known for its vibrant displays of light and color. The word “Diwali” derives from the Sanskrit term “Deepavali,” which translates to “a row of lights.”
The annual festival marks the victory of light over darkness, knowledge over ignorance, and good over evil.
दिवाली क्या है? दीपावली क्या है?
दिवाली एक भारतीय त्योहार है जो रोशनी और रंगों के जीवंत प्रदर्शन के लिए जाना जाता है। "दिवाली" शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द "दीपावली" से हुई है, जिसका अनुवाद "रोशनी की पंक्ति" होता है।
वार्षिक उत्सव अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
divaalee ek bhaarateey tyohaar hai jo roshanee aur rangon ke jeevant pradarshan ke lie jaana jaata hai. "divaalee" shabd kee utpatti sanskrt shabd "deepaavalee" se huee hai, jisaka anuvaad "roshanee kee pankti" hota hai.
vaarshik utsav andhakaar par prakaash, agyaan par gyaan aur buraee par achchhaee kee jeet ka prateek hai.
एक छोटी सी शुरुआत ने पूरे परिवार को खुशहाल बना दिया
एक छोटे से शहर में रेणु अपने पति महेन्द्र और बेटी अनामिका के साथ रहती थी। महेन्द्र एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। एक दिन जब महेन्द्र ऑफिस से घर लौटे, तो उनके चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी। अनामिका उस समय टीवी देख रही थी।
महेन्द्र: "टीवी बंद कर दो।"
अनामिका: "जी पापा! क्या बात है? आप परेशान लग रहे हो?"
महेन्द्र: "कुछ नहीं, बेटा। जरा एक गिलास पानी ला दे।"
यह सुनकर, किचन में काम कर रही रेणु जल्दी से पानी लेकर आई और अनामिका से कहा,
रेणु: "बेटा, किचन में देख लो, सब्जी बन रही है। मैं अभी आती हूँ।"
अनामिका अंदर चली गई, तब रेणु ने महेन्द्र से पूछा,
रेणु: "क्या बात है? आप बहुत चिंतित दिख रहे हैं।"
महेन्द्र: "रेणु, मेरी नौकरी चली गई। कंपनी घाटे में चल रही थी, और मुझे भी निकाल दिया गया है। समझ नहीं आ रहा कि घर का किराया, गाड़ी की किश्त, और अनामिका की पढ़ाई के लिए पैसे कहाँ से आएंगे।"
रेणु: "आप चिंता मत कीजिए, आपको जरूर कोई और नौकरी मिल जाएगी। हम एक काम करते हैं, अनामिका की पढ़ाई के लिए जो एसआईपी शुरू की है, उसे कुछ समय के लिए रोक देते हैं।"
महेन्द्र: "नहीं, बेटी की पढ़ाई के लिए बचत करना जरूरी है। तुम जानती हो, आजकल पढ़ाई में कितने खर्चे होते हैं।"
यह सारी बातें अनामिका किचन से सुन रही थी। वह तुरंत बाहर आई।
अनामिका: "पापा, आप मेरे लिए पैसे जोड़ना बंद कर दीजिए। मैं अपनी पढ़ाई खुद संभाल लूंगी, और ऐसे लड़के से शादी करूंगी जो दहेज नहीं मांगेगा।"
महेन्द्र ने अपनी बेटी की बातें सुनकर हंसते हुए कहा,
महेन्द्र: "अभी तू केवल दस साल की है और इतनी बड़ी बातें कर रही है। चिंता मत कर, मैं तेरी शादी अच्छे से करूंगा।"
रेणु: "हमारी बेटी बहुत समझदार है। वह सही कह रही है।"
सभी हंसने लगे और घर का माहौल हल्का हो गया।
अगले दिन, महेन्द्र तैयार होकर घर से बाहर जाने लगे।
रेणु: "आप इतनी सुबह-सुबह कहां जा रहे हैं?"
