इच्छा जागी Desire arose

जब आपके मन में प्रभु का नाम लेने की इच्छा जागी.. संतों के दर्शन की इच्छा जागी.. तीर्थों के सेवन की इच्छा जागी.. अनायास ही.. तो वो इच्छा पहले भगवंत और संत के मन में जागी कि वो आपको अपने पास बुलाएँ.. जब ऐसा हो कि आपको नाम जपने का अचानक से मन करे.. संतों से मिलने की इच्छा हो तो बस उधर कदम बढा दो .. यात्रा बड़ी सुगम होगी क्योंकि आपको कुछ करना ही नहीं होगा सारा इंतेज़ाम पहले ही हो चुका होता है..
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संसारमें रहकर साधनारत होना न धर्म विरुद्ध है It is not against religion to practice meditation while living in the world.

संसारमें रहकर साधनारत होना न धर्म विरुद्ध है, न शास्त्र विरुद्ध, मात्र ऐसे जीवकी अपने ध्येयसे भटकनेकी संभावना अधिक होती है | अतः गृहस्थने गुरुगृह, अर्थात आश्रममें जाकर थोड़े समय साधना करना चाहिए, प्रतिदिन
थोड़े समय एकांत रहकर अपनी साधनकी समीक्षा करनी चाहिए और यथा शक्ति धर्मकार्य में योगदान देना चाहिए, यह सब करनेसे आत्मनियंत्रणकी प्रक्रिया को गति मिलती है | जो सांसारिक होते हुए आध्यात्मिक प्रगति कर इस भवसागरको पार करता है ऐसे सदगृहस्थको संतोंने नायक (हीरो) की उपाधि दी है |


Being in the world and doing Sadhana is neither against Dharma (righteous conduct), nor against the scriptures; only it carries a possibility of such a being getting diverted from the ultimate goal. Thus, a householder must go to Guru’s ashram, meaning hermitage and do Sadhana for some time. Also one should live in solitude for sometime of the day, one must perform Sadhana everyday and analyse the their Sadhana, as well as contribute one’s mite as per in some divine work; doing all this, provides momentum to the process of self-control. Despite being worldly, those who cross this Bhavsagar (vicious cycle of life and death) and make spiritual progress, such pure householders have been given the title of Heroes) by saints.
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रोजगार संबधी बाधा खत्म हो जाएगी Employment related obstacles will end

यदि दुकान न चलने से आप परेशान है l तो निम्नलिखित उपाए करे l दुकान के दोनों तरफ हल्दी का स्वास्तिक बनाये व नौकर के हाथ से रोजगार के दरवाजे में पीला कपडा बिछाकर उस पर 300 ग्राम गुड , 300 ग्राम चने की दाल, 300 ग्राम काले तिल, 300 ग्राम काले उड़द साबुत, 8 बड़ी कील, 8 सिक्के इन सबको पीले कपडे मे बांधकर पूरी दुकान या फैक्ट्री मे घुमाए तथा एक पानी वाला नारियल मुख्य दरवार पर नौकर से तुडवाये l उसके पानी को किसी बर्तन मे लेकर दुकान या फैक्ट्री स्थल पर छिडके व नारियल गरी तथा पीले कपडे का सारा सामान बहते पानी मे प्रवाहित कर दे l उपर वाले की कृपा से रोजगार संबधी बाधा खत्म हो जाएगी l कृपा प्रयाप्त होने के बाद हनुमान जी मंदिर में प्रशाद अवश्य चढ़ाएं।
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Cow ‘सर्व देवा स्थिता देहे सर्व देवामिहि गौ’ Cow ‘Sarva Deva Sthitta Dehe Sarva Devamihi Cow’




‘सर्व देवा स्थिता देहे सर्व देवामिहि गौ’
“SARVE DEVAAH STHITA DEHE SARVA DEVAMAYEEHI GAOU”

The above shloka means that all the deities dwell in the body of a cow. Therefore the cow itself is as holier
, as the deities.
The cow symbolizes the dharma itself. It is said to have stood steadily upon the earth with its four feet during the Satyug (world’s first age of truth), upon three feet during the Tretayug (the second stage of less than perfection), upon two feet during the Dwaparyug (the third stage of dwindling and disappearing perfection) and only on one leg during Kaliyug (the fourth and current age of decadence)
The name for cow in the Vedas is known asaghyna which means invioable.
Another name is “ahi” which means not to be killed and another is “aditi” which means never to be cut into pieces.
Photo: Cow , the epitome of vedic sanskruti !
‘सर्व देवा स्थिता देहे सर्व देवामिहि गौ’
“SARVE DEVAAH STHITA DEHE SARVA DEVAMAYEEHI GAOU”

