स्तन कैंसर से बचाव breast cancer prevention

महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अगर आप
चाहती हैं कि आपको इस रोग की चपेट में न आना पडे,
तो आपको अभी से कुछ चीजों को अपनी जीवनशैली में
जरूरी शामिल करना चाहिए।
आजकल स्तन कैंसर की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है।
दरअसल, बदलती जीवनशैली और अनियमित खान-पान के
कारण भी स्तन कैंसर के मामलों में वृद्धि हुई है। आइए जानते हैं
इसके प्रमुख कारण और उनसे बचाव के कुछ उपाय।
अगर आपके परिवार में पहले कोई स्तन कैंसर से पीडित रहा है,
तो आपको भी यह समस्या होने की आशंका बढ़ जाती है। साथ
ही अनियमित भोजन, धूम्रपान, मोटापा व एल्कोहल
आदि का सेवन भी इस समस्या के प्रमुख कारणों में शामिल हैं।
इस घातक रोग से बचने के लिए फूल गोभी, पत्ता गोभी व
ब्रोकली आदि का सेवन करना चाहिए।
हरी सब्जियों में कैंसर से लड़ने के गुर होते हैं। इसके
अलावा सोया मिल्क या टोफू का सेवन करने से एस्ट्रोजेन
का प्रभाव कम होता है, जिससे आप इस रोग की चपेट में आने
से बच सकती हैं। शिशु को स्तनपान कराने से भी स्तन कैंसर
होने की आशंका कम होती है।
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Herbal Cure for Pimples

A combination of lemon juice and rose water
when applied on the pimples and left for half an
hour is a good remedy for pimples. This should
be continued for three to four weeks as a
natural home remedy.
 

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अश्वगंधा से उपचार

अश्वगंधा से उपचार :

सामान्य परिचय : सम्पूर्ण भारतवर्ष में विशेषकर शुष्क
प्रदेशों में असगंध के जंगली या कृषिजन्य पौधे 5,500 फुट
की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। इसके जंगली पौधे
की अपेक्षा कृषिजन्य पौधे गुणवत्ता की दृष्टि से उत्तम होते
हैं, परंतु तेल आदि के लिए जगंली पौधे ही उपयोगी होते हैं।
यह देश भेद से कई प्रकार की कही गई है, परंतु
असली असगंध के पौधे को मसलने पर घोड़े के मूत्र जैसी गंध
आती है जो इसकी ताजी जड़ में अपेक्षाकृत अधिक होती है।


स्वरूप : असगंध (अश्वगंधा) का झाड़ीदार पौधा 60 से 90
सेमी तक लंबा होता है। इसकी जड़ ही औषधि रूप में प्रयोग
की जाती है। इसकी जड़ अन्दर से सफेद, कड़ी, मोटी-पतली,
और 10 से 15 सेमी के लगभग लंबी होती है। इसकी जड़
को सुखाकर उपयोग में लाया जाता है। इसके पौधे पर 5-5
फूलों के गुच्छे पीले या लाल रंग के होते हैं तथा बीज पीले रंग
के छोटे, चिपटे और चिकने होते हैं।

विभिन्न भाषाओं नाम :
संस्कृत अश्वगंधा, वराहकर्णी
हिंदी असंगध, अश्वगंधा
गुजराती आसंध, घोड़ा आहन, घोड़ा आकुन
मराठी आसंध, डोरगुंज
बंगाली अश्वगंधा
तेलगू पनेरू
अंग्रेजी वीनटर चेरी (Winter Cherry)

रासायनिक संघटन : असगंध की जड़ में एक उड़नशील तेल
तथा बिथेनिओल नामक तत्व पाया जाता है। इसके
अलावा सोम्मीफेरिन नामक क्रिस्टेलाइन एल्केलायड एवं
फाइटोस्टेरोल आदि तत्व भी पाये जाते हैं।


गुण-धर्म : यह कफ वातनाशक, बलकारक, रसायन,
बाजीकारक, नाड़ी-शक्तिवर्द्धक तथा पाचनशक्ति को बढ़ाने
वाला होता है।

हानिकारक : गर्म प्रकृति वालों के लिए अश्वगंधा का अधिक
मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।

दोषों को दूर करने वाला : गोंद, कतीरा एवं घी इसके
गुणों को सुरक्षित रखते हुए, दोषों को कम करता है।

विभिन्न रोगों का अश्वगंधा से उपचार :


1 गंडमाला :-असंगध के नये कोमल पत्तों को समान
मात्रा में पुराना गुड़ मिलाकर तथा पीसकर झाड़ी के बेर
जितनी गोलियां बना लें। इसे सुबह ही एक गोली बासी पानी के
साथ निगल लें और असगंधा के पत्तों को पीसकर
गंडमाला पर लेप करें।.

2 हृदय शूल :-*वात के कारण उत्पन्न हृदय रोग में असगंध
का चूर्ण दो ग्राम गर्म पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
*असगंध चूर्ण में बहेड़े का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर
5-10 ग्राम की मात्रा गुड़ के साथ लेने से हृदय सम्बंधी वात
पीड़ा दूर होती है।"

3 क्षयरोग (टी.बी.) : -*2 ग्राम असंगध के चूर्ण को असगंध
के ही 20 मिलीलीटर काढ़े के साथ सेवन करने से क्षय रोग
में लाभ होता है।
*2 ग्राम असगंध की जड़ के चूर्ण में 1 ग्राम बड़ी पीपल
का चूर्ण, 5 ग्राम घी और 10 ग्राम शहद मिलाकर सेवन
करने से क्षय रोग (टी.बी.) मिटता है।"

4 खांसी : -*असगंध (अश्वगंधा) की 10 ग्राम जड़ को कूट
लें, इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर 400 मिलीलीटर पानी में
पकाएं, जब 8वां हिस्सा रह जाये तो इसे थोड़ा-थोड़ा पिलाने
से कुकुर खांसी या वात जन्य खांसी पर विशेष लाभ होता है।
*असगंध के पत्तों का काढ़ा 40 मिलीलीटर, बहेडे़ का चूर्ण
20 ग्राम, कत्था का चूर्ण 10 ग्राम, कालीमिर्च 50 ग्राम,
लगभग 3 ग्राम सेंधानमक को मिलाकर लगभग आधा ग्राम
की गोलियां बना लें। इन गोलियों को चूसने से सभी प्रकार
की खांसी दूर होती है। टी.बी. खांसी में भी यह लाभदायक है।"

5 गर्भधारण : -*अश्वगंधा का चूर्ण 20 ग्राम, पानी 1 लीटर
तथा गाय का दूध 250 मिलीलीटर तीनों को हल्की आंच पर
पकाकार जब दूध मात्र शेष रह जाये तब इसमें 6 ग्राम
मिश्री और 6 ग्राम गाय का घी मिलाकर मासिक-धर्म
की शुद्धिस्नान के 3 दिन बाद 3 दिन तक सेवन करने से
स्त्री अवश्यगर्भ धारण करती है।
*अश्वगंधा का चूर्ण, गाय के घी में मिलाकर मासिक-धर्म
स्नान के पश्चात् प्रतिदिन गाय के दूध के साथ या ताजे
पानी से 4-6 ग्राम की मात्रा में 1 महीने तक निरंतर सेवन
करने से स्त्री गर्भधारण अवश्य करती है।
*अश्वगंधा की जड़ के काढ़े और लुगदी में चौगुना घी मिलाकर
पकाकर सेवन करने से वात रोग दूर होता है
तथा स्त्री गर्भधारण करती है।"

6 गर्भपात : -बार-बार गर्भपात होने पर अश्वगंधा और सफेद
कटेरी की जड़ इन दोनों का 10-10 मिलीलीटर रस पहले 5
महीने तक सेवन करने से अकाल में गर्भपात नहीं होगा और
गर्भपात के समय सेवन करने से गर्भ रुक जाता है।

7 रक्तप्रदर एवं श्वेतप्रदर :-अश्वगंधा के चूर्ण में बराबर
मात्रा में मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच गाय के दूध में
मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।

8 कृमि रोग (पेट के कीड़े) : -इसके चूर्ण में बराबर मात्रा में
गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ 5-10 ग्राम नियमित
सेवन करने से लाभ होता है।