महेन्द्र: "आज संडे है, दोस्तों से मिलकर देखता हूँ, शायद कहीं नौकरी का इंतजाम हो जाए।"
उनके जाने के बाद, रेणु ने अपने भाई को फोन किया और रोते हुए कहा,
रेणु: "भैया, महेन्द्र बहुत परेशान हैं। अगर उन्हें जल्द नौकरी नहीं मिली, तो हम मुश्किल में पड़ जाएंगे।"
अनामिका, जो स्कूल से आई थी, यह सब सुन रही थी। उसे यह बात समझ में आ गई कि उसके मम्मी-पापा कितने परेशान थे।
अगले दिन, घर में चुप्पी थी। महेन्द्र घर पर थे, और अनामिका की छुट्टी थी। तभी अनामिका ने कहा,
अनामिका: "पापा, आप भी ताऊजी की तरह कोई बिजनेस क्यों नहीं शुरू करते?"
रेणु: "बेटा, बिजनेस शुरू करने के लिए पैसे चाहिए होते हैं। हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं।"
अनामिका: "पापा, मेरी पढ़ाई के लिए जो पैसे बचाए हैं, उनसे बिजनेस शुरू कर लीजिए।"
महेन्द्र: "नहीं बेटा, वो पैसे जोखिम में नहीं डाल सकते। अगर बिजनेस नहीं चला, तो सारा पैसा डूब जाएगा।"
अनामिका: "पापा, कुछ नहीं होगा। अगर पैसा डूब गया, तो मैं बड़ा होकर फिर से कमा लूंगी। मेरी कसम, उस पैसे से बिजनेस शुरू कर दीजिए।"
रेणु भी अनामिका की बात से सहमत थी, और काफी समझाने के बाद महेन्द्र बिजनेस करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपने दोस्तों से सलाह ली और कुछ दिनों में बिजनेस की योजना बना ली।
शुरुआत में कई मुश्किलें आईं, लेकिन धीरे-धीरे उनका बिजनेस चलने लगा। पूरे परिवार में खुशी की लहर थी, और अनामिका की पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी। समय बीतता गया, अनामिका ने पढ़ाई पूरी की और फिर अपने पिता का बिजनेस संभाल लिया।
एक दिन, अनामिका ने अपने पापा से कहा,
अनामिका: "पापा, अब आप आराम कीजिए। बिजनेस मैं संभाल लूंगी।"
महेन्द्र: "बेटा, तेरी शादी का समय हो रहा है। शादी के बाद तो तू अपने घर चली जाएगी। तब बिजनेस कौन संभालेगा?"
अनामिका: "पापा, मैं उसी लड़के से शादी करूंगी जो मुझे यह सब करने की आजादी देगा।"
महेन्द्र और रेणु ने बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन अनामिका अपनी बात पर अडिग रही। महेन्द्र ने घर पर रहकर आराम करना शुरू कर दिया, लेकिन उन्हें अभी भी अनामिका की शादी की चिंता सताती रही।
कुछ दिनों बाद, एक बड़ी गाड़ी उनके घर के सामने आकर रुकी। उसमें से एक सज्जन अपनी पत्नी और बेटे के साथ उतरे। उन्होंने महेन्द्र से कहा,
सज्जन: "महेन्द्र जी, आपकी बेटी के साथ हमारा बिजनेस संबंध है, और हम उसकी ईमानदारी से बहुत प्रभावित हुए हैं। हम अपने बेटे की शादी आपकी बेटी से करना चाहते हैं।"
महेन्द्र ने कहा कि उन्हें पहले अनामिका से पूछना पड़ेगा। लेकिन सज्जन ने बताया कि उन्होंने पहले से ही अनामिका से बात कर ली है और उसकी सारी शर्तें मान ली हैं।
कुछ ही दिनों में अनामिका की शादी हो गई, और उसने अपने पति के साथ मिलकर बिजनेस को और भी बड़ा बना लिया। इस तरह, एक छोटी सी शुरुआत ने पूरे परिवार को खुशहाल बना दिया।
परिवार का महत्व और बुजुर्गों का सम्मान - Importance of family and respect for elders
"राघव ज़रा इधर आ," राघव की दादी ने उसे पुकारा। दादी की आवाज़ सुनकर राघव तुरंत दौड़कर उनके पास पहुंचा।
"हाँ, दादी जी, क्या बात है?" राघव ने पूछा।
दादी ने उदास स्वर में कहा, "अरे, मेरा चश्मा नहीं मिल रहा। ज़रा ढूंढ दे बेटा।"
राघव ने उत्सुकता से पूछा, "दादी, चश्मे का क्या करोगी?"
