शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाना गलत - It is wrong to have physical relations before marriage

 जब मैं कॉलेज में थी, तो इंटरनेट पर लेख पढ़ते हुए मैंने स्त्री और पुरुष की शारीरिक ज़रूरतों के बारे में बहुत कुछ समझा। यह महसूस हुआ कि दोनों को एक-दूसरे की ज़रूरत होती है, और इसमें कोई बुराई नहीं होनी चाहिए। मुझे लगा कि जब यह एक प्राकृतिक और सहमति से किया गया कार्य है, तो इसमें गलत क्या है? परंतु जब मैंने इस बारे में अपने माता-पिता और हमारे शास्त्रों की सोच देखी, तो पाया कि उनका विचार इसके बिल्कुल विपरीत था। वे हमेशा कहते थे कि शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाना गलत है। मुझे यह बात उस समय बिल्कुल समझ नहीं आई और मैं इसे बेकार की बातें मानने लगी।

कॉलेज के दौरान मेरा एक बॉयफ्रेंड बना, और जब मैंने अपने विचार उसके सामने रखे कि मैं शारीरिक संबंध का अनुभव करना चाहती हूँ, तो वह भी इसके लिए तैयार था। हमने एक-दूसरे के साथ यह अनुभव किया और यह एक जादुई एहसास था। मेरे शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ और मैंने सोचा कि यह ज़रूरत पूरी करनी ही चाहिए। परंतु कुछ समय बाद हमारा ब्रेकअप हो गया।
उसके बाद मेरी जिंदगी में एक और लड़का आया और मैंने उसके साथ भी संबंध बनाए, लेकिन हमारी शादी नहीं हो सकी। इस बीच, मेरी शादी की उम्र आ गई और मेरे माता-पिता ने एक अच्छे लड़के से मेरी शादी करा दी। शादी के शुरुआती दिनों में हमारा शारीरिक संबंध अच्छा रहा, लेकिन धीरे-धीरे मुझे यह सब बोझिल लगने लगा। जब मेरे पति शारीरिक संबंध बनाने की पहल करते, तो मैं बहाने बनाने लगी। हमारी शादी में खटास आने लगी और मैंने डॉक्टर से संपर्क किया। डॉक्टर ने कहा कि यह उम्र के साथ होने वाली समस्या हो सकती है और मुझे दवाइयाँ दीं, पर एक साल तक दवा लेने के बाद भी मेरी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।
मेरे पति मुझसे खिन्न रहने लगे, और उन्होंने मुझसे कहा कि एक पत्नी होते हुए भी जब उनकी शारीरिक ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रहीं, तो हमारे साथ रहने का कोई मतलब नहीं है। यह सुनकर मैं अंदर से टूट गई। मैंने उनसे थोड़ा समय माँगा और सब कुछ छोड़कर ऋषिकेश चली गई, यह सोचकर कि मेरी मानसिक स्थिति के कारण यह सब हो रहा है। वहाँ मेरी मुलाकात मेरी गुरु माँ से हुई, जो ध्यान और योग सिखाती थीं। उन्होंने मेरी समस्या के बारे में चर्चा की और मुझसे सीधा सवाल किया, "शादी से पहले कितने पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध बनाए?"
मैं हैरान थी, लेकिन मैंने उन्हें सच-सच जवाब दिया। उन्होंने मुझसे कहा कि जब कोई स्त्री किसी पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाती है, तो उसके शरीर में उस पुरुष की यादें बस जाती हैं। और जब यह कई पुरुषों के साथ हो, तो शरीर समझ ही नहीं पाता कि किसकी यादें सहेजनी हैं और किसे भुलाना है। यही कारण है कि शारीरिक संबंध में अरुचि बढ़ने लगती है और धीरे-धीरे प्रेम खत्म हो जाता है। तब मुझे एहसास हुआ कि हमारे बड़े-बुजुर्ग शादी के बाद ही शारीरिक संबंध बनाने की सलाह क्यों देते हैं—यह रिश्तों को मजबूत और स्थिर रखने के लिए होता है।
आज की दुनिया में कई लड़कियाँ बिना सोचे-समझे शादी से पहले शारीरिक संबंध बना लेती हैं, यह सोचकर कि इसका कोई बुरा असर नहीं होगा। लेकिन सच यह है कि इसका गहरा असर शादीशुदा जिंदगी पर पड़ता है। कुछ लड़कियाँ तो अपने स्टेटस को मेंटेन रखने या दूसरे कारणों से भी शारीरिक संबंध बना लेती हैं, लेकिन इससे अंततः उनकी जिंदगी प्रभावित होती है, जैसा मेरे साथ हुआ।
अब मुझे एहसास हुआ कि क्यों शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने को गलत माना जाता है। यह न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी गहरा प्रभाव छोड़ता है। आज मैं यह समझ गई हूँ कि किसी भी स्थिति में शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाना गलत है। यह रिश्तों में दरार पैदा कर सकता है और जिंदगी भर पछताने का कारण बन सकता है।
शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाना गलत - It is wrong to have physical relations before marriage