9 संधिवात (जोड़ों का दर्द) में : -*अश्वगंधा के पंचांग (जड़,
पत्ती, तना, फल और फूल) को कूटकर, छानकर 25 से 50
ग्राम तक सेवन करने से जोड़ों का दर्द (गठियावात) दूर
होता है। गठिया में अश्वगंधा के 30 ग्राम ताजा पत्ते, 250
मिलीलीटर पानी में उबालकर जब पानी आधा रह जाये
तो छानकर पी लें। 1 सप्ताह पीने से ही गठिया में जकड़ा और
तकलीफ से रोता रोगी बिल्कुल अच्छा हो जाता है
तथा इसका लेप भी बहुत लाभदायक है।
*अश्वगंधा के चूर्ण की मात्रा 2 ग्राम सुबह-शाम गर्म दूध
तथा पानी के साथ खाने से गठिया के रोगी को आराम
हो जाता है।
*अश्वगंधा के तीन ग्राम चूर्ण को तीन ग्राम घी में मिलाकर,
एक ग्राम शक्कर मिलाकर सुबह-शाम खाने से संधिवात दूर
होता है। अश्वगंधा की 15 ग्राम कोंपले या कोमल पत्ते लेकर
200 मिलीलीटर पानी में उबालें जब पत्ते गल जाये या नरम
हो जायें तो छानकर गर्म-गर्म तीन-चार दिन पीयें, इससे कफ
जन्य खांसी भी दूर होती है।"

10 कमर दर्द : -*अश्वगंधा के 2-5 ग्राम चूर्ण को गाय के
घी या शक्कर के साथ चाटने से कमरदर्द और नींद में लाभ
होता है।
*असगंध और सोंठ बराबर मात्रा में लेकर इनका चूर्ण
बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ
सेवन करें। इससे कमर दर्द से आराम मिलता है।
*असंगध और सफेद मूसली को पीसकर बराबर मात्रा में
बनाया गया चूर्ण 1 चम्मच भर, रोजाना दूध के साथ सेवन
करने से कमजोरी मिट जाती है।
*1-1 छोटे चम्मच असगंध का चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह-
शाम खाने और ऊपर से एक गिलास दूध पीने से शरीर
की कमजोरी दूर होती है।"

11 नपुंसकता :-*अश्वगंधा का कपड़े से छना हुआ बारीक
चूर्ण और चीनी बराबर मिलाकर रखें, इसको 1 चम्मच गाय
के ताजे दूध के साथ सुबह भोजन से 3 घंटे पूर्व सेवन करें।
इस चूर्ण को चुटकी-चुटकी भर खाते हैं और ऊपर से दूध पीते
रहें। रात के समय इसके बारीक चूर्ण को चमेली के तेल में
अच्छी तरह घोटकर लगाने से इन्द्रिय की शिथिलता दूर
होकर वह कठोर और दृढ़ हो जाती हैं।
*अश्वगंधा, दालचीनी और कडुवा कूठ बराबर मात्रा में
कूटकर छान लें और गाय के मक्खन में मिलाकर 5-10 ग्राम
की मात्रा में सुबह-शाम सुपारी छोड़करक शेष लिंग पर मलें,
इसको मलने के पूर्व और बाद में लिंग को गर्म पानी से
धो लें।"

12 कमजोरी :-*असगंध एक वर्ष तक यथाविधि सेवन करने
से शरीर रोग रहित हो जाता है। केवल सर्दीयों में ही इसके
सेवन से दुर्बल व्यक्ति भी बलवान होता है। वृद्धावस्था दूर
होकर नवयौवन प्राप्त होता है।
*असंगध चूर्ण, तिल व घी 10-10 ग्राम लेकर और तीन
ग्राम शहद मिलाकर नित्य सर्दी में सेवन करने से कमजोर
शरीर वाला बालक मोटा हो जाता है।
*अश्वगंधा का चूर्ण 6 ग्राम, इसमें बराबर की मिश्री और
बराबर शहद मिलाकर इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलायें, इस
मिश्रण को सुबह शाम शीतकाल में चार महीने तक सेवन करने
से बूढ़ा व्यक्ति भी युवक की तरह प्रसन्न रहता है।
*अश्वगंधा चूर्ण 20 ग्राम, तिल इससे दुगने, और उड़द आठ
गुने अर्थात 140 ग्राम, इन तीनों को महीन पीसकर इसके बड़े
बनाकर ताजे-ताजे एक ग्राम तक खायें।
*अश्वगंधा चूर्ण और चिरायता बराबर-बराबर लेकर खरल
(कूटकर) कर रखें। इस चूर्ण को 10-10 ग्राम की मात्रा में
सुबह ग्राम शाम दूध के साथ खायें।
*एक ग्राम अश्वगंधा चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
मिश्री डालकर उबालें हुए दूध के साथ सेवन करने से वीर्य
पुष्ट होता है, बल बढ़ता है।

13 खून की खराबी : -4 ग्राम चोपचीनी और
अश्वगंधा का बारीक पिसा चूर्ण बराबर मात्रा में लें। इसे शहद
के साथ नियमित सुबह-शाम चाटने से रक्तविकार मिट
जाता है।

14 ज्वर : -इसका चूर्ण पांच ग्राम, गिलोय की छाल
का चूर्ण चार ग्राम, दोनों को मिलाकर प्रतिदिन शाम
को गर्म पानी से खाने से जीर्णवात ज्वर दूर हो जाता है।.

15 सभी प्रकार के रोगों में : -लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
गिलोय का चूर्ण को 5 ग्राम अश्वगंधा के चूर्ण के साथ
मिलाकर शहद के साथ चाटने से सभी प्रकार के रोग दूर
हो जाते हैं।

16 बांझपन दूर करना : -*असगंध, नागकेसर और गोरोचन इन
तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस-छान लेते हैं। इसे शीतल
जल के साथ सेवन करें तो गर्भ ठहर जाता है।
*असगंध तथा नागौरी को 50 ग्राम की मात्रा में लेकर
कूटकर कपड़छन कर लेते हैं। जब मासिक-धर्म के बाद
स्त्री स्नान करके शुद्ध हो जाए तो 10 ग्राम की मात्रा में
इसका सेवन करें। उसके बाद पुरुष के साथ रमण (मैथुन) करें
तो इससे बांझपन दूर होकर महिला गर्भवती हो जाएगी। "

17 गर्भधारण :-*असगंध के काढे़ में दूध और घी मिलाकर 7
दिनों तक पिलाने से स्त्री को निश्चित रूप से गर्भधारण
होता है।
*असगंध का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में मासिक-धर्म
के शुरू होने के लगभग 4 दिन पहले से सेवन करना चाहिए।
इससे गर्भ ठहरता है।
*असगंध 100 ग्राम दरदरा कूटकर इसकी 20 ग्राम
मात्रा को 200 मिलीलीटर पानी में रात को भिगोकर रख देते
हैं। सुबह इसे उबालते हैं। एक चौथाई रह जाने पर इसे छानकर
200 मिलीलीटर गुनगुने मीठे दूध में एक चम्मच घी मिलाकर
माहवारी के पहले दिन से 5 दिनों तक लगातार प्रयोग
करना चाहिए।"

18 दस्त :-असगंध, दालचीनी, नागरमोथा, बाराही फल, धाय
के फूल और कुड़ा (कोरैया) की छाल को निकालकर
काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी बने काढ़े को 20 से 40
मिलीलीटर की मात्रा में पीने से बुखार के दौरान आने वाले
दस्त बंद हो जाते हैं और आराम मिलता है।

19 मासिक-धर्म सम्बंधी विकार :-असगंध 35 ग्राम
की मात्रा में कूटकर छान लेते हैं। इसमें 35 ग्राम
की मात्रा में चीनी मिला देते हैं। इसकी 10 ग्राम
मात्रा को पानी से खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग
एक सप्ताह पहले सेवन करना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू
हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक
धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

20 प्रदर :-*असगंध और शतावर का बराबर मात्रा का चूर्ण
3 ग्राम ताजे पानी के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ
होता है।
*असगंध का चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ कुछ दिनों तक
सेवन करने से श्वेत प्रदर मिट जाता है। 25-25 ग्राम
की मात्रा में असगंध, बिधारा, लोध्र पठानी, को कूट-पीस
छानकर 5-5 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने
से प्रदर में आराम मिलता है।
*5-10 ग्राम असगंध, नागौरी चूर्ण सुबह-शाम घी के साथ
सेवन करने से प्रदर में आराम मिलता है।"

21 अल्सर :-4 ग्राम असगंध को गौमूत्र (गाय के पेशाब) में
पीसकर सेवन करना चाहिए।

22 हड्डी कमजोर होना : -असगंध नागौरी का चूर्ण 1 से 3
ग्राम शहद एवं मिश्री मिले दूध के साथ सुबह-शाम खाने से
हड्डी की विकृति आदि दूर होकर शरीर पुष्ट और सबल
हो जाता है।

23 रक्तप्रदर :-अश्वगंधा को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसे
3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन
करने से रक्त प्रदर में आराम मिलता है।

24 स्तनों के आकार में वृद्धि : -*असगंध नागौरी और
शतावरी को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह से पीसकर
चूर्ण बनायें, फिर इसी चूर्ण को देशी घी में मिलाकर
मिट्टी के बर्तन में रखें, इसी चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में
मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करने से स्तनों के आकार में
बढ़ोत्तरी होती है।
*असंगध नागौरी, गजपीपल और बच आदि को बराबर लेकर
पीसकर चूर्ण बना लें, फिर मक्खन के साथ मिलाकर
स्तनों पर लगायें। इससे स्तनों का उभार होता है।"