दादी ने अपने हाथ में फटा हुआ ब्लाउज दिखाते हुए कहा, "देख, बेटा, यह ब्लाउज कितना फट गया है। इसे सिलना है, लेकिन बिना चश्मे के दिखता नहीं।"
राघव ने ध्यान से देखा और कहा, "दादी, ये तो बहुत पुराना हो गया है। इसे छोड़ो, मैं मम्मी से कह दूंगा, वह आपको नया सिलवा देंगी।"
दादी की आंखों में हल्की उदासी छा गई। उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, "नहीं बेटा, मम्मी से कुछ मत कहना। वो मुझे दस बातें सुना देंगी। मैं इसी से काम चला लूंगी।"
राघव को दादी की यह बात बहुत बुरी लगी। वह चुपचाप खिड़की के पास गया और पर्दे के पीछे छुपी चश्मे की डिब्बी निकाल कर दादी को दे दी। दादी ने सुई में धागा डालकर पुराने ब्लाउज को सिलना शुरू कर दिया।
शाम को जब राघव के पापा, अभिनव, घर लौटे, तो राघव ने अपने पापा से कहा, "पापा, दादी के पास एक भी नई साड़ी या ब्लाउज नहीं है। वो अपना पुराना ब्लाउज बार-बार सिल रही हैं। आपको दादी के लिए नए कपड़े दिलवाने चाहिए।"
अभिनव ने यह सुनकर अपनी पत्नी साक्षी से कहा, "सुनो, माँ के लिए एक नई साड़ी और ब्लाउज का कपड़ा ले आना। राघव ने देखा कि माँ फटे कपड़े पहन रही हैं।"
साक्षी ने गुस्से में कहा, "तुम्हारी माँ यह सब जान-बूझकर करती हैं, ताकि बच्चे को दिखाकर हमें गलत साबित कर सकें। अगर तुम्हारा मन है, तो पूरा घर लुटा दो उन पर। मुझे क्या फर्क पड़ता है।"
अभिनव ने शांत स्वर में कहा, "अरे, एक साड़ी देने में क्या बुराई है? अगर माँ फटे कपड़े पहनकर कहीं बाहर दिख गईं, तो हमारी बदनामी होगी।"
अगले दिन अभिनव अपनी माँ के लिए एक साड़ी और ब्लाउज का कपड़ा लेकर आए और दर्जी को सिलाई के लिए दे दिया। दो दिन बाद, राघव खुशी-खुशी दादी के लिए कपड़े लेकर उनके पास गया। लेकिन दादी ने उदास होकर कहा, "कितना अच्छा होता, अगर तेरा पापा या मम्मी खुद अपने हाथों से ये कपड़े देते।"
राघव ने अपनी दादी को खुश करने के लिए कहा, "दादी, कोई बात नहीं। आप ये साड़ी पहनकर दिखाओ, मैं आपकी फोटो खींचूंगा।"
दादी ने साड़ी निकाली, लेकिन वह सस्ती सी सूती साड़ी देखकर उनका दिल बैठ गया। फिर भी उन्होंने पोते की खुशी के लिए साड़ी लेकर रख ली। जब राघव ने उन्हें पहनने के लिए कहा, तो दादी ने कहा, "बेटा, नहा कर पहनूंगी। नए कपड़े नहा कर ही पहने जाते हैं।"
कुछ देर बाद, राघव वहीं दादी के पास सो गया। तभी साक्षी आईं और ताने मारने लगीं, "मांजी, इस बार तो हमने आपको साड़ी दिलवा दी, लेकिन आगे से कोई फरमाइश मत करना।"
दादी ने गुस्से में कहा, "बहू, मैंने तुमसे साड़ी नहीं मांगी थी। ले जाओ इसे, मैं अपने पुराने कपड़ों से ही काम चला लूंगी।"
साक्षी और गुस्से में आ गईं, "पहले नाटक करती हैं, अब नखरे दिखा रही हैं। ये साड़ी वापस ले जाऊंगी, तो घर में झगड़ा हो जाएगा। आप ही इसे रख लीजिए।"
अगले दिन राघव की जिद पर दादी ने वह साड़ी पहनी और मंदिर चली गईं। वहां उनकी पुरानी सहेली कुसुम मिलीं। कुसुम ने कहा, "बहन, नई साड़ी में तो तुम बहुत अच्छी लग रही हो। लेकिन तुम इस तरह क्यों रहती हो? आओ, मेरे साथ वृद्धाश्रम में रहो। वहाँ हमें खूब सम्मान मिलता है।"
राघव सारी बातें सुन रहा था। उसने दादी से पूछा, "दादी, क्या आप मुझे छोड़ कर चली जाएंगी?"