The above shloka means that all the deities dwell in the body of a cow. Therefore the cow itself is as holier
, as the deities.
The cow symbolizes the dharma itself. It is said to have stood steadily upon the earth with its four feet during the Satyug (world’s first age of truth), upon three feet during the Tretayug (the second stage of less than perfection), upon two feet during the Dwaparyug (the third stage of dwindling and disappearing perfection) and only on one leg during Kaliyug (the fourth and current age of decadence)
The name for cow in the Vedas is known asaghyna which means invioable.
Another name is “ahi” which means not to be killed and another is “aditi” which means never to be cut into pieces.
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love model girl मॉडल लड़की से प्रेम


एक किसान का बेटा मुंबई पढने चला गया वहा उसको मॉडल लड़की से प्रेम हो गया जो पूरी तरह से वेस्टर्न संस्कृति में लिपि पुती थी कुछ दिनों के बाद लड़के को एहसास हो गया की यो मेल न हो सकता और उसने लड़की को पत्र लिखा ..
ओ कंप्यूटर युग की छोरी मन की काली तन की गोरी
करना मुझको माफ़ मैं तुम्हे प्यार नही करपाउँगा
तू फैशन tv सी लगती मैं संस्कार काचेनल हूँ
तू मिनरल पानी की बोतल लगती है मैं गंगा का पावन जल हू
तुम लाखो की गाड़ी में चलने वाली मैं पाव पाव चलने वाला
तुम हलोजन सी जलती हो मैं दीपक सा जलने वाला
करना मुझको माफ़ मैं तुम्हे प्यार नही कर पाउँगा
तुम रैंप पर देह दिखाती हो मैं संस्कार को जीता हू
जब तुम्हे देख कर सिटी बजती मैं घुट लहू का पीता हूँ
तुम सूप पीने वाली मैं मैठा पीने वाला
तुम शॉक अलार्म से भी ना डरो मैं पॉपकॉर्न से डरने वाला
तुम डिस्को की धुन पर नाचो मैं राम नाम ही जबता हूँ
तुम पीता जी को डैड और टेलीफोन को भी डैड
कहो और माँ को मम्मी(mummy) बुलाती हो
तुम करवा चौथ भूल बैठी और वेलन टाइम डे मनाती हो
तुम पॉप म्यूजिक की धुन सी बजती मैं बंसी की धुन का धनिया
मुझ से डॉट कॉम भी ना लगती तुम इंटरनेटी दुनिया
तुम मोबाइल पर मेसेज लिखने वाली मैं पोस्टकार्ड लिखने वाला
तुम राकेट सी लगती हो और मैं उड़ने वाला गुब्बारा सा
तू अपना सब कुछ हार चुकी मैं जीता हुआ जुआरी हूँ
तुम इटली की रानी जैसी मैं देसी अटल बिहारी हूँ
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विज्ञान और धर्म science and religion

इस छोटी सी कथा में एक बहुत बड़ा सन्देश है। गीता एक छोटी सी पुस्तक नही बल्कि एक अंतर्राष्ट्रीय ग्रन्थ है। यह सभी धर्मों से उपर उठकर मानवता को एक विशेष सन्देश देती है।

ब्रिटेन के वैज्ञानिक डॉ. हाल्डेन ने सन् 1922 ई. में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शरीर के अंदर होने वाली रासायनिक क्रियाओं पर अनुसंधान कर पूरे संसार में ख्याति प्राप्त की। इस अनुसंधान के बाद उन्होंने सोचा कि अब धर्म और आध्यात्मिक रहस्यों का अध्ययन किया जाए।

उन्होंने अनेक हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन कर डाला। फिर वह गीता पढ़ने लगे। जैसे-जैसे वह गीता का एकाग्रता से मनन करते गए वैसे-वैसे उनका मोह भौतिक वस्तुओं से हटता गया और उन्हें अहसास हो गया कि भौतिकवादी साधनों से कभी भी मानव को सच्ची शांति व सुख प्राप्त नहीं हो सकता।

सन् 1951 में वह अपनी पत्नी के साथ भारत आए। यहां घूमते हुए वह भुवनेश्वर पहुंचे। वहां अनेक धर्म प्रचारक भी मौजूद थे। अचानक ब्रिटेन के एक धर्म प्रचारक ने उनसे पूछा, 'आप एक अंग्रेज होते हुए भी गीता को सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ क्यों मानते हैं? क्या आपकी नजरों में गीता से बेहतर और कोई ग्रंथ नहीं है?'