25 मोटापे के रोग में :-असगंध 50 ग्राम, मूसली 50 ग्राम,
काली मूसली 50 की मात्रा में कूटकर छानकर रख लें, इसे
10 ग्राम की मात्रा में सुबह दूध के साथ लेने से मोटापा दूर
होता है।

26 स्तनों को आकर्षक होना :-असगंध और
शतावरी को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग 2-2 ग्राम
की मात्रा में शहद के खाकर ऊपर से दूध में
मिश्री को मिलाकर पीने से स्तन आकर्षक हो जाते हैं।

27 वात रोग : -*असगंध के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल,
पत्ती) को खाने से लाभ प्राप्त होता है।
*असगंध और विधारा 500-500 ग्राम कूट पीसकर रख लें।
10 ग्राम दवा सुबह गाय के दूध के साथ खाने से वात रोग
खत्म हो जाते हैं।
*असगंध और मेथी की 100-100 ग्राम मात्रा का बारीक
चूर्ण बनाकर, आपस में गुड़ में मिलाकर 10 ग्राम के लड्डू
बना लें। 1-1 लड्डू सुबह-शाम खाकर ऊपर से दूध पी लें। यह
प्रयोग वात रोगों में अच्छा आराम दिलाता है। जिन्हें
डायबिटीज हो, उन्हें गुड़ नहीं मिलाना चाहिए, उन्हें सिर्फ
अश्वगंध और मेथी का चूर्ण पानी के साथ लेना चाहिए।".

28 वीर्य रोग में : -*असगंध नागौरी, विधारा,
सतावरी 50-50 ग्राम कूट-पीसकर छान लें, फिर इसमें 150
ग्राम चीनी मिला दें। 10-10 ग्राम दूध से सुबह-शाम लें।
*नागौरी असगंध, गोखरू, शतावर तथा मिश्री मिलाकर खायें।
*असगंध, विधारा 25-25 ग्राम को मिलाकर बारीक पीस लें।
इसमें 50 ग्राम चीनी मिलाकर 10 ग्राम दवा सोते समय
हल्के गर्म दूध से लें। इससे बल वीर्य बढ़ता है।
*300 ग्राम असगंध को बारीक पीस लें। इसकी 20 ग्राम
मात्रा को 250 मिलीलीटर दूध में मिलाकर उबालें, जब यह
गाढ़ा हो जाये तो इसमें चीनी मिलाकर पीना चाहिए। "

29 अंगुलियों का कांपना :-3 से 6 ग्राम असगंध
नागौरी को गाय के घी और उसके चार गुना दूध में उबालकर
मिश्री मिलाकर प्रतिदिन पीने से अंगुलियों का कांपना दूर
हो जाता है। इससे रोगी को काफी लाभ मिलता है।

30 योनि रोग :-असगंध को दूध में अच्छी तरह पका लें, फिर
ऊपर से देशी घी को डालकर एक दिन सुबह और शाम
माहवारी के बाद स्नान हुई महिला को पिलाने से योनि के
विकार हो नष्ट जाते हैं और गर्भधारण के योग्य हो जाता है।

31 दिल की धड़कन : -असगंध और बहेड़ा दोनों को कूट-
पीसकर चूर्ण बना लें। फिर 3 ग्राम चूर्ण में थोड़ा-सा गुड़
मिलाकर हल्के गर्म पानी से सेवन करें। इससे दिल की तेज
धड़कन और निर्बलता नष्ट होती है।

32 गठिया रोग :-*असगंध, सुरंजन मीठी, असपन्द और
खुलंजन 30-30 ग्राम को कूट-छानकर चूर्ण बना लें। यह
चूर्ण 5-5 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम गर्म
पानी से लें। इससे गठिया का दर्द दूर हो जाता है।
*50 ग्राम असगंध और 25 ग्राम सोंठ को कूट-छानकर इसमें
75 ग्राम चीनी को मिला लें। 4-4 ग्राम मिश्रण पानी से
सुबह-शाम लेने से गठिया का दर्द दूर हो जाता है।
*3 ग्राम असगंध का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में 3 ग्राम
घी मिलाकर रोजाना सुबह-शाम लेने से गठिया के रोग में
आराम मिलता है।"

33 हाई ब्लडप्रेशर :-अश्वगंधा चूर्ण 3 ग्राम,
सूरजमुखी बीज का चूर्ण 2 ग्राम, मिश्री 5 ग्राम और गिलोय
का बारीक चूर्ण (सत्व) 1 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के
साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप (हाई
ब्लड प्रेशर) में लाभ होता है।

34 हृदय की दुर्बलता :-असंगध 3-3 ग्राम सुबह-शाम गर्म
दूध से लें। इससे दिल दिमाग की कमजोरी ठीक हो जाती है।

35 हाथ-पैरों की ऐंठन :-सुरंजन मीठी, असगंध नागौरी 50-50
ग्राम, 25 ग्राम सोंठ और 120 ग्राम मिश्री को बारीक
पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 4 से 6 ग्राम प्रतिदिन सुबह-
शाम ताजे पानी के साथ लेने से पैरों के जोड़ व हाथ-
पैरों का दर्द खत्म हो जाता है।

36 क्रोध : -लगभग 3 से 6 ग्राम असगंध नागौरी के चूर्ण
को मिश्री और घी में मिलाकर हल्के गर्म दूध के साथ सुबह-
शाम को खाने से स्नायुतंत्र अपना कार्य ठीक तरह से
करता है, जिससे क्रोध नष्ट हो जाता है।

37 सदमा :-लगभग 3-6 ग्राम असगंध नागौरी के चूर्ण
को सुबह-शाम को रोजाना घी और चीनी मिले दूध के साथ
खाने से स्नायुविक ऊर्जा प्राप्त होने के कारण बार-बार
आने वाले सदमे खत्म हो जाते हैं।

38 खून का बहना :-अश्वगंधा के चूर्ण और चीनी को बराबर
मात्रा में मिलाकर खाने से खून निकलना बंद हो जाता है।

39 लिंग वृद्धि :-*लिंग को बढ़ाने के लिए लोध्र, केशर,
असगंधा, पीपल, शालपर्णी को तेल में पकाकर लिंग पर
मालिश करने से लिंग में वृद्धि हो जाती है।
*कूटकटेरी, असगंध, बच, शतावरी आदि को तिल में
अच्छी तरह से पकायें। सब औषधियों के जल जाने पर ही उसे
आग से उतारे और लिंग पर मालिश करें। इससे लिंग
का छोटापन दूर हो जाता है। "

40 थकावट होना :-*लगभग 3 से 6 ग्राम असगंध नागौरी के
चूर्ण को मिश्री और घी मिले हुए दूध के साथ सुबह-शाम लेने
से शरीर में ताजगी और जोश आ जाता है।
*असगंध नागौरी और क्षीर विदारी की जड़ को बराबर भाग में
लेकर, हल्के गर्म दूध में 3 से 6 ग्राम मिश्री और
घी मिलाकर एक साथ सुबह और शाम को लेने से शरीर
की मानसिक और शारीरिक थकावट दूर हो जाती है।"

41 शरीर को शक्तिशाली बनाना :-*असगंध के चूर्ण को दूध
में मिलाकर पीने से शरीर शक्तिशाली होता है और वीर्य में
वृद्धि होती है।
*बराबर मात्रा में असगंध और विधारा को पीसकर
इसका चूर्ण बना लें। इसके चूर्ण को एक शीशी में भरकर रख
लें। इस चूर्ण को सुबह और शाम को दूध के साथ लेने से
मनुष्य के शरीर की संभोग करने की क्षमता बढ़ती है।
*असगंध के चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के
साथ चाटने से शरीर में ताकत बढ़ती है।
*लगभग 100-100 ग्राम की मात्रा में नागौरी असगंध, सफेद
मूसली और स्याह मूली को लेकर इसका चूर्ण बना लें।
रोजाना लगभग 10-10 ग्राम की मात्रा में इस चूर्ण को 500
मिलीलीटर दूध के साथ सुबह और शाम को खाने से मनुष्य के
शरीर में जबरदस्त शक्ति आ जाती है।
*बराबर मात्रा में असगंध या अश्वगंधा, सौंठ, मिश्री और
विधारा को लेकर बारीक चूर्ण बना लें। इसके बाद एक-एक
चम्मच की मात्रा में सुबह और शाम को दूध के साथ इस
चूर्ण का सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर हो जाती है,
सर्दी कम लगती है और शरीर में वीर्य बल बढ़ता है।"

42 आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए : -अश्वगंधा का चूर्ण 2
ग्राम, धात्रि फल चूर्ण 2 ग्राम तथा 1 ग्राम
मुलेठी का चूर्ण मिलाकर 1 चम्मच सुबह और शाम पानी के
साथ सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।

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Photo: अश्वगंधा से उपचार :

सामान्य परिचय : सम्पूर्ण भारतवर्ष में विशेषकर शुष्क
प्रदेशों में असगंध के जंगली या कृषिजन्य पौधे 5,500 फुट
की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। इसके जंगली पौधे
की अपेक्षा कृषिजन्य पौधे गुणवत्ता की दृष्टि से उत्तम होते
हैं, परंतु तेल आदि के लिए जगंली पौधे ही उपयोगी होते हैं।
यह देश भेद से कई प्रकार की कही गई है, परंतु
असली असगंध के पौधे को मसलने पर घोड़े के मूत्र जैसी गंध
आती है जो इसकी ताजी जड़ में अपेक्षाकृत अधिक होती है।


स्वरूप : असगंध (अश्वगंधा) का झाड़ीदार पौधा 60 से 90
सेमी तक लंबा होता है। इसकी जड़ ही औषधि रूप में प्रयोग
की जाती है। इसकी जड़ अन्दर से सफेद, कड़ी, मोटी-पतली,
और 10 से 15 सेमी के लगभग लंबी होती है। इसकी जड़
को सुखाकर उपयोग में लाया जाता है। इसके पौधे पर 5-5
फूलों के गुच्छे पीले या लाल रंग के होते हैं तथा बीज पीले रंग
के छोटे, चिपटे और चिकने होते हैं।

विभिन्न भाषाओं नाम :
संस्कृत अश्वगंधा, वराहकर्णी
हिंदी असंगध, अश्वगंधा
गुजराती आसंध, घोड़ा आहन, घोड़ा आकुन
मराठी आसंध, डोरगुंज
बंगाली अश्वगंधा
तेलगू पनेरू
अंग्रेजी वीनटर चेरी (Winter Cherry)

रासायनिक संघटन : असगंध की जड़ में एक उड़नशील तेल
तथा बिथेनिओल नामक तत्व पाया जाता है। इसके
अलावा सोम्मीफेरिन नामक क्रिस्टेलाइन एल्केलायड एवं
फाइटोस्टेरोल आदि तत्व भी पाये जाते हैं।


गुण-धर्म : यह कफ वातनाशक, बलकारक, रसायन,
बाजीकारक, नाड़ी-शक्तिवर्द्धक तथा पाचनशक्ति को बढ़ाने
वाला होता है।

हानिकारक : गर्म प्रकृति वालों के लिए अश्वगंधा का अधिक
मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।

दोषों को दूर करने वाला : गोंद, कतीरा एवं घी इसके
गुणों को सुरक्षित रखते हुए, दोषों को कम करता है।

विभिन्न रोगों का अश्वगंधा से उपचार :


1 गंडमाला :-असंगध के नये कोमल पत्तों को समान
मात्रा में पुराना गुड़ मिलाकर तथा पीसकर झाड़ी के बेर
जितनी गोलियां बना लें। इसे सुबह ही एक गोली बासी पानी के
साथ निगल लें और असगंधा के पत्तों को पीसकर
गंडमाला पर लेप करें।.

2 हृदय शूल :-*वात के कारण उत्पन्न हृदय रोग में असगंध
का चूर्ण दो ग्राम गर्म पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
*असगंध चूर्ण में बहेड़े का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर
5-10 ग्राम की मात्रा गुड़ के साथ लेने से हृदय सम्बंधी वात
पीड़ा दूर होती है।"

3 क्षयरोग (टी.बी.) : -*2 ग्राम असंगध के चूर्ण को असगंध
के ही 20 मिलीलीटर काढ़े के साथ सेवन करने से क्षय रोग
में लाभ होता है।
*2 ग्राम असगंध की जड़ के चूर्ण में 1 ग्राम बड़ी पीपल
का चूर्ण, 5 ग्राम घी और 10 ग्राम शहद मिलाकर सेवन
करने से क्षय रोग (टी.बी.) मिटता है।"

4 खांसी : -*असगंध (अश्वगंधा) की 10 ग्राम जड़ को कूट
लें, इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर 400 मिलीलीटर पानी में
पकाएं, जब 8वां हिस्सा रह जाये तो इसे थोड़ा-थोड़ा पिलाने
से कुकुर खांसी या वात जन्य खांसी पर विशेष लाभ होता है।
*असगंध के पत्तों का काढ़ा 40 मिलीलीटर, बहेडे़ का चूर्ण
20 ग्राम, कत्था का चूर्ण 10 ग्राम, कालीमिर्च 50 ग्राम,
लगभग 3 ग्राम सेंधानमक को मिलाकर लगभग आधा ग्राम
की गोलियां बना लें। इन गोलियों को चूसने से सभी प्रकार
की खांसी दूर होती है। टी.बी. खांसी में भी यह लाभदायक है।"

5 गर्भधारण : -*अश्वगंधा का चूर्ण 20 ग्राम, पानी 1 लीटर
तथा गाय का दूध 250 मिलीलीटर तीनों को हल्की आंच पर
पकाकार जब दूध मात्र शेष रह जाये तब इसमें 6 ग्राम
मिश्री और 6 ग्राम गाय का घी मिलाकर मासिक-धर्म
की शुद्धिस्नान के 3 दिन बाद 3 दिन तक सेवन करने से
स्त्री अवश्यगर्भ धारण करती है।
*अश्वगंधा का चूर्ण, गाय के घी में मिलाकर मासिक-धर्म
स्नान के पश्चात् प्रतिदिन गाय के दूध के साथ या ताजे
पानी से 4-6 ग्राम की मात्रा में 1 महीने तक निरंतर सेवन
करने से स्त्री गर्भधारण अवश्य करती है।
*अश्वगंधा की जड़ के काढ़े और लुगदी में चौगुना घी मिलाकर
पकाकर सेवन करने से वात रोग दूर होता है
तथा स्त्री गर्भधारण करती है।"

6 गर्भपात : -बार-बार गर्भपात होने पर अश्वगंधा और सफेद
कटेरी की जड़ इन दोनों का 10-10 मिलीलीटर रस पहले 5
महीने तक सेवन करने से अकाल में गर्भपात नहीं होगा और
गर्भपात के समय सेवन करने से गर्भ रुक जाता है।

7 रक्तप्रदर एवं श्वेतप्रदर :-अश्वगंधा के चूर्ण में बराबर
मात्रा में मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच गाय के दूध में
मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।

8 कृमि रोग (पेट के कीड़े) : -इसके चूर्ण में बराबर मात्रा में
गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ 5-10 ग्राम नियमित
सेवन करने से लाभ होता है।

9 संधिवात (जोड़ों का दर्द) में : -*अश्वगंधा के पंचांग (जड़,
पत्ती, तना, फल और फूल) को कूटकर, छानकर 25 से 50
ग्राम तक सेवन करने से जोड़ों का दर्द (गठियावात) दूर
होता है। गठिया में अश्वगंधा के 30 ग्राम ताजा पत्ते, 250
मिलीलीटर पानी में उबालकर जब पानी आधा रह जाये
तो छानकर पी लें। 1 सप्ताह पीने से ही गठिया में जकड़ा और
तकलीफ से रोता रोगी बिल्कुल अच्छा हो जाता है
तथा इसका लेप भी बहुत लाभदायक है।
*अश्वगंधा के चूर्ण की मात्रा 2 ग्राम सुबह-शाम गर्म दूध
तथा पानी के साथ खाने से गठिया के रोगी को आराम
हो जाता है।
*अश्वगंधा के तीन ग्राम चूर्ण को तीन ग्राम घी में मिलाकर,
एक ग्राम शक्कर मिलाकर सुबह-शाम खाने से संधिवात दूर
होता है। अश्वगंधा की 15 ग्राम कोंपले या कोमल पत्ते लेकर
200 मिलीलीटर पानी में उबालें जब पत्ते गल जाये या नरम
हो जायें तो छानकर गर्म-गर्म तीन-चार दिन पीयें, इससे कफ
जन्य खांसी भी दूर होती है।"

10 कमर दर्द : -*अश्वगंधा के 2-5 ग्राम चूर्ण को गाय के
घी या शक्कर के साथ चाटने से कमरदर्द और नींद में लाभ
होता है।
*असगंध और सोंठ बराबर मात्रा में लेकर इनका चूर्ण
बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ
सेवन करें। इससे कमर दर्द से आराम मिलता है।
*असंगध और सफेद मूसली को पीसकर बराबर मात्रा में
बनाया गया चूर्ण 1 चम्मच भर, रोजाना दूध के साथ सेवन
करने से कमजोरी मिट जाती है।
*1-1 छोटे चम्मच असगंध का चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह-
शाम खाने और ऊपर से एक गिलास दूध पीने से शरीर
की कमजोरी दूर होती है।"

11 नपुंसकता :-*अश्वगंधा का कपड़े से छना हुआ बारीक
चूर्ण और चीनी बराबर मिलाकर रखें, इसको 1 चम्मच गाय
के ताजे दूध के साथ सुबह भोजन से 3 घंटे पूर्व सेवन करें।
इस चूर्ण को चुटकी-चुटकी भर खाते हैं और ऊपर से दूध पीते
रहें। रात के समय इसके बारीक चूर्ण को चमेली के तेल में
अच्छी तरह घोटकर लगाने से इन्द्रिय की शिथिलता दूर
होकर वह कठोर और दृढ़ हो जाती हैं।
*अश्वगंधा, दालचीनी और कडुवा कूठ बराबर मात्रा में
कूटकर छान लें और गाय के मक्खन में मिलाकर 5-10 ग्राम
की मात्रा में सुबह-शाम सुपारी छोड़करक शेष लिंग पर मलें,
इसको मलने के पूर्व और बाद में लिंग को गर्म पानी से
धो लें।"

12 कमजोरी :-*असगंध एक वर्ष तक यथाविधि सेवन करने
से शरीर रोग रहित हो जाता है। केवल सर्दीयों में ही इसके
सेवन से दुर्बल व्यक्ति भी बलवान होता है। वृद्धावस्था दूर
होकर नवयौवन प्राप्त होता है।
*असंगध चूर्ण, तिल व घी 10-10 ग्राम लेकर और तीन
ग्राम शहद मिलाकर नित्य सर्दी में सेवन करने से कमजोर
शरीर वाला बालक मोटा हो जाता है।
*अश्वगंधा का चूर्ण 6 ग्राम, इसमें बराबर की मिश्री और
बराबर शहद मिलाकर इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलायें, इस
मिश्रण को सुबह शाम शीतकाल में चार महीने तक सेवन करने
से बूढ़ा व्यक्ति भी युवक की तरह प्रसन्न रहता है।
*अश्वगंधा चूर्ण 20 ग्राम, तिल इससे दुगने, और उड़द आठ
गुने अर्थात 140 ग्राम, इन तीनों को महीन पीसकर इसके बड़े
बनाकर ताजे-ताजे एक ग्राम तक खायें।
*अश्वगंधा चूर्ण और चिरायता बराबर-बराबर लेकर खरल
(कूटकर) कर रखें। इस चूर्ण को 10-10 ग्राम की मात्रा में
सुबह ग्राम शाम दूध के साथ खायें।
*एक ग्राम अश्वगंधा चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
मिश्री डालकर उबालें हुए दूध के साथ सेवन करने से वीर्य
पुष्ट होता है, बल बढ़ता है।

13 खून की खराबी : -4 ग्राम चोपचीनी और
अश्वगंधा का बारीक पिसा चूर्ण बराबर मात्रा में लें। इसे शहद
के साथ नियमित सुबह-शाम चाटने से रक्तविकार मिट
जाता है।

14 ज्वर : -इसका चूर्ण पांच ग्राम, गिलोय की छाल
का चूर्ण चार ग्राम, दोनों को मिलाकर प्रतिदिन शाम
को गर्म पानी से खाने से जीर्णवात ज्वर दूर हो जाता है।.

15 सभी प्रकार के रोगों में : -लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
गिलोय का चूर्ण को 5 ग्राम अश्वगंधा के चूर्ण के साथ
मिलाकर शहद के साथ चाटने से सभी प्रकार के रोग दूर
हो जाते हैं।

16 बांझपन दूर करना : -*असगंध, नागकेसर और गोरोचन इन
तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस-छान लेते हैं। इसे शीतल
जल के साथ सेवन करें तो गर्भ ठहर जाता है।
*असगंध तथा नागौरी को 50 ग्राम की मात्रा में लेकर
कूटकर कपड़छन कर लेते हैं। जब मासिक-धर्म के बाद
स्त्री स्नान करके शुद्ध हो जाए तो 10 ग्राम की मात्रा में
इसका सेवन करें। उसके बाद पुरुष के साथ रमण (मैथुन) करें
तो इससे बांझपन दूर होकर महिला गर्भवती हो जाएगी। "

17 गर्भधारण :-*असगंध के काढे़ में दूध और घी मिलाकर 7
दिनों तक पिलाने से स्त्री को निश्चित रूप से गर्भधारण
होता है।
*असगंध का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में मासिक-धर्म
के शुरू होने के लगभग 4 दिन पहले से सेवन करना चाहिए।
इससे गर्भ ठहरता है।
*असगंध 100 ग्राम दरदरा कूटकर इसकी 20 ग्राम
मात्रा को 200 मिलीलीटर पानी में रात को भिगोकर रख देते
हैं। सुबह इसे उबालते हैं। एक चौथाई रह जाने पर इसे छानकर
200 मिलीलीटर गुनगुने मीठे दूध में एक चम्मच घी मिलाकर
माहवारी के पहले दिन से 5 दिनों तक लगातार प्रयोग
करना चाहिए।"

18 दस्त :-असगंध, दालचीनी, नागरमोथा, बाराही फल, धाय
के फूल और कुड़ा (कोरैया) की छाल को निकालकर
काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी बने काढ़े को 20 से 40
मिलीलीटर की मात्रा में पीने से बुखार के दौरान आने वाले
दस्त बंद हो जाते हैं और आराम मिलता है।

19 मासिक-धर्म सम्बंधी विकार :-असगंध 35 ग्राम
की मात्रा में कूटकर छान लेते हैं। इसमें 35 ग्राम
की मात्रा में चीनी मिला देते हैं। इसकी 10 ग्राम
मात्रा को पानी से खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग
एक सप्ताह पहले सेवन करना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू
हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक
धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

20 प्रदर :-*असगंध और शतावर का बराबर मात्रा का चूर्ण
3 ग्राम ताजे पानी के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ
होता है।
*असगंध का चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ कुछ दिनों तक
सेवन करने से श्वेत प्रदर मिट जाता है। 25-25 ग्राम
की मात्रा में असगंध, बिधारा, लोध्र पठानी, को कूट-पीस
छानकर 5-5 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने
से प्रदर में आराम मिलता है।
*5-10 ग्राम असगंध, नागौरी चूर्ण सुबह-शाम घी के साथ
सेवन करने से प्रदर में आराम मिलता है।"

21 अल्सर :-4 ग्राम असगंध को गौमूत्र (गाय के पेशाब) में
पीसकर सेवन करना चाहिए।

22 हड्डी कमजोर होना : -असगंध नागौरी का चूर्ण 1 से 3
ग्राम शहद एवं मिश्री मिले दूध के साथ सुबह-शाम खाने से
हड्डी की विकृति आदि दूर होकर शरीर पुष्ट और सबल
हो जाता है।

23 रक्तप्रदर :-अश्वगंधा को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसे
3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन
करने से रक्त प्रदर में आराम मिलता है।

24 स्तनों के आकार में वृद्धि : -*असगंध नागौरी और
शतावरी को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह से पीसकर
चूर्ण बनायें, फिर इसी चूर्ण को देशी घी में मिलाकर
मिट्टी के बर्तन में रखें, इसी चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में
मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करने से स्तनों के आकार में
बढ़ोत्तरी होती है।
*असंगध नागौरी, गजपीपल और बच आदि को बराबर लेकर
पीसकर चूर्ण बना लें, फिर मक्खन के साथ मिलाकर
स्तनों पर लगायें। इससे स्तनों का उभार होता है।"

25 मोटापे के रोग में :-असगंध 50 ग्राम, मूसली 50 ग्राम,
काली मूसली 50 की मात्रा में कूटकर छानकर रख लें, इसे
10 ग्राम की मात्रा में सुबह दूध के साथ लेने से मोटापा दूर
होता है।

26 स्तनों को आकर्षक होना :-असगंध और
शतावरी को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग 2-2 ग्राम
की मात्रा में शहद के खाकर ऊपर से दूध में
मिश्री को मिलाकर पीने से स्तन आकर्षक हो जाते हैं।

27 वात रोग : -*असगंध के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल,
पत्ती) को खाने से लाभ प्राप्त होता है।
*असगंध और विधारा 500-500 ग्राम कूट पीसकर रख लें।
10 ग्राम दवा सुबह गाय के दूध के साथ खाने से वात रोग
खत्म हो जाते हैं।
*असगंध और मेथी की 100-100 ग्राम मात्रा का बारीक
चूर्ण बनाकर, आपस में गुड़ में मिलाकर 10 ग्राम के लड्डू
बना लें। 1-1 लड्डू सुबह-शाम खाकर ऊपर से दूध पी लें। यह
प्रयोग वात रोगों में अच्छा आराम दिलाता है। जिन्हें
डायबिटीज हो, उन्हें गुड़ नहीं मिलाना चाहिए, उन्हें सिर्फ
अश्वगंध और मेथी का चूर्ण पानी के साथ लेना चाहिए।".

28 वीर्य रोग में : -*असगंध नागौरी, विधारा,
सतावरी 50-50 ग्राम कूट-पीसकर छान लें, फिर इसमें 150
ग्राम चीनी मिला दें। 10-10 ग्राम दूध से सुबह-शाम लें।
*नागौरी असगंध, गोखरू, शतावर तथा मिश्री मिलाकर खायें।
*असगंध, विधारा 25-25 ग्राम को मिलाकर बारीक पीस लें।
इसमें 50 ग्राम चीनी मिलाकर 10 ग्राम दवा सोते समय
हल्के गर्म दूध से लें। इससे बल वीर्य बढ़ता है।
*300 ग्राम असगंध को बारीक पीस लें। इसकी 20 ग्राम
मात्रा को 250 मिलीलीटर दूध में मिलाकर उबालें, जब यह
गाढ़ा हो जाये तो इसमें चीनी मिलाकर पीना चाहिए। "

29 अंगुलियों का कांपना :-3 से 6 ग्राम असगंध
नागौरी को गाय के घी और उसके चार गुना दूध में उबालकर
मिश्री मिलाकर प्रतिदिन पीने से अंगुलियों का कांपना दूर
हो जाता है। इससे रोगी को काफी लाभ मिलता है।

30 योनि रोग :-असगंध को दूध में अच्छी तरह पका लें, फिर
ऊपर से देशी घी को डालकर एक दिन सुबह और शाम
माहवारी के बाद स्नान हुई महिला को पिलाने से योनि के
विकार हो नष्ट जाते हैं और गर्भधारण के योग्य हो जाता है।

31 दिल की धड़कन : -असगंध और बहेड़ा दोनों को कूट-
पीसकर चूर्ण बना लें। फिर 3 ग्राम चूर्ण में थोड़ा-सा गुड़
मिलाकर हल्के गर्म पानी से सेवन करें। इससे दिल की तेज
धड़कन और निर्बलता नष्ट होती है।

32 गठिया रोग :-*असगंध, सुरंजन मीठी, असपन्द और
खुलंजन 30-30 ग्राम को कूट-छानकर चूर्ण बना लें। यह
चूर्ण 5-5 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम गर्म
पानी से लें। इससे गठिया का दर्द दूर हो जाता है।
*50 ग्राम असगंध और 25 ग्राम सोंठ को कूट-छानकर इसमें
75 ग्राम चीनी को मिला लें। 4-4 ग्राम मिश्रण पानी से
सुबह-शाम लेने से गठिया का दर्द दूर हो जाता है।
*3 ग्राम असगंध का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में 3 ग्राम
घी मिलाकर रोजाना सुबह-शाम लेने से गठिया के रोग में
आराम मिलता है।"

33 हाई ब्लडप्रेशर :-अश्वगंधा चूर्ण 3 ग्राम,
सूरजमुखी बीज का चूर्ण 2 ग्राम, मिश्री 5 ग्राम और गिलोय
का बारीक चूर्ण (सत्व) 1 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के
साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप (हाई
ब्लड प्रेशर) में लाभ होता है।

34 हृदय की दुर्बलता :-असंगध 3-3 ग्राम सुबह-शाम गर्म
दूध से लें। इससे दिल दिमाग की कमजोरी ठीक हो जाती है।

35 हाथ-पैरों की ऐंठन :-सुरंजन मीठी, असगंध नागौरी 50-50
ग्राम, 25 ग्राम सोंठ और 120 ग्राम मिश्री को बारीक
पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 4 से 6 ग्राम प्रतिदिन सुबह-
शाम ताजे पानी के साथ लेने से पैरों के जोड़ व हाथ-
पैरों का दर्द खत्म हो जाता है।

36 क्रोध : -लगभग 3 से 6 ग्राम असगंध नागौरी के चूर्ण
को मिश्री और घी में मिलाकर हल्के गर्म दूध के साथ सुबह-
शाम को खाने से स्नायुतंत्र अपना कार्य ठीक तरह से
करता है, जिससे क्रोध नष्ट हो जाता है।

37 सदमा :-लगभग 3-6 ग्राम असगंध नागौरी के चूर्ण
को सुबह-शाम को रोजाना घी और चीनी मिले दूध के साथ
खाने से स्नायुविक ऊर्जा प्राप्त होने के कारण बार-बार
आने वाले सदमे खत्म हो जाते हैं।

38 खून का बहना :-अश्वगंधा के चूर्ण और चीनी को बराबर
मात्रा में मिलाकर खाने से खून निकलना बंद हो जाता है।

39 लिंग वृद्धि :-*लिंग को बढ़ाने के लिए लोध्र, केशर,
असगंधा, पीपल, शालपर्णी को तेल में पकाकर लिंग पर
मालिश करने से लिंग में वृद्धि हो जाती है।
*कूटकटेरी, असगंध, बच, शतावरी आदि को तिल में
अच्छी तरह से पकायें। सब औषधियों के जल जाने पर ही उसे
आग से उतारे और लिंग पर मालिश करें। इससे लिंग
का छोटापन दूर हो जाता है। "

40 थकावट होना :-*लगभग 3 से 6 ग्राम असगंध नागौरी के
चूर्ण को मिश्री और घी मिले हुए दूध के साथ सुबह-शाम लेने
से शरीर में ताजगी और जोश आ जाता है।
*असगंध नागौरी और क्षीर विदारी की जड़ को बराबर भाग में
लेकर, हल्के गर्म दूध में 3 से 6 ग्राम मिश्री और
घी मिलाकर एक साथ सुबह और शाम को लेने से शरीर
की मानसिक और शारीरिक थकावट दूर हो जाती है।"

41 शरीर को शक्तिशाली बनाना :-*असगंध के चूर्ण को दूध
में मिलाकर पीने से शरीर शक्तिशाली होता है और वीर्य में
वृद्धि होती है।
*बराबर मात्रा में असगंध और विधारा को पीसकर
इसका चूर्ण बना लें। इसके चूर्ण को एक शीशी में भरकर रख
लें। इस चूर्ण को सुबह और शाम को दूध के साथ लेने से
मनुष्य के शरीर की संभोग करने की क्षमता बढ़ती है।
*असगंध के चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के
साथ चाटने से शरीर में ताकत बढ़ती है।
*लगभग 100-100 ग्राम की मात्रा में नागौरी असगंध, सफेद
मूसली और स्याह मूली को लेकर इसका चूर्ण बना लें।
रोजाना लगभग 10-10 ग्राम की मात्रा में इस चूर्ण को 500
मिलीलीटर दूध के साथ सुबह और शाम को खाने से मनुष्य के
शरीर में जबरदस्त शक्ति आ जाती है।
*बराबर मात्रा में असगंध या अश्वगंधा, सौंठ, मिश्री और
विधारा को लेकर बारीक चूर्ण बना लें। इसके बाद एक-एक
चम्मच की मात्रा में सुबह और शाम को दूध के साथ इस
चूर्ण का सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर हो जाती है,
सर्दी कम लगती है और शरीर में वीर्य बल बढ़ता है।"

42 आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए : -अश्वगंधा का चूर्ण 2
ग्राम, धात्रि फल चूर्ण 2 ग्राम तथा 1 ग्राम
मुलेठी का चूर्ण मिलाकर 1 चम्मच सुबह और शाम पानी के
साथ सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।

[[Ayurveda]]
keep  sharing 
[[Yoga]]
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Benefits of Suryanamaskar

The Suryanmaskar has many benefits and if
done regularly can not only help you lose flab
but can also help you combat diseases.

*Here are a few benefits of this asana*

- Suryanamaskar, or Sun Salutations, ideally
done facing the early morning sun, helps our
body to soak in its benefits —
sun rays are a
rich source of vitamin D and helps to
strengthen our bones and also helps to clear
our vision.

- This asana, apart from improving one's
posture, also gives a proper workout to the
body and so helps in losing unwanted flab.

- Regular practice of this asana can also help
you loose the excess belly fat.

- The postures in Suryanamaskar stretches our
muscles and makes our body very flexible.

- The moves and postures of the asana help all
our internal organs function better — the
various poses regulates our blood flow,
benefits the digestive system and makes it
more efficient.

- It helps combat insomnia as it relaxes the
body and calms the mind.

- It helps regulate menstrual cycles and makes
childbirth easier.

- This asana is known to facilitate blood
circulation and thereby help hair growth and
prevent hair problems.

- It reduces anxiety and restlessness and
enhances our strength and vitality.

- Suryanamaskar benefits not just adults, but
kids as well.

keep sharing
 —
Photo: [[yoga]] surya  namaskar [[yoga]]


*Benefits of Suryanamaskar*

The Suryanmaskar has many benefits and if
done regularly can not only help you lose flab
but can also help you combat diseases. 

*Here are a few benefits of this asana*

- Suryanamaskar, or Sun Salutations, ideally
done facing the early morning sun, helps our
body to soak in its benefits — 
sun rays are a
rich source of vitamin D and helps to
strengthen our bones and also helps to clear
our vision.

- This asana, apart from improving one's
posture, also gives a proper workout to the
body and so helps in losing unwanted flab.

- Regular practice of this asana can also help
you loose the excess belly fat.

- The postures in Suryanamaskar stretches our
muscles and makes our body very flexible.

- The moves and postures of the asana help all
our internal organs function better — the
various poses regulates our blood flow,
benefits the digestive system and makes it
more efficient.

- It helps combat insomnia as it relaxes the
body and calms the mind.

- It helps regulate menstrual cycles and makes
childbirth easier.

- This asana is known to facilitate blood
circulation and thereby help hair growth and
prevent hair problems.

- It reduces anxiety and restlessness and
enhances our strength and vitality.

- Suryanamaskar benefits not just adults, but
kids as well.

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पायरिया

पायरिया दाँतों की एक गंभीर बीमारी होती है जो दाँतों के
आसपास की मांसपेशियों को संक्रमित करके उन्हें
हानि पहुँचाती है। यह बीमारी स्वास्थ्य से जुड़े अनेक
कारणों से होती है, और सिर्फ दांतों से जुड़ी समस्याओं तक
सीमित नहीं होतीं। यह बीमारी दाँतों और मसूड़ों पर निर्मित
हो रहे जीवाणुओं के कारणहोती है।

पायरिया के लक्षण और कारण:
नियमित आहार और दाँतों की रक्षा में रुक्षांस
की कमी या पूर्ण रूप से अभाव, दाँतों में खान पान के कण
अटकना और दाँतों का सड़ना, दाँतों पर अत्यधिक मैल
जमना, मुँह से दुर्गन्ध का निकलना और मुँह में अरुचिकर
स्वाद का निर्माण होना, जीवाणुओं का पसरण, मसूड़ों में
जलन का एहसास होना और छालों का निर्माण होना,
जरा सा छूने पर भी मसूड़ों से रक्तस्राव
होना इत्यादि पायरिया के लक्षण होते हैं।

पायरिया के आयुर्वेदिक उपचार:
1. नीम के पत्तों की राख में कोयले का चूरा और कपूर
मिलाकर रोज़ रात को लगाकर सोने से पायरिया में लाभ
होता है।
2. सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलाकर दांतों पर लगाने से
दांतों से निकलती हुई दुर्गन्ध और रक्त बंद होकर दांत मज़बूत
होते हैं और पायरिया जड़मूल से निकल जाता है। साथ में
त्रिफला गुग्गल की 1 से 3 दिन में तीन बार लें और रात में
1 से 3 ग्राम त्रिफला का सेवन करें।
3. अपने दाँत नीम के दातुन से ब्रश करें।
4. कच्चे अमरुद पर थोडा सा नमक लगाकर खाने से
भी पायरिया के उपचार में सहायता मिलती है, क्योंकि यह
विटामिन सी का उम्दा स्रोत होता है जो दाँतों के लिए
लाभकारी सिद्ध होता है।
5. घी में कपूर मिलाकर दाँतों पर मलने से भी पायरिया मिटाने
में सहायता मिलती है।
6. काली मिर्च के चूरे में थोडा सा नमक मिलाकरदाँतों पर
मलने से भी पायरिया के रोग से छुटकारा पाने के लिए
काफी मदद मिलती है।
7. 200 मिलीलीटर अरंडी का तेल, 5 ग्राम कपूर, और 100
मिलीलीटर शहद को अच्छी तरह मिला दें, और इस मिश्रण
को एक कटोरी में रखकर उसमे नीम के दातुन को डुबोकर
दाँतों पर मलें और ऐसा कई दिनों तक करें। यह
भी पायरिया को दूर करने के लिए एक उत्तम उपचार
माना जाता है।

क्या करें क्या न करें:
1. कब्ज़ियत से बचें। गर्म पानी में एप्सम सॉल्ट मिलाकर
नहाने की भी सलाह दी जाती है।
2. दिन में दो बार दाँतों को सही और नियमित रूप से ब्रश
करना बहुत ज़रूरी होता है। शरीर में मौजूद विषैले तत्वों के
निष्काशनके लिए पानी का सेवन भरपूर मात्रा में करें।
विटामिन सी युक्त फल, जैसे कि आंवला, अमरुद, अनार,
और संतरे का भी सेवन भरपूर मात्रा में करें।
3. पायरिया के इलाज के दौरान रोगी को मसाले रहित
उबली सब्ज़ियों का ही सेवन करें।

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गुलाब

गुलाब के नाम पर न जाने कितनी कविताएं पढ़ी होंगी आपने।
गुलाब के रंग-बिरंगे फूल सिर्फ ड्रॉइंगरूम में फूलदान पर
ही अच्छे नहीं लगते, बल्कि इसकी पंखुड़ियां भी बड़े काम
की हैं। गुलाब जल का इस्तेमाल फेस मास्क में भी होता है
और यह खाने को भी लज्जतदार बनाता है। गुलाब विटामिन
ए, बी 3, सी, डी और ई से भरपूर है। इसके अलावा इसमें
कैल्शियम, जिंक और आयरन की भी मात्र काफी होती है।

* गुलाब को यों ही फूलों का फूल नहीं कहा जाता। दिखने में
यह फूल बेहद खूबसूरत है और इसकी हर पंखुड़ी में समाए हैं
अनगिनत गुण। त्वचा को सुंदर बनाने से लेकर शरीर
को चुस्त-दुरुस्त रखने में गुलाब कितने काम आता है ।

* सुबह-सबेरे अगर खाली पेट गुलाबी गुलाब
की दो कच्ची पंखुड़ियां खा ली जाएं, तो दिन भर
ताजगी बनी रहती है। वह इसलिए क्योंकि गुलाब बेहद
अच्छा ब्लड प्यूरिफायर है।

* अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर, ब्रोंकाइटिस, डायरिया, कफ,
फीवर, हाजमे की गड़बड़ी में गुलाब का सेवन बेहद
उपयोगी होता है।

* गुलाब की पंखुड़ियों का इस्तेमाल चाय बनाने में भी होता है।
इससे शरीर में जमा अतिरिक्त टॉक्सिन निकल जाता है।
पंखुड़ियों को उबाल कर इसका पानी ठंडा कर पीने पर तनाव
से राहत मिलती है और मांसपेशियों की अकड़न दूर होती है।

* एक शीशी में ग्लिसरीन, नीबू का रस और गुलाब जल
को बराबर मात्रा में मिलाकर घोल बना लें। दो बूंद चेहरे पर
मलें। त्वचा में नमी और चमक बनी रहेगी और
त्वचा मखमली-मुलायम बन जाएगी।


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स्वप्नदोष (Night Fail) से राहत के लिए कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे

सेक्स लाइफ
सक्सेसफुल तभी
हो सकती है जब
स्त्री और पुरूष दोनों
का स्वस्थ हों।
पुरुषों के शरीर में
वीर्य लगातार बनता
रहता है।
वीर्य को रखने के
लिए वह स्थान की
कमी पड़ जाती है।
इसलिए अंडकोष
वीर्य को बाहर कर
नए वीर्य बनाने के
लिए पुराने वीर्य को
बाहर कर देते हैं।
इस तरह की क्रिया
होना सामान्य है।
लेकिन बार-बार
स्वप्नदोष (Night Fail) होने से पुरुषों
को कई प्रकार की
शारीरिक या
मानसिक कमजोरी
हो सकती है।
बहुत अधिक स्वप्न
दोष होने पर उसे
निम्न उपायों से
रोका जा सकता है।

- आंवलें का मुरब्बारोज खाने
से स्वप्न दोष में
लाभ होता है।

- कांच के गिलास में
बीस ग्राम पिसा हुआ
सुखा आंवला डाले।
इसमें साठ ग्राम पानी
भरें और फिर बारह
घंटे भीगने दें।
फिर छानकर इस
पानी में एक ग्राम
पीसी हुई हल्दी
मिलाएं और पीएं।

- पिसे हुए अनार क (शीघर्पतन के लिए भी उपयोगी) े
छिलके पांच ग्राम
सुबह और शाम
लेने से स्वप्न दोष
नहीं होता। (अति उत्तम सरल उपाय)

- केला स्वप्न दोष
और प्रमेह में
लाभदायक है।
दो केले खाकर ऊपर
से एक पाव गरम
दूध तीन महीनें
तक रोज पीएं।

- लहसुन की दो कुली (शीघर्पतन के लिए भी उपयोगी)
टुकड़े करके पानी से
निगल जाएं।
इससे स्वप्न दोष
नहीं होगा।
यह प्रयोग रात
को सोते समय
हाथ-पैर धोकर
रोज करें। (अति उत्तम सरल उपाय)

- प्याज दस ग्राम
सफेद प्याज का रस,
अदरक का रस
आठ ग्राम,
शहद पांच ग्राम,
घी तीन ग्राम मिलाकर
रात्रि को सोते समय
पीने से स्वप्न दोष
नहीं होता।

