जीवन का कड़वा सच है - bitter truth of life -Bhajan

जीवन का कड़वा सच है - bitter truth of life



 

बेटियां हमेशा माता-पिता दिलों में बसती हैं - Daughters always live in the hearts of their parents

 एक बार एक साधारण परिवार के पिता, मोहनलाल जी, ने अपनी इकलौती बेटी, मीरा, की सगाई बड़े अच्छे घर में करवाई। लड़के का नाम रोहन था, और उसका परिवार भी स्वभाव से बेहद स्नेही और मिलनसार था। मोहनलाल जी और उनकी पत्नी, सुनीता, इस रिश्ते से बहुत खुश थे, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि उनकी बेटी का भविष्य बहुत अच्छा होगा।


बेटियां हमेशा माता-पिता  दिलों में बसती हैं - Daughters always live in the hearts of their parents


शादी से एक हफ्ते पहले, रोहन के परिवार ने मोहनलाल जी को अपने घर खाने पर बुलाया। मोहनलाल जी की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी, फिर भी उन्होंने मना नहीं किया, क्योंकि उन्हें लगा कि इनकार करने से कोई नाराज़ हो सकता है। वे रोहन के घर पहुँचे, और वहाँ उनके स्वागत में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी गई। बड़े आदर और सत्कार के साथ उनका स्वागत हुआ।

कुछ देर बाद, मोहनलाल जी के लिए चाय लाई गई। मोहनलाल जी को डॉक्टर ने शुगर के कारण चीनी से दूर रहने की सलाह दी थी, लेकिन वे संकोचवश कुछ कह नहीं पाए और चाय का कप उठा लिया। जैसे ही उन्होंने चाय की पहली चुस्की ली, वह चौंक गए। चाय में चीनी बिल्कुल नहीं थी, और उसमें इलायची की खुशबू आ रही थी। उन्होंने सोचा कि शायद रोहन के परिवार में भी बिना चीनी की चाय पी जाती है।

दोपहर के भोजन में भी उन्हें वही भोजन परोसा गया, जो उनकी सेहत के हिसाब से सही था। खाना बिल्कुल उनके घर जैसा ही साधारण और हल्का था। खाने के बाद आराम करने के लिए उन्हें पतली चादर और दो तकिये भी दिए गए, जैसे उनके घर में होता था। आराम के बाद उन्हें नींबू पानी का शरबत दिया गया, जो उनकी तबीयत के लिए बिलकुल सही था।

जब मोहनलाल जी विदा लेने लगे, तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने रोहन की मां, मीनाक्षी जी, से पूछा, "आपको कैसे पता चला कि मुझे क्या खाना और पीना चाहिए? आपने मेरी सेहत का इतना ध्यान कैसे रखा?"

मीनाक्षी जी ने मुस्कुराते हुए धीरे से कहा, "कल रात आपकी बेटी मीरा का फोन आया था। उसने बहुत ही विनम्रता से कहा कि 'मां, मेरे पापा स्वभाव से बहुत सरल हैं, वो कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन अगर हो सके तो उनका ध्यान रखिएगा।'"

यह सुनकर मोहनलाल जी की आंखों में आँसू आ गए। वह समझ गए कि उनकी बेटी मीरा उनके दिल की हर बात समझती है, चाहे वह उनके पास हो या न हो।

घर लौटते ही मोहनलाल जी ने अपनी स्वर्गवासी मां की तस्वीर से हार उतार दिया। जब सुनीता जी ने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों किया, तो उन्होंने भावुक होकर कहा, "आज मुझे एहसास हुआ कि मेरी मां कहीं नहीं गई हैं। वो अब मेरी बेटी के रूप में मेरे साथ हैं, जो मेरा ध्यान रखती है।"

उनकी आंखों से आँसू छलक पड़े, और सुनीता जी भी भावुक होकर रोने लगीं। उस दिन मोहनलाल जी ने यह समझा कि बेटियां भले ही शादी करके अपने ससुराल चली जाती हैं, लेकिन वे हमेशा अपने माता-पिता के दिल में बसी रहती हैं और उनका ध्यान रखती हैं, चाहे वह कितनी भी दूर क्यों न हों।

इस दुनिया में हर कोई कहता है कि बेटी एक दिन घर छोड़कर चली जाएगी, लेकिन सच तो यह है कि बेटियां कभी अपने माता-पिता के घर से नहीं जातीं, वे हमेशा उनके दिलों में बसती हैं।