दादी ने उसे समझाते हुए कहा, "बेटा, मैं पास ही रहूंगी। जब दिल चाहे, मुझसे मिलने आ जाना।"
अगले दिन, दादी ने साक्षी को बताया कि वह वृद्धाश्रम में जा रही हैं। साक्षी ने बेरुखी से कहा, "जैसी आपकी मर्जी।"
दादी वृद्धाश्रम चली गईं। राघव ने जब दादी को घर में न पाया, तो बहुत उदास हो गया। कई दिनों बाद, वह अपनी मम्मी-पापा से जिद करने लगा कि वह दादी से मिलने जाएगा। आखिरकार, राघव के माता-पिता उसे दादी से मिलने वृद्धाश्रम लेकर गए।
वहां राघव ने मैनेजर से पूछा, "क्या मैं भी यहां अपनी दादी के साथ रह सकता हूं?"
मैनेजर ने जवाब दिया, "नहीं, बेटा। यहाँ वही लोग रहते हैं, जिनके घरवालों ने उन्हें छोड़ दिया हो।"
राघव मासूमियत से बोला, "तो फिर मेरे मम्मी-पापा को रख लीजिए। मैं अपनी दादी को अपने साथ ले जाऊंगा। वैसे भी, बड़े होकर मैं इन्हें घर से निकाल दूंगा, क्योंकि इन्होंने मेरी दादी को अपने साथ नहीं रखा।"
यह सुनकर राघव के माता-पिता का दिल पिघल गया। अभिनव ने अपनी माँ के पैरों में गिरकर माफी मांगी, और साक्षी भी अपनी गलती पर शर्मिंदा हुईं। दोनों ने दादी से माफी मांगी और उन्हें घर वापस ले आए।
अब साक्षी भी दादी की देखभाल करने लगीं, और राघव फिर से खुश रहने लगा। इस घटना ने सबको एक गहरा सबक सिखाया – कि परिवार का महत्व और बुजुर्गों का सम्मान करना सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है।
A mouse, a deer, a turtle and a crow were very friendly in a forest. A crow lives on top of a tree, a deer lives in the bushes under a tree, a mouse lives in a hole next to it, and a turtle lives in a pond next to a tree. Every evening all the friends used to get together and talk happily. One day the deer went to graze and did not return till evening. Knowing this, the rest of the friends were confused. Will the deer get into any danger? Rat, crow and turtle had suspicion. “Friends! I will fly in the sky and find the trail of the deer,” said the crow.
After a while, the crow found the trail of the deer. A deer is caught in a trap set by a hunter. “Have you come, my friend! I was caught in the hunter’s trap. “You must save me,” pleaded the deer. The crow, daring the deer, flew up in the sky, told the matter, carried the mouse on its back and brought it to the deer. The mouse bit the trap with its fangs and saved the deer. The three of them left for home, and the tortoise met a tortoise on the way.
“Why did you come, my friend? What if something happened to you?” That is a crow. “I came worried about what happened to my friend” said the turtle. “You are a true friend who thinks well of a friend” everyone praised and went home. As they were all walking like that, a hunter met them. Seeing the hunter, the crow flew into the sky, the mouse scurried into the forest, and the deer went into the bushes. But the turtle was standing there unable to go anywhere. Seeing the tortoise, the hunter tied the tortoise to the rope of his bow-stick and took it on his shoulder. “If the deer is saved from danger, the turtle’s friend is in mortal danger?” Rat and crow were sad. Anyway, they thought of a trick to save their friend. According to the plan, the deer fell on the path of the hunter who took a detour in the forest. The crow pretended to peck at it.