अंतर्मन को छू लेने वाली मार्मिक कहानी पढ़िएगा - Read a heart-touching story

 अंतर्मन को छू लेने वाली मार्मिक कहानी पढ़िएगा✍️ Read a heart-touching story


 अंतर्मन को छू लेने वाली मार्मिक कहानी पढ़िएगा✍️ Read a heart-touching story

गाँव के किनारे बसा था एक छोटा सा परिवार, जिसमें रहती थी पार्वती। पार्वती का जीवन बेहद सरल था, उसका पति रमेश एक मजदूर था और दोनों अपनी छोटी-सी झोपड़ी में सुख-दुख साझा करते थे। गरीबी ने उनके जीवन को कठिन बना दिया था, लेकिन पार्वती की हिम्मत कभी नहीं टूटी। वह हर दिन चूल्हे पर लकड़ी जलाकर खाना बनाती थी, और लकड़ियाँ जुटाने के लिए अक्सर जंगल का रुख करती थी।


पार्वती ने एक दिन सोचा कि बरसात के मौसम में लकड़ी इकट्ठा करना कठिन हो जाएगा, इसलिए उसने जंगल से थोड़ी ज्यादा लकड़ी इकट्ठा करने का मन बनाया। वह अपनी कुल्हाड़ी उठाकर जंगल चली गई। वहाँ पहुँचकर उसने एक हरे पेड़ की मजबूत डाल पर नज़र डाली और उसे काटने लगी। पेड़ की डाल आधी कट चुकी थी, तभी अचानक वहाँ वन अधिकारी, सुरेश, आ पहुँचा। सुरेश का काम था जंगल की सुरक्षा करना, लेकिन उसकी नीयत कुछ और ही थी।


सुरेश ने पार्वती को डांटते हुए कहा, "तुम्हें पता है कि हरा पेड़ काटना अपराध है? मैं तुम्हारे खिलाफ शिकायत दर्ज करूँगा, और तुम्हें सजा होगी।"


पार्वती ने विनम्रता से जवाब दिया, "साहब, गुस्सा मत होइए। यह डाल अब तक आधी कट चुकी है और बस गिरने ही वाली है। आप मुझे नीचे उतरने दीजिए, फिर जो करना है कर लीजिए।"


सुरेश ने उसकी बात मान ली और डाल को खींचकर गिरा दिया। पार्वती नीचे उतर आई और फिर बोली, "साहब, पहली बार है, गलती माफ कर दीजिए। मैं पेड़ नहीं काट रही थी, बस डाल ही तो काटी है।"


सुरेश की नजरें पार्वती के गठीले और मेहनती बदन पर टिक गईं। उसकी नीयत अब साफ दिखाई देने लगी। उसने पार्वती से कहा, "अगर तुम थोड़ी देर मेरे साथ बिताओ और मुझे खुश कर दो, तो मैं कोई शिकायत नहीं दर्ज करूँगा। तुम जितनी लकड़ी चाहो काट सकती हो, मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा।"


पार्वती ने तुरंत अपनी सख्त और ईमानदार नजरों से सुरेश की ओर देखा। "साहब, आप मुझे गलत समझ रहे हैं। मैं ऐसी औरत नहीं हूँ। मेरे पास दो बच्चे हैं, और मैं अपने पति को धोखा नहीं दे सकती।"


सुरेश ने हंसते हुए कहा, "आजकल बहुत सी औरतें अपने घर से बाहर ही आनंद लेती हैं। मैं तुम्हें कुछ पैसे भी दूँगा, इससे तुम्हारी गरीबी दूर हो जाएगी।"


पार्वती ने उसकी बात का तीखा जवाब दिया, "साहब, हम गरीब हैं, लेकिन हमारी इज्जत सबसे बड़ी दौलत है। हम लालच में नहीं पड़ते। जो लोग लालची होते हैं, वे ही ऐसे काम करते हैं, चाहे वे गरीब हों या अमीर। मेरे पास जो है, वही मेरे लिए काफी है।"


सुरेश की नीयत अब साफ थी। उसने धमकाते हुए कहा, "इसका मतलब तुम मेरी बात नहीं मानोगी? अब मुझे कुछ करना ही होगा।"