ब्रिटेन के धर्म प्रचारक की बात सुनकर डॉ हाल्डेन बोले, 'गीता निरंतर निष्काम कर्म करते रहने की प्रेरणा देकर आलसी लोगों को भी कर्म से जोड़ती है। वह भक्ति और कर्म दोनों को एक-दूसरे का पूरक बताती है। वह किसी संप्रदाय या धर्म का नहीं मानव मात्र के कल्याण का संदेश देती है। इसलिए मुझे गीता ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया है। मैं वैज्ञानिक होकर भी इसे अपने काम के लिए उपयोगी मानता हूं। दूसरे पेशे के लोगों के लिए भी यह उपयोगी है।'

ब्रिटेन के धर्म प्रचारक डॉ. हाल्डेन की यह बात सुनकर चुप हो गए।

Repeat कर रहे हैं क्योंकि बहुत महत्त्वपूर्ण शब्द हैं।
'गीता निरंतर निष्काम कर्म करते रहने की प्रेरणा देकर आलसी लोगों को भी कर्म से जोड़ती है। वह भक्ति और कर्म दोनों को एक-दूसरे का पूरक बताती है। वह किसी संप्रदाय या धर्म का नहीं मानव मात्र के कल्याण का संदेश देती है। इसलिए मुझे गीता ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया है। मैं वैज्ञानिक होकर भी इसे अपने काम के लिए उपयोगी मानता हूं। दूसरे पेशे के लोगों के लिए भी यह उपयोगी है।'
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धार्मिक विचार

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* मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं, अपितु वह उनका निर्माता, नियंत्रणकर्ता और स्वामी होता है। 

* आदमी कभी भी काम की अधिकता से नहीं, बल्कि उसे भार समझ कर अनियमित रूप से करने पर थकता है।

* ईश्वर भी केवल उन्हीं की सहायता करते है, जो अपनी सहायता आप करने को तत्पर रहते है। 

* अपने आपको मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि आप इसमें सफल हो गए, तो आपको हर काम में सफलता मिलेगी। 

* किसी का सुधार उपहास से नहीं, उसे नए सिरे से सोचने और बदलने का अवसर देने से ही होता है। 

* जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। इसलिए हमेशा अच्छा सोचो, निश्चित ही आप अच्छे बनोगे। 
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कोटेश्वर महादेव मंदिर

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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यहां कश्यप ऋषि के पुत्र करजेश्वर ने शिव आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया और शिवलिंग की स्थापना की थी। 

ब्रह्मलीन लक्ष्मीनारायणजी कश्यप इस आश्रम के संस्थापक गुरु रहे हैं। 

कश्यप आश्रम से चार कि.मी. उत्तर में च्यवन ऋषि का आश्रम है। जड़ी-बूटियों के वृक्षों से सुशोभित और जल की अनवरत बहती औषधीय जलधारा इस आश्रम के मुख्य आकर्षण हैं। कश्यप आश्रम से एक कि.मी. पश्चिम में नर्मदा के उत्तर तट पर कोटेश्वर महादेव मंदिर है। एकांत स्थान में स्थित यह अतिप्राचीन होकर अहिल्यादेवी द्वारा स्थापित बताया जाता है। 

कोटेश्वर के समीप ही पश्चिम की ओर नब्बे के दशक में विकसित दुलारी बापू का स्थान है, जो आधुनिक रूप से निर्मित संगमरमर का है। यहां दुलारी बापू अपने भक्तों को आशीष देने हेतु, नर्मदा आराधना में तल्लीन रहते हैं। 

च्यवन आश्रम और कोटेश्वर के मध्य हनुमान माल पर स्थापित हनुमानजी की प्रतिमा, गाय की प्रतिमा इतनी ऊंची पहाड़ी पर स्थित है कि चढ़ने में सांस फूलने लगती है। यह प्रतिमाएं और पत्थरों की दीवार प्राचीन बस्ती होने का प्रमाण देती हैं। 

कोटेश्वर से लगभग पांच कि.मी. उत्तर-पश्चिम में प्रसिद्ध जयंती माता का मंदिर मां आद्यशक्ति की आराधना का केंद्र है। जहां दोनों नवरात्रियों में मालवा व निमाड़ के भक्तजन दर्शन करने आते हैं। 

मंदिर के ऊपर की गुफा से माता जयंती की प्रतिमा नीचे लाकर चोरल नदी के किनारे स्थापित की गई। मंदिर पार्श्वनाथ में प्राचीन जैतगढ़ के किले के अवशेष आज भी मौजूद हैं। 
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महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकि डाकू नहीं बल्कि ऋषियों के ऋषि, योगियों के योगी तथा संगीतज्ञों के संगीतज्ञ थे। उनके नाम का अन्य कोई व्यक्ति डाकू या अपराधी हो सकता है। वाल्मीकि वेदों के ज्ञाता थे। उन्होंने चारों वेदों की शिक्षा रामायण में निहित कर दी थी। 