“Aha! Nothing is my luck. Even though the deer escaped from the net, another deer was found,” he thought, leaving the turtle on his shoulder aside and walking towards the deer.
Meanwhile, the crow flew away screaming “Cow, Cow”. Hearing the cry of the crow, the deer pretending to be fall, immediately jumped and ran away. In the meantime, the mouse came and bit the ropes of the turtle. Immediately the turtle went into the adjacent pond. The mouse went into the hole. The hunter stood looking at this shock with a frown on his face. After the hunter left, the crow, the deer, the mouse and the tortoise went to their homes together. This is true friendship.
MORAL : A good friend who would risk his life to save a friend in need is better than a friend who uses us when needed.
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी और समृद्ध संस्कृतियों में से एक मानी जाती है। यहां रिश्तों को विशेष महत्व दिया जाता है और यह समाज की नींव माने जाते हैं। परिवार और समाज की संरचना में रिश्तों की भूमिका अहम होती है, क्योंकि यह न केवल व्यक्तिगत जीवन को बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी मजबूती प्रदान करते हैं।
परिवार का महत्व
भारतीय संस्कृति में परिवार को प्राथमिक इकाई माना जाता है। यहां परिवार में हर सदस्य का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। संयुक्त परिवार की अवधारणा भारतीय समाज की विशेषता रही है, जहां दादा-दादी, माता-पिता, भाई-बहन और अन्य रिश्तेदार एक साथ मिलकर रहते हैं। इससे पारस्परिक स्नेह, सम्मान और सहयोग की भावना विकसित होती है। परिवार के बड़े-बुजुर्गों को विशेष सम्मान दिया जाता है और उनके अनुभव से जीवन की कठिनाइयों को हल करने की प्रेरणा मिलती है।
माता-पिता और बच्चों का संबंध
माता-पिता और बच्चों के रिश्ते को भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्व दिया गया है। माता-पिता को प्रथम गुरु माना जाता है, जो बच्चों को संस्कार और जीवन के मूल्यों की शिक्षा देते हैं। बच्चों के प्रति माता-पिता का स्नेह और दायित्व भारतीय परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। इसी प्रकार, बच्चे भी अपने माता-पिता का सम्मान और सेवा करने को अपना कर्तव्य मानते हैं, जिसे "श्रवण कुमार" की कथाओं द्वारा समाज में उदाहरण स्वरूप बताया गया है।
गुरु और शिष्य का संबंध
भारतीय संस्कृति में **गुरु** का स्थान बहुत ऊंचा माना गया है। गुरु-शिष्य परंपरा यहां सदियों से चली आ रही है, जहां गुरु अपने शिष्यों को न केवल शिक्षा देते हैं, बल्कि जीवन जीने की सही राह भी दिखाते हैं। यह रिश्ता पूर्ण रूप से समर्पण, श्रद्धा और ज्ञान पर आधारित होता है।
मित्रता का महत्व
मित्रता को भी भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण रिश्ता माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता को उच्च आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह बताता है कि सच्ची मित्रता में भौतिक स्थिति का कोई स्थान नहीं होता, बल्कि यह परस्पर विश्वास और सहयोग पर आधारित होता है।
वैवाहिक संबंध
विवाह भारतीय संस्कृति में एक पवित्र बंधन माना जाता है, जो दो व्यक्तियों के साथ-साथ दो परिवारों को भी जोड़ता है। विवाह केवल शारीरिक और भावनात्मक संबंध नहीं, बल्कि यह सामाजिक जिम्मेदारियों और धार्मिक कर्तव्यों से भी जुड़ा होता है। इसे "सात जन्मों" का बंधन माना जाता है, जो इस रिश्ते की पवित्रता और दीर्घायु को दर्शाता है।
#Relations - #Rishte - #रिश्ते
निष्कर्ष
भारतीय संस्कृति में रिश्तों को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है। यहां रिश्ते केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं होते, बल्कि पूरे समाज को एकजुट रखते हैं। ये रिश्ते एक व्यक्ति को भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक रूप से संतुलित रखते हैं और समाज में सौहार्द और एकता की भावना को बढ़ावा देते हैं।