पार्वती ने साहस के साथ जवाब दिया, "आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। जब मेरे हाथ इतनी भारी लकड़ियाँ काट सकते हैं और सर पर उठा सकते हैं, तो मैं अपनी सुरक्षा भी कर सकती हूँ। और रही बात कार्यवाही की, तो याद रखिए कि आप खुद इसमें शामिल हैं। मैं डाल काटी हूँ, लेकिन उसे गिराने वाले आप हैं।"


सुरेश पार्वती की दृढ़ता और आत्मसम्मान के आगे हार गया। उसने पार्वती को छोड़ दिया और वहाँ से चला गया, लेकिन पार्वती का आत्मविश्वास और उसकी सच्चाई का प्रकाश जंगल में छा गया। इस घटना ने साबित कर दिया कि सच्चाई और आत्मसम्मान से बढ़कर कुछ नहीं होता। पार्वती ने न सिर्फ अपने परिवार का सम्मान बचाया, बल्कि समाज को भी यह सिखाया कि कोई भी महिला अपनी इज्जत और गरिमा की रक्षा करने में सक्षम होती है, चाहे उसकी स्थिति कैसी भी हो।


पार्वती का यह साहसिक कदम उसके गाँव में एक मिसाल बन गया, और उसकी कहानी दूर-दूर तक लोगों के दिलों में गूंजने लगी।


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प्यार में सादगी और सम्मान भी - Simplicity and respect in love

प्यार में सादगी और सम्मान भी - Simplicity and respect in love 

प्यार में सादगी और सम्मान भी - Simplicity and respect in love

मेरी शादी मेरी मर्जी के खिलाफ एक साधारण लड़के के साथ कर दी गई थी। उसका नाम था विवेक। उसके परिवार में बस उसकी माँ, सविता जी थीं। न कोई भाई, न बहन, और न ही कोई बड़ा परिवार। घर की हालत भी कुछ खास नहीं थी। शादी में उसे ढेर सारे उपहार और पैसे मिले थे, मगर मेरा दिल कहीं और था। मैं सूरज नाम के एक लड़के से प्यार करती थी, और उसने भी मुझसे शादी करने का वादा किया था। पर किस्मत ने मुझे कहीं और ला खड़ा किया—विवेक के ससुराल में।

शादी की पहली रात, विवेक मेरे पास एक कप दूध लेकर आया। मेरी नज़रें उसकी सादगी और शांति पर टिकी थीं। मैंने गुस्से में उससे पूछा, "एक पत्नी की मर्जी के बिना अगर पति उसे छूता है, तो क्या उसे बलात्कार कहेंगे या फिर हक?" विवेक मेरी आंखों में देखकर शांतिपूर्वक बोला, "आपको इतनी गहराई में जाने की जरूरत नहीं है। मैं सिर्फ शुभ रात्रि कहने आया हूँ," और बिना कोई बहस किए, वह कमरे से बाहर चला गया।

उस समय, मैं सोच रही थी कि कोई झगड़ा हो, ताकि मैं इस अनचाहे रिश्ते से छुटकारा पा सकूं। मगर, विवेक ने मुझसे कोई सवाल नहीं पूछा, कोई दबाव नहीं डाला। दिन बीतते गए, और मैं उस घर में रहते हुए भी कभी किसी काम में हाथ नहीं लगाती थी। मेरा दिन इंटरनेट पर बीतता—अक्सर सूरज से बातें करती, या सोशल मीडिया पर समय बिताती। सविता जी, अमन की माँ, बिना किसी शिकायत के घर का सारा काम करती रहतीं। उनके चेहरे पर हमेशा एक प्यारी मुस्कान होती, मानो किसी तपस्वी की शांति हो।

विवेक भी दिन-रात अपनी साधारण नौकरी में मेहनत करता रहता। वह एक छोटे से कार्यालय में काम करता था, और उसकी ईमानदारी की लोग मिसाल दिया करते थे। हमारी शादी को एक महीना बीत चुका था, लेकिन हम कभी पति-पत्नी की तरह एक साथ नहीं सोए। मैंने मन ही मन तय कर लिया था कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है।

एक दिन, मैंने जानबूझकर सविता जी के बनाए खाने को बुरा-भला कह दिया और खाने की थाली ज़मीन पर फेंक दी। इस बार विवेक ने पहली बार मुझ पर हाथ उठाया। लेकिन उसकी आंखों में कोई क्रोध नहीं था, बल्कि एक अजीब सा दर्द था। वह चिल्लाया नहीं, बस मुझे घूरते हुए बोला, "इतनी नफरत क्यों है?" मुझे उसी बहाने की तलाश थी। मैंने पैर पटके, दरवाजा खोला, और सीधा सूरज के पास चली गई। मैंने उससे कहा, "चलो, कहीं भाग चलते हैं। अब इस जेल में नहीं रहना मुझे।"