महर्षि वाल्मीकि ने संप्रदाय और जाति से दूर सभ्य समाज की परिकल्पना दी है। योग और यज्ञ एक ही है तथा इनसे विनाश को टालने के साथ शरीर को विकार मुक्त किया जा सकता है। पुरुषार्थ से देह को ऊपर उठाया जा सकता है। जिस व्यक्ति में पुरुषार्थ होगा, वह क्रियाशील, अनुशासित व परोपकार करने वाला व्यक्ति होगा। 

विश्व का निर्माता एक ही ईश्वर है। उसी एक ईश्वर को अनेक नामों से जाना व पुकारा जाता है। ऐसे ही ऋषि वाल्मीकि ने सभ्य समाज की परिकल्पना हमारे रूबरू साकार की है। 

महाकाव्य रामायण के रचयिता वाल्मीकि अपराधी नहीं बल्कि संतत्व को प्राप्त रचनाकार हैं। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन मूल्यों को सच्चाई के साथ व्यक्त किया है। 

ऐसे महान आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में रामायण की रचना करके राम के जीवन, आदर्शों, सिद्घांतों व नीतियों का वर्णन किया है। 

युवा पीढ़ी रामायण जैसे विश्व प्रसिद्घ महाकाव्य पढ़कर समाज की दिशा बदल सकती है।
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सद्विचार good thoughts

यदि अपराध व हिंसा को कम करना है तो समाज को भी संयम की जीवनशैली अपनाना होगी। यदि समाज के मुखिया ही नैतिक जीवन जिएँ तो हमारा चिंतन बदल सकता है तथा अपराध व हिंसा की समस्या भी कम हो जाएगी।

धार्मिकता के लिए आत्मा का बोध होना जरूरी है। जिस व्यक्ति को आत्मा, कर्म और पुनर्जन्म का ज्ञान न हो व धार्मिक नहीं हो सकता

मानव जाति में हिंसा का मुख्य कारण है हीनता व अहं की वृत्ति। मनुष्य यदि इन दो वृत्तियों से मुक्ति पा ले तो समाज से हिंसा, चोरी, अपराध आदि स्वाभाविक रूप से कम हो जाएँगे।

लोग समस्या का रोना रोते हैं। समस्या हर युग में रही है। अगर समस्या न हो तो आदमी चौबीस घंटे कैसे बिताएगा? समस्या है तभी आदमी चिंतन करता है, समाधान खोजता है, सुलझाने के प्रयत्न करता है और दिन-रात अच्छे से बिता देता है। यदि समस्या न हो तो व्यक्ति निकम्मा बन जाए

लोग केवल संग्रह करना जानते हैं। संयम की बात नहीं जानते। आज केवल आर्थिक व भौतिक विकास की बात पर बल दिया जा रहा है, नियंत्रण व संयम की बात पर नहीं। यही समस्या का सबसे बड़ा कारण है। आजकल प्रयोजन व उद्देश्य की पूर्ति के बिना कोई कार्य नहीं होता ।


शब्द से अधिक मौन की महत्ता है। जो शब्द ने कहा वह कह गया पर जो मौन ने कहा वह रह गया। साहित्य में कल्पना, सरसता और चुभन का महत्व है किंतु आज के साहित्य में चुभन कम हो गई है। विद्वान, पंडित, वनिता और लता को हमेशा सहारे की जरूरत होती है किंतु इन दिनों साहित्यकारों को समाज का सहयोग कम मिल रहा है। मेरा मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, अज्ञेय, बच्चन जैसे साहित्यकारों से नेकट्य रहा है। मेरी शुरुआत भी साहित्य से हुई विशेषकर कविता से। साहित्यकार, योगी और वैज्ञानिक को एकाग्रता की आवश्यकता होती है। 

जब तक किसी राष्ट्र का नैतिक स्तर उन्नात नहीं होता, तब तक जो भी प्रयत्न हो रहा है, वह फलदायी नहीं बनेगा। जरूरी है समाज में नैतिक स्तर ऊँचा हो।

केवल दो शब्दों में संपूर्ण दुनिया की समस्या और समाधान छिपे हुए हैं, एक है पदार्थ जगत और दूसरा है चेतना जगत। पदार्थ भोग का और चेतना त्याग का जगत है। हमारे सामने केवल पदार्थ जगत है और इसकी प्रकृति है समस्या पैदा करना। इस जगत में प्रारंभ में अच्छा लगता है और बाद में यह नीरस लगने लगता है। दूसरा है चेतना जगत जो प्रारंभ में कठिन लगता है लेकिन जैसे-जैसे व्यक्ति उस दिशा में जाता है उसे असीम आनंद प्राप्त होने लगता है।
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Feetured Post

रिश्तों की अहमियत

 मैं घर की नई बहू थी और एक प्राइवेट बैंक में एक अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मेरी सास को गुज़रे हुए एक साल हो चुका था। घर में मेरे ससुर और पति...