- धनिये को पीसकर
मिश्री मिलाकर ठण्डे
जल से लेने से स्वप्न
दोष नहीं होता।

- तुलसी की जड़ के
छोटे-छोटे टुकड़े
पीसकर पानी में
मिलाकर पीने से
लाभ होता है।

- सुखा धनिया कूट,
पीसकर छान लें।
इसमें समान मात्रा
में पीसी हुई चीनी
मिलाएं।
सुबह भूखे पेट रात
के पानी से एक चाय
की चम्मच फक्की लें
और एक घंटे तक
कुछ न खाएं पीएं।

keep sharing


yoga

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महिलाओं की इन बड़ी प्रॉब्लम्स के लिए ये हैं छोटा सा आयुर्वेदिक नुस्खा


महिलाएं अपने
फिगर को परफेक्ट
बनाने के लिए वर्क
आऊट या योगासन
करती हैं। लेकिन
श्वेत रक्त प्रदर,
रक्त प्रदर ,
मासिक धर्म
की अनियमितता,
कमजोरी दुबलापन,
सिरदर्द, कमरदर्द
आदि। ये
सभी बीमारियां ऐसी हैं
जिनके कारण
महिलाएं शरीर
को स्वस्थ और
सुडौल नहीं रहने
देती हैं। इसलिए
हम आपको बताने
जा रहे हैं एक
ऐसा आयुर्वेदिक
नुस्खा जो महिलाओं
की हर तरह
की कमजोरी को दूर
करता है।

नुस्खा- स्वर्ण भस्म
या वर्क 10 ग्राम,
मोती पिष्टी 20
ग्राम, शुद्ध हिंगुल
30 ग्राम, सफेद
मिर्च 40 ग्राम,
शुद्ध खर्पर 80
ग्राम। गाय के दूध
का मक्खन 25 ग्राम
थोड़ा सा नींबू
का रस पहले स्वर्ण
भस्म या वर्क और
हिंगुल
को मिला कर एक
जान कर लें। फिर
शेष द्रव्य मिलाकर
मक्खन के साथ
घुटाई करें। फिर
नींबु का रस कपड़े
की चार तह करके
छान लें और इसमें
मिश्रण मिलाकर
चिकनापन दूर होने
तक घुटाई
करनी चाहिए।आठ-
दस दिन तक घुटाई
करनी होगी। फिर
उसकी एक-एक
रत्ती की गोलियां बना लें।

सेवन की विधि- 1
या 2 गोली सुबह
शाम एक चम्मच
च्यवनप्राश के साथ
सेवन करें। इस दवाई
का सेवन करने से
महिलाओं को प्रदर
रोग, शारीरिक
क्षीणता, और
कमजोरी आदिसे
मुक्ति मिलती है
और शरीर स्वस्थ
और सुडौल बनता है।
यह दवाई ''स्वर्ण
मालिनी'' वसंत के
नाम से बाजार में
भी मिलती है। इसके
सेवन से शरीर
बलशाली होता है।
शरीर के
सभी अंगों को ताकत
मिलती है।

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Cure for Ashthama

(1) Tulsi Ark capsules - By H - Cure for Ashthama...
or Tulsi Ark capsules - By Himalaya
(2) Turmeric power
(3) Cinnamon powder 
(4) Sitopaladi powder
(5) Dry Ginger powder
(6) Black Pepper powder..
Break all Tulsi ark capsules and collect the powder from it. Mix it with all the other above written powders.
Keep it in a bottle.
Take daily morning half table spoon of this mix powder with honey. Continue this for 3 months. Ashthama will be almost cured....
yoga

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उल्टियाँ होने के कई कारण होते हैं

जब पेट के पदार्थों का पूरे जोश के साथ मुंह और नाक के ज़रिये निष्काशन होता है, तो उस प्रक्रिया को उल्टियों क नाम से जाना जाता है। उल्टियाँ होने के कई कारण होते हैं जैसे कि अधिक या दूषित खाना खाना, बीमारी, गर्भावस्था, मदिरापान, विषाणुजनित संक्रमण, उदर का संक्रमण, ब्रेन ट्यूमर, मष्तिष्क में चोट, इत्यादि। उल्टियाँ होने के एहसास को मतली के नाम से जाना जाता है, लेकिन यह उल्टियाँ आने से पहले का एहसास होता है, कारण नहीं।
उल्टियों के घरेलू / आयुर्वेदिक उपचार
*.उल्टियों को बंद करने के लिए एक बहुत ही उम्दा उपाय है और वह है किसी कार्बोनेट रहित सिरप का एक या दो चम्मच सेवन करना। इससे पाचन क्रिया में राहत मिलती है और उल्टियाँ बंद हो जाती हैं। ऐसे सिरप में करबोहाइड्रेट मौजूद होते हैं जो पेट को ठंडा रखते हैं।
*.एक और उम्दा उपचार है अदरक और उसकी जड़। आप अदरक के 2 केप्स्युल का प्रयोग कर सकते हैं या अदरक वाली चाय का सेवन कर सकते हैं। अदरक में पाचनक्रिया अग्नि को बढ़ाने की क्षमता होती है, और यह उदर में से हो रहे भोजन-नली को परेशान करनेवाले उस अनावश्यक स्राव में बाधा पैदा करता है, जिस स्राव से उल्टियाँ होती हैं।
*.1 ग्राम हरड का चूर्ण शहद के साथ चटाने से भी उल्टियाँ रोकने में मदद मिलती है।
*.एक और असरदार उपचार है कि आप अपनी उंगलियाँ धोकर एक ही बार अपने गले में घुसाकर पेट में जमा हुए पदार्थों को उल्टी के ज़रिये बाहर निकाल दें, ताकि उल्टी अंदर जमा न रहने पाए।
*.आप एक दो लौंग अपने मुंह में रख सकते हैं, या लौंग के बदले दालचीनी या इलायची भी रख सकते हैं। यह मसाले उल्टियाँ विरोधक औषधियों का काम करते हैं और उल्टियाँ रोकने का यह बहुत ही असरदार उपचार होता है।
*.सत अजवाइन , पेपरमिंट और कर्पूर का द्राव 15-20 बूँद तक की मात्रा में मिलाकर पिलाने से उल्टियाँ तुरंत रुक जाती हैं।
*.नींबू का टुकड़ा काले नमक के साथ अपने मुंह में रखने से आपको उल्टी का एहसास नहीं होगा।
*.अगर आपने मदिरापान किया है और आप नहीं चाहते कि आपको उल्टी आये, तो सादी पाव-रोटी खाएं। पाव-रोटी आपकी पाचन क्रिया को संभालती है और आपके द्वारा सेवन की हुई मदिरा को आसानी से सोख लेती है।
*.उल्टियाँ होने से 12 घंटो बाद तक ठोस आहार का सेवन न करें, पर अपने आपको जालित रखने के लिए (यानि निर्जलीकरण से बचाने के लिए) भरपूर मात्रा में पानी और फलों के रस का सेवन करते रहें।
*.जब भी पानी पियें तो सादा पानी ही पियें। बाज़ार में उपलब्ध कार्बन युक्त शीत पेयों का सेवन बिलकुल भी न करें क्योंकि यह आपकी आँतों और उदर की जलन को बढ़ाते हैं।.
*.तैलीय, मसालेदार, भारी और मुश्किल से पचनेवाले खान पान का सेवन न करें क्योंकि ऐसे खाद्य पदार्थ मरीज में उल्टियों का निर्माण करते हैं एवं उसे बढ़ावा देते हैं ।
*.खान। खाने के फ़ौरन बाद न सोयें।
*.जब भी सोयें तो अपनी दाहिनी बाज़ू पर सोयें। इससे आपके पेट के पदार्थ मुंह तक नहीं आ सकेंगे।
*.उल्टियाँ रोकने के लिए जीरा भी एक नैसर्गिक उपचार माना गया है। आधा चम्मच पिसे हुए जीरे का सेवन करने से आपको पूर्ण रूप से उल्टियों से छुटकारा मिल जायेगा।
*.चावल के पानी से उल्टियों का उपचार एक बहुत ही प्रचलित और प्रमाणित उपचार कहलाया जाता है। 1/2 कप चावल 1 या 1-1/2 कप पानी में उबाल लें। जब चावल पक जाएँ तो चावल निकालकर उस पानी का सेवन करें। इस उल्टियाँ रुक जायेंगी।यह एक बहुत ही उत्तम उपचार है उल्टियों को रोकने के लिए।
*.एक चम्मच प्याज़ का रस नियमित अंतराल में सेवन करने से भी लाभ मिलता है।
*.एक ग्लास पानी में शहद मिलाकर पीने से भी उल्टियाँ रुकने में मदद मिलती है।
*.सामान्य उबकाई में पेपरमिंट का सेवन हितकर होता है। इसे पान में रखकर सेवन करने से भी लाभ मिलता है।
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रिश्तों की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक प्राइवेट बैंक में एक अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर और पति...