सूरज, जो कभी मुझसे प्यार की बातें किया करता था, आज कुछ अजीब सा व्यवहार कर रहा था। वह बोला, "इस तरह हम कैसे भाग सकते हैं? मेरे पास भी कुछ नहीं है, और तुम्हारे पास भी अब कुछ नहीं बचा।" उसकी बातें सुनकर मेरा दिल टूट गया। वह मुझसे प्यार नहीं करता था, वह बस मेरे पैसों और गहनों का लालच रखता था।

वहां से लौटने के बाद, मैं सीधी अपने ससुराल आई। घर खाली था, विवेक और उसकी माँ कहीं बाहर गए थे। मेरे मन में हलचल थी। मैंने विवेक की अलमारी खोली, और जो मैंने देखा, वह मेरे पैरों तले जमीन खिसका देने वाला था। अलमारी में मेरी सारी चीजें—मेरे बैंक पासबुक, एटीएम कार्ड, गहने—सब वहाँ सुरक्षित रखे हुए थे। और पास में ही एक खत रखा था, जिसमें विवेक ने लिखा था, "मैं जानता हूँ कि यह रिश्ता तुम्हारे लिए बोझ है। लेकिन मैंने तुम्हारी हर चीज को संभालकर रखा है, ताकि एक दिन जब तुम खुद को इस घर का हिस्सा मानोगी, तो यह सब तुम्हारा हो।"

खत में उसने यह भी लिखा था, "मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, और तुम्हारी मर्जी का हमेशा सम्मान करूंगा। मैं जबरदस्ती से नहीं, बल्कि तुम्हारे प्यार से तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ।"

इस खत को पढ़ने के बाद, मेरे मन में विवेक के प्रति एक नई भावना जागी। उसने कभी मुझ पर कोई हक नहीं जमाया, उसने हमेशा मेरा सम्मान किया। मुझे एहसास हुआ कि सच्चा प्यार सिर्फ सूरज जैसे दिखावे में नहीं होता, बल्कि विवेक जैसे सादगी में भी हो सकता है।

अगली सुबह, मैंने पहली बार अपनी मांग में सिंदूर गाढ़ा किया और अपने पति के ऑफिस पहुँची। सबके सामने मैंने कहा, "विवेक, हमें लंबी छुट्टी पर जाना है। अब से सब कुछ ठीक है।"

उस दिन मुझे समझ आया कि जो फैसले मैंने गलत समझे थे, वे मेरे लिए सबसे सही साबित हुए। मेरे माता-पिता ने मेरे लिए जो सोचा था, वही मेरे जीवन का सबसे अच्छा फैसला था। विवेक ने मुझे बिना कुछ कहे, बिना कुछ जताए, सच्चे प्यार का एहसास कराया।

अब मैं अपने ससुराल को अपना घर मान चुकी थी। और विवेक, जो कभी मुझे साधारण लगता था, मेरे लिए अब दुनिया का सबसे अनमोल व्यक्ति था।**

यह कहानी सिखाती है कि कभी-कभी जिंदगी में हमें जो मिलता है, वह हमारे अपने सपनों से कहीं बेहतर होता है। प्यार में सादगी और सम्मान भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि भावनाएँ।

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The Boy Who Cried, Wolf | Motivational Stories in English

The Boy Who Cried, Wolf | Motivational Stories in English

The Boy Who Cried, Wolf | Motivational Stories in English

This motivational story in English teaches a vital lesson in life. 


This story is about a mischievous young boy who enjoys playing pranks on others and lying about everything. One day, while the boy and his father were walking in the woods, the boy pranked his father several times by saying that a wolf was following them.


The father gave up after asking the boy not to lie a few times. On one fateful day, the boy was followed by a wolf, for real this time, but his father did not believe the boy as he was always lying to his father. The wolf attacked the boy and ate him this time, only for the father to realise later what had happened.


Moral – No one will believe a liar even when he tells the truth. 

Three Little Pigs | Motivational Stories in English

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This short motivational story in English, is one of the most loved stories with great moral value.


This story shows how important hard work is. Of the three little pigs, two were lazy, shied away from working hard, and worked on houses made of straws. The third pig built a brick house by working hard. A wolf blows up the two weak houses and eats the two little pigs, but the third one is safe because of his strong home.


Moral – Hard Work always pays off.

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