नग्नता और अपराध में सेंसर बोर्ड की भूमिका - Role of Censor Board in nudity and crime

नग्नता और अपराध में सेंसर बोर्ड की भूमिका - Role of Censor Board in nudity and crime

नग्नता और अपराध: भारत में सेंसर बोर्ड द्वारा सामग्री के प्रसारण की बढ़ती अनुमति -

नग्नता और अपराध में सेंसर बोर्ड की भूमिका - Role of Censor Board in nudity and crime

भारत में सेंसर बोर्ड की नीतियों में हाल के बदलावों ने नग्नता और अपराध की बढ़ती प्रवृत्तियों पर सवाल उठाए हैं। फिल्म और टेलीविजन उद्योग में, सेंसरशिप की धाराएं समय के साथ ढीली होती जा रही हैं। इससे न केवल मनोरंजन उद्योग पर असर पड़ रहा है, बल्कि समाज पर भी गंभीर परिणाम हो रहे हैं।

सेंसर बोर्ड ने हाल ही में कुछ फिल्मों और शोज में नग्नता और यौन सामग्री के प्रसारण की अनुमति दी है। यह निर्णय विशेष रूप से उन प्लेटफार्मों पर देखने को मिला है, जहां दर्शकों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जैसे कि स्ट्रीमिंग सेवाएं। परिणामस्वरूप, कई युवा दर्शक बिना किसी प्रतिबंध के ऐसे कंटेंट तक पहुँच बना रहे हैं, जो उन्हें मानसिक रूप से प्रभावित कर सकता है।

नग्नता का प्रभाव

नग्नता और यौन विषयों का प्रसारण अक्सर युवा दर्शकों के लिए एक आकर्षण बन जाता है। यह न केवल उनके विचारों को प्रभावित करता है, बल्कि समाज में यौन शिक्षा के प्रति एक गलत धारणा भी पैदा कर सकता है। जब ऐसे कंटेंट को बिना किसी उचित संदर्भ के प्रदर्शित किया जाता है, तो यह युवा पीढ़ी में असुरक्षित और अस्वस्थ व्यवहार को बढ़ावा दे सकता है।

अपराध में वृद्धि

सेंसर बोर्ड द्वारा दी गई स्वतंत्रता के कारण, यह संभावना भी बढ़ गई है कि युवा लोग आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। नग्नता और यौन विषयों का व्यापक प्रचार ऐसे व्यवहार को सामान्य कर सकता है। हाल के वर्षों में, युवाओं के बीच यौन उत्पीड़न और अन्य अपराधों की घटनाएं बढ़ी हैं, जिनका संबंध अक्सर मीडिया में प्रदर्शित कंटेंट से होता है। जब युवा इस तरह के कंटेंट को बिना किसी नैतिक शिक्षा के देखते हैं, तो उनके मन में ऐसे विचार पनपने लगते हैं, जो अंततः हिंसक या आपराधिक गतिविधियों का कारण बन सकते हैं।

समाज पर प्रभाव

इस स्थिति का व्यापक प्रभाव समाज पर भी पड़ रहा है। परिवारों में संवाद का अभाव, बच्चों में नैतिक मूल्यों की कमी और युवाओं के बीच गलतफहमियाँ बढ़ती जा रही हैं। शिक्षा प्रणाली में यौन शिक्षा का अभाव और समाज में इस विषय पर खुलकर चर्चा न होने के कारण स्थिति और भी गंभीर हो गई है।

निष्कर्ष

हालांकि सेंसर बोर्ड की नीतियों में बदलाव ने फिल्म और टीवी उद्योग को एक नई दिशा दी है, लेकिन इसके सामाजिक परिणामों पर ध्यान देना आवश्यक है। नग्नता और अपराध की बढ़ती प्रवृत्तियों के लिए केवल मनोरंजन उद्योग को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है। इसे ध्यान में रखते हुए, हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि युवा पीढ़ी के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण तैयार किया जाए, जहाँ वे सही जानकारी प्राप्त कर सकें और अपराध के प्रति जागरूक रह सकें।

बॉलीवुड का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव - Impact of Bollywood on Indian culture

 बॉलीवुड, भारतीय सिनेमा का एक प्रमुख हिस्सा, न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, समाज और जीवनशैली पर गहरा प्रभाव डालता है। इसके कई सकारात्मक पहलू हैं, लेकिन इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं।

बॉलीवुड का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव - Impact of Bollywood on Indian culture

सकारात्मक प्रभाव:

संस्कृति का प्रचार: बॉलीवुड फिल्में भारतीय संस्कृति, परंपराओं और त्योहारों को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करती हैं। ये फिल्में भारतीय समाज की विविधता को उजागर करती हैं और विश्वभर में भारतीय सांस्कृतिक तत्वों को फैलाती हैं।

सामाजिक जागरूकता: कई बॉलीवुड फिल्में सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जैसे शिक्षा, लैंगिक समानता, जातिवाद, और भ्रष्टाचार। ये फिल्में दर्शकों में जागरूकता पैदा करती हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती हैं।

फैशन और जीवनशैली: बॉलीवुड सितारे अपने फैशन और जीवनशैली से युवा पीढ़ी को प्रभावित करते हैं। उनके पहनावे और रहन-सहन के तरीके ट्रेंड बनते हैं, जिससे भारतीय युवाओं में नई सोच और शैली का विकास होता है।

नकारात्मक प्रभाव:

यथार्थता से दूर: कई बार बॉलीवुड फिल्में वास्तविकता से परे होती हैं। इनमें प्रस्तुत जीवनशैली और समस्याएं आम भारतीय के जीवन से मेल नहीं खातीं। इससे दर्शकों में भ्रम उत्पन्न हो सकता है और वे असंभव चीजों को आदर्श मान सकते हैं।

सामाजिक मानदंडों का प्रभाव: कुछ फिल्में महिलाओं और पुरुषों की छवि को गलत तरीके से प्रस्तुत करती हैं, जिससे समाज में असामान्य मानदंडों का विकास होता है। यह विशेष रूप से महिलाओं के प्रति भेदभाव और वस्तुवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा दे सकता है।

सामाजिक समस्याओं की अनदेखी: जबकि कुछ फिल्में सामाजिक मुद्दों को उठाती हैं, कई अन्य इनसे दूर भागती हैं। इससे महत्वपूर्ण समस्याओं की अनदेखी होती है और समाज में व्याप्त वास्तविक समस्याओं के प्रति उदासीनता बढ़ती है।

विलासिता और भौतिकता का प्रोत्साहन: बॉलीवुड फिल्मों में अक्सर विलासिता, धन और भौतिक वस्तुओं का महिमामंडन किया जाता है। इससे युवा पीढ़ी में भौतिकवाद का विकास हो सकता है, जो उनके नैतिक मूल्यों को प्रभावित कर सकता है।

निष्कर्ष:

बॉलीवुड का भारतीय संस्कृति पर गहरा प्रभाव है। यह न केवल मनोरंजन का स्रोत है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों को भी प्रभावित करता है। इस प्रभाव का सही तरीके से उपयोग करने से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है, जबकि नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए समुचित जागरूकता की आवश्यकता है।

मनुष्यों के लिए भोजन - foods for humans

मनुष्यों के लिए भोजन - foods for humans

 

मनुष्यों के लिए भोजन - foods for humans

जब प्रकृति ने हमें इतना सब कुछ दिया हो तब क्यों किसी बेजुबान पशु की हत्या करके उसकी लाश को क्यों खाना

दया और करुणा ही वह मूलभूत गुण हैं जो किसी मानव और दानव के मध्य के अंतर को बनाये रखते हैं

महज जिह्वा के स्वाद के लिए की गई किसी बेजुबान की हत्या आपके लिए नरक में अग्नि के कुंड की व्यवस्था कर रही है

अपने पेट को किसी निरीह पशु की लाश का कब्रिस्तान न बनाएं

शाकाहार अपनाएं

आप मानव हैं, दानव नहीं

बेटा या बेटी नहीं जन्माए ये धन कमाने के साधन मात्र हैं - Don't give birth to a son or daughter, they are just a means to earn money.

 यदि आपका बेटा या बेटी बहुत बडे़ बिजनेस मैन, डॉक्टर , इंजिनियर और आईएएस अधिकारी हैं.....!!

पर यदि उनके पास आपके लिऐ 10 मिनट का समय भी नहीं हैं तो आपने बेटा या बेटी नहीं जन्माए ये धन कमाने के साधन मात्र हैं......!!
बुढ़ापे मे आपको गांव में अकेला छोड़ कर शहर में बच जाए तो वो बेटे पढ़े लिखे किस काम के
इससे तो अच्छा था अनपढ़ रखते कम से कम आपके बुढ़ापे की लाठी तो बनते........!!!All 
Don't give birth to a son or daughter, they are just a means to earn